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2.4k
⌀ |
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tere-tausan-ko-sabaa-baandhte-hain-mirza-ghalib-ghazals |
तेरे तौसन को सबा बाँधते हैं
हम भी मज़मूँ की हवा बाँधते हैं
आह का किस ने असर देखा है
हम भी एक अपनी हवा बाँधते हैं
तेरी फ़ुर्सत के मुक़ाबिल ऐ उम्र
बर्क़ को पा-ब-हिना बाँधते हैं
क़ैद-ए-हस्ती से रिहाई मा'लूम
अश्क को बे-सर-ओ-पा बाँधते हैं
नश्शा-ए-रंग से है वाशुद-ए-गुल
मस्त कब बंद-ए-क़बा बाँधते हैं
ग़लती-हा-ए-मज़ामीं मत पूछ
लोग नाले को रसा बाँधते हैं
अहल-ए-तदबीर की वामांदगियाँ
आबलों पर भी हिना बाँधते हैं
सादा पुरकार हैं ख़ूबाँ 'ग़ालिब'
हम से पैमान-ए-वफ़ा बाँधते हैं
पाँव में जब वो हिना बाँधते हैं
मेरे हाथों को जुदा बाँधते हैं
हुस्न-ए-अफ़्सुर्दा-दिल-हा-रंगीं
शौक़ को पा-ब-हिना बाँधते हैं
क़ैद में भी है असीरी आज़ाद
चश्म-ए-ज़ंजीर को वा बाँधते हैं
शैख़-जी का'बे का जाना मा'लूम
आप मस्जिद में गधा बाँधते हैं
किस का दिल ज़ुल्फ़ से भागा कि 'असद'
दस्त-ए-शाना ब-क़ज़ा बाँधते हैं
तेरे बीमार पे हैं फ़रियादी
वो जो काग़ज़ में दवा बाँधते हैं |
hai-sabza-zaar-har-dar-o-diivaar-e-gam-kada-mirza-ghalib-ghazals |
है सब्ज़ा-ज़ार हर दर-ओ-दीवार-ए-ग़म-कदा
जिस की बहार ये हो फिर उस की ख़िज़ाँ न पूछ
नाचार बेकसी की भी हसरत उठाइए
दुश्वारी-ए-रह-ओ-सितम-ए-हम-रहाँ न पूछ
जुज़ दिल सुराग़-ए-दर्द ब-दिल-ख़ुफ़्तगाँ न पूछ
आईना अर्ज़ कर ख़त-ओ-ख़ाल-ए-बयाँ न पूछ
हिन्दोस्तान साया-ए-गुल पा-ए-तख़्त था
जाह-ओ-जलाल-ए-अहद-ए-विसाल-ए-बुताँ न पूछ
ग़फ़लत-मता-ए-कफ़्फ़ा-ए-मीज़ान-ए-अद्ल हूँ
या रब हिसाब-ए-सख़्ती-ए-ख़्वाब-ए-गिराँ न पूछ
हर दाग़-ए-ताज़ा यक-दिल-ए-दाग़ इंतिज़ार है
अर्ज़-ए-फ़ज़ा-ए-सीना-ए-दर्द इम्तिहाँ न पूछ
कहता था कल वो महरम-ए-राज़ अपने से कि आह
दर्द-ए-जुदाइ-ए-'असद'-उल्लाह-ख़ाँ न पूछ
पर्वाज़-ए-यक-तप-ए-ग़म-ए-तसख़ीर-ए-नाला है
गरमी-ए-नब्ज़-ए-ख़ार-ओ-ख़स-ए-आशियाँ न पूछ
तू मश्क़-ए-बाज़ कर दिल-ए-परवाना है बहार
बेताबी-ए-तजल्ली-ए-आतिश-ब-जाँ न पूछ |
nahiin-ki-mujh-ko-qayaamat-kaa-e-tiqaad-nahiin-mirza-ghalib-ghazals |
नहीं कि मुझ को क़यामत का ए'तिक़ाद नहीं
शब-ए-फ़िराक़ से रोज़-ए-जज़ा ज़ियाद नहीं
कोई कहे कि शब-ए-मह में क्या बुराई है
बला से आज अगर दिन को अब्र ओ बाद नहीं
जो आऊँ सामने उन के तो मर्हबा न कहें
जो जाऊँ वाँ से कहीं को तो ख़ैर-बाद नहीं
कभी जो याद भी आता हूँ मैं तो कहते हैं
कि आज बज़्म में कुछ फ़ित्ना-ओ-फ़साद नहीं
अलावा ईद के मिलती है और दिन भी शराब
गदा-ए-कूच-ए-मय-ख़ाना ना-मुराद नहीं
जहाँ में हो ग़म-ए-शादी बहम हमें क्या काम
दिया है हम को ख़ुदा ने वो दिल की शाद नहीं
तुम उन के वा'दे का ज़िक्र उन से क्यूँ करो 'ग़ालिब'
ये क्या कि तुम कहो और वो कहें कि याद नहीं |
safaa-e-hairat-e-aaiina-hai-saamaan-e-zang-aakhir-mirza-ghalib-ghazals |
सफ़ा-ए-हैरत-ए-आईना है सामान-ए-ज़ंग आख़िर
तग़य्युर आब-ए-बर-जा-मांदा का पाता है रंग आख़िर
न की सामान-ए-ऐश-ओ-जाह ने तदबीर वहशत की
हुआ जाम-ए-ज़मुर्रद भी मुझे दाग़-ए-पलंग आख़िर
ख़त-ए-नौ-ख़ेज़ नील-ए-चश्म ज़ख़्म-ए-साफ़ी-ए-आरिज़
लिया आईना ने हिर्ज़-ए-पर-ए-तूती ब-चंग आख़िर
हिलाल-आसा तही रह गर कुशादन-हा-ए-दिल चाहे
हुआ मह कसरत-ए-सरमाया-अंदाेज़ी से तंग आख़िर
तड़प कर मर गया वो सैद-ए-बाल-अफ़्शाँ कि मुज़्तर था
हुआ नासूर-ए-चश्म-ए-ताज़ियत चश्म-ए-ख़दंग आख़िर
लिखी यारों की बद-मस्ती ने मयख़ाने की पामाली
हुइ क़तरा-फ़िशानी-हा-ए-मय-बारान-ए-संग आख़िर
'असद' पर्दे में भी आहंग-ए-शौक़-ए-यार क़ाएम है
नहीं है नग़्मे से ख़ाली ख़मीदन-हा-ए-चंग आख़िर |
naved-e-amn-hai-bedaad-e-dost-jaan-ke-liye-mirza-ghalib-ghazals |
नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए
रही न तर्ज़-ए-सितम कोई आसमाँ के लिए
बला से गर मिज़ा-ए-यार तिश्ना-ए-ख़ूँ है
रखूँ कुछ अपनी भी मिज़्गान-ए-ख़ूँ फ़िशाँ के लिए
वो ज़िंदा हम हैं कि हैं रू-शनास-ए-ख़ल्क़ ऐ ख़िज़्र
न तुम कि चोर बने उम्र-ए-जावेदाँ के लिए
रहा बला में भी मैं मुब्तला-ए-आफ़त-ए-रश्क
बला-ए-जाँ है अदा तेरी इक जहाँ के लिए
फ़लक न दूर रख उस से मुझे कि मैं ही नहीं
दराज़-दस्ती-ए-क़ातिल के इम्तिहाँ के लिए
मिसाल ये मिरी कोशिश की है कि मुर्ग़-ए-असीर
करे क़फ़स में फ़राहम ख़स आशियाँ के लिए
गदा समझ के वो चुप था मिरी जो शामत आई
उठा और उठ के क़दम मैं ने पासबाँ के लिए
ब-क़द्र-ए-शौक़ नहीं ज़र्फ़-ए-तंगना-ए-ग़ज़ल
कुछ और चाहिए वुसअत मिरे बयाँ के लिए
दिया है ख़ल्क़ को भी ता उसे नज़र न लगे
बना है ऐश तजम्मुल हुसैन ख़ाँ के लिए
ज़बाँ पे बार-ए-ख़ुदाया ये किस का नाम आया
कि मेरे नुत्क़ ने बोसे मिरी ज़बाँ के लिए
नसीर-ए-दौलत-ओ-दीं और मुईन-ए-मिल्लत-ओ-मुल्क
बना है चर्ख़-ए-बरीं जिस के आस्ताँ के लिए
ज़माना अहद में उस के है महव-ए-आराइश
बनेंगे और सितारे अब आसमाँ के लिए
वरक़ तमाम हुआ और मद्ह बाक़ी है
सफ़ीना चाहिए इस बहर-ए-बेकराँ के लिए
अदा-ए-ख़ास से 'ग़ालिब' हुआ है नुक्ता-सरा
सला-ए-आम है यारान-ए-नुक्ता-दाँ के लिए |
barshikaal-e-girya-e-aashiq-hai-dekhaa-chaahiye-mirza-ghalib-ghazals |
बर्शिकाल-ए-गिर्या-ए-आशिक़ है देखा चाहिए
खिल गई मानिंद-ए-गुल सौ जा से दीवार-ए-चमन
उल्फ़त-ए-गुल से ग़लत है दावा-ए-वारस्तगी
सर्व है बा-वस्फ़-ए-आज़ादी गिरफ़्तार-ए-चमन
साफ़ है अज़ बस-कि अक्स-ए-गुल से गुलज़ार-ए-चमन
जानशीन-ए-जौहर-ए-आईना है ख़ार-ए-चमन
है नज़ाकत बस कि फ़स्ल-ए-गुल में मेमार-ए-चमन
क़ालिब-ए-गुल में ढली है ख़िश्त-ए-दीवार-ए-चमन
तेरी आराइश का इस्तिक़बाल करती है बहार
जौहर-ए-आईना है याँ नक़्श-ए-एहज़ार-ए-चमन
बस कि पाई यार की रंगीं-अदाई से शिकस्त
है कुलाह-ए-नाज़-ए-गुल बर ताक़-ए-दीवार-ए-चमन
वक़्त है गर बुलबुल-ए-मिस्कीं ज़ुलेख़ाई करे
यूसुफ़-ए-गुल जल्वा-फ़रमा है ब-बाज़ार-ए-चमन
वहशत-अफ़्ज़ा गिर्या-हा मौक़ूफ़-ए-फ़स्ल-ए-गुल 'असद'
चश्म-ए-दरिया-रेज़ है मीज़ाब-ए-सरकार-ए-चमन |
zulmat-kade-men-mere-shab-e-gam-kaa-josh-hai-mirza-ghalib-ghazals |
ज़ुल्मत-कदे में मेरे शब-ए-ग़म का जोश है
इक शम्अ है दलील-ए-सहर सो ख़मोश है
ने मुज़्दा-ए-विसाल न नज़्ज़ारा-ए-जमाल
मुद्दत हुई कि आश्ती-ए-चश्म-ओ-गोश है
मय ने किया है हुस्न-ए-ख़ुद-आरा को बे-हिजाब
ऐ शौक़! हाँ इजाज़त-ए-तस्लीम-ए-होश है
गौहर को अक़्द-ए-गर्दन-ए-ख़ूबाँ में देखना
क्या औज पर सितारा-ए-गौहर-फ़रोश है
दीदार बादा हौसला साक़ी निगाह मस्त
बज़्म-ए-ख़याल मय-कदा-ए-बे-ख़रोश है
ऐ ताज़ा वारदान-ए-बिसात-ए-हवा-ए-दिल
ज़िन्हार अगर तुम्हें हवस-ए-नाए-ओ-नोश है
देखो मुझे जो दीदा-ए-इबरत-निगाह हो
मेरी सुनो जो गोश-ए-नसीहत-नेओश है
साक़ी-ब-जल्वा दुश्मन-ए-ईमान-ओ-आगही
मुतरिब ब-नग़्मा रहज़न-ए-तम्कीन-ओ-होश है
या शब को देखते थे कि हर गोशा-ए-बिसात
दामान-ए-बाग़बान ओ कफ़-ए-गुल-फ़रोश है
लुफ़्त-ए-ख़िरम-ए-साक़ी ओ ज़ौक़-ए-सदा-ए-चंग
ये जन्नत-ए-निगाह वो फ़िरदौस-ए-गोश है
या सुब्ह-दम जो देखिए आ कर तो बज़्म में
ने वो सुरूर ओ सोज़ न जोश-ओ-ख़रोश है
दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई
इक शम्अ रह गई है सो वो भी ख़मोश है
आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में
'ग़ालिब' सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है |
husn-e-be-parvaa-khariidaar-e-mataa-e-jalva-hai-mirza-ghalib-ghazals |
हुस्न-ए-बे-परवा ख़रीदार-ए-माता-ए-जल्वा है
आइना ज़ानू-ए-फ़िक्र-ए-इख़्तिरा-ए-जल्वा है
ता-कुजा ऐ आगही रंग-ए-तमाशा बाख़्तन
चश्म-ए-वा-गर्दीदा आग़ोश-ए-विदा-ए-जल्वा है |
kab-vo-suntaa-hai-kahaanii-merii-mirza-ghalib-ghazals |
कब वो सुनता है कहानी मेरी
और फिर वो भी ज़बानी मेरी
ख़लिश-ए-ग़म्ज़ा-ए-ख़ूँ-रेज़ न पूछ
देख ख़ूँनाबा-फ़िशानी मेरी
क्या बयाँ कर के मिरा रोएँगे यार
मगर आशुफ़्ता-बयानी मेरी
हूँ ज़-ख़ुद रफ़्ता-ए-बैदा-ए-ख़याल
भूल जाना है निशानी मेरी
मुतक़ाबिल है मुक़ाबिल मेरा
रुक गया देख रवानी मेरी
क़द्र-ए-संग-ए-सर-ए-रह रखता हूँ
सख़्त अर्ज़ां है गिरानी मेरी
गर्द-बाद-ए-रह-ए-बेताबी हूँ
सरसर-ए-शौक़ है बानी मेरी
दहन उस का जो न मालूम हुआ
खुल गई हेच मदानी मेरी
कर दिया ज़ोफ़ ने आजिज़ 'ग़ालिब'
नंग-ए-पीरी है जवानी मेरी |
na-huii-gar-mire-marne-se-tasallii-na-sahii-mirza-ghalib-ghazals |
न हुई गर मिरे मरने से तसल्ली न सही
इम्तिहाँ और भी बाक़ी हो तो ये भी न सही
ख़ार ख़ार-ए-अलम-ए-हसरत-ए-दीदार तो है
शौक़ गुल-चीन-ए-गुलिस्तान-ए-तसल्ली न सही
मय-परस्ताँ ख़ुम-ए-मय मुँह से लगाए ही बने
एक दिन गर न हुआ बज़्म में साक़ी न सही
नफ़स-ए-क़ैस कि है चश्म-ओ-चराग़-ए-सहरा
गर नहीं शम-ए-सियह-ख़ाना-ए-लैली न सही
एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़
नौहा-ए-ग़म ही सही नग़्मा-ए-शादी न सही
न सताइश की तमन्ना न सिले की पर्वा
गर नहीं हैं मिरे अशआ'र में मा'नी न सही
इशरत-ए-सोहबत-ए-ख़ूबाँ ही ग़नीमत समझो
न हुई 'ग़ालिब' अगर उम्र-ए-तबीई न सही |
yak-zarra-e-zamiin-nahiin-be-kaar-baag-kaa-mirza-ghalib-ghazals |
यक-ज़र्रा-ए-ज़मीं नहीं बे-कार बाग़ का
याँ जादा भी फ़तीला है लाले के दाग़ का
बे-मय किसे है ताक़त-ए-आशोब-ए-आगही
खींचा है इज्ज़-ए-हौसला ने ख़त अयाग़ का
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
कहते हैं जिस को इश्क़ ख़लल है दिमाग़ का
ताज़ा नहीं है नश्शा-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न मुझे
तिर्याकी-ए-क़दीम हूँ दूद-ए-चराग़ का
सौ बार बंद-ए-इश्क़ से आज़ाद हम हुए
पर क्या करें कि दिल ही अदू है फ़राग़ का
बे-ख़ून-ए-दिल है चश्म में मौज-ए-निगह ग़ुबार
ये मय-कदा ख़राब है मय के सुराग़ का
बाग़-ए-शगुफ़्ता तेरा बिसात-ए-नशात-ए-दिल
अब्र-ए-बहार ख़ुम-कद किस के दिमाग़ का?
जोश-ए-बहार-ए-कुल्फ़त-ए-नज़्ज़ारा है 'असद'
है अब्र पम्बा रौज़न-ए-दीवार-ए-बाग़ का |
mujh-ko-dayaar-e-gair-men-maaraa-vatan-se-duur-mirza-ghalib-ghazals |
मुझ को दयार-ए-ग़ैर में मारा वतन से दूर
रख ली मिरे ख़ुदा ने मिरी बेकसी की शर्म
वो हल्क़ा-हा-ए-ज़ुल्फ़ कमीं में हैं या ख़ुदा
रख लीजो मेरे दावा-ए-वारस्तगी की शर्म |
dil-se-tirii-nigaah-jigar-tak-utar-gaii-mirza-ghalib-ghazals |
दिल से तिरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ा-मंद कर गई
शक़ हो गया है सीना ख़ुशा लज़्ज़त-ए-फ़राग़
तकलीफ़-ए-पर्दा-दारी-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर गई
वो बादा-ए-शबाना की सरमस्तियाँ कहाँ
उठिए बस अब कि लज़्ज़त-ए-ख़्वाब-ए-सहर गई
उड़ती फिरे है ख़ाक मिरी कू-ए-यार में
बारे अब ऐ हवा हवस-ए-बाल-ओ-पर गई
देखो तो दिल-फ़रेबी-ए-अंदाज़-ए-नक़्श-ए-पा
मौज-ए-ख़िराम-ए-यार भी क्या गुल कतर गई
हर बुल-हवस ने हुस्न-परस्ती शिआ'र की
अब आबरू-ए-शेवा-ए-अहल-ए-नज़र गई
नज़्ज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का
मस्ती से हर निगह तिरे रुख़ पर बिखर गई
फ़र्दा ओ दी का तफ़रक़ा यक बार मिट गया
कल तुम गए कि हम पे क़यामत गुज़र गई
मारा ज़माने ने असदुल्लाह ख़ाँ तुम्हें
वो वलवले कहाँ वो जवानी किधर गई |
huii-taakhiir-to-kuchh-baais-e-taakhiir-bhii-thaa-mirza-ghalib-ghazals |
हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था
आप आते थे मगर कोई इनाँ-गीर भी था
तुम से बेजा है मुझे अपनी तबाही का गिला
उस में कुछ शाइब-ए-ख़ूबी-ए-तक़दीर भी था
तू मुझे भूल गया हो तो पता बतला दूँ
कभी फ़ितराक में तेरे कोई नख़चीर भी था
क़ैद में है तिरे वहशी को वही ज़ुल्फ़ की याद
हाँ कुछ इक रंज-ए-गिराँ-बारी-ए-ज़ंजीर भी था
बिजली इक कौंद गई आँखों के आगे तो क्या
बात करते कि मैं लब-तिश्ना-ए-तक़रीर भी था
यूसुफ़ उस को कहूँ और कुछ न कहे ख़ैर हुई
गर बिगड़ बैठे तो मैं लाइक़-ए-ताज़ीर भी था
देख कर ग़ैर को हो क्यूँ न कलेजा ठंडा
नाला करता था वले तालिब-ए-तासीर भी था
पेशे में ऐब नहीं रखिए न फ़रहाद को नाम
हम ही आशुफ़्ता-सरों में वो जवाँ-मीर भी था
हम थे मरने को खड़े पास न आया न सही
आख़िर उस शोख़ के तरकश में कोई तीर भी था
पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर ना-हक़
आदमी कोई हमारा दम-ए-तहरीर भी था
रेख़्ते के तुम्हीं उस्ताद नहीं हो 'ग़ालिब'
कहते हैं अगले ज़माने में कोई 'मीर' भी था |
bahut-sahii-gam-e-giitii-sharaab-kam-kyaa-hai-mirza-ghalib-ghazals |
बहुत सही ग़म-ए-गीती शराब कम क्या है
ग़ुलाम-ए-साक़ी-ए-कौसर हूँ मुझ को ग़म क्या है
तुम्हारी तर्ज़-ओ-रविश जानते हैं हम क्या है
रक़ीब पर है अगर लुत्फ़ तो सितम क्या है
सुख़न में ख़ामा-ए-ग़ालिब की आतिश-अफ़्शानी
यक़ीं है हम को भी लेकिन अब उस में दम क्या है
कटे तो शब कहें काटे तो साँप कहलावे
कोई बताओ कि वो ज़ुल्फ़-ए-ख़म-ब-ख़म क्या है
लिखा करे कोई अहकाम-ए-ताला-ए-मौलूद
किसे ख़बर है कि वाँ जुम्बिश-ए-क़लम क्या है
न हश्र-ओ-नश्र का क़ाएल न केश ओ मिल्लत का
ख़ुदा के वास्ते ऐसे की फिर क़सम क्या है
वो दाद-ओ-दीद गराँ-माया शर्त है हमदम
वगर्ना मेहर-ए-सुलेमान-ओ-जाम-ए-जम क्या है |
hai-kis-qadar-halaak-e-fareb-e-vafaa-e-gul-mirza-ghalib-ghazals |
है किस क़दर हलाक-ए-फ़रेब-ए-वफ़ा-ए-गुल
बुलबुल के कारोबार पे हैं ख़ंदा-हा-ए-गुल
आज़ादी-ए-नसीम मुबारक कि हर तरफ़
टूटे पड़े हैं हल्क़ा-ए-दाम-ए-हवा-ए-गुल
जो था सो मौज-ए-रंग के धोके में मर गया
ऐ वाए नाला-ए-लब-ए-ख़ूनीं-नवा-ए-गुल
ख़ुश-हाल उस हरीफ़-ए-सियह-मस्त का कि जो
रखता हो मिस्ल-ए-साया-ए-गुल सर-ब-पा-ए-गुल
ईजाद करती है उसे तेरे लिए बहार
मेरा रक़ीब है नफ़स-ए-इत्र-सा-ए-गुल
शर्मिंदा रखते हैं मुझे बाद-ए-बहार से
मीना-ए-बे-शराब ओ दिल-ए-बे-हवा-ए-गुल
सतवत से तेरे जल्वा-ए-हुस्न-ए-ग़ुयूर की
ख़ूँ है मिरी निगाह में रंग-ए-अदा-ए-गुल
तेरे ही जल्वे का है ये धोका कि आज तक
बे-इख़्तियार दौड़े है गुल दर-क़फ़ा-ए-गुल
'ग़ालिब' मुझे है उस से हम-आग़ोशी आरज़ू
जिस का ख़याल है गुल-ए-जेब-ए-क़बा-ए-गुल
दीवानगाँ का चारा फ़रोग़-ए-बहार है
है शाख़-ए-गुल में पंजा-ए-ख़ूबाँ बजाए गुल
मिज़्गाँ तलक रसाई-ए-लख़्त-ए-जिगर कहाँ
ऐ वाए गर निगाह न हो आश्ना-ए-गुल |
ishrat-e-qatra-hai-dariyaa-men-fanaa-ho-jaanaa-mirza-ghalib-ghazals |
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
तुझ से क़िस्मत में मिरी सूरत-ए-क़ुफ़्ल-ए-अबजद
था लिखा बात के बनते ही जुदा हो जाना
दिल हुआ कशमकश-ए-चारा-ए-ज़हमत में तमाम
मिट गया घिसने में इस उक़दे का वा हो जाना
अब जफ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह
इस क़दर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना
ज़ोफ़ से गिर्या मुबद्दल ब-दम-ए-सर्द हुआ
बावर आया हमें पानी का हवा हो जाना
दिल से मिटना तिरी अंगुश्त-ए-हिनाई का ख़याल
हो गया गोश्त से नाख़ुन का जुदा हो जाना
है मुझे अब्र-ए-बहारी का बरस कर खुलना
रोते रोते ग़म-ए-फ़ुर्क़त में फ़ना हो जाना
गर नहीं निकहत-ए-गुल को तिरे कूचे की हवस
क्यूँ है गर्द-ए-रह-ए-जौलान-ए-सबा हो जाना
बख़्शे है जल्वा-ए-गुल ज़ौक़-ए-तमाशा 'ग़ालिब'
चश्म को चाहिए हर रंग में वा हो जाना
ता कि तुझ पर खुले एजाज़-ए-हवा-ए-सैक़ल
देख बरसात में सब्ज़ आइने का हो जाना |
tapish-se-merii-vaqf-e-kashmakash-har-taar-e-bistar-hai-mirza-ghalib-ghazals |
तपिश से मेरी वक़्फ़-ए-कशमकश हर तार-ए-बिस्तर है
मिरा सर रंज-ए-बालीं है मिरा तन बार-ए-बिस्तर है
सरिश्क-ए-सर ब-सहरा दादा नूर-उल-ऐन-ए-दामन है
दिल-ए-बे-दस्त-ओ-पा उफ़्तादा बर-ख़ुरदार-ए-बिस्तर है
ख़ुशा इक़बाल-ए-रंजूरी अयादत को तुम आए हो
फ़रोग-ए-शम-ए-बालीं फ़रोग-ए-शाम-ए-बालीँ है
ब-तूफ़ाँ-गाह-ए-जोश-ए-इज़्तिराब-ए-शाम-ए-तन्हाई
शुआ-ए-आफ़्ताब-ए-सुब्ह-ए-महशर तार-ए-बिस्तर है
अभी आती है बू बालिश से उस की ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं की
हमारी दीद को ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा आर-ए-बिस्तर है
कहूँ क्या दिल की क्या हालत है हिज्र-ए-यार में ग़ालिब
कि बेताबी से हर-यक तार-ए-बिस्तर ख़ार-ए-बिस्तर है |
gam-e-duniyaa-se-gar-paaii-bhii-fursat-sar-uthaane-kii-mirza-ghalib-ghazals |
ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की
फ़लक का देखना तक़रीब तेरे याद आने की
खुलेगा किस तरह मज़मूँ मिरे मक्तूब का या-रब
क़सम खाई है उस काफ़िर ने काग़ज़ के जलाने की
लिपटना पर्नियाँ में शोला-ए-आतिश का पिन्हाँ है
वले मुश्किल है हिकमत दिल में सोज़-ए-ग़म छुपाने की
उन्हें मंज़ूर अपने ज़ख़्मियों का देख आना था
उठे थे सैर-ए-गुल को देखना शोख़ी बहाने की
हमारी सादगी थी इल्तिफ़ात-ए-नाज़ पर मरना
तिरा आना न था ज़ालिम मगर तम्हीद जाने की
लकद कूब-ए-हवादिस का तहम्मुल कर नहीं सकती
मिरी ताक़त कि ज़ामिन थी बुतों की नाज़ उठाने की
कहूँ क्या ख़ूबी-ए-औज़ा-ए-अब्ना-ए-ज़माँ 'ग़ालिब'
बदी की उस ने जिस से हम ने की थी बार-हा नेकी |
diyaa-hai-dil-agar-us-ko-bashar-hai-kyaa-kahiye-mirza-ghalib-ghazals |
दिया है दिल अगर उस को बशर है क्या कहिए
हुआ रक़ीब तो हो नामा-बर है क्या कहिए
ये ज़िद कि आज न आवे और आए बिन न रहे
क़ज़ा से शिकवा हमें किस क़दर है क्या कहिए
रहे है यूँ गह-ओ-बे-गह कि कू-ए-दोस्त को अब
अगर न कहिए कि दुश्मन का घर है क्या कहिए
ज़हे करिश्मा कि यूँ दे रक्खा है हम को फ़रेब
कि बिन कहे ही उन्हें सब ख़बर है क्या कहिए
समझ के करते हैं बाज़ार में वो पुर्सिश-ए-हाल
कि ये कहे कि सर-ए-रहगुज़र है क्या कहिए
तुम्हें नहीं है सर-ए-रिश्ता-ए-वफ़ा का ख़याल
हमारे हाथ में कुछ है मगर है क्या कहिए
उन्हें सवाल पे ज़ोम-ए-जुनूँ है क्यूँ लड़िए
हमें जवाब से क़त-ए-नज़र है क्या कहिए
हसद सज़ा-ए-कमाल-ए-सुख़न है क्या कीजिए
सितम बहा-ए-मता-ए-हुनर है क्या कहिए
कहा है किस ने कि 'ग़ालिब' बुरा नहीं लेकिन
सिवाए इस के कि आशुफ़्ता-सर है क्या कहिए |
aamad-e-sailaab-e-tuufaan-e-sadaa-e-aab-hai-mirza-ghalib-ghazals |
आमद-ए-सैलाब-ए-तूफ़ान-ए-सदा-ए-आब है
नक़्श-ए-पा जो कान में रखता है उँगली जादा से
बज़्म-ए-मय वहशत-कदा है किस की चश्म-ए-मस्त का
शीशे में नब्ज़-ए-परी पिन्हाँ है मौज-ए-बादा से
देखता हूँ वहशत-ए-शौक़-ए-ख़रोश-आमादा से
फ़ाल-ए-रुस्वाई सरिश्क-ए-सर-ब-सहरा-दादा से
दाम गर सब्ज़े में पिन्हाँ कीजिए ताऊस हो
जोश-ए-नैरंग-ए-बहार अर्ज़-ए-सहरा-दादा से
ख़ेमा-ए-लैला सियाह ओ ख़ाना-ए-मजनूँ ख़राब
जोश-ए-वीरानी है इश्क़-ए-दाग़-ए-बैरूं-दादा से
बज़्म-ए-हस्ती वो तमाशा है कि जिस को हम 'असद'
देखते हैं चश्म-ए-अज़-ख़्वाब-ए-अदम-नकुशादा से |
kahte-to-ho-tum-sab-ki-but-e-gaaliyaa-muu-aae-mirza-ghalib-ghazals |
कहते तो हो तुम सब कि बुत-ए-ग़ालिया-मू आए
यक मर्तबा घबरा के कहो कोई कि वो आए
हूँ कशमकश-ए-नज़अ' में हाँ जज़्ब-ए-मोहब्बत
कुछ कह न सकूँ पर वो मिरे पूछने को आए
है साइक़ा ओ शो'ला ओ सीमाब का आलम
आना ही समझ में मिरी आता नहीं गो आए
ज़ाहिर है कि घबरा के न भागेंगे नकीरैन
हाँ मुँह से मगर बादा-ए-दोशीना की बू आए
जल्लाद से डरते हैं न वाइ'ज़ से झगड़ते
हम समझे हुए हैं उसे जिस भेस में जो आए
हाँ अहल-ए-तलब कौन सुने ताना-ए-ना-याफ़्त
देखा कि वो मिलता नहीं अपने ही को खो आए
अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें
उस दर पे नहीं बार तो का'बे ही को हो आए
की हम-नफ़सों ने असर-ए-गिर्या में तक़रीर
अच्छे रहे आप इस से मगर मुझ को डुबो आए
उस अंजुमन-ए-नाज़ की क्या बात है 'ग़ालिब'
हम भी गए वाँ और तिरी तक़दीर को रो आए |
vo-firaaq-aur-vo-visaal-kahaan-mirza-ghalib-ghazals |
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
वो शब-ओ-रोज़ ओ माह-ओ-साल कहाँ
फ़ुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे
ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल कहाँ
दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा
शोर-ए-सौदा-ए-ख़त्त-ओ-ख़ाल कहाँ
थी वो इक शख़्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ
ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ
हम से छूटा क़िमार-ख़ाना-ए-इश्क़
वाँ जो जावें गिरह में माल कहाँ
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
मुज़्महिल हो गए क़वा ग़ालिब
वो अनासिर में ए'तिदाल कहाँ
बोसे में वो मुज़ाइक़ा न करे
पर मुझे ताक़त-ए-सवाल कहाँ
फ़लक-ए-सिफ़्ला बे-मुहाबा है
इस सितम-गर को इंफ़िआल कहाँ |
rukh-e-nigaar-se-hai-soz-e-jaavidaani-e-shama-mirza-ghalib-ghazals |
रुख़-ए-निगार से है सोज़-ए-जावेदानी-ए-शमअ'
हुई है आतिश-ए-गुल आब-ए-ज़ि़ंदगानी-ए-शमअ'
ज़बान-ए-अहल-ए-ज़बाँ में है मर्ग-ए-ख़ामोशी
ये बात बज़्म में रौशन हुई ज़बानी-ए-शमअ'
करे है सर्फ़ ब-ईमा-ए-शो'ला क़िस्सा तमाम
ब-तर्ज़-ए-अहल-ए-फ़ना है फ़साना-ख़्वानी-ए-शमअ'
ग़म उस को हसरत-ए-परवाना का है ऐ शो'ले
तिरे लरज़ने से ज़ाहिर है ना-तवानी-ए-शमअ'
तिरे ख़याल से रूह एहतिज़ाज़ करती है
ब-जल्वा-रेज़ी-ए-बाद-ओ-ब-पर-फ़िशानी-ए-शमअ'
नशात-ए-दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़ की बहार न पूछ
शगुफ़्तगी है शहीद-ए-गुल-ए-खिज़ानी-ए-शमअ'
जले है देख के बालीन-ए-यार पर मुझ को
न क्यूँ हो दिल पे मिरे दाग़-ए-बद-गुमानी-ए-शमअ' |
balaa-se-hain-jo-ye-pesh-e-nazar-dar-o-diivaar-mirza-ghalib-ghazals |
बला से हैं जो ये पेश-ए-नज़र दर-ओ-दीवार
निगाह-ए-शौक़ को हैं बाल-ओ-पर दर-ओ-दीवार
वुफ़ूर-ए-अश्क ने काशाने का किया ये रंग
कि हो गए मिरे दीवार-ओ-दर दर-ओ-दीवार
नहीं है साया कि सुन कर नवेद-ए-मक़दम-ए-यार
गए हैं चंद क़दम पेश-तर दर-ओ-दीवार
हुई है किस क़दर अर्ज़ानी-ए-मय-ए-जल्वा
कि मस्त है तिरे कूचे में हर दर-ओ-दीवार
जो है तुझे सर-ए-सौदा-ए-इन्तिज़ार तो आ
कि हैं दुकान-ए-मता-ए-नज़र दर-ओ-दीवार
हुजूम-ए-गिर्या का सामान कब किया मैं ने
कि गिर पड़े न मिरे पाँव पर दर-ओ-दीवार
वो आ रहा मिरे हम-साए में तो साए से
हुए फ़िदा दर-ओ-दीवार पर दर-ओ-दीवार
नज़र में खटके है बिन तेरे घर की आबादी
हमेशा रोते हैं हम देख कर दर-ओ-दीवार
न पूछ बे-ख़ुदी-ए-ऐश-ए-मक़दम-ए-सैलाब
कि नाचते हैं पड़े सर-ब-सर दर-ओ-दीवार
न कह किसी से कि 'ग़ालिब' नहीं ज़माने में
हरीफ़-ए-राज़-ए-मोहब्बत मगर दर-ओ-दीवार |
hai-aarmiidagii-men-nikohish-bajaa-mujhe-mirza-ghalib-ghazals |
है आरमीदगी में निकोहिश बजा मुझे
सुब्ह-ए-वतन है ख़ंदा-ए-दंदाँ-नुमा मुझे
ढूँडे है उस मुग़ंन्नी-ए-आतिश-नफ़स को जी
जिस की सदा हो जल्वा-ए-बर्क़-ए-फ़ना मुझे
मस्ताना तय करूँ हूँ रह-ए-वादी-ए-ख़याल
ता बाज़-गश्त से न रहे मुद्दआ मुझे
करता है बस-कि बाग़ में तू बे-हिजाबियाँ
आने लगी है निकहत-ए-गुल से हया मुझे
खुलता किसी पे क्यूँ मिरे दिल का मोआ'मला
शे'रों के इंतिख़ाब ने रुस्वा किया मुझे
वाँ रंग-हा ब-पर्दा-ए-तदबीर हैं हुनूज़
याँ शोला-ए-चराग़ है बर्ग-ए-हिना मुझे
परवाज़-हा नियाज़-ए-तमाशा-ए-हुस्न-ए-दोस्त
बाल-ए-कुशादा है निगह-ए-आशना मुझे
अज़-खुद-गुज़श्तगी में ख़मोशी पे हर्फ़ है
मौज-ए-ग़ुबार-ए-सुर्मा हुई है सदा मुझे
ता चंद पस्त फ़ितरती-ए-तब-ए-आरज़ू
या रब मिले बुलंदी-ए-दस्त-ए-दुआ मुझे
मैं ने जुनूँ से की जो 'असद' इल्तिमास-ए-रंग
ख़ून-ए-जिगर में एक ही ग़ोता दिया मुझे
है पेचताब रिश्ता-ए-शम-ए-सहर-गही
ख़जलत गुदाज़ी-ए-नफ़स-ए-ना-रसा मुझे
याँ आब-ओ-दाना मौसम-ए-गुल में हराम है
ज़ुन्नार-ए-वा-गुसिस्ता है मौज-ए-सबा मुझे
यकबार इम्तिहान-ए-हवस भी ज़रूर है
ऐ जोश-ए-इश्क़ बादा-ए-मर्द-आज़मा मुझे |
husn-gamze-kii-kashaakash-se-chhutaa-mere-baad-mirza-ghalib-ghazals |
हुस्न ग़म्ज़े की कशाकश से छुटा मेरे बा'द
बारे आराम से हैं अहल-ए-जफ़ा मेरे बा'द
मंसब-ए-शेफ़्तगी के कोई क़ाबिल न रहा
हुई माज़ूली-ए-अंदाज़-ओ-अदा मेरे बा'द
शम्अ' बुझती है तो उस में से धुआँ उठता है
शो'ला-ए-इश्क़ सियह-पोश हुआ मेरे बा'द
ख़ूँ है दिल ख़ाक में अहवाल-ए-बुताँ पर या'नी
उन के नाख़ुन हुए मुहताज-ए-हिना मेरे बा'द
दर-ख़ुर-ए-अर्ज़ नहीं जौहर-ए-बेदाद को जा
निगह-ए-नाज़ है सुरमे से ख़फ़ा मेरे बा'द
है जुनूँ अहल-ए-जुनूँ के लिए आग़ोश-ए-विदा'अ
चाक होता है गरेबाँ से जुदा मेरे बा'द
कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द-अफ़गन-ए-इश्क़
है मुकर्रर लब-ए-साक़ी पे सला मेरे बा'द
ग़म से मरता हूँ कि इतना नहीं दुनिया में कोई
कि करे ताज़ियत-ए-मेहर-ओ-वफ़ा मेरे बा'द
आए है बेकसी-ए-इश्क़ पे रोना 'ग़ालिब'
किस के घर जाएगा सैलाब-ए-बला मेरे बा'द
थी निगह मेरी निहाँ-ख़ाना-ए-दिल की नक़्क़ाब
बे-ख़तर जीते हैं अरबाब-ए-रिया मेरे बा'द
था मैं गुलदस्ता-ए-अहबाब की बंदिश की गियाह
मुतफ़र्रिक़ हुए मेरे रुफ़क़ा मेरे बा'द |
dekhnaa-qismat-ki-aap-apne-pe-rashk-aa-jaae-hai-mirza-ghalib-ghazals |
देखना क़िस्मत कि आप अपने पे रश्क आ जाए है
मैं उसे देखूँ भला कब मुझ से देखा जाए है
हाथ धो दिल से यही गर्मी गर अंदेशे में है
आबगीना तुन्दि-ए-सहबा से पिघला जाए है
ग़ैर को या रब वो क्यूँकर मन-ए-गुस्ताख़ी करे
गर हया भी उस को आती है तो शरमा जाए है
शौक़ को ये लत कि हर दम नाला खींचे जाइए
दिल की वो हालत कि दम लेने से घबरा जाए है
दूर चश्म-ए-बद तिरी बज़्म-ए-तरब से वाह वाह
नग़्मा हो जाता है वाँ गर नाला मेरा जाए है
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है
उस की बज़्म-आराइयाँ सुन कर दिल-ए-रंजूर याँ
मिस्ल-ए-नक़्श-ए-मुद्दआ-ए-ग़ैर बैठा जाए है
हो के आशिक़ वो परी-रुख़ और नाज़ुक बन गया
रंग खुलता जाए है जितना कि उड़ता जाए है
नक़्श को उस के मुसव्विर पर भी क्या क्या नाज़ हैं
खींचता है जिस क़दर उतना ही खिंचता जाए है
साया मेरा मुझ से मिस्ल-ए-दूद भागे है 'असद'
पास मुझ आतिश-ब-जाँ के किस से ठहरा जाए है |
guncha-e-naa-shagufta-ko-duur-se-mat-dikhaa-ki-yuun-mirza-ghalib-ghazals |
ग़ुंचा-ए-ना-शगुफ़्ता को दूर से मत दिखा कि यूँ
बोसे को पूछता हूँ मैं मुँह से मुझे बता कि यूँ
पुर्सिश-ए-तर्ज़-ए-दिलबरी कीजिए क्या कि बिन कहे
उस के हर एक इशारे से निकले है ये अदा कि यूँ
रात के वक़्त मय पिए साथ रक़ीब को लिए
आए वो याँ ख़ुदा करे पर न करे ख़ुदा कि यूँ
ग़ैर से रात क्या बनी ये जो कहा तो देखिए
सामने आन बैठना और ये देखना कि यूँ
बज़्म में उस के रू-ब-रू क्यूँ न ख़मोश बैठिए
उस की तो ख़ामुशी में भी है यही मुद्दआ कि यूँ
मैं ने कहा कि बज़्म-ए-नाज़ चाहिए ग़ैर से तही
सुन के सितम-ज़रीफ़ ने मुझ को उठा दिया कि यूँ
मुझ से कहा जो यार ने जाते हैं होश किस तरह
देख के मेरी बे-ख़ुदी चलने लगी हवा कि यूँ
कब मुझे कू-ए-यार में रहने की वज़्अ याद थी
आइना-दार बन गई हैरत-ए-नक़्श-ए-पा कि यूँ
गर तिरे दिल में हो ख़याल वस्ल में शौक़ का ज़वाल
मौज मुहीत-ए-आब में मारे है दस्त-ओ-पा कि यूँ
जो ये कहे कि रेख़्ता क्यूँके हो रश्क-ए-फ़ारसी
गुफ़्ता-ए-'ग़ालिब' एक बार पढ़ के उसे सुना कि यूँ |
z-bas-ki-mashq-e-tamaashaa-junuun-alaamat-hai-mirza-ghalib-ghazals |
ज़-बस-कि मश्क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है
कुशाद-ओ-बस्त-ए-मिज़्हा सीली-ए-नदामत है
न जानूँ क्यूँकि मिटे दाग़-ए-तान-ए-बद-अहदी
तुझे कि आइना भी वार्ता-ए-मलामत है
ब-पेच-ओ-ताब-ए-हवस सिल्क-ए-आफ़ियत मत तोड़
निगाह-ए-अज्ज़ सर-ए-रिश्ता-ए-सलामत है
वफ़ा मुक़ाबिल-ओ-दावा-ए-इश्क़ बे-बुनियाद
जुनूँ-ए-साख़्ता ओ फ़स्ल-ए-गुल क़यामत है |
ajab-nashaat-se-jallaad-ke-chale-hain-ham-aage-mirza-ghalib-ghazals |
अजब नशात से जल्लाद के चले हैं हम आगे
कि अपने साए से सर पाँव से है दो क़दम आगे
क़ज़ा ने था मुझे चाहा ख़राब-ए-बादा-ए-उल्फ़त
फ़क़त ख़राब लिखा बस न चल सका क़लम आगे
ग़म-ए-ज़माना ने झाड़ी नशात-ए-इश्क़ की मस्ती
वगरना हम भी उठाते थे अज़्ज़त-ए-अलम आगे
ख़ुदा के वास्ते दाद उस जुनून-ए-शौक़ की देना
कि उस के दर पे पहुँचते हैं नामा-बर से हम आगे
ये उम्र भर जो परेशानियाँ उठाई हैं हम ने
तुम्हारे अइयो ऐ तुर्रह-हा-ए-ख़म-ब-ख़म आगे
दिल ओ जिगर में पुर-अफ़्शा जो एक मौजा-ए-ख़ूँ है
हम अपने ज़ोम में समझे हुए थे उस को दम आगे
क़सम जनाज़े पे आने की मेरे खाते हैं 'ग़ालिब'
हमेशा खाते थे जो मेरी जान की क़सम आगे |
mat-mardumak-e-diida-men-samjho-ye-nigaahen-mirza-ghalib-ghazals |
मत मर्दुमक-ए-दीदा में समझो ये निगाहें
हैं जम्अ सुवैदा-ए-दिल-ए-चश्म में आहें
किस दिल पे है अज़्म-ए-सफ़-ए-मिज़्गान-ए-ख़ुद-आरा
आईने के पायाब से उतरी हैं सिपाहें
दैर-ओ-हरम आईना-ए-तकरार-ए-तमन्ना
वामांदगी-ए-शौक़ तराशे है पनाहें
जूँ मर्दुमक-ए-चश्म से हों जम्अ' निगाहें
ख़्वाबीदा ब-हैरत-कदा-ए-दाग़ हैं आहें
फिर हल्क़ा-ए-काकुल में पड़ीं दीद की राहें
जूँ दूद फ़राहम हुईं रौज़न में निगाहें
पाया सर-ए-हर-ज़र्रा जिगर-गोशा-ए-वहशत
हैं दाग़ से मामूर शक़ाइक़ की कुलाहें
ये मतला 'असद' जौहर-ए-अफ़्सून-ए-सुख़न हो
गर अर्ज़-ए-तपाक-ए-जिगर-ए-सोख़्ता चाहें
हैरत-कश-ए-यक-जल्वा-ए-मअनी हैं निगाहें
खींचूँ हूँ सुवैदा-ए-दिल-ए-चश्म से आहें |
hasad-se-dil-agar-afsurda-hai-garm-e-tamaashaa-ho-mirza-ghalib-ghazals |
हसद से दिल अगर अफ़्सुर्दा है गर्म-ए-तमाशा हो
कि चश्म-ए-तंग शायद कसरत-ए-नज़्ज़ारा से वा हो
ब-क़द्र-ए-हसरत-ए-दिल चाहिए ज़ौक़-ए-मआसी भी
भरूँ यक-गोशा-ए-दामन गर आब-ए-हफ़्त-दरिया हो
अगर वो सर्व-क़द गर्म-ए-ख़िराम-ए-नाज़ आ जावे
कफ़-ए-हर-ख़ाक-ए-गुलशन शक्ल-ए-क़ुमरी नाला-फ़र्सा हो
बहम बालीदन-ए-संग-ओ-गुल-ए-सहरा ये चाहे है
कि तार-ए-जादा भी कोहसार को ज़ुन्नार-ए-मीना हो
हरीफ़-ए-वहशत-ए-नाज़-ए-नसीम-ए-इश्क़ जब आऊँ
कि मिस्ल-ए-ग़ुंचा साज़-ए-यक-गुलिस्ताँ दिल मुहय्या हो
बजाए दाना ख़िर्मन यक-बयाबाँ बैज़ा-ए-कुमरी
मिरा हासिल वो नुस्ख़ा है कि जिस से ख़ाक पैदा हो
करे क्या साज़-ए-बीनिश वो शहीद-ए-दर्द-आगाही
जिसे मू-ए-दिमाग़-ए-बे-ख़ुदी ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा हो
दिल-ए-जूँ-शम्अ' बहर-ए-दावत-ए-नज़्ज़ारा लायानी
निगह लबरेज़-ए-अश्क ओ सीना मामूर-ए-तमन्ना हो
न देखें रू-ए-यक-दिल सर्द ग़ैर-अज़ शम-ए-काफ़ूरी
ख़ुदाया इस क़दर बज़्म-ए-'असद' गर्म-ए-तमाशा हो |
nukta-chiin-hai-gam-e-dil-us-ko-sunaae-na-bane-mirza-ghalib-ghazals |
नुक्ता-चीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाए न बने
क्या बने बात जहाँ बात बनाए न बने
मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल
उस पे बन जाए कुछ ऐसी कि बिन आए न बने
खेल समझा है कहीं छोड़ न दे भूल न जाए
काश यूँ भी हो कि बिन मेरे सताए न बने
ग़ैर फिरता है लिए यूँ तिरे ख़त को कि अगर
कोई पूछे कि ये क्या है तो छुपाए न बने
इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या
हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने
कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है
पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने
मौत की राह न देखूँ कि बिन आए न रहे
तुम को चाहूँ कि न आओ तो बुलाए न बने
बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न उठे
काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने
इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतिश 'ग़ालिब'
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने |
ho-gaii-hai-gair-kii-shiiriin-bayaanii-kaargar-mirza-ghalib-ghazals |
हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर
इश्क़ का उस को गुमाँ हम बे-ज़बानों पर नहीं
ज़ब्त से मतलब ब-जुज़ वारस्तगी दीगर नहीं
दामन-ए-तिमसाल आब-ए-आइना से तर नहीं
बाइस-ए-ईज़ा है बरहम-ख़ुर्दन-ए-बज़्म-ए-सुरूर
लख़्त लख़्त-ए-शीशा-ए-ब-शिकास्ता जुज़ निश्तर नहीं
दिल को इज़्हार-ए-सुख़न अंदाज़-ए-फ़तह-उल-बाब है
याँ सरीर-ए-ख़ामा ग़ैर-अज़-इस्तिकाक-ए-दर नहीं |
gila-hai-shauq-ko-dil-men-bhii-tangi-e-jaa-kaa-mirza-ghalib-ghazals |
गिला है शौक़ को दिल में भी तंगी-ए-जा का
गुहर में महव हुआ इज़्तिराब दरिया का
ये जानता हूँ कि तू और पासुख़-ए-मकतूब
मगर सितम-ज़दा हूँ ज़ौक़-ए-ख़ामा-फ़रसा का
हिना-ए-पा-ए-ख़िज़ाँ है बहार अगर है यही
दवाम-ए-कुल्फ़त-ए-ख़ातिर है ऐश दुनिया का
ग़म-ए-फ़िराक़ में तकलीफ़-ए-सैर-ए-बाग़ न दो
मुझे दिमाग़ नहीं ख़ंदा-हा-ए-बेजा का
हनूज़ महरमी-ए-हुस्न को तरसता हूँ
करे है हर-बुन-ए-मू काम चश्म-ए-बीना का
दिल उस को पहले ही नाज़-ओ-अदा से दे बैठे
हमें दिमाग़ कहाँ हुस्न के तक़ाज़ा का
न कह कि गिर्या ब-मिक़दार-ए-हसरत-ए-दिल है
मिरी निगाह में है जम-ओ-ख़र्च दरिया का
फ़लक को देख के करता हूँ उस को याद 'असद'
जफ़ा में उस की है अंदाज़ कार-फ़रमा का
मिरा शुमूल हर इक दिल के पेच-ओ-ताब में है
मैं मुद्दआ हूँ तपिश-नामा-ए-तमन्ना का
मिली न वुसअ'त-ए-जौलान यक जुनूँ हम को
अदम को ले गए दिल में ग़ुबार सहरा का |
ghar-jab-banaa-liyaa-tire-dar-par-kahe-bagair-mirza-ghalib-ghazals |
घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर
जानेगा अब भी तू न मिरा घर कहे बग़ैर
कहते हैं जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न
जानूँ किसी के दिल की मैं क्यूँकर कहे बग़ैर
काम उस से आ पड़ा है कि जिस का जहान में
लेवे न कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर
जी में ही कुछ नहीं है हमारे वगरना हम
सर जाए या रहे न रहें पर कहे बग़ैर
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़र कहे बग़ैर
मक़्सद है नाज़-ओ-ग़म्ज़ा वले गुफ़्तुगू में काम
चलता नहीं है दशना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर
हर चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू
बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर
बहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात
सुनता नहीं हूँ बात मुकर्रर कहे बग़ैर
'ग़ालिब' न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर |
kabhii-nekii-bhii-us-ke-jii-men-gar-aa-jaae-hai-mujh-se-mirza-ghalib-ghazals |
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से
ख़ुदाया जज़्बा-ए-दिल की मगर तासीर उल्टी है
कि जितना खींचता हूँ और खिंचता जाए है मुझ से
वो बद-ख़ू और मेरी दास्तान-ए-इश्क़ तूलानी
इबारत मुख़्तसर क़ासिद भी घबरा जाए है मुझ से
उधर वो बद-गुमानी है इधर ये ना-तवानी है
न पूछा जाए है उस से न बोला जाए है मुझ से
सँभलने दे मुझे ऐ ना-उम्मीदी क्या क़यामत है
कि दामान-ए-ख़याल-ए-यार छूटा जाए है मुझ से
तकल्लुफ़ बरतरफ़ नज़्ज़ारगी में भी सही लेकिन
वो देखा जाए कब ये ज़ुल्म देखा जाए है मुझ से
हुए हैं पाँव ही पहले नबर्द-ए-इश्क़ में ज़ख़्मी
न भागा जाए है मुझ से न ठहरा जाए है मुझ से
क़यामत है कि होवे मुद्दई का हम-सफ़र 'ग़ालिब'
वो काफ़िर जो ख़ुदा को भी न सौंपा जाए है मुझ से |
sitam-kash-maslahat-se-huun-ki-khuubaan-tujh-pe-aashiq-hain-mirza-ghalib-ghazals |
सितम-कश मस्लहत से हूँ कि ख़ूबाँ तुझ पे आशिक़ हैं
तकल्लुफ़ बरतरफ़ मिल जाएगा तुझ सा रक़ीब आख़िर |
nashsha-haa-shaadaab-e-rang-o-saaz-haa-mast-e-tarab-mirza-ghalib-ghazals |
नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब
शीशा-ए-मय सर्व-ए-सब्ज़-ए-जू-ए-बार-ए-नग़्मा है
हम-नशीं मत कह कि बरहम कर न बज़्म-ए-ऐश-ए-दोस्त
वाँ तो मेरे नाले को भी ए'तिबार-ए-नग़्मा है |
kahuun-jo-haal-to-kahte-ho-muddaaa-kahiye-mirza-ghalib-ghazals |
कहूँ जो हाल तो कहते हो मुद्दआ' कहिए
तुम्हीं कहो कि जो तुम यूँ कहो तो क्या कहिए
न कहियो ता'न से फिर तुम कि हम सितमगर हैं
मुझे तो ख़ू है कि जो कुछ कहो बजा कहिए
वो नेश्तर सही पर दिल में जब उतर जावे
निगाह-ए-नाज़ को फिर क्यूँ न आश्ना कहिए
नहीं ज़रीया-ए-राहत जराहत-ए-पैकाँ
वो ज़ख़्म-ए-तेग़ है जिस को कि दिल-कुशा कहिए
जो मुद्दई' बने उस के न मुद्दई' बनिए
जो ना-सज़ा कहे उस को न ना-सज़ा कहिए
कहीं हक़ीक़त-ए-जाँ-काही-ए-मरज़ लिखिए
कहीं मुसीबत-ए-ना-साज़ी-ए-दवा कहिए
कभी शिकायत-ए-रंज-ए-गिराँ-नशीं कीजे
कभी हिकायत-ए-सब्र-ए-गुरेज़-पा कहिए
रहे न जान तो क़ातिल को ख़ूँ-बहा दीजे
कटे ज़बान तो ख़ंजर को मर्हबा कहिए
नहीं निगार को उल्फ़त न हो निगार तो है
रवानी-ए-रविश ओ मस्ती-ए-अदा कहिए
नहीं बहार को फ़ुर्सत न हो बहार तो है
तरावत-ए-चमन ओ ख़ूबी-ए-हवा कहिए
सफ़ीना जब कि किनारे पे आ लगा 'ग़ालिब'
ख़ुदा से क्या सितम-ओ-जौर-ए-ना-ख़ुदा कहिए |
hazaaron-khvaahishen-aisii-ki-har-khvaahish-pe-dam-nikle-mirza-ghalib-ghazals |
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
भरम खुल जाए ज़ालिम तेरे क़ामत की दराज़ी का
अगर इस तुर्रा-ए-पुर-पेच-ओ-ख़म का पेच-ओ-ख़म निकले
मगर लिखवाए कोई उस को ख़त तो हम से लिखवाए
हुई सुब्ह और घर से कान पर रख कर क़लम निकले
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले |
lab-e-iisaa-kii-jumbish-kartii-hai-gahvaara-jambaanii-mirza-ghalib-ghazals |
लब-ए-ईसा की जुम्बिश करती है गहवारा-जुम्बानी
क़यामत कुश्त-ए-लाल-ए-बुताँ का ख़्वाब-ए-संगीं है
बयाबान-ए-फ़ना है बाद-ए-सहरा-ए-तलब 'ग़ालिब'
पसीना तौसन-ए-हिम्मत तो सैल-ए-ख़ाना-ए-जीं है |
koh-ke-hon-baar-e-khaatir-gar-sadaa-ho-jaaiye-mirza-ghalib-ghazals |
कोह के हों बार-ए-ख़ातिर गर सदा हो जाइए
बे-तकल्लुफ़ ऐ शरार-ए-जस्ता क्या हो जाइए
बैज़ा-आसा नंग-ए-बाल-ओ-पर है ये कुंज-ए-क़फ़स
अज़-सर-ए-नौ ज़िंदगी हो गर रिहा हो जाइए
वुसअत-ए-मशरब नियाज़-ए-कुल्फ़त-ए-वहशत 'असद'
यक-बयाबाँ साया-ए-बाल-ए-हुमा हो जाइए |
dhotaa-huun-jab-main-piine-ko-us-siim-tan-ke-paanv-mirza-ghalib-ghazals |
धोता हूँ जब मैं पीने को उस सीम-तन के पाँव
रखता है ज़िद से खींच के बाहर लगन के पाँव
दी सादगी से जान पड़ूँ कोहकन के पाँव
हैहात क्यूँ न टूट गए पीर-ज़न के पाँव
भागे थे हम बहुत सो उसी की सज़ा है ये
हो कर असीर दाबते हैं राहज़न के पाँव
मरहम की जुस्तुजू में फिरा हूँ जो दूर दूर
तन से सिवा फ़िगार हैं इस ख़स्ता-तन के पाँव
अल्लाह-रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बा'द-ए-मर्ग
हिलते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद मिरे अंदर कफ़न के पाँव
है जोश-ए-गुल बहार में याँ तक कि हर तरफ़
उड़ते हुए उलझते हैं मुर्ग़-ए-चमन के पाँव
शब को किसी के ख़्वाब में आया न हो कहीं
दुखते हैं आज उस बुत-ए-नाज़ुक-बदन के पाँव
'ग़ालिब' मिरे कलाम में क्यूँकर मज़ा न हो
पीता हूँ धोके ख़ुसरव-ए-शीरीं-सुख़न के पाँव |
chashm-e-khuubaan-khaamushii-men-bhii-navaa-pardaaz-hai-mirza-ghalib-ghazals |
चश्म-ए-ख़ूबाँ ख़ामुशी में भी नवा-पर्दाज़ है
सुर्मा तो कहवे कि दूद-ए-शो'ला-ए-आवाज़ है
पैकर-ए-उश्शाक़ साज़-ए-ताला-ए-ना-साज़ है
नाला गोया गर्दिश-ए-सैय्यारा की आवाज़ है
दस्त-गाह-ए-दीदा-ए-खूँ-बार-ए-मजनूँ देखना
यक-बयाबाँ जल्वा-ए-गुल फ़र्श-ए-पा-अंदाज़ है
चश्म-ए-ख़ूबाँ मै-फ़रोश-ए-नश्शा-ज़ार-ए-नाज़ है
सुर्मा गोया मौज-ए-दूद-ए-शोला-ए-आवाज़ है
है सरीर-ए-ख़ामा रेज़िश-हा-ए-इस्तिक़्बाल-ए-नाज़
नामा ख़ुद पैग़ाम को बाल-ओ-पर-ए-परवाज़ है
सर-नाविश्त-ए-इज़्तिराब-अंजामी-ए-उल्फ़त न पूछ
नाल-ए-ख़ामा ख़ार-ख़ार-ए-ख़ातिर-ए-आगाज़ है
शोख़ी-ए-इज़्हार ग़ैर-अज़-वहशत-ए-मजनूँ नहीं
लैला-ए-मानी 'असद' महमिल-नशीन-ए-राज़ है
नग़्मा है कानों में उस के नाला-ए-मुर्ग़-ए-असीर
रिश्ता-ए-पा याँ नवा-सामान-ए-बंद-ए-साज़ है
शर्म है तर्ज़-ए-तलाश-ए-इंतिख़ाब-ए-यक-निगाह
इज़्तिराब-ए-चश्म बरपा दोख़्ता-ग़म्माज़ है |
qafas-men-huun-gar-achchhaa-bhii-na-jaanen-mere-shevan-ko-mirza-ghalib-ghazals |
क़फ़स में हूँ गर अच्छा भी न जानें मेरे शेवन को
मिरा होना बुरा क्या है नवा-संजान-ए-गुलशन को
नहीं गर हमदमी आसाँ न हो ये रश्क क्या कम है
न दी होती ख़ुदाया आरज़ू-ए-दोस्त दुश्मन को
न निकला आँख से तेरी इक आँसू उस जराहत पर
किया सीने में जिस ने ख़ूँ-चकाँ मिज़्गान-ए-सोज़न को
ख़ुदा शरमाए हाथों को कि रखते हैं कशाकश में
कभी मेरे गरेबाँ को कभी जानाँ के दामन को
अभी हम क़त्ल-गह का देखना आसाँ समझते हैं
नहीं देखा शनावर जू-ए-ख़ूँ में तेरे तौसन को
हुआ चर्चा जो मेरे पाँव की ज़ंजीर बनने का
किया बेताब काँ में जुम्बिश-ए-जौहर ने आहन को
ख़ुशी क्या खेत पर मेरे अगर सौ बार अब्र आवे
समझता हूँ कि ढूँडे है अभी से बर्क़ ख़िर्मन को
वफ़ा-दारी ब-शर्त-ए-उस्तुवारी अस्ल ईमाँ है
मरे बुत-ख़ाने में तो का'बे में गाड़ो बरहमन को
शहादत थी मिरी क़िस्मत में जो दी थी ये ख़ू मुझ को
जहाँ तलवार को देखा झुका देता था गर्दन को
न लुटता दिन को तो कब रात को यूँ बे-ख़बर सोता!
रहा खटका न चोरी का दुआ देता हूँ रहज़न को
सुख़न क्या कह नहीं सकते कि जूया हूँ जवाहिर के
जिगर क्या हम नहीं रखते कि खोदें जा के मादन को
मिरे शाह-ए-सुलैमाँ-जाह से निस्बत नहीं 'ग़ालिब'
फ़रीदून ओ जम ओ के ख़ुसरव ओ दाराब ओ बहमन को |
huun-main-bhii-tamaashaai-e-nairang-e-tamannaa-mirza-ghalib-ghazals |
हूँ मैं भी तमाशाई-ए-नैरंग-ए-तमन्ना
मतलब नहीं कुछ इस से कि मतलब ही बर आवे |
qayaamat-hai-ki-sun-lailaa-kaa-dasht-e-qais-men-aanaa-mirza-ghalib-ghazals |
क़यामत है कि सुन लैला का दश्त-ए-क़ैस में आना
तअ'ज्जुब से वो बोला यूँ भी होता है ज़माने में
दिल-ए-नाज़ुक पे उस के रहम आता है मुझे 'ग़ालिब'
न कर सरगर्म उस काफ़िर को उल्फ़त आज़माने में |
mehrbaan-ho-ke-bulaa-lo-mujhe-chaaho-jis-vaqt-mirza-ghalib-ghazals |
मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ
ज़ोफ़ में ताना-ए-अग़्यार का शिकवा क्या है
बात कुछ सर तो नहीं है कि उठा भी न सकूँ
ज़हर मिलता ही नहीं मुझ को सितमगर वर्ना
क्या क़सम है तिरे मिलने की कि खा भी न सकूँ
इस क़दर ज़ब्त कहाँ है कभी आ भी न सकूँ
सितम इतना तो न कीजे कि उठा भी न सकूँ
लग गई आग अगर घर को तो अंदेशा क्या
शो'ला-ए-दिल तो नहीं है कि बुझा भी न सकूँ
तुम न आओगे तो मरने की हैं सौ तदबीरें
मौत कुछ तुम तो नहीं हो कि बुला भी न सकूँ
हँस के बुलवाइए मिट जाएगा सब दिल का गिला
क्या तसव्वुर है तुम्हारा कि मिटा भी न सकूँ |
zindagii-apnii-jab-is-shakl-se-guzrii-gaalib-mirza-ghalib-ghazals |
ज़िंदगी अपनी जब इस शक्ल से गुज़री 'ग़ालिब'
हम भी क्या याद करेंगे कि ख़ुदा रखते थे |
phir-kuchh-ik-dil-ko-be-qaraarii-hai-mirza-ghalib-ghazals |
फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
सीना जुया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है
फिर जिगर खोदने लगा नाख़ुन
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लाला-कारी है
क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़
फिर वही पर्दा-ए-अमारी है
चश्म दल्लाल-ए-जिंस-ए-रुस्वाई
दिल ख़रीदार-ए-ज़ौक़-ए-ख़्वारी है
वही सद-रंग नाला-फ़रसाई
वही सद-गोना अश्क-बारी है
दिल हवा-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से फिर
महशरिस्तान-ए-सितान-ए-बेक़रारी है
जल्वा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता है
रोज़ बाज़ार-ए-जाँ-सिपारी है
फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वही ज़िंदगी हमारी है
फिर खुला है दर-ए-अदालत-ए-नाज़
गर्म-बाज़ार-ए-फ़ौजदारी है
हो रहा है जहान में अंधेर
ज़ुल्फ़ की फिर सिरिश्ता-दारी है
फिर दिया पारा-ए-जिगर ने सवाल
एक फ़रियाद ओ आह-ओ-ज़ारी है
फिर हुए हैं गवाह-ए-इश्क़ तलब
अश्क-बारी का हुक्म-जारी है
दिल ओ मिज़्गाँ का जो मुक़द्दमा था
आज फिर उस की रू-बकारी है
बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है |
mastii-ba-zauq-e-gaflat-e-saaqii-halaak-hai-mirza-ghalib-ghazals |
मस्ती ब-ज़ौक़-ए-ग़फ़लत-ए-साक़ी हलाक है
मौज-ए-शराब यक-मिज़ा-ए-ख़्वाब-नाक है
जुज़ ज़ख्म-ए-तेग़-ए-नाज़ नहीं दिल में आरज़ू
जेब-ए-ख़याल भी तिरे हाथों से चाक है
जोश-ए-जुनूँ से कुछ नज़र आता नहीं 'असद'
सहरा हमारी आँख में यक-मुश्त-ए-ख़ाक है |
na-thaa-kuchh-to-khudaa-thaa-kuchh-na-hotaa-to-khudaa-hotaa-mirza-ghalib-ghazals |
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता |
dil-hii-to-hai-na-sang-o-khisht-dard-se-bhar-na-aae-kyuun-mirza-ghalib-ghazals |
दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार कोई हमें सताए क्यूँ
दैर नहीं हरम नहीं दर नहीं आस्ताँ नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम ग़ैर हमें उठाए क्यूँ
जब वो जमाल-ए-दिल-फ़रोज़ सूरत-ए-मेहर-ए-नीमरोज़
आप ही हो नज़्ज़ारा-सोज़ पर्दे में मुँह छुपाए क्यूँ
दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जाँ-सिताँ नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ सही सामने तेरे आए क्यूँ
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से नजात पाए क्यूँ
हुस्न और उस पे हुस्न-ए-ज़न रह गई बुल-हवस की शर्म
अपने पे ए'तिमाद है ग़ैर को आज़माए क्यूँ
वाँ वो ग़ुरूर-ए-इज्ज़-ओ-नाज़ याँ ये हिजाब-ए-पास-ए-वज़अ
राह में हम मिलें कहाँ बज़्म में वो बुलाए क्यूँ
हाँ वो नहीं ख़ुदा-परस्त जाओ वो बेवफ़ा सही
जिस को हो दीन ओ दिल अज़ीज़ उस की गली में जाए क्यूँ
'ग़ालिब'-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बंद हैं
रोइए ज़ार ज़ार क्या कीजिए हाए हाए क्यूँ |
mirii-hastii-fazaa-e-hairat-aabaad-e-tamannaa-hai-mirza-ghalib-ghazals |
मिरी हस्ती फ़ज़ा-ए-हैरत आबाद-ए-तमन्ना है
जिसे कहते हैं नाला वो उसी आलम का अन्क़ा है
ख़िज़ाँ क्या फ़स्ल-ए-गुल कहते हैं किस को कोई मौसम हो
वही हम हैं क़फ़स है और मातम बाल-ओ-पर का है
वफ़ा-ए-दिलबराँ है इत्तिफ़ाक़ी वर्ना ऐ हमदम
असर फ़रियाद-ए-दिल-हा-ए-हज़ीं का किस ने देखा है
न लाई शोख़ी-ए-अंदेशा ताब-ए-रंज-ए-नौमीदी
कफ़-ए-अफ़्सोस मिलना अहद-ए-तज्दीद-ए-तमन्ना है
न सोवे आबलों में गर सरिश्क-ए-दीदा-ए-नाम से
ब-जौलाँ-गाह-ए-नौमीदी निगाह-ए-आजिज़ाँ पा है
ब-सख़्ती-हा-ए-क़ैद-ए-ज़िंदगी मालूम आज़ादी
शरर भी सैद-ए-दाम-ए-रिश्ता-ए-रग-हा-ए-ख़ारा है
तग़फ़ुल-मशरबी से ना-तमामी बस-कि पैदा है
निगाह-ए-नाज़ चश्म-ए-यार में ज़ुन्नार-ए-मीना है
तसर्रुफ़ वहशियों में है तसव्वुर-हा-ए-मजनूँ का
सवाद-ए-चश्म-ए-आहू अक्स-ए-ख़ाल-ए-रू-ए-लैला है
मोहब्बत तर्ज़-ए-पैवंद-ए-निहाल-ए-दोस्ती जाने
दवीदन रेशा साँ मुफ़्त-ए-रग-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा है
किया यक-सर गुदाज़-ए-दिल नियाज़-ए-जोशिश-ए-हसरत
सुवैदा नुस्ख़ा-ए-तह-बंदी-ए-दाग़-ए-तमन्ना है
हुजूम-ए-रेज़िश-ए-ख़ूँ के सबब रंग उड़ नहीं सकता
हिना-ए-पंजा-ए-सैय्याद मुर्ग़-ए-रिश्ता बर-पा है
असर सोज़-ए-मोहब्बत का क़यामत बे-मुहाबा है
कि रग से संग में तुख़्म-ए-शरर का रेशा पैदा है
निहाँ है गौहर-ए-मक़्सूद जेब-ए-ख़ुद-शनासी में
कि याँ ग़व्वास है तिमसाल और आईना दरिया है
अज़ीज़ो ज़िक्र-ए-वस्ल-ए-ग़ैर से मुझ को न बहलाओ
कि याँ अफ़्सून-ए-ख़्वाब अफ़्साना-ए-ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा है
तसव्वुर बहर-ए-तस्कीन-ए-तपीदन-हा-ए-तिफ़्ल-ए-दिल
ब-बाग़-ए-रंग-हा-ए-रफ़्ता गुल-चीन-ए-तमाशा है
ब-सइ-ए-ग़ैर है क़त-ए-लिबास-ए-ख़ाना-वीरानी
कि नाज़-ए-जादा-ए-रह रिश्ता-ए-दामान-ए-सहरा है |
lo-ham-mariiz-e-ishq-ke-biimaar-daar-hain-mirza-ghalib-ghazals |
लो हम मरीज़-ए-इश्क़ के बीमार-दार हैं
अच्छा अगर न हो तो मसीहा का क्या इलाज |
ishq-mujh-ko-nahiin-vahshat-hii-sahii-mirza-ghalib-ghazals |
इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही
मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही
क़त्अ कीजे न तअल्लुक़ हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही
मेरे होने में है क्या रुस्वाई
ऐ वो मज्लिस नहीं ख़ल्वत ही सही
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं अपने
ग़ैर को तुझ से मोहब्बत ही सही
अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो
आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही
उम्र हर-चंद कि है बर्क़-ए-ख़िराम
दिल के ख़ूँ करने की फ़ुर्सत ही सही
हम कोई तर्क-ए-वफ़ा करते हैं
न सही इश्क़ मुसीबत ही सही
कुछ तो दे ऐ फ़लक-ए-ना-इंसाफ़
आह ओ फ़रियाद की रुख़्सत ही सही
हम भी तस्लीम की ख़ू डालेंगे
बे-नियाज़ी तिरी आदत ही सही
यार से छेड़ चली जाए 'असद'
गर नहीं वस्ल तो हसरत ही सही |
dekh-kar-dar-parda-garm-e-daaman-afshaanii-mujhe-mirza-ghalib-ghazals |
देख कर दर-पर्दा गर्म-ए-दामन-अफ़्शानी मुझे
कर गई वाबस्ता-ए-तन मेरी उर्यानी मुझे
बन गया तेग़-ए-निगाह-ए-यार का संग-ए-फ़साँ
मर्हबा मैं क्या मुबारक है गिराँ-जानी मुझे
क्यूँ न हो बे-इल्तिफ़ाती उस की ख़ातिर जम्अ' है
जानता है महव-ए-पुर्सिश-हा-ए-पिन्हानी मुझे
मेरे ग़म-ख़ाने की क़िस्मत जब रक़म होने लगी
लिख दिया मिन-जुमला-ए-असबाब-ए-वीरानी मुझे
बद-गुमाँ होता है वो काफ़िर न होता काश के
इस क़दर ज़ौक़-ए-नवा-ए-मुर्ग़-ए-बुस्तानी मुझे
वाए वाँ भी शोर-ए-महशर ने न दम लेने दिया
ले गया था गोर में ज़ौक़-ए-तन-आसानी मुझे
वा'दा आने का वफ़ा कीजे ये क्या अंदाज़ है
तुम ने क्यूँ सौंपी है मेरे घर की दरबानी मुझे
हाँ नशात-ए-आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी वाह वाह
फिर हुआ है ताज़ा सौदा-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी मुझे
दी मिरे भाई को हक़ ने अज़-सर-ए-नौ ज़िंदगी
मीरज़ा यूसुफ़ है 'ग़ालिब' यूसुफ़-ए-सानी मुझे |
raftaar-e-umr-qat-e-rah-e-iztiraab-hai-mirza-ghalib-ghazals |
रफ़्तार-ए-उम्र क़त-ए-रह-ए-इज़्तिराब है
इस साल के हिसाब को बर्क़ आफ़्ताब है
मीना-ए-मय है सर्व नशात-ए-बहार से
बाल-ए-तदर्रव जल्वा-ए-मौज-ए-शराब है
ज़ख़्मी हुआ है पाश्ना पा-ए-सबात का
ने भागने की गूँ न इक़ामत की ताब है
जादाद-ए-बादा-नोशी-ए-रिन्दाँ है शश-जिहत
ग़ाफ़िल गुमाँ करे है कि गेती ख़राब है
नज़्ज़ारा क्या हरीफ़ हो उस बर्क़-ए-हुस्न का
जोश-ए-बहार जल्वे को जिस के नक़ाब है
मैं ना-मुराद दिल की तसल्ली को क्या करूँ
माना कि तेरे रुख़ से निगह कामयाब है
गुज़रा 'असद' मसर्रत-ए-पैग़ाम-ए-यार से
क़ासिद पे मुझ को रश्क-ए-सवाल-ओ-जवाब है
ज़ाहिर है तर्ज़-ए-क़ैद से सय्याद की ग़रज़
जो दाना दाम में है सो अश्क-ए-कबाब है
बे-चश्म-ए-दिल न कर हवस-ए-सैर-ए-लाला-ज़ार
या'नी ये हर वरक़ वरक़-ए-इंतिख़ाब है |
muddat-huii-hai-yaar-ko-mehmaan-kiye-hue-mirza-ghalib-ghazals |
मुद्दत हुई है यार को मेहमाँ किए हुए
जोश-ए-क़दह से बज़्म चराग़ाँ किए हुए
करता हूँ जम्अ' फिर जिगर-ए-लख़्त-लख़्त को
अर्सा हुआ है दावत-ए-मिज़्गाँ किए हुए
फिर वज़-ए-एहतियात से रुकने लगा है दम
बरसों हुए हैं चाक गरेबाँ किए हुए
फिर गर्म-नाला-हा-ए-शरर-बार है नफ़स
मुद्दत हुई है सैर-ए-चराग़ाँ किए हुए
फिर पुर्सिश-ए-जराहत-ए-दिल को चला है इश्क़
सामान-ए-सद-हज़ार नमक-दाँ किए हुए
फिर भर रहा हूँ ख़ामा-ए-मिज़्गाँ ब-ख़ून-ए-दिल
साज़-ए-चमन तराज़ी-ए-दामाँ किए हुए
बाहम-दिगर हुए हैं दिल ओ दीदा फिर रक़ीब
नज़्ज़ारा ओ ख़याल का सामाँ किए हुए
दिल फिर तवाफ़-ए-कू-ए-मलामत को जाए है
पिंदार का सनम-कदा वीराँ किए हुए
फिर शौक़ कर रहा है ख़रीदार की तलब
अर्ज़-ए-मता-ए-अक़्ल-ओ-दिल-ओ-जाँ किए हुए
दौड़े है फिर हर एक गुल-ओ-लाला पर ख़याल
सद-गुलिस्ताँ निगाह का सामाँ किए हुए
फिर चाहता हूँ नामा-ए-दिलदार खोलना
जाँ नज़्र-ए-दिल-फ़रेबी-ए-उनवाँ किए हुए
माँगे है फिर किसी को लब-ए-बाम पर हवस
ज़ुल्फ़-ए-सियाह रुख़ पे परेशाँ किए हुए
चाहे है फिर किसी को मुक़ाबिल में आरज़ू
सुरमे से तेज़ दश्ना-ए-मिज़्गाँ किए हुए
इक नौ-बहार-ए-नाज़ को ताके है फिर निगाह
चेहरा फ़रोग़-ए-मय से गुलिस्ताँ किए हुए
फिर जी में है कि दर पे किसी के पड़े रहें
सर ज़ेर-बार-ए-मिन्नत-ए-दरबाँ किए हुए
जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत कि रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
'ग़ालिब' हमें न छेड़ कि फिर जोश-ए-अश्क से
बैठे हैं हम तहय्या-ए-तूफ़ाँ किए हुए |
gar-tujh-ko-hai-yaqiin-e-ijaabat-duaa-na-maang-mirza-ghalib-ghazals |
गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
या'नी बग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआ न माँग
आता है दाग़-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद
मुझ से मिरे गुनह का हिसाब ऐ ख़ुदा न माँग
ऐ आरज़ू शहीद-ए-वफ़ा ख़ूँ-बहा न माँग
जुज़ बहर-ए-दस्त-ओ-बाज़ू-ए-क़ातिल दुआ न माँग
बरहम है बज़्म-ए-ग़ुंचा ब-यक-जुंबिश-ए-नशात
काशाना बस-कि तंग है ग़ाफ़िल हवा न माँग
मैं दूर गर्द-ए-अर्ज़-ए-रुसूम-ए-नियाज़ हूँ
दुश्मन समझ वले निगह-ए-आशना न माँग
यक-बख़्त औज नज़्र-ए-सुबुक-बारी-ए-'असद'
सर पर वबाल-ए-साया-ए-बाल-ए-हुमा न माँग
गुस्ताख़ी-ए-विसाल है मश्शाता-ए-नियाज़
या'नी दुआ ब-जुज़ ख़म-ए-ज़ुल्फ़-ए-दुता न माँग
ईसा तिलिस्म हुस्न तग़ाफ़ुल है ज़ीनहार
जुज़ पुश्त चश्म नुस्ख़ा अर्ज़ दवा न माँग
दीगर ओ दिल ख़ूनीं नफ़स |
kisii-ko-de-ke-dil-koii-navaa-sanj-e-fugaan-kyuun-ho-mirza-ghalib-ghazals |
किसी को दे के दिल कोई नवा-संज-ए-फ़ुग़ाँ क्यूँ हो
न हो जब दिल ही सीने में तो फिर मुँह में ज़बाँ क्यूँ हो
वो अपनी ख़ू न छोड़ेंगे हम अपनी वज़्अ क्यूँ छोड़ें
सुबुक-सर बन के क्या पूछें कि हम से सरगिराँ क्यूँ हो
किया ग़म-ख़्वार ने रुस्वा लगे आग इस मोहब्बत को
न लावे ताब जो ग़म की वो मेरा राज़-दाँ क्यूँ हो
वफ़ा कैसी कहाँ का इश्क़ जब सर फोड़ना ठहरा
तो फिर ऐ संग-दिल तेरा ही संग-ए-आस्ताँ क्यूँ हो
क़फ़स में मुझ से रूदाद-ए-चमन कहते न डर हमदम
गिरी है जिस पे कल बिजली वो मेरा आशियाँ क्यूँ हो
ये कह सकते हो हम दिल में नहीं हैं पर ये बतलाओ
कि जब दिल में तुम्हीं तुम हो तो आँखों से निहाँ क्यूँ हो
ग़लत है जज़्ब-ए-दिल का शिकवा देखो जुर्म किस का है
न खींचो गर तुम अपने को कशाकश दरमियाँ क्यूँ हो
ये फ़ित्ना आदमी की ख़ाना-वीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिस के दुश्मन उस का आसमाँ क्यूँ हो
यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो
कहा तुम ने कि क्यूँ हो ग़ैर के मिलने में रुस्वाई
बजा कहते हो सच कहते हो फिर कहियो कि हाँ क्यूँ हो
निकाला चाहता है काम क्या ता'नों से तू 'ग़ालिब'
तिरे बे-मेहर कहने से वो तुझ पर मेहरबाँ क्यूँ हो |
husn-e-mah-garche-ba-hangaam-e-kamaal-achchhaa-hai-mirza-ghalib-ghazals |
हुस्न-ए-मह गरचे ब-हंगाम-ए-कमाल अच्छा है
उस से मेरा मह-ए-ख़ुर्शीद-जमाल अच्छा है
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया
साग़र-ए-जम से मिरा जाम-ए-सिफ़ाल अच्छा है
बे-तलब दें तो मज़ा उस में सिवा मिलता है
वो गदा जिस को न हो ख़ू-ए-सवाल अच्छा है
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है
देखिए पाते हैं उश्शाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
इक बरहमन ने कहा है कि ये साल अच्छा है
हम-सुख़न तेशा ने फ़रहाद को शीरीं से किया
जिस तरह का कि किसी में हो कमाल अच्छा है
क़तरा दरिया में जो मिल जाए तो दरिया हो जाए
काम अच्छा है वो जिस का कि मआल अच्छा है
ख़िज़्र-सुल्ताँ को रखे ख़ालिक़-ए-अकबर सरसब्ज़
शाह के बाग़ में ये ताज़ा निहाल अच्छा है
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है |
tuu-dost-kisuu-kaa-bhii-sitamgar-na-huaa-thaa-mirza-ghalib-ghazals |
तू दोस्त कसू का भी सितमगर न हुआ था
औरों पे है वो ज़ुल्म कि मुझ पर न हुआ था
छोड़ा मह-ए-नख़शब की तरह दस्त-ए-क़ज़ा ने
ख़ुर्शीद हुनूज़ उस के बराबर न हुआ था
तौफ़ीक़ ब-अंदाज़ा-ए-हिम्मत है अज़ल से
आँखों में है वो क़तरा कि गौहर न हुआ था
जब तक कि न देखा था क़द-ए-यार का आलम
मैं मो'तक़िद-ए-फ़ित्ना-ए-महशर न हुआ था
मैं सादा-दिल आज़ुर्दगी-ए-यार से ख़ुश हूँ
या'नी सबक़-ए-शौक़ मुकर्रर न हुआ था
दरिया-ए-मआसी तुनुक-आबी से हुआ ख़ुश्क
मेरा सर-ए-दामन भी अभी तर न हुआ था
जारी थी 'असद' दाग़-ए-जिगर से मिरी तहसील
आतिश-कदा जागीर-ए-समुंदर न हुआ था |
hai-bas-ki-har-ik-un-ke-ishaare-men-nishaan-aur-mirza-ghalib-ghazals |
है बस-कि हर इक उन के इशारे में निशाँ और
करते हैं मोहब्बत तो गुज़रता है गुमाँ और
या-रब वो न समझे हैं न समझेंगे मिरी बात
दे और दिल उन को जो न दे मुझ को ज़बाँ और
अबरू से है क्या उस निगह-ए-नाज़ को पैवंद
है तीर मुक़र्रर मगर इस की है कमाँ और
तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे
ले आएँगे बाज़ार से जा कर दिल ओ जाँ और
हर चंद सुबुक-दस्त हुए बुत-शिकनी में
हम हैं तो अभी राह में है संग-ए-गिराँ और
है ख़ून-ए-जिगर जोश में दिल खोल के रोता
होते जो कई दीदा-ए-ख़ूँनाबा-फ़िशाँ और
मरता हूँ इस आवाज़ पे हर चंद सर उड़ जाए
जल्लाद को लेकिन वो कहे जाएँ कि हाँ और
लोगों को है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब का धोका
हर रोज़ दिखाता हूँ मैं इक दाग़-ए-निहाँ और
लेता न अगर दिल तुम्हें देता कोई दम चैन
करता जो न मरता कोई दिन आह-ओ-फ़ुग़ाँ और
पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले
रुकती है मिरी तब्अ' तो होती है रवाँ और
हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और |
shab-khumaar-e-shauq-e-saaqii-rustakhez-andaaza-thaa-mirza-ghalib-ghazals |
शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था
ता-मुहीत-ए-बादा सूरत ख़ाना-ए-ख़म्याज़ा था
यक क़दम वहशत से दर्स-ए-दफ़्तर-ए-इम्काँ खुला
जादा अजज़ा-ए-दो-आलम दश्त का शीराज़ा था
माना-ए-वहशत-ख़िरामी-हा-ए-लैला कौन है
ख़ाना-ए-मजनून-ए-सहरा-गर्द बे-दरवाज़ा था
पूछ मत रुस्वाई-ए-अंदाज़-ए-इस्तिग़ना-ए-हुस्न
दस्त मरहून-ए-हिना रुख़्सार रहन-ए-ग़ाज़ा था
नाला-ए-दिल ने दिए औराक़-ए-लख़्त-ए-दिल ब-बाद
याद-गार-ए-नाला इक दीवान-ए-बे-शीराज़ा था
हूँ चराग़ान-ए-हवस जूँ काग़ज़-ए-आतिश-ज़दा
दाग़ गर्म-ए-कोशिश-ए-ईजाद-ए-दाग़-ए-ताज़ा था
बे-नवाई तर सदा-ए-नग़्मा-ए-शोहरत 'असद'
बोरिया यक नीस्ताँ-आलम बुलंद आवाज़ा था |
zakhm-par-chhidken-kahaan-tiflaan-e-be-parvaa-namak-mirza-ghalib-ghazals |
ज़ख़्म पर छिड़कें कहाँ तिफ़्लान-ए-बे-परवा नमक
क्या मज़ा होता अगर पत्थर में भी होता नमक
गर्द-ए-राह-ए-यार है सामान-ए-नाज़-ए-ज़ख़्म-ए-दिल
वर्ना होता है जहाँ में किस क़दर पैदा नमक
मुझ को अर्ज़ानी रहे तुझ को मुबारक होजियो
नाला-ए-बुलबुल का दर्द और ख़ंदा-ए-गुल का नमक
शोर-ए-जौलाँ था कनार-ए-बहर पर किस का कि आज
गर्द-ए-साहिल है ब-ज़ख़्म-ए-मौज-ए-दरिया नमक
दाद देता है मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर की वाह वाह
याद करता है मुझे देखे है वो जिस जा नमक
छोड़ कर जाना तन-ए-मजरूह-ए-आशिक़ हैफ़ है
दिल तलब करता है ज़ख़्म और माँगे हैं आ'ज़ा नमक
ग़ैर की मिन्नत न खींचूँगा पय-ए-तौफ़ीर-ए-दर्द
ज़ख़्म मिस्ल-ए-ख़ंदा-ए-क़ातिल है सर-ता-पा नमक
याद हैं 'ग़ालिब' तुझे वो दिन कि वज्द-ए-ज़ौक़ में
ज़ख़्म से गिरता तो मैं पलकों से चुनता था नमक
इस अमल में ऐश की लज़्ज़त नहीं मिलती 'असद'
ज़ोर निस्बत मय से रखता है अज़ारा का नमक |
shab-ki-barq-e-soz-e-dil-se-zahra-e-abr-aab-thaa-mirza-ghalib-ghazals |
शब कि बर्क़-ए-सोज़-ए-दिल से ज़हरा-ए-अब्र आब था
शोला-ए-जव्वाला हर यक हल्क़ा-ए-गिर्दाब था
वाँ करम को उज़्र-ए-बारिश था इनाँ-गीर-ए-ख़िराम
गिर्ये से याँ पुम्बा-ए-बालिश कफ़-ए-सैलाब था
वाँ ख़ुद-आराई को था मोती पिरोने का ख़याल
याँ हुजूम-ए-अश्क में तार-ए-निगह नायाब था
जल्वा-ए-गुल ने किया था वाँ चराग़ाँ आबजू
याँ रवाँ मिज़्गान-ए-चश्म-ए-तर से ख़ून-ए-नाब था
याँ सर-ए-पुर-शोर बे-ख़्वाबी से था दीवार-जू
वाँ वो फ़र्क़-ए-नाज़ महव-ए-बालिश-ए-किम-ख़्वाब था
याँ नफ़स करता था रौशन शम-ए-बज़्म-ए-बे-ख़ुदी
जल्वा-ए-गुल वाँ बिसात-ए-सोहबत-ए-अहबाब था
फ़र्श से ता अर्श वाँ तूफ़ाँ था मौज-ए-रंग का
याँ ज़मीं से आसमाँ तक सोख़्तन का बाब था
ना-गहाँ इस रंग से ख़ूनाबा टपकाने लगा
दिल कि ज़ौक़-ए-काविश-ए-नाख़ुन से लज़्ज़त-याब था |
diivaangii-se-dosh-pe-zunnaar-bhii-nahiin-mirza-ghalib-ghazals |
दीवानगी से दोश पे ज़ुन्नार भी नहीं
या'नी हमारे जेब में इक तार भी नहीं
दिल को नियाज़-ए-हसरत-ए-दीदार कर चुके
देखा तो हम में ताक़त-ए-दीदार भी नहीं
मिलना तिरा अगर नहीं आसाँ तो सहल है
दुश्वार तो यही है कि दुश्वार भी नहीं
बे-इश्क़ उम्र कट नहीं सकती है और याँ
ताक़त ब-क़दर-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार भी नहीं
शोरीदगी के हाथ से है सर वबाल-ए-दोश
सहरा में ऐ ख़ुदा कोई दीवार भी नहीं
गुंजाइश-ए-अदावत-ए-अग़्यार यक तरफ़
याँ दिल में ज़ोफ़ से हवस-ए-यार भी नहीं
डर नाला-हा-ए-ज़ार से मेरे ख़ुदा को मान
आख़िर नवा-ए-मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार भी नहीं
दिल में है यार की सफ़-ए-मिज़्गाँ से रू-कशी
हालाँकि ताक़त-ए-ख़लिश-ए-ख़ार भी नहीं
इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
देखा 'असद' को ख़ल्वत-ओ-जल्वत में बार-हा
दीवाना गर नहीं है तो हुश्यार भी नहीं |
jaur-se-baaz-aae-par-baaz-aaen-kyaa-mirza-ghalib-ghazals |
जौर से बाज़ आए पर बाज़ आएँ क्या
कहते हैं हम तुझ को मुँह दिखलाएँ क्या
रात दिन गर्दिश में हैं सात आसमाँ
हो रहेगा कुछ न कुछ घबराएँ क्या
लाग हो तो उस को हम समझें लगाव
जब न हो कुछ भी तो धोका खाएँ क्या
हो लिए क्यूँ नामा-बर के साथ साथ
या रब अपने ख़त को हम पहुँचाएँ क्या
मौज-ए-ख़ूँ सर से गुज़र ही क्यूँ न जाए
आस्तान-ए-यार से उठ जाएँ क्या
उम्र भर देखा किया मरने की राह
मर गए पर देखिए दिखलाएँ क्या
पूछते हैं वो कि 'ग़ालिब' कौन है
कोई बतलाओ कि हम बतलाएँ क्या |
na-puuchh-nuskha-e-marham-jaraahat-e-dil-kaa-mirza-ghalib-ghazals |
न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का
कि उस में रेज़ा-ए-अल्मास जुज़्व-ए-आज़म है
बहुत दिनों में तग़ाफ़ुल ने तेरे पैदा की
वो इक निगह कि ब-ज़ाहिर निगाह से कम है |
siyaahii-jaise-gir-jaae-dam-e-tahriir-kaagaz-par-mirza-ghalib-ghazals |
सियाही जैसे गिर जाए दम-ए-तहरीर काग़ज़ पर
मिरी क़िस्मत में यूँ तस्वीर है शब-हा-ए-हिज्राँ की
कहूँ क्या गर्म-जोशी मय-कशी में शोला-रूयाँ की
कि शम-ए-ख़ाना-ए-दिल आतिश-ए-मय से फ़रोज़ाँ की
हमेशा मुझ को तिफ़्ली में भी मश्क़-ए-तीरह-रोज़ी थी
सियाही है मिरे अय्याम में लौह-ए-दबिस्ताँ की
दरेग़ आह-ए-सहर-गह कार-ए-बाद-ए-सुब्ह करती है
कि होती है ज़ियादा सर्द-मेहरी शम्अ-रूयाँ की
मुझे अपने जुनूँ की बे-तकल्लुफ़ पर्दा-दारी थी
व-लेकिन क्या करूँ आवे जो रुस्वाई गरेबाँ की
हुनर पैदा किया है मैं ने हैरत-आज़माई में
कि जौहर आइने का हर पलक है चश्म-ए-हैराँ की
ख़ुदाया किस क़दर अहल-ए-नज़र ने ख़ाक छानी है
कि हैं सद-रख़्ना जूँ ग़िर्बाल दीवारें गुलिस्ताँ की
हुआ शर्म-ए-तही-दस्ती से से वो भी सर-निगूँ आख़िर
बस ऐ ज़ख़्म-ए-जिगर अब देख ले शोरिश नमक-दाँ की
बयाद-ए-गर्मी-ए-सोहबत ब-रंग-ए-शोला दहके है
छुपाऊँ क्यूँकि 'ग़ालिब' सोज़िशें दाग़-ए-नुमायाँ की
जुनूँ तोहमत-कश-ए-तस्कीं न हो गर शादमानी की
नमक-पाश-ए-ख़राश-ए-दिल है लज़्ज़त ज़िंदगानी की
कशाकश-हा-ए-हस्ती से करे क्या सई-ए-आज़ादी
हुइ ज़ंजीर-ए-मौज-ए-आब को फ़ुर्सत रवानी की
न खींच ऐ सई-ए-दस्त-ए-ना-रसा ज़ुल्फ़-ए-तमन्ना को
परेशाँ-तर है मू-ए-ख़ामा से तदबीर मानी की
कहाँ हम भी रग-ओ-पै रखते हैं इंसाफ़ बहत्तर है
न खींचे ताक़त-ए-ख़म्याज़ा तोहमत ना-तवानी की
तकल्लुफ़-बरतरफ़ फ़रहाद और इतनी सुबु-दस्ती
ख़याल आसाँ था लेकिन ख़्वाब-ए-ख़ुसरव ने गिरानी की
पस-अज़-मुर्दन भी दीवाना ज़ियारत-गाह-ए-तिफ़्लाँ है
शरार-ए-संग ने तुर्बत पे मेरी गुल-फ़िशानी की
'असद' को बोरिए में धर के फूँका मौज-ए-हस्ती ने
फ़क़ीरी में भी बाक़ी है शरारत नौजवानी की |
jab-tak-dahaan-e-zakhm-na-paidaa-kare-koii-mirza-ghalib-ghazals |
जब तक दहान-ए-ज़ख़्म न पैदा करे कोई
मुश्किल कि तुझ से राह-ए-सुख़न वा करे कोई
आलम ग़ुबार-ए-वहशत-ए-मजनूँ है सर-ब-सर
कब तक ख़याल-ए-तुर्रा-ए-लैला करे कोई
अफ़्सुर्दगी नहीं तरब-इंशा-ए-इल्तिफ़ात
हाँ दर्द बन के दिल में मगर जा करे कोई
रोने से ऐ नदीम मलामत न कर मुझे
आख़िर कभी तो उक़्दा-ए-दिल वा करे कोई
चाक-ए-जिगर से जब रह-ए-पुर्सिश न वा हुई
क्या फ़ाएदा कि जैब को रुस्वा करे कोई
लख़्त-ए-जिगर से है रग-ए-हर-ख़ार शाख़-ए-गुल
ता चंद बाग़-बानी-ए-सहरा करे कोई
नाकामी-ए-निगाह है बर्क़-ए-नज़ारा-सोज़
तू वो नहीं कि तुझ को तमाशा करे कोई
हर संग ओ ख़िश्त है सदफ़-ए-गौहर-ए-शिकस्त
नुक़साँ नहीं जुनूँ से जो सौदा करे कोई
सर बर हुई न वादा-ए-सब्र-आज़मा से उम्र
फ़ुर्सत कहाँ कि तेरी तमन्ना करे कोई
है वहशत-ए-तबीअत-ए-ईजाद यास-खेज़
ये दर्द वो नहीं कि न पैदा करे कोई
बेकारी-ए-जुनूँ को है सर पीटने का शुग़्ल
जब हाथ टूट जाएँ तो फिर क्या करे कोई
हुस्न-ए-फ़रोग़-ए-शम्मा-ए-सुख़न दूर है 'असद'
पहले दिल-ए-गुदाख़्ता पैदा करे कोई
वहशत कहाँ कि बे-ख़ुदी इंशा करे कोई
हस्ती को लफ़्ज़-ए-मानी-ए-अन्क़ा करे कोई
जो कुछ है महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए-यार है
आँखों को रख के ताक़ पे देखा करे कोई
अर्ज़-ए-सरिश्क पर है फ़ज़ा-ए-ज़माना तंग
सहरा कहाँ कि दावत-ए-दरिया करे कोई
वो शोख़ अपने हुस्न पे मग़रूर है 'असद'
दिखला के उस को आइना तोड़ा करे कोई |
fariyaad-kii-koii-lai-nahiin-hai-mirza-ghalib-ghazals |
फ़रियाद की कोई लय नहीं है
नाला पाबंद-ए-नय नहीं है
क्यूँ बोते हैं बाग़बाँ तोंबे
गर बाग़ गदा-ए-मय नहीं है
हर-चंद हर एक शय में तू है
पर तुझ सी कोई शय नहीं है
हाँ खाइयो मत फ़रेब-ए-हस्ती
हर-चंद कहें कि है नहीं है
शादी से गुज़र कि ग़म न होवे
उरदी जो न हो तो दय नहीं है
क्यूँ रद्द-ए-क़दह करे है ज़ाहिद
मय है ये मगस की क़य नहीं है
हस्ती है न कुछ अदम है 'ग़ालिब'
आख़िर तू क्या है ऐ नहीं है |
taa-ham-ko-shikaayat-kii-bhii-baaqii-na-rahe-jaa-mirza-ghalib-ghazals |
ता हम को शिकायत की भी बाक़ी न रहे जा
सुन लेते हैं गो ज़िक्र हमारा नहीं करते
'ग़ालिब' तिरा अहवाल सुना देंगे हम उन को
वो सुन के बुला लें ये इजारा नहीं करते |
hujuum-e-naala-hairat-aajiz-e-arz-e-yak-afgaan-hai-mirza-ghalib-ghazals |
हुजूम-ए-नाला हैरत आजिज़-ए-अर्ज़ यक-अफ़्ग़ाँ है
ख़मोशी रेशा-ए-सद-नीस्ताँ से ख़स-ब-दंदाँ है
तकल्लुफ़-बर-तरफ़ है जाँ-सिताँ-तर लुत्फ़-ए-बद-ख़ूयाँ
निगाह-ए-बे-हिजाब-ए-नाज़ तेग़-ए-तेज़-ए-उर्यां है
हुई ये कसरत-ए-ग़म से तलफ़ कैफ़ियत-ए-शादी
कि सुब्ह-ए-ईद मुझ को बद-तर अज़-चाक-ए-गरेबाँ है
दिल ओ दीं नक़्द ला साक़ी से गर सौदा किया चाहे
कि उस बाज़ार में साग़र माता-ए-दस्त-गर्दां है
ग़म आग़ोश-ए-बला में परवरिश देता है आशिक़ को
चराग़-ए-रौशन अपना क़ुल्ज़ुम-ए-सरसर का मर्जां है
तकल्लुफ़ साज़-ए-रुस्वाई है ग़ाफ़िल शर्म-ए-रानाई
दिल-ए-ख़ूँ-गश्ता दर दस्त-ए-हिना-आलूदा उर्यां है
'असद' जमइयत-ए-दिल दर-किनार-ए-बे-ख़ुदी ख़ुश-तर
दो-आलम आगही सामान-ए-यक-ख़्वाब-ए-परेशाँ है |
taskiin-ko-ham-na-roen-jo-zauq-e-nazar-mile-mirza-ghalib-ghazals |
तस्कीं को हम न रोएँ जो ज़ौक़-ए-नज़र मिले
हूरान-ए-ख़ुल्द में तिरी सूरत मगर मिले
अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद-ए-क़त्ल
मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले
साक़ी-गरी की शर्म करो आज वर्ना हम
हर शब पिया ही करते हैं मय जिस क़दर मिले
तुझ से तो कुछ कलाम नहीं लेकिन ऐ नदीम
मेरा सलाम कहियो अगर नामा-बर मिले
तुम को भी हम दिखाएँ कि मजनूँ ने क्या किया
फ़ुर्सत कशाकश-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ से गर मिले
लाज़िम नहीं कि ख़िज़्र की हम पैरवी करें
जाना कि इक बुज़ुर्ग हमें हम-सफ़र मिले
ऐ साकिनान-ए-कूचा-ए-दिलदार देखना
तुम को कहीं जो 'ग़ालिब'-ए-आशुफ़्ता-सर मिले |
zikr-us-parii-vash-kaa-aur-phir-bayaan-apnaa-mirza-ghalib-ghazals |
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
बन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना
मय वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में या रब
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहाँ अपना
मंज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते
अर्श से उधर होता काश के मकाँ अपना
दे वो जिस क़दर ज़िल्लत हम हँसी में टालेंगे
बारे आश्ना निकला उन का पासबाँ अपना
दर्द-ए-दिल लिखूँ कब तक जाऊँ उन को दिखला दूँ
उँगलियाँ फ़िगार अपनी ख़ामा ख़ूँ-चकाँ अपना
घिसते घिसते मिट जाता आप ने अबस बदला
नंग-ए-सज्दा से मेरे संग-ए-आस्ताँ अपना
ता करे न ग़म्माज़ी कर लिया है दुश्मन को
दोस्त की शिकायत में हम ने हम-ज़बाँ अपना
हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थे
बे-सबब हुआ 'ग़ालिब' दुश्मन आसमाँ अपना |
vo-aa-ke-khvaab-men-taskiin-e-iztiraab-to-de-mirza-ghalib-ghazals |
वो आ के ख़्वाब में तस्कीन-ए-इज़्तिराब तो दे
वले मुझे तपिश-ए-दिल मजाल-ए-ख़्वाब तो दे
करे है क़त्ल लगावट में तेरा रो देना
तिरी तरह कोई तेग़-ए-निगह को आब तो दे
दिखा के जुम्बिश-ए-लब ही तमाम कर हम को
न दे जो बोसा तो मुँह से कहीं जवाब तो दे
पिला दे ओक से साक़ी जो हम से नफ़रत है
पियाला गर नहीं देता न दे शराब तो दे
'असद' ख़ुशी से मिरे हाथ पाँव फूल गए
कहा जो उस ने ज़रा मेरे पाँव दाब तो दे
ये कौन कहवे है आबाद कर हमें लेकिन
कभी ज़माना मुराद-ए-दिल-ए-ख़राब तो दे |
ba-naala-haasil-e-dil-bastagii-faraaham-kar-mirza-ghalib-ghazals |
ब-नाला हासिल-ए-दिल-बस्तगी फ़राहम कर
मता-ए-ख़ाना-ए-ज़ंजीर जुज़ सदा मालूम
ब-क़द्र-ए-हौसला-ए-इश्क़ जल्वा-रेज़ी है
वगर्ना ख़ाना-ए-आईना की फ़ज़ा मालूम
'असद' फ़रेफ्ता-ए-इंतिख़ाब-ए-तर्ज़-ए-जफ़ा
वगर्ना दिलबरी-ए-वादा-ए-वफ़ा मालूम |
dard-minnat-kash-e-davaa-na-huaa-mirza-ghalib-ghazals |
दर्द मिन्नत-कश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ बुरा न हुआ
जम्अ' करते हो क्यूँ रक़ीबों को
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ
हम कहाँ क़िस्मत आज़माने जाएँ
तू ही जब ख़ंजर-आज़मा न हुआ
कितने शीरीं हैं तेरे लब कि रक़ीब
गालियाँ खा के बे-मज़ा न हुआ
है ख़बर गर्म उन के आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ
क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी
बंदगी में मिरा भला न हुआ
जान दी दी हुई उसी की थी
हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ
ज़ख़्म गर दब गया लहू न थमा
काम गर रुक गया रवा न हुआ
रहज़नी है कि दिल-सितानी है
ले के दिल दिल-सिताँ रवाना हुआ
कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं
आज 'ग़ालिब' ग़ज़ल-सरा न हुआ |
kyuunkar-us-but-se-rakhuun-jaan-aziiz-mirza-ghalib-ghazals |
क्यूँकर उस बुत से रखूँ जान अज़ीज़
क्या नहीं है मुझे ईमान अज़ीज़
दिल से निकला पे न निकला दिल से
है तिरे तीर का पैकान अज़ीज़
ताब लाए ही बनेगी 'ग़ालिब'
वाक़िआ सख़्त है और जान अज़ीज़ |
ye-na-thii-hamaarii-qismat-ki-visaal-e-yaar-hotaa-mirza-ghalib-ghazals |
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
तिरे वा'दे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना
कि ख़ुशी से मर न जाते अगर ए'तिबार होता
तिरी नाज़ुकी से जाना कि बँधा था अहद बोदा
कभी तू न तोड़ सकता अगर उस्तुवार होता
कोई मेरे दिल से पूछे तिरे तीर-ए-नीम-कश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
ये कहाँ की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारासाज़ होता कोई ग़म-गुसार होता
रग-ए-संग से टपकता वो लहू कि फिर न थमता
जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार होता
ग़म अगरचे जाँ-गुसिल है प कहाँ बचें कि दिल है
ग़म-ए-इश्क़ गर न होता ग़म-ए-रोज़गार होता
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
हुए मर के हम जो रुस्वा हुए क्यूँ न ग़र्क़-ए-दरिया
न कभी जनाज़ा उठता न कहीं मज़ार होता
उसे कौन देख सकता कि यगाना है वो यकता
जो दुई की बू भी होती तो कहीं दो-चार होता
ये मसाईल-ए-तसव्वुफ़ ये तिरा बयान 'ग़ालिब'
तुझे हम वली समझते जो न बादा-ख़्वार होता |
afsos-ki-dandaan-kaa-kiyaa-rizq-falak-ne-mirza-ghalib-ghazals |
अफ़्सोस कि दंदाँ का किया रिज़्क़ फ़लक ने
जिन लोगों की थी दर-ख़ुर-ए-अक़्द-ए-गुहर अंगुश्त
काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना
ख़ाली मुझे दिखला के ब-वक़्त-ए-सफ़र अंगुश्त
लिखता हूँ 'असद' सोज़िश-ए-दिल से सुख़न-ए-गर्म
ता रख न सके कोई मिरे हर्फ़ पर अंगुश्त |
ye-ham-jo-hijr-men-diivaar-o-dar-ko-dekhte-hain-mirza-ghalib-ghazals |
ये हम जो हिज्र में दीवार-ओ-दर को देखते हैं
कभी सबा को कभी नामा-बर को देखते हैं
वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है
कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं
नज़र लगे न कहीं उस के दस्त-ओ-बाज़ू को
ये लोग क्यूँ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देखते हैं
तिरे जवाहिर-ए-तुर्फ़-ए-कुलह को क्या देखें
हम औज-ए-ताला-ए-लाला-ओ-गुहर को देखते हैं |
ohde-se-madh-e-naaz-ke-baahar-na-aa-sakaa-mirza-ghalib-ghazals |
ओहदे से मद्ह-ए-नाज़ के बाहर न आ सका
गर इक अदा हो तो उसे अपनी क़ज़ा कहूँ
हल्क़े हैं चश्म-हा-ए-कुशादा ब-सू-ए-दिल
हर तार-ए-ज़ुल्फ़ को निगह-ए-सुर्मा-सा कहूँ
मैं और सद-हज़ार नवा-ए-जिगर-ख़राश
तू और एक वो ना-शुनीदन कि क्या कहूँ
ज़ालिम मिरे गुमाँ से मुझे मुन्फ़इल न चाह
है है ख़ुदा-न-कर्दा तुझे बेवफ़ा कहूँ |
aabruu-kyaa-khaak-us-gul-kii-ki-gulshan-men-nahiin-mirza-ghalib-ghazals |
आबरू क्या ख़ाक उस गुल की कि गुलशन में नहीं
है गरेबाँ नंग-ए-पैराहन जो दामन में नहीं
ज़ोफ़ से ऐ गिर्या कुछ बाक़ी मिरे तन में नहीं
रंग हो कर उड़ गया जो ख़ूँ कि दामन में नहीं
हो गए हैं जमा अजज़ा-ए-निगाह-ए-आफ़ताब
ज़र्रे उस के घर की दीवारों के रौज़न में नहीं
क्या कहूँ तारीकी-ए-ज़िन्दान-ए-ग़म अंधेर है
पुम्बा नूर-व-सुब्ह से कम जिस के रौज़न में नहीं
रौनक़-ए-हस्ती है इश्क़-ए-ख़ाना वीराँ साज़ से
अंजुमन बे-शमा है गर बर्क़ ख़िर्मन में नहीं
ज़ख़्म सिलवाने से मुझ पर चारा-जुई का है तान
ग़ैर समझा है कि लज़्ज़त ज़ख़्म-ए-सोज़न में नहीं
बस-कि हैं हम इक बहार-ए-नाज़ के मारे हुए
जल्वा-ए-गुल के सिवा गर्द अपने मदफ़न में नहीं
क़तरा क़तरा इक हयूला है नए नासूर का
ख़ूँ भी ज़ौक़-ए-दर्द से फ़ारिग़ मिरे तन में नहीं
ले गई साक़ी की नख़वत क़ुल्ज़ुम-आशामी मिरी
मौज-ए-मय की आज रग मीना की गर्दन में नहीं
हो फ़िशार-ए-ज़ोफ़ में क्या ना-तवानी की नुमूद
क़द के झुकने की भी गुंजाइश मिरे तन में नहीं
थी वतन में शान क्या 'ग़ालिब' कि हो ग़ुर्बत में क़द्र
बे-तकल्लुफ़ हूँ वो मुश्त-ए-ख़स कि गुलख़न में नहीं |
shikve-ke-naam-se-be-mehr-khafaa-hotaa-hai-mirza-ghalib-ghazals |
शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है
ये भी मत कह कि जो कहिए तो गिला होता है
पुर हूँ मैं शिकवे से यूँ राग से जैसे बाजा
इक ज़रा छेड़िए फिर देखिए क्या होता है
गो समझता नहीं पर हुस्न-ए-तलाफ़ी देखो
शिकवा-ए-जौर से सरगर्म-ए-जफ़ा होता है
इश्क़ की राह में है चर्ख़-ए-मकोकब की वो चाल
सुस्त-रौ जैसे कोई आबला-पा होता है
क्यूँ न ठहरें हदफ़-ए-नावक-ए-बेदाद कि हम
आप उठा लाते हैं गर तीर ख़ता होता है
ख़ूब था पहले से होते जो हम अपने बद-ख़्वाह
कि भला चाहते हैं और बुरा होता है
नाला जाता था परे अर्श से मेरा और अब
लब तक आता है जो ऐसा ही रसा होता है
ख़ामा मेरा कि वो है बारबुद-ए-बज़्म-ए-सुख़न
शाह की मद्ह में यूँ नग़्मा-सरा होता है
ऐ शहंशाह-ए-कवाकिब सिपह-ओ-मेहर-अलम
तेरे इकराम का हक़ किस से अदा होता है
सात अक़्लीम का हासिल जो फ़राहम कीजे
तो वो लश्कर का तिरे नाल-ए-बहा होता है
हर महीने में जो ये बद्र से होता है हिलाल
आस्ताँ पर तिरे मह नासिया सा होता है
मैं जो गुस्ताख़ हूँ आईन-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी में
ये भी तेरा ही करम ज़ौक़-फ़ज़ा होता है
रखियो 'ग़ालिब' मुझे इस तल्ख़-नवाई में मुआ'फ़
आज कुछ दर्द मिरे दिल में सिवा होता है |
phir-mujhe-diida-e-tar-yaad-aayaa-mirza-ghalib-ghazals |
फिर मुझे दीदा-ए-तर याद आया
दिल जिगर तिश्ना-ए-फ़रयाद आया
दम लिया था न क़यामत ने हनूज़
फिर तिरा वक़्त-ए-सफ़र याद आया
सादगी-हा-ए-तमन्ना या'नी
फिर वो नैरंग-ए-नज़र याद आया
उज़्र-ए-वामांदगी ऐ हसरत-ए-दिल
नाला करता था जिगर याद आया
ज़िंदगी यूँ भी गुज़र ही जाती
क्यूँ तिरा राहगुज़र याद आया
क्या ही रिज़वाँ से लड़ाई होगी
घर तिरा ख़ुल्द में गर याद आया
आह वो जुरअत-ए-फ़रियाद कहाँ
दिल से तंग आ के जिगर याद आया
फिर तिरे कूचे को जाता है ख़याल
दिल-ए-गुम-गश्ता मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है
दश्त को देख के घर याद आया
मैं ने मजनूँ पे लड़कपन में 'असद'
संग उठाया था कि सर याद आया
वस्ल में हिज्र का डर याद आया
ऐन जन्नत में सक़र याद आया |
chaak-kii-khvaahish-agar-vahshat-ba-uryaanii-kare-mirza-ghalib-ghazals |
चाक की ख़्वाहिश अगर वहशत ब-उर्यानी करे
सुब्ह के मानिंद ज़ख़्म-ए-दिल गरेबानी करे
जल्वे का तेरे वो आलम है कि गर कीजे ख़याल
दीदा-ए-दिल को ज़ियारत-गाह-ए-हैरानी करे
है शिकस्तन से भी दिल नौमीद या रब कब तलक
आबगीना कोह पर अर्ज़-ए-गिराँ-जानी करे
मय-कदा गर चश्म-ए-मस्त-ए-नाज़ से पावे शिकस्त
मू-ए-शीशा दीदा-ए-साग़र की मिज़्गानी करे
ख़त्त-ए-आरिज़ से लिखा है ज़ुल्फ़ को उल्फ़त ने अहद
यक-क़लम मंज़ूर है जो कुछ परेशानी करे |
baaziicha-e-atfaal-hai-duniyaa-mire-aage-mirza-ghalib-ghazals |
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
इक खेल है औरंग-ए-सुलैमाँ मिरे नज़दीक
इक बात है एजाज़-ए-मसीहा मिरे आगे
जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूर
जुज़ वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया मिरे आगे
होता है निहाँ गर्द में सहरा मिरे होते
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मिरे आगे
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तिरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मिरे आगे
सच कहते हो ख़ुद-बीन ओ ख़ुद-आरा हूँ न क्यूँ हूँ
बैठा है बुत-ए-आइना-सीमा मिरे आगे
फिर देखिए अंदाज़-ए-गुल-अफ़्शानी-ए-गुफ़्तार
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मिरे आगे
नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क से गुज़रा
क्यूँकर कहूँ लो नाम न उन का मिरे आगे
ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे
आशिक़ हूँ प माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मिरे आगे
ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते
आई शब-ए-हिज्राँ की तमन्ना मिरे आगे
है मौजज़न इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ काश यही हो
आता है अभी देखिए क्या क्या मिरे आगे
गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मिरे आगे
हम-पेशा ओ हम-मशरब ओ हमराज़ है मेरा
'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो अच्छा मिरे आगे |
surma-e-muft-e-nazar-huun-mirii-qiimat-ye-hai-mirza-ghalib-ghazals |
सुर्मा-ए-मुफ़्त-ए-नज़र हूँ मिरी क़ीमत ये है
कि रहे चश्म-ए-ख़रीदार पे एहसाँ मेरा
रुख़्सत-ए-नाला मुझे दे कि मबादा ज़ालिम
तेरे चेहरे से हो ज़ाहिर ग़म-ए-पिन्हाँ मेरा
ख़ल्वत-ए-आबला-ए-पा में है जौलाँ मेरा
ख़ूँ है दिल तंगी-ए-वहशत से बयाबाँ मेरा
हसरत-ए-नश्शा-ए-वहशत न ब-सइ-ए-दिल है
अर्ज़-ए-ख़म्याज़ा-ए-मजनूँ है गरेबाँ मेरा
फ़हम ज़ंजीरी-ए-बे-रब्ती-ए-दिल है या-रब
किस ज़बाँ में है लक़ब ख़्वाब-ए-परेशाँ मेरा |
dil-lagaa-kar-lag-gayaa-un-ko-bhii-tanhaa-baithnaa-mirza-ghalib-ghazals |
दिल लगा कर लग गया उन को भी तन्हा बैठना
बारे अपनी बेकसी की हम ने पाई दाद याँ
हैं ज़वाल-आमादा अज्ज़ा आफ़रीनश के तमाम
महर-ए-गर्दूं है चराग़-ए-रहगुज़ार-ए-बाद याँ
है तरह्हुम-आफ़रीं आराइश-ए-बे-दाद याँ
अश्क-ए-चश्म-ए-दाम है हर दाना-ए-सय्याद याँ
है गुदाज़-ए-मोम अंदाज़-ए-चकीदन-हा-ए-ख़ूँ
नीश-ए-ज़ंबूर-ए-असल है नश्तर-ए-फ़स्साद याँ
ना-गवारा है हमें एहसान-ए-साहब-दाैलताँ
है ज़र-ए-गुल भी नज़र में जौहर-ए-फ़ौलाद याँ
जुम्बिश-ए-दिल से हुए हैं उक़्दा-हा-ए-कार वा
कम-तरीं मज़दूर-ए-संगीं-दस्त है फ़रहाद याँ
क़तरा-हा-ए-ख़ून-ए-बिस्मिल ज़ेब-ए-दामाँ हैं 'असद'
है तमाशा करदनी गुल-चीनी-ए-जल्लाद याँ |
luun-vaam-bakht-e-khufta-se-yak-khvaab-e-khush-vale-mirza-ghalib-ghazals |
लूँ वाम बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता से यक-ख़्वाब-ए-खुश वले
'ग़ालिब' ये ख़ौफ़ है कि कहाँ से अदा करूँ
ख़ुश वहशते कि अर्ज़-ए-जुनून-ए-फ़ना करूँ
जूँ गर्द-ए-राह जामा-ए-हस्ती क़बा करूँ
आ ऐ बहार-ए-नाज़ कि तेरे ख़िराम से
दस्तार गिर्द-ए-शाख़-ए-गुल-ए-नक़्श-ए-पा करूँ
ख़ुश उफ़्तादगी कि ब-सहरा-ए-इन्तिज़ार
जूँ जादा गर्द-ए-रह से निगह सुर्मा-सा करूँ
सब्र और ये अदा कि दिल आवे असीर-ए-चाक
दर्द और ये कमीं कि रह-ए-नाला वा करूँ
वो बे-दिमाग़-ए-मिन्नत-ए-इक़बाल हूँ कि मैं
वहशत ब-दाग़-ए-साया-ए-बाल-ए-हुमा करूँ
वो इल्तिमास-ए-लज्ज़त-ए-बे-दाद हूँ कि मैं
तेग़-ए-सितम को पुश्त-ए-ख़म-ए-इल्तिजा करूँ
वो राज़-ए-नाला हूँ कि ब-शरह-ए-निगाह-ए-अज्ज़
अफ़्शाँ ग़ुबार-ए-सुर्मा से फ़र्द-ए-सदा करूँ |
shumaar-e-subha-marguub-e-but-e-mushkil-pasand-aayaa-mirza-ghalib-ghazals-1 |
शुमार-ए-सुब्हा मर्ग़ूब-ए-बुत-ए-मुश्किल-पसंद आया
तमाशा-ए-ब-यक-कफ़ बुर्दन-ए-सद-दिल-पसंद आया
ब-फैज़-ए-बे-दिली नौमीदी-ए-जावेद आसाँ है
कुशायिश को हमारा उक़्दा-ए-मुश्किल-पसंद आया
हवा-ए-सैर-ए-गुल आईना-ए-बे-मेहरी-ए-क़ातिल
कि अंदाज़-ए-ब-खूं-ग़ल्तीदन-ए-बिस्मिल-पसंद आया
रवानी-हा-ए-मौज-ए-ख़ून-ए-बिस्मिल से टपकता है
कि लुत्फ़-ए-बे-तहाशा-रफ़्तन-ए-क़ातिल-पसंद आया
'असद' हर जा सुख़न ने तरह-ए-बाग़-ए-ताज़ा डाली है
मुझे रंग-ए-बहार-ईजादि-ए-बे-दिल-पसंद आया |
naqsh-e-naaz-e-but-e-tannaaz-ba-aagosh-e-raqiib-mirza-ghalib-ghazals |
नक़्श-ए-नाज़-ए-बुत-ए-तन्नाज़ ब-आग़ोश-ए-रक़ीब
पा-ए-ताऊस पए-ख़ामा-ए-मानी माँगे
तू वो बद-ख़ू कि तहय्युर को तमाशा जाने
ग़म वो अफ़्साना कि आशुफ़्ता-बयानी माँगे
वो तप-ए-इश्क़-ए-तमन्ना है कि फिर सूरत-ए-शम्अ'
शो'ला ता-नब्ज़-ए-जिगर रेशा-दवानी माँगे
तिश्ना-ए-ख़ून-ए-तमाशा जो वो पानी माँगे
आइना रुख़्सत-ए-अंदाज़-ए-रवानी माँगे
रंग ने गुल से दम-ए-अर्ज़-ए-परेशानी-ए-बज़्म
बर्ग-ए-गुल रेज़ा-ए-मीना की निशानी माँगे
ज़ुल्फ़ तहरीर-ए-परेशान-ए-तक़ाज़ा है मगर
शाना-साँ मू-ब-ज़बाँ ख़ामा-ए-मानी माँगे
आमद-ए-ख़त से न कर ख़ंदा-ए-शीरीं कि मबाद
चश्म-ए-मोर आईना-ए-दिल निगरानी माँगे
हूँ गिरफ़्तार-ए-कमीं-गाह-ए-तग़ाफ़ुल कि जहाँ
ख़्वाब सय्याद से पर्वाज़-ए-गिरानी माँगे
चश्म पर्वाज़ ओ नफ़स ख़ुफ़्ता मगर ज़ोफ़-ए-उमीद
शहपर-ए-काह पए-मुज़्दा-रिसानी माँगे
वहशत-ए-शोर-ए-तमाशा है कि जूँ निकहत-ए-गुल
नमक-ए-ज़ख़्म-ए-जिगर बाल-फ़िशानी माँगे
गर मिले हज़रत-ए-'बेदिल' का ख़त-ए-लौह-ए-मज़ार
'असद' आईना-ए-पर्वाज़-ए-मआनी माँगे
रंग ने गुल से दम-ए-अर्ज़-ए-परेशानी-ए-बज़्म
बर्ग-ए-गुल रेज़ा-ए-मीना की निशानी माँगे |
baag-paa-kar-khafaqaanii-ye-daraataa-hai-mujhe-mirza-ghalib-ghazals |
बाग़ पा कर ख़फ़क़ानी ये डराता है मुझे
साया-ए-शाख़-ए-गुल अफ़ई नज़र आता है मुझे
जौहर-ए-तेग़ ब-सर-चश्म-ए-दीगर मालूम
हूँ मैं वो सब्ज़ा कि ज़हराब उगाता है मुझे
मुद्दआ महव-ए-तमाशा-ए-शिकस्त-ए-दिल है
आइना-ख़ाना में कोई लिए जाता है मुझे
नाला सरमाया-ए-यक-आलम ओ आलम कफ़-ए-ख़ाक
आसमाँ बैज़ा-ए-क़ुमरी नज़र आता है मुझे
ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे
देखूँ अब मर गए पर कौन उठाता है मुझे
बाग़ तुझ बिन गुल-ए-नर्गिस से डराता है मुझे
चाहूँ गर सैर-ए-चमन आँख दिखाता है मुझे
शोर-ए-तिम्साल है किस रश्क-ए-चमन का या रब
आइना बैज़ा-ए-बुलबुल नज़र आता है मुझे
हैरत-ए-आइना अंजाम-ए-जुनूँ हूँ ज्यूँ शम्अ
किस क़दर दाग़-ए-जिगर शोला उठाता है मुझे
मैं हूँ और हैरत-ए-जावेद मगर ज़ौक़-ए-ख़याल
ब-फ़ुसून-ए-निगह-ए-नाज़ सताता है मुझे
हैरत-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न साज़-ए-सलामत है 'असद'
दिल पस-ए-ज़ानू-ए-आईना बिठाता है मुझे |
maana-e-dasht-navardii-koii-tadbiir-nahiin-mirza-ghalib-ghazals |
माना-ए-दश्त-नवर्दी कोई तदबीर नहीं
एक चक्कर है मिरे पाँव में ज़ंजीर नहीं
शौक़ उस दश्त में दौड़ाए है मुझ को कि जहाँ
जादा ग़ैर अज़ निगह-ए-दीदा-ए-तस्वीर नहीं
हसरत-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार रही जाती है
जादा-ए-राह-ए-वफ़ा जुज़ दम-ए-शमशीर नहीं
रंज-ए-नौमीदी-ए-जावेद गवारा रहियो
ख़ुश हूँ गर नाला-ज़बूनी कश-ए-तासीर नहीं
सर खुजाता है जहाँ ज़ख़्म-ए-सर अच्छा हो जाए
लज़्ज़त-ए-संग ब-अंदाज़ा-ए-तक़रीर नहीं
जब करम रुख़्सत-ए-बेबाकी-ओ-गुस्ताख़ी दे
कोई तक़्सीर ब-जुज़ ख़जलत-ए-तक़सीर नहीं
'ग़ालिब' अपना ये अक़ीदा है ब-क़ौल-ए-'नासिख़'
आप बे-बहरा है जो मो'तक़िद-ए-'मीर' नहीं
'मीर' के शेर का अहवाल कहूँ क्या 'ग़ालिब'
जिस का दीवान कम-अज़-गुलशन-ए-कश्मीर नहीं
आईना दाम को पर्दे में छुपाता है अबस
कि परी-ज़ाद-ए-नज़र क़ाबिल-ए-तस्ख़ीर नहीं
मिस्ल-ए-गुल ज़ख़्म है मेरा भी सिनाँ से तव्वाम
तेरा तरकश ही कुछ आबिस्तनी-ए-तीर नहीं |
junuun-kii-dast-giirii-kis-se-ho-gar-ho-na-uryaanii-mirza-ghalib-ghazals |
जुनूँ की दस्त-गीरी किस से हो गर हो न उर्यानी
गरेबाँ-चाक का हक़ हो गया है मेरी गर्दन पर
बा-रंग-ए-कागज़-ए-आतिश-ज़दा नैरंग-ए-बेताबी
हज़ार आईना दिल बाँधे है बाल-ए-यक-तपीदन पर
फ़लक से हम को ऐश-ए-रफ़्ता का क्या क्या तक़ाज़ा है
मता-ए-बुर्दा को समझे हुए हैं क़र्ज़ रहज़न पर
हम और वो बे-सबब रंज-आशना दुश्मन कि रखता है
शुआ-ए-मेहर से तोहमत निगह की चश्म-ए-रौज़न पर
फ़ना को सौंप गर मुश्ताक़ है अपनी हक़ीक़त का
फ़रोग़-ए-ताला-ए-ख़ाशाक है मौक़ूफ़ गुलख़न पर
'असद' बिस्मिल है किस अंदाज़ का क़ातिल से कहता है
कि मश्क़-ए-नाज़ कर ख़ून-ए-दो-आलम मेरी गर्दन पर
फ़ुसून-ए-यक-दिली है लज़्ज़त-ए-बेदाद दुश्मन पर
कि वज्द-ए-बर्क़ जूँ परवाना बाल-अफ़्शाँ है ख़िर्मन पर
तकल्लुफ़ ख़ार-ख़ार-ए-इल्तिमास-ए-बे-क़ारारी है
कि रिश्ता बाँधता है पैरहन अंगुश्त-ए-सोज़न पर
ये क्या वहशत है ऐ दीवाने पेश-अज़-मर्ग वावैला
रक्खी बे-जा बिना-ए-ख़ाना-ए-ज़ंजीर-ए-शेवन पर |
Subsets and Splits