नाना का जादू

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by JustTry12344 - opened

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हृदयांश एक साल का नन्हा और प्यारा बच्चा था, उसकी माँ का नाम मनीषा था। उसकी मासूम हंसी और चंचलता घर को खुशियों से भर देती थी। वह अपने नाना से बहुत प्यार करता था। जब भी नाना उसे गोद में लेते, वह नन्हे हाथों से उनका चेहरा पकड़कर खिलखिलाने लगता। नाना भी उसे लेकर इतने खुश रहते कि हर बार जब मिलने आते तो सीधे हृदयांश से मिलने की चाहत रखते।

लेकिन एक दिन, हृदयांश अचानक बीमार हो गया। उसे तेज बुखार था और वह लगातार रो रहा था, शायद ठंड गल है थी। उसकी मां, मनीषा, उसे तुरंत अस्पताल ले आई। डॉक्टरों ने तुरंत उसका इलाज करना शुरू कर दिया। मनीषा का दिल अपने नन्हे बच्चे की इस हालत को देखकर बैठा जा रहा था।

अस्पताल के बिस्तर पर, मासूम हृदयांश बहुत शांत और उदास सा हो गया था। डॉक्टरों काफी कोशिश करके उसे दवाइयां तो दी पर वो बार बार रो रहा था।

जब नाना को यह खबर मिली, तो वे फौरन अस्पताल पहुंच गए। जैसे ही नाना ने अस्पताल के कमरे में कदम रखा, हृदयांश ने अपना रोना रोक दिया। उसकी सूनी आंखों में अचानक चमक सी आ गई, वह अपने छोटे-छोटे हाथ फैलाकर नाना की ओर इशारा करने लगा।

नाना ने झट से उसे गोद में उठा लिया। हृदयांश नाना से बुरी तरह चिपक गया और उनके कंधे पर सिर रखकर चुपचाप आराम करने लगा। यह देख मनीषा भी थोड़ी शांत हुई। वह सोच भी नहीं सकती थी कि उसके बेटे को इतनी राहत किसी दवा से नहीं, बल्कि अपने नाना की गोद से मिलेगी।

डॉक्टर भी यह बदलाव देखकर चौंक से गए। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "इस बच्चे के लिए सबसे अच्छी दवा यही प्यार है।"

नाना ने प्यार से हृदयांश के सिर पर हाथ फेरा और धीमे-धीमे उसकी मनपसंद धुन गुनगुनाने लगे। कुछ घंटे बाद, हृदयांश की हालत बेहतर होने लगी।

मनीषा ने महसूस किया कि रिश्तों का सच्चा प्यार किसी भी इलाज से बड़ा होता है। हृदयांश के लिए उसके नाना न केवल दवा अपितु सुकून और सुरक्षा का सबसे बड़ा स्रोत थे।

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