id
stringlengths 1
4
| context
stringlengths 1.16k
8.86k
| question
stringlengths 19
138
| answers
sequence | itv2 hi question
stringlengths 15
165
| itv2 hi context
stringlengths 1.19k
9.04k
| itv2 hi answers
dict |
---|---|---|---|---|---|---|
300 | इसरो ने 25 फरवरी, 2013 12:31 यूटीसी पर सफलतापूर्वक भारत-फ्रांसीसी उपग्रह सरल लांच किया। सरल एक सहकारी प्रौद्योगिकी मिशन है। यह समुद्र की सतह और समुद्र के स्तर की निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाती है। जून 2014 में, इसरो ने पीएसएलवी-सी23 प्रक्षेपण यान के माध्यम से फ्रेंच पृथ्वी अवलोकन उपग्रह स्पॉट-7 (714 किलो) के साथ सिंगापुर का पहला नैनो उपग्रह VELOX-I, कनाडा का उपग्रह CAN-X5, जर्मनी का उपग्रह AISAT लांच किये। यह इसरो का चौथा वाणिज्यिक प्रक्षेपण था। गगन अर्थात् जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और इसरो ने 750 करोड़ रुपये की लागत से मिलकर तैयार किया है। गगन के नाम से जाना जाने वाला यह भारत का उपग्रह आधारित हवाई यातायात संचालन तंत्र है। अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद 10 अगस्त 2010 को इस सुविधा को प्राप्त करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया। पहला गगन नेविगेशन पेलोड अप्रैल 2010 में जीसैट-4 के साथ भेजा गया था। हालाँकि जीसैट-4 कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। क्योंकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान डी3 मिशन पूरा नहीं हो सका। दो और गगन पेलोड बाद में जीसैट-8 और जीसैट-10 भेजे गए। आईआरएनएसएस भारत द्वारा विकसित एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा है। इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। आईआरएनएसएस दो प्रकार की सेवाओं प्रदान करेगा। (1)मानक पोजिशनिंग सेवा और (2)प्रतिबंधित या सीमित सेवा। प्रतिबंधित या सीमित सेवा मुख्यत: भारतीय सेना, भारतीय सरकार के उच्चाधिकारियों व अतिविशिष्ट लोगों व सुरक्षा संस्थानों के लिये होगी। आईआरएनएसएस के संचालन व रख रखाव के लिये भारत में लगभग 16 केन्द्र बनाये गये हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आईआरएनएसएस-1ए उपग्रह ने 1 जुलाई 2013 रात 11:41 बजे उड़ान भरी। प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद रॉकेट ने आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। वर्तमान में सभी 7 उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित किया जा चुका है। और 4 उपग्रह बैकअप के तौर पर भेजे जाने की योजना है। | भारत-फ्रांसीसी उपग्रह कब लांच किया गया था ? | {
"text": [
"25 फरवरी, 2013"
],
"answer_start": [
8
]
} | When was the Indo-French satellite launched? | ISRO successfully launched the India-French satellite simple at UTC on February 25, 2013 12:31.Simple is a cooperative technology mission.It is used to monitor sea level and sea level.In June 2014, ISRO launched Singapore's first nano satellite Velox-I, Canada's satellite Can-X5, Germany satellite AISAT through PSLV-C3 Launch vehicle.This was ISRO's fourth commercial launch.Gagan ie GPS Aid Jio Augmentid Navigation has been prepared by the Airport Authority of India and ISRO at a cost of Rs 750 crore.This is India's satellite -based air traffic operating mechanism, known as Gagan.India became the fourth country in the world to achieve this facility on 10 August 2010 after the US, Russia and Europe.The first Gagan Navigation payload was sent in April 2010 with GSAT-4.However, GSAT-4 could not be set up in class.Because the geostation satellite launch vehicle D3 mission could not be completed.Two more Gagan payloads were later sent to GSAT-8 and GSAT-10.IRNSS is an independent regional shipping satellite system developed by India.Prime Minister Narendra Modi has named it a sailor dedicating it to the fishermen of India.Its objective is to inform its user about the exact position in a distance of 1500 km from the country and the country.IRNSS will provide two types of services.(1) standard positioning service and (2) restricted or limited service.Restricted or limited service will be mainly for the Indian Army, the high officials of the Indian government and the most special people and security institutions.About 16 centers have been set up in India for the operation and maintenance of IRNSS.IRNSS-1A satellite flew from Satish Dhawan Space Center at 11:41 pm on 1 July 2013.About 20 minutes after the launch, the rocket established IRNSS-1A in his orbit.Currently all 7 satellites have been installed in their orbit.And 4 satellites are planned to be sent as backup. | {
"answer_start": [
8
],
"text": [
"February 25, 2013"
]
} |
301 | इसरो ने 25 फरवरी, 2013 12:31 यूटीसी पर सफलतापूर्वक भारत-फ्रांसीसी उपग्रह सरल लांच किया। सरल एक सहकारी प्रौद्योगिकी मिशन है। यह समुद्र की सतह और समुद्र के स्तर की निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाती है। जून 2014 में, इसरो ने पीएसएलवी-सी23 प्रक्षेपण यान के माध्यम से फ्रेंच पृथ्वी अवलोकन उपग्रह स्पॉट-7 (714 किलो) के साथ सिंगापुर का पहला नैनो उपग्रह VELOX-I, कनाडा का उपग्रह CAN-X5, जर्मनी का उपग्रह AISAT लांच किये। यह इसरो का चौथा वाणिज्यिक प्रक्षेपण था। गगन अर्थात् जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और इसरो ने 750 करोड़ रुपये की लागत से मिलकर तैयार किया है। गगन के नाम से जाना जाने वाला यह भारत का उपग्रह आधारित हवाई यातायात संचालन तंत्र है। अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद 10 अगस्त 2010 को इस सुविधा को प्राप्त करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया। पहला गगन नेविगेशन पेलोड अप्रैल 2010 में जीसैट-4 के साथ भेजा गया था। हालाँकि जीसैट-4 कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। क्योंकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान डी3 मिशन पूरा नहीं हो सका। दो और गगन पेलोड बाद में जीसैट-8 और जीसैट-10 भेजे गए। आईआरएनएसएस भारत द्वारा विकसित एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा है। इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। आईआरएनएसएस दो प्रकार की सेवाओं प्रदान करेगा। (1)मानक पोजिशनिंग सेवा और (2)प्रतिबंधित या सीमित सेवा। प्रतिबंधित या सीमित सेवा मुख्यत: भारतीय सेना, भारतीय सरकार के उच्चाधिकारियों व अतिविशिष्ट लोगों व सुरक्षा संस्थानों के लिये होगी। आईआरएनएसएस के संचालन व रख रखाव के लिये भारत में लगभग 16 केन्द्र बनाये गये हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आईआरएनएसएस-1ए उपग्रह ने 1 जुलाई 2013 रात 11:41 बजे उड़ान भरी। प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद रॉकेट ने आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। वर्तमान में सभी 7 उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित किया जा चुका है। और 4 उपग्रह बैकअप के तौर पर भेजे जाने की योजना है। | दक्षिण एशिया उपग्रह कब लॉन्च किया गया था ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | When was the South Asia Satellite launched? | ISRO successfully launched the India-French satellite simple at UTC on February 25, 2013 12:31.Simple is a cooperative technology mission.It is used to monitor sea level and sea level.In June 2014, ISRO launched Singapore's first nano satellite Velox-I, Canada's satellite Can-X5, Germany satellite AISAT through PSLV-C3 Launch vehicle.This was ISRO's fourth commercial launch.Gagan ie GPS Aid Jio Augmentid Navigation has been prepared by the Airport Authority of India and ISRO at a cost of Rs 750 crore.This is India's satellite -based air traffic operating mechanism, known as Gagan.India became the fourth country in the world to achieve this facility on 10 August 2010 after the US, Russia and Europe.The first Gagan Navigation payload was sent in April 2010 with GSAT-4.However, GSAT-4 could not be set up in class.Because the geostation satellite launch vehicle D3 mission could not be completed.Two more Gagan payloads were later sent to GSAT-8 and GSAT-10.IRNSS is an independent regional shipping satellite system developed by India.Prime Minister Narendra Modi has named it a sailor dedicating it to the fishermen of India.Its objective is to inform its user about the exact position in a distance of 1500 km from the country and the country.IRNSS will provide two types of services.(1) standard positioning service and (2) restricted or limited service.Restricted or limited service will be mainly for the Indian Army, the high officials of the Indian government and the most special people and security institutions.About 16 centers have been set up in India for the operation and maintenance of IRNSS.IRNSS-1A satellite flew from Satish Dhawan Space Center at 11:41 pm on 1 July 2013.About 20 minutes after the launch, the rocket established IRNSS-1A in his orbit.Currently all 7 satellites have been installed in their orbit.And 4 satellites are planned to be sent as backup. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
302 | इसरो ने 25 फरवरी, 2013 12:31 यूटीसी पर सफलतापूर्वक भारत-फ्रांसीसी उपग्रह सरल लांच किया। सरल एक सहकारी प्रौद्योगिकी मिशन है। यह समुद्र की सतह और समुद्र के स्तर की निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाती है। जून 2014 में, इसरो ने पीएसएलवी-सी23 प्रक्षेपण यान के माध्यम से फ्रेंच पृथ्वी अवलोकन उपग्रह स्पॉट-7 (714 किलो) के साथ सिंगापुर का पहला नैनो उपग्रह VELOX-I, कनाडा का उपग्रह CAN-X5, जर्मनी का उपग्रह AISAT लांच किये। यह इसरो का चौथा वाणिज्यिक प्रक्षेपण था। गगन अर्थात् जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और इसरो ने 750 करोड़ रुपये की लागत से मिलकर तैयार किया है। गगन के नाम से जाना जाने वाला यह भारत का उपग्रह आधारित हवाई यातायात संचालन तंत्र है। अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद 10 अगस्त 2010 को इस सुविधा को प्राप्त करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया। पहला गगन नेविगेशन पेलोड अप्रैल 2010 में जीसैट-4 के साथ भेजा गया था। हालाँकि जीसैट-4 कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। क्योंकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान डी3 मिशन पूरा नहीं हो सका। दो और गगन पेलोड बाद में जीसैट-8 और जीसैट-10 भेजे गए। आईआरएनएसएस भारत द्वारा विकसित एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा है। इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। आईआरएनएसएस दो प्रकार की सेवाओं प्रदान करेगा। (1)मानक पोजिशनिंग सेवा और (2)प्रतिबंधित या सीमित सेवा। प्रतिबंधित या सीमित सेवा मुख्यत: भारतीय सेना, भारतीय सरकार के उच्चाधिकारियों व अतिविशिष्ट लोगों व सुरक्षा संस्थानों के लिये होगी। आईआरएनएसएस के संचालन व रख रखाव के लिये भारत में लगभग 16 केन्द्र बनाये गये हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आईआरएनएसएस-1ए उपग्रह ने 1 जुलाई 2013 रात 11:41 बजे उड़ान भरी। प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद रॉकेट ने आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। वर्तमान में सभी 7 उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित किया जा चुका है। और 4 उपग्रह बैकअप के तौर पर भेजे जाने की योजना है। | पहला गगन नेविगेशन पेलोड कब लांच किया गया था? | {
"text": [
"अप्रैल 2010"
],
"answer_start": [
795
]
} | When was the first GAGAN navigation payload launched? | ISRO successfully launched the India-French satellite simple at UTC on February 25, 2013 12:31.Simple is a cooperative technology mission.It is used to monitor sea level and sea level.In June 2014, ISRO launched Singapore's first nano satellite Velox-I, Canada's satellite Can-X5, Germany satellite AISAT through PSLV-C3 Launch vehicle.This was ISRO's fourth commercial launch.Gagan ie GPS Aid Jio Augmentid Navigation has been prepared by the Airport Authority of India and ISRO at a cost of Rs 750 crore.This is India's satellite -based air traffic operating mechanism, known as Gagan.India became the fourth country in the world to achieve this facility on 10 August 2010 after the US, Russia and Europe.The first Gagan Navigation payload was sent in April 2010 with GSAT-4.However, GSAT-4 could not be set up in class.Because the geostation satellite launch vehicle D3 mission could not be completed.Two more Gagan payloads were later sent to GSAT-8 and GSAT-10.IRNSS is an independent regional shipping satellite system developed by India.Prime Minister Narendra Modi has named it a sailor dedicating it to the fishermen of India.Its objective is to inform its user about the exact position in a distance of 1500 km from the country and the country.IRNSS will provide two types of services.(1) standard positioning service and (2) restricted or limited service.Restricted or limited service will be mainly for the Indian Army, the high officials of the Indian government and the most special people and security institutions.About 16 centers have been set up in India for the operation and maintenance of IRNSS.IRNSS-1A satellite flew from Satish Dhawan Space Center at 11:41 pm on 1 July 2013.About 20 minutes after the launch, the rocket established IRNSS-1A in his orbit.Currently all 7 satellites have been installed in their orbit.And 4 satellites are planned to be sent as backup. | {
"answer_start": [
795
],
"text": [
"April 2010"
]
} |
303 | इसरो ने 25 फरवरी, 2013 12:31 यूटीसी पर सफलतापूर्वक भारत-फ्रांसीसी उपग्रह सरल लांच किया। सरल एक सहकारी प्रौद्योगिकी मिशन है। यह समुद्र की सतह और समुद्र के स्तर की निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाती है। जून 2014 में, इसरो ने पीएसएलवी-सी23 प्रक्षेपण यान के माध्यम से फ्रेंच पृथ्वी अवलोकन उपग्रह स्पॉट-7 (714 किलो) के साथ सिंगापुर का पहला नैनो उपग्रह VELOX-I, कनाडा का उपग्रह CAN-X5, जर्मनी का उपग्रह AISAT लांच किये। यह इसरो का चौथा वाणिज्यिक प्रक्षेपण था। गगन अर्थात् जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और इसरो ने 750 करोड़ रुपये की लागत से मिलकर तैयार किया है। गगन के नाम से जाना जाने वाला यह भारत का उपग्रह आधारित हवाई यातायात संचालन तंत्र है। अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद 10 अगस्त 2010 को इस सुविधा को प्राप्त करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया। पहला गगन नेविगेशन पेलोड अप्रैल 2010 में जीसैट-4 के साथ भेजा गया था। हालाँकि जीसैट-4 कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। क्योंकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान डी3 मिशन पूरा नहीं हो सका। दो और गगन पेलोड बाद में जीसैट-8 और जीसैट-10 भेजे गए। आईआरएनएसएस भारत द्वारा विकसित एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा है। इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। आईआरएनएसएस दो प्रकार की सेवाओं प्रदान करेगा। (1)मानक पोजिशनिंग सेवा और (2)प्रतिबंधित या सीमित सेवा। प्रतिबंधित या सीमित सेवा मुख्यत: भारतीय सेना, भारतीय सरकार के उच्चाधिकारियों व अतिविशिष्ट लोगों व सुरक्षा संस्थानों के लिये होगी। आईआरएनएसएस के संचालन व रख रखाव के लिये भारत में लगभग 16 केन्द्र बनाये गये हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आईआरएनएसएस-1ए उपग्रह ने 1 जुलाई 2013 रात 11:41 बजे उड़ान भरी। प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद रॉकेट ने आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। वर्तमान में सभी 7 उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित किया जा चुका है। और 4 उपग्रह बैकअप के तौर पर भेजे जाने की योजना है। | दक्षिण एशिया उपग्रह कहाँ से लांच किया गया था ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Where was the South Asia Satellite launched from? | ISRO successfully launched the India-French satellite simple at UTC on February 25, 2013 12:31.Simple is a cooperative technology mission.It is used to monitor sea level and sea level.In June 2014, ISRO launched Singapore's first nano satellite Velox-I, Canada's satellite Can-X5, Germany satellite AISAT through PSLV-C3 Launch vehicle.This was ISRO's fourth commercial launch.Gagan ie GPS Aid Jio Augmentid Navigation has been prepared by the Airport Authority of India and ISRO at a cost of Rs 750 crore.This is India's satellite -based air traffic operating mechanism, known as Gagan.India became the fourth country in the world to achieve this facility on 10 August 2010 after the US, Russia and Europe.The first Gagan Navigation payload was sent in April 2010 with GSAT-4.However, GSAT-4 could not be set up in class.Because the geostation satellite launch vehicle D3 mission could not be completed.Two more Gagan payloads were later sent to GSAT-8 and GSAT-10.IRNSS is an independent regional shipping satellite system developed by India.Prime Minister Narendra Modi has named it a sailor dedicating it to the fishermen of India.Its objective is to inform its user about the exact position in a distance of 1500 km from the country and the country.IRNSS will provide two types of services.(1) standard positioning service and (2) restricted or limited service.Restricted or limited service will be mainly for the Indian Army, the high officials of the Indian government and the most special people and security institutions.About 16 centers have been set up in India for the operation and maintenance of IRNSS.IRNSS-1A satellite flew from Satish Dhawan Space Center at 11:41 pm on 1 July 2013.About 20 minutes after the launch, the rocket established IRNSS-1A in his orbit.Currently all 7 satellites have been installed in their orbit.And 4 satellites are planned to be sent as backup. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
304 | इसरो ने 25 फरवरी, 2013 12:31 यूटीसी पर सफलतापूर्वक भारत-फ्रांसीसी उपग्रह सरल लांच किया। सरल एक सहकारी प्रौद्योगिकी मिशन है। यह समुद्र की सतह और समुद्र के स्तर की निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाती है। जून 2014 में, इसरो ने पीएसएलवी-सी23 प्रक्षेपण यान के माध्यम से फ्रेंच पृथ्वी अवलोकन उपग्रह स्पॉट-7 (714 किलो) के साथ सिंगापुर का पहला नैनो उपग्रह VELOX-I, कनाडा का उपग्रह CAN-X5, जर्मनी का उपग्रह AISAT लांच किये। यह इसरो का चौथा वाणिज्यिक प्रक्षेपण था। गगन अर्थात् जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और इसरो ने 750 करोड़ रुपये की लागत से मिलकर तैयार किया है। गगन के नाम से जाना जाने वाला यह भारत का उपग्रह आधारित हवाई यातायात संचालन तंत्र है। अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद 10 अगस्त 2010 को इस सुविधा को प्राप्त करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया। पहला गगन नेविगेशन पेलोड अप्रैल 2010 में जीसैट-4 के साथ भेजा गया था। हालाँकि जीसैट-4 कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। क्योंकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान डी3 मिशन पूरा नहीं हो सका। दो और गगन पेलोड बाद में जीसैट-8 और जीसैट-10 भेजे गए। आईआरएनएसएस भारत द्वारा विकसित एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा है। इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। आईआरएनएसएस दो प्रकार की सेवाओं प्रदान करेगा। (1)मानक पोजिशनिंग सेवा और (2)प्रतिबंधित या सीमित सेवा। प्रतिबंधित या सीमित सेवा मुख्यत: भारतीय सेना, भारतीय सरकार के उच्चाधिकारियों व अतिविशिष्ट लोगों व सुरक्षा संस्थानों के लिये होगी। आईआरएनएसएस के संचालन व रख रखाव के लिये भारत में लगभग 16 केन्द्र बनाये गये हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आईआरएनएसएस-1ए उपग्रह ने 1 जुलाई 2013 रात 11:41 बजे उड़ान भरी। प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद रॉकेट ने आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। वर्तमान में सभी 7 उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित किया जा चुका है। और 4 उपग्रह बैकअप के तौर पर भेजे जाने की योजना है। | सिंगापुर के पहले नैनो उपग्रह का क्या नाम है? | {
"text": [
"VELOX-I"
],
"answer_start": [
341
]
} | What is the name of Singapore's first nano satellite? | ISRO successfully launched the India-French satellite simple at UTC on February 25, 2013 12:31.Simple is a cooperative technology mission.It is used to monitor sea level and sea level.In June 2014, ISRO launched Singapore's first nano satellite Velox-I, Canada's satellite Can-X5, Germany satellite AISAT through PSLV-C3 Launch vehicle.This was ISRO's fourth commercial launch.Gagan ie GPS Aid Jio Augmentid Navigation has been prepared by the Airport Authority of India and ISRO at a cost of Rs 750 crore.This is India's satellite -based air traffic operating mechanism, known as Gagan.India became the fourth country in the world to achieve this facility on 10 August 2010 after the US, Russia and Europe.The first Gagan Navigation payload was sent in April 2010 with GSAT-4.However, GSAT-4 could not be set up in class.Because the geostation satellite launch vehicle D3 mission could not be completed.Two more Gagan payloads were later sent to GSAT-8 and GSAT-10.IRNSS is an independent regional shipping satellite system developed by India.Prime Minister Narendra Modi has named it a sailor dedicating it to the fishermen of India.Its objective is to inform its user about the exact position in a distance of 1500 km from the country and the country.IRNSS will provide two types of services.(1) standard positioning service and (2) restricted or limited service.Restricted or limited service will be mainly for the Indian Army, the high officials of the Indian government and the most special people and security institutions.About 16 centers have been set up in India for the operation and maintenance of IRNSS.IRNSS-1A satellite flew from Satish Dhawan Space Center at 11:41 pm on 1 July 2013.About 20 minutes after the launch, the rocket established IRNSS-1A in his orbit.Currently all 7 satellites have been installed in their orbit.And 4 satellites are planned to be sent as backup. | {
"answer_start": [
341
],
"text": [
"VELOX-I"
]
} |
305 | इसलिए प्रथम योग्य और अनुभवी गुरुजनों से शास्त्र का अध्ययन करने पर रोग के हेतु, लिंग और औषधज्ञान में प्रवृत्ति होती है। शास्त्रवचनों के अनुसार ही लक्षणों की परीक्षा प्रत्यक्ष, अनुमान और युक्ति से की जाती है। मनोयोगपूर्वक इंद्रियों द्वारा विषयों का अनुभव प्राप्त करने को प्रत्यक्ष कहते हैं। इसके द्वारा रोगी के शरीर के अंग प्रत्यंग में होनेवाले विभिन्न शब्दों (ध्वनियों) की परीक्षा कर उनके स्वाभाविक या अस्वाभाविक होने का ज्ञान श्रोत्रेंद्रिय द्वारा करना चाहिए। वर्ण, आकृति, लंबाई, चौड़ाई आदि प्रमाण तथा छाया आदि का ज्ञान नेत्रों द्वारा, गंधों का ज्ञान घ्राणेन्द्रिय तथा शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध एवं नाड़ी आदि के स्पंदन आदि भावों का ज्ञान स्पर्शेंद्रिय द्वारा प्राप्त करना चाहिए। रोगी के शरीरगत रस की परीक्षा स्वयं अपनी जीभ से करना उचित न होने के कारण, उसके शरीर या उससे निकले स्वेद, मूत्र, रक्त, पूय आदि में चींटी लगना या न लगना, मक्खियों का आना और न आना, कौए या कुत्ते आदि द्वारा खाना या न खाना, प्रत्यक्ष देखकर उनके स्वरूप का अनुमान किया जा सकता है। युक्तिपूर्वक तर्क (ऊहापाह) के द्वारा प्राप्त ज्ञान अनुमान (इनफ़रेंस) है। जिन विषयों का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता या प्रत्यक्ष होने पर भी उनके संबंध में संदेह होता है वहाँ अनुमान द्वारा परीक्षा करनी चाहिए; यथा, पाचनशक्ति के आधार पर अग्निबल का, व्यायाम की शक्ति के आधार पर शारीरिक बल का, अपने विषयों को ग्रहण करने या न करने से इंद्रियों की प्रकृति या विकृति का तथा इसी प्रकार भोजन में रुचि, अरुचि तथा प्यास एवं भय, शोक, क्रोध, इच्छा, द्वेष आदि मानसिक भावों के द्वारा विभिन्न शारीरिक और मानसिक विषयों का अनुमान करना चाहिए। पूर्वोक्त उपशयानुपशय भी अनुमान का ही विषय है। इसका अर्थ है योजना। अनेक कारणों के सामुदायिक प्रभाव से किसी विशिष्ट कार्य की उत्पत्ति को देखकर, तदनुकूल विचारों से जो कल्पना की जाती है उसे युक्ति कहते हैं। जैसे खेत, जल, जुताई, बीज और ऋतु के संयोग से ही पौधा उगता है। धुएं का आग के साथ सदैव संबंध रहता है, अर्थात् जहाँ धुआँ होगा वहाँ आग भी होगी। इसी को व्याप्तिज्ञान भी कहते हैं और इसी के आधार पर तर्क कर अनुमान किया जाता है। इस प्रकार निदान, पूर्वरूप, रूप, संप्राप्ति और उपशय इन सभी के सामुदायिक विचार से रोग का निर्णय युक्तियुक्त होता है। योजना का दूसरी दृष्टि से भी रोगी की परीक्षा में प्रयोग कर सकते हैं। जैसे किसी इंद्रिय में यदि कोई विषय सरलता से ग्राह्य न हो तो अन्य यंत्रादि उपकरणों की सहायता से उस विषय का ग्रहण करना भी युक्ति में ही अंतर्भूत है। पूर्वोक्त लिंगों के ज्ञान के लिए तथा रोगनिर्णय के साथ साध्यता या असाध्यता के भी ज्ञान के लिए आप्तोपदेश के अनुसार प्रत्यक्ष आदि परीक्षाओं द्वारा रोगी के सार, तत्व (डिसपोज़िशन), सहनन (उपचय), प्रमाण (शरीर और अंग प्रत्यंग की लंबाई, चौड़ाई, भार आदि), सात्म्य (अभ्यास आदि, हैबिट्स), आहारशक्ति, व्यायामशक्ति तथा आयु के अतिरिक्त वर्ण, स्वर, गंध, रस और स्पर्श ये विषय, श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसन और स्पशेंद्रिय, सत्व, भक्ति (रुचि), शैच, शील, आचार, स्मृति, आकृति, बल, ग्लानि, तंद्रा, आरंभ (चेष्टा), गुरुता, लघुता, शीतलता, उष्णता, मृदुता, काठिन्य आदि गुण, आहार के गुण, पाचन और मात्रा, उपाय (साधन), रोग और उसके पूर्वरूप आदि का प्रमाण, उपद्रव (कांप्लिकेशंस), छाया (लस्टर), प्रतिच्छाया, स्वप्न (ड्रीम्स), रोगी को देखने को बुलाने के लिए आए दूत तथा रास्ते और रोगी के घर में प्रवेश के समय के शकुन और अपशकुन, ग्रहयोग आदि सभी विषयों का प्रकृति (स्वाभाविकता) तथा विकृति (अस्वाभाविकता) की दृष्टि से विचार करते हुए परीक्षा करनी चाहिए। | इंद्रियों द्वारा विषयों का अनुभव को क्या कहा जाता है ? | {
"text": [
"प्रत्यक्ष"
],
"answer_start": [
163
]
} | What is the experience of subjects by the senses called? | Therefore, when studying the scripture from the first qualified and experienced gurus, there is a tendency in gender and medicine for the disease.According to the scriptures, the symptoms are tested with direct, estimates and device.The experience of subjects by the senses is directly called direct.Through this, the patient's body parts should be tested in various words (sounds) and their natural or unnatural knowledge should be done by Shrotrandriya.Knowledge of varna, shape, length, width etc. and shadow etc. should be attained by the eyes, vision of smells, olfactory and the knowledge of the pulses of cold, warm, ripe, balsamic and pulse etc.Examination of the patient's body juice with his tongue is not appropriate, due to his body or from his body, urine, blood, euphoria, etc.Or not eating, their form can be estimated by looking directly.The knowledge obtained by rational argument (ohapah) is an infrastructure.The subjects that cannot be direct or have doubts about them, should be examined by estimates;As such, on the basis of digestive power, of firefall, physical strength on the basis of exercise, taking or not by accepting their subjects, the nature or deformity of the senses and similarly interest in food, anorexia and thirst and fear, mourning, anger, Various physical and mental subjects should be estimated by mental expressions like desire, malice etc.The aforesaid subclass is also a matter of estimate.It means plan.Seeing the origin of a specific work due to the community effect of many reasons, the imagination that is imagined by the corresponding ideas is called Tip.For example, the plant grows only by the combination of fields, water, plowing, seeds and seasons.Smoke always has a relationship with fire, that is, where there will be smoke, there will be fire.This is also called the coverage and on the basis of this, it is estimated to argue.Thus, the decision of the disease is rational by the community idea of all these diagnoses, pre -form, form, conflict and subclass.From another point of view, you can also use the scheme in the examination of the patient.For example, if a subject is not easily acceptable in an senses, then taking that subject with the help of other instruments is also interrupted in the tactic.For the knowledge of the aforesaid sexes and for knowledge of practicableness or incurability along with disease, the abstract of the patient, essence (disposal), tolerant (anabolic), proof (length of body and body sub -subclass, width, width,Weight etc.), samatyya (practice etc., habits), dietary power, exercise and age, vowels, vowels, smells, juices and touch these subjects, shrotra, eye, olfactory, rasan and spashendriya, sattva, devotion (interest), shitch,Sheel, ethos, memory, shape, force, guilt, sleepiness, beginning (chesta), gravity, miniature, coolness, heat, softness, scathing etc. properties, dietary properties, digestion and quantity, measures (means), disease and pre -formEvidence of etc. etc.Examination should be done by considering nature (naturalness) and distortion (unnatural). | {
"answer_start": [
163
],
"text": [
"direct"
]
} |
306 | इसलिए प्रथम योग्य और अनुभवी गुरुजनों से शास्त्र का अध्ययन करने पर रोग के हेतु, लिंग और औषधज्ञान में प्रवृत्ति होती है। शास्त्रवचनों के अनुसार ही लक्षणों की परीक्षा प्रत्यक्ष, अनुमान और युक्ति से की जाती है। मनोयोगपूर्वक इंद्रियों द्वारा विषयों का अनुभव प्राप्त करने को प्रत्यक्ष कहते हैं। इसके द्वारा रोगी के शरीर के अंग प्रत्यंग में होनेवाले विभिन्न शब्दों (ध्वनियों) की परीक्षा कर उनके स्वाभाविक या अस्वाभाविक होने का ज्ञान श्रोत्रेंद्रिय द्वारा करना चाहिए। वर्ण, आकृति, लंबाई, चौड़ाई आदि प्रमाण तथा छाया आदि का ज्ञान नेत्रों द्वारा, गंधों का ज्ञान घ्राणेन्द्रिय तथा शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध एवं नाड़ी आदि के स्पंदन आदि भावों का ज्ञान स्पर्शेंद्रिय द्वारा प्राप्त करना चाहिए। रोगी के शरीरगत रस की परीक्षा स्वयं अपनी जीभ से करना उचित न होने के कारण, उसके शरीर या उससे निकले स्वेद, मूत्र, रक्त, पूय आदि में चींटी लगना या न लगना, मक्खियों का आना और न आना, कौए या कुत्ते आदि द्वारा खाना या न खाना, प्रत्यक्ष देखकर उनके स्वरूप का अनुमान किया जा सकता है। युक्तिपूर्वक तर्क (ऊहापाह) के द्वारा प्राप्त ज्ञान अनुमान (इनफ़रेंस) है। जिन विषयों का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता या प्रत्यक्ष होने पर भी उनके संबंध में संदेह होता है वहाँ अनुमान द्वारा परीक्षा करनी चाहिए; यथा, पाचनशक्ति के आधार पर अग्निबल का, व्यायाम की शक्ति के आधार पर शारीरिक बल का, अपने विषयों को ग्रहण करने या न करने से इंद्रियों की प्रकृति या विकृति का तथा इसी प्रकार भोजन में रुचि, अरुचि तथा प्यास एवं भय, शोक, क्रोध, इच्छा, द्वेष आदि मानसिक भावों के द्वारा विभिन्न शारीरिक और मानसिक विषयों का अनुमान करना चाहिए। पूर्वोक्त उपशयानुपशय भी अनुमान का ही विषय है। इसका अर्थ है योजना। अनेक कारणों के सामुदायिक प्रभाव से किसी विशिष्ट कार्य की उत्पत्ति को देखकर, तदनुकूल विचारों से जो कल्पना की जाती है उसे युक्ति कहते हैं। जैसे खेत, जल, जुताई, बीज और ऋतु के संयोग से ही पौधा उगता है। धुएं का आग के साथ सदैव संबंध रहता है, अर्थात् जहाँ धुआँ होगा वहाँ आग भी होगी। इसी को व्याप्तिज्ञान भी कहते हैं और इसी के आधार पर तर्क कर अनुमान किया जाता है। इस प्रकार निदान, पूर्वरूप, रूप, संप्राप्ति और उपशय इन सभी के सामुदायिक विचार से रोग का निर्णय युक्तियुक्त होता है। योजना का दूसरी दृष्टि से भी रोगी की परीक्षा में प्रयोग कर सकते हैं। जैसे किसी इंद्रिय में यदि कोई विषय सरलता से ग्राह्य न हो तो अन्य यंत्रादि उपकरणों की सहायता से उस विषय का ग्रहण करना भी युक्ति में ही अंतर्भूत है। पूर्वोक्त लिंगों के ज्ञान के लिए तथा रोगनिर्णय के साथ साध्यता या असाध्यता के भी ज्ञान के लिए आप्तोपदेश के अनुसार प्रत्यक्ष आदि परीक्षाओं द्वारा रोगी के सार, तत्व (डिसपोज़िशन), सहनन (उपचय), प्रमाण (शरीर और अंग प्रत्यंग की लंबाई, चौड़ाई, भार आदि), सात्म्य (अभ्यास आदि, हैबिट्स), आहारशक्ति, व्यायामशक्ति तथा आयु के अतिरिक्त वर्ण, स्वर, गंध, रस और स्पर्श ये विषय, श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसन और स्पशेंद्रिय, सत्व, भक्ति (रुचि), शैच, शील, आचार, स्मृति, आकृति, बल, ग्लानि, तंद्रा, आरंभ (चेष्टा), गुरुता, लघुता, शीतलता, उष्णता, मृदुता, काठिन्य आदि गुण, आहार के गुण, पाचन और मात्रा, उपाय (साधन), रोग और उसके पूर्वरूप आदि का प्रमाण, उपद्रव (कांप्लिकेशंस), छाया (लस्टर), प्रतिच्छाया, स्वप्न (ड्रीम्स), रोगी को देखने को बुलाने के लिए आए दूत तथा रास्ते और रोगी के घर में प्रवेश के समय के शकुन और अपशकुन, ग्रहयोग आदि सभी विषयों का प्रकृति (स्वाभाविकता) तथा विकृति (अस्वाभाविकता) की दृष्टि से विचार करते हुए परीक्षा करनी चाहिए। | जहाँ धुआँ होता है वहाँ आग भी होती है इसे किस रूप में भी जाना जाता है | {
"text": [
"व्याप्तिज्ञान"
],
"answer_start": [
1806
]
} | Where there is smoke, there is also fire. It is also known as Kisa. | Therefore, when studying the scripture from the first qualified and experienced gurus, there is a tendency in gender and medicine for the disease.According to the scriptures, the symptoms are tested with direct, estimates and device.The experience of subjects by the senses is directly called direct.Through this, the patient's body parts should be tested in various words (sounds) and their natural or unnatural knowledge should be done by Shrotrandriya.Knowledge of varna, shape, length, width etc. and shadow etc. should be attained by the eyes, vision of smells, olfactory and the knowledge of the pulses of cold, warm, ripe, balsamic and pulse etc.Examination of the patient's body juice with his tongue is not appropriate, due to his body or from his body, urine, blood, euphoria, etc.Or not eating, their form can be estimated by looking directly.The knowledge obtained by rational argument (ohapah) is an infrastructure.The subjects that cannot be direct or have doubts about them, should be examined by estimates;As such, on the basis of digestive power, of firefall, physical strength on the basis of exercise, taking or not by accepting their subjects, the nature or deformity of the senses and similarly interest in food, anorexia and thirst and fear, mourning, anger, Various physical and mental subjects should be estimated by mental expressions like desire, malice etc.The aforesaid subclass is also a matter of estimate.It means plan.Seeing the origin of a specific work due to the community effect of many reasons, the imagination that is imagined by the corresponding ideas is called Tip.For example, the plant grows only by the combination of fields, water, plowing, seeds and seasons.Smoke always has a relationship with fire, that is, where there will be smoke, there will be fire.This is also called the coverage and on the basis of this, it is estimated to argue.Thus, the decision of the disease is rational by the community idea of all these diagnoses, pre -form, form, conflict and subclass.From another point of view, you can also use the scheme in the examination of the patient.For example, if a subject is not easily acceptable in an senses, then taking that subject with the help of other instruments is also interrupted in the tactic.For the knowledge of the aforesaid sexes and for knowledge of practicableness or incurability along with disease, the abstract of the patient, essence (disposal), tolerant (anabolic), proof (length of body and body sub -subclass, width, width,Weight etc.), samatyya (practice etc., habits), dietary power, exercise and age, vowels, vowels, smells, juices and touch these subjects, shrotra, eye, olfactory, rasan and spashendriya, sattva, devotion (interest), shitch,Sheel, ethos, memory, shape, force, guilt, sleepiness, beginning (chesta), gravity, miniature, coolness, heat, softness, scathing etc. properties, dietary properties, digestion and quantity, measures (means), disease and pre -formEvidence of etc. etc.Examination should be done by considering nature (naturalness) and distortion (unnatural). | {
"answer_start": [
1806
],
"text": [
"diffusion science"
]
} |
307 | इसलिए प्रथम योग्य और अनुभवी गुरुजनों से शास्त्र का अध्ययन करने पर रोग के हेतु, लिंग और औषधज्ञान में प्रवृत्ति होती है। शास्त्रवचनों के अनुसार ही लक्षणों की परीक्षा प्रत्यक्ष, अनुमान और युक्ति से की जाती है। मनोयोगपूर्वक इंद्रियों द्वारा विषयों का अनुभव प्राप्त करने को प्रत्यक्ष कहते हैं। इसके द्वारा रोगी के शरीर के अंग प्रत्यंग में होनेवाले विभिन्न शब्दों (ध्वनियों) की परीक्षा कर उनके स्वाभाविक या अस्वाभाविक होने का ज्ञान श्रोत्रेंद्रिय द्वारा करना चाहिए। वर्ण, आकृति, लंबाई, चौड़ाई आदि प्रमाण तथा छाया आदि का ज्ञान नेत्रों द्वारा, गंधों का ज्ञान घ्राणेन्द्रिय तथा शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध एवं नाड़ी आदि के स्पंदन आदि भावों का ज्ञान स्पर्शेंद्रिय द्वारा प्राप्त करना चाहिए। रोगी के शरीरगत रस की परीक्षा स्वयं अपनी जीभ से करना उचित न होने के कारण, उसके शरीर या उससे निकले स्वेद, मूत्र, रक्त, पूय आदि में चींटी लगना या न लगना, मक्खियों का आना और न आना, कौए या कुत्ते आदि द्वारा खाना या न खाना, प्रत्यक्ष देखकर उनके स्वरूप का अनुमान किया जा सकता है। युक्तिपूर्वक तर्क (ऊहापाह) के द्वारा प्राप्त ज्ञान अनुमान (इनफ़रेंस) है। जिन विषयों का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता या प्रत्यक्ष होने पर भी उनके संबंध में संदेह होता है वहाँ अनुमान द्वारा परीक्षा करनी चाहिए; यथा, पाचनशक्ति के आधार पर अग्निबल का, व्यायाम की शक्ति के आधार पर शारीरिक बल का, अपने विषयों को ग्रहण करने या न करने से इंद्रियों की प्रकृति या विकृति का तथा इसी प्रकार भोजन में रुचि, अरुचि तथा प्यास एवं भय, शोक, क्रोध, इच्छा, द्वेष आदि मानसिक भावों के द्वारा विभिन्न शारीरिक और मानसिक विषयों का अनुमान करना चाहिए। पूर्वोक्त उपशयानुपशय भी अनुमान का ही विषय है। इसका अर्थ है योजना। अनेक कारणों के सामुदायिक प्रभाव से किसी विशिष्ट कार्य की उत्पत्ति को देखकर, तदनुकूल विचारों से जो कल्पना की जाती है उसे युक्ति कहते हैं। जैसे खेत, जल, जुताई, बीज और ऋतु के संयोग से ही पौधा उगता है। धुएं का आग के साथ सदैव संबंध रहता है, अर्थात् जहाँ धुआँ होगा वहाँ आग भी होगी। इसी को व्याप्तिज्ञान भी कहते हैं और इसी के आधार पर तर्क कर अनुमान किया जाता है। इस प्रकार निदान, पूर्वरूप, रूप, संप्राप्ति और उपशय इन सभी के सामुदायिक विचार से रोग का निर्णय युक्तियुक्त होता है। योजना का दूसरी दृष्टि से भी रोगी की परीक्षा में प्रयोग कर सकते हैं। जैसे किसी इंद्रिय में यदि कोई विषय सरलता से ग्राह्य न हो तो अन्य यंत्रादि उपकरणों की सहायता से उस विषय का ग्रहण करना भी युक्ति में ही अंतर्भूत है। पूर्वोक्त लिंगों के ज्ञान के लिए तथा रोगनिर्णय के साथ साध्यता या असाध्यता के भी ज्ञान के लिए आप्तोपदेश के अनुसार प्रत्यक्ष आदि परीक्षाओं द्वारा रोगी के सार, तत्व (डिसपोज़िशन), सहनन (उपचय), प्रमाण (शरीर और अंग प्रत्यंग की लंबाई, चौड़ाई, भार आदि), सात्म्य (अभ्यास आदि, हैबिट्स), आहारशक्ति, व्यायामशक्ति तथा आयु के अतिरिक्त वर्ण, स्वर, गंध, रस और स्पर्श ये विषय, श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसन और स्पशेंद्रिय, सत्व, भक्ति (रुचि), शैच, शील, आचार, स्मृति, आकृति, बल, ग्लानि, तंद्रा, आरंभ (चेष्टा), गुरुता, लघुता, शीतलता, उष्णता, मृदुता, काठिन्य आदि गुण, आहार के गुण, पाचन और मात्रा, उपाय (साधन), रोग और उसके पूर्वरूप आदि का प्रमाण, उपद्रव (कांप्लिकेशंस), छाया (लस्टर), प्रतिच्छाया, स्वप्न (ड्रीम्स), रोगी को देखने को बुलाने के लिए आए दूत तथा रास्ते और रोगी के घर में प्रवेश के समय के शकुन और अपशकुन, ग्रहयोग आदि सभी विषयों का प्रकृति (स्वाभाविकता) तथा विकृति (अस्वाभाविकता) की दृष्टि से विचार करते हुए परीक्षा करनी चाहिए। | आयुर्वेद में किसकी परीक्षा को बहुत ही महत्वपूर्ण विषय बताया गया ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Whose examination was described as a very important subject in Ayurveda? | Therefore, when studying the scripture from the first qualified and experienced gurus, there is a tendency in gender and medicine for the disease.According to the scriptures, the symptoms are tested with direct, estimates and device.The experience of subjects by the senses is directly called direct.Through this, the patient's body parts should be tested in various words (sounds) and their natural or unnatural knowledge should be done by Shrotrandriya.Knowledge of varna, shape, length, width etc. and shadow etc. should be attained by the eyes, vision of smells, olfactory and the knowledge of the pulses of cold, warm, ripe, balsamic and pulse etc.Examination of the patient's body juice with his tongue is not appropriate, due to his body or from his body, urine, blood, euphoria, etc.Or not eating, their form can be estimated by looking directly.The knowledge obtained by rational argument (ohapah) is an infrastructure.The subjects that cannot be direct or have doubts about them, should be examined by estimates;As such, on the basis of digestive power, of firefall, physical strength on the basis of exercise, taking or not by accepting their subjects, the nature or deformity of the senses and similarly interest in food, anorexia and thirst and fear, mourning, anger, Various physical and mental subjects should be estimated by mental expressions like desire, malice etc.The aforesaid subclass is also a matter of estimate.It means plan.Seeing the origin of a specific work due to the community effect of many reasons, the imagination that is imagined by the corresponding ideas is called Tip.For example, the plant grows only by the combination of fields, water, plowing, seeds and seasons.Smoke always has a relationship with fire, that is, where there will be smoke, there will be fire.This is also called the coverage and on the basis of this, it is estimated to argue.Thus, the decision of the disease is rational by the community idea of all these diagnoses, pre -form, form, conflict and subclass.From another point of view, you can also use the scheme in the examination of the patient.For example, if a subject is not easily acceptable in an senses, then taking that subject with the help of other instruments is also interrupted in the tactic.For the knowledge of the aforesaid sexes and for knowledge of practicableness or incurability along with disease, the abstract of the patient, essence (disposal), tolerant (anabolic), proof (length of body and body sub -subclass, width, width,Weight etc.), samatyya (practice etc., habits), dietary power, exercise and age, vowels, vowels, smells, juices and touch these subjects, shrotra, eye, olfactory, rasan and spashendriya, sattva, devotion (interest), shitch,Sheel, ethos, memory, shape, force, guilt, sleepiness, beginning (chesta), gravity, miniature, coolness, heat, softness, scathing etc. properties, dietary properties, digestion and quantity, measures (means), disease and pre -formEvidence of etc. etc.Examination should be done by considering nature (naturalness) and distortion (unnatural). | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
308 | इसलिए प्रथम योग्य और अनुभवी गुरुजनों से शास्त्र का अध्ययन करने पर रोग के हेतु, लिंग और औषधज्ञान में प्रवृत्ति होती है। शास्त्रवचनों के अनुसार ही लक्षणों की परीक्षा प्रत्यक्ष, अनुमान और युक्ति से की जाती है। मनोयोगपूर्वक इंद्रियों द्वारा विषयों का अनुभव प्राप्त करने को प्रत्यक्ष कहते हैं। इसके द्वारा रोगी के शरीर के अंग प्रत्यंग में होनेवाले विभिन्न शब्दों (ध्वनियों) की परीक्षा कर उनके स्वाभाविक या अस्वाभाविक होने का ज्ञान श्रोत्रेंद्रिय द्वारा करना चाहिए। वर्ण, आकृति, लंबाई, चौड़ाई आदि प्रमाण तथा छाया आदि का ज्ञान नेत्रों द्वारा, गंधों का ज्ञान घ्राणेन्द्रिय तथा शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध एवं नाड़ी आदि के स्पंदन आदि भावों का ज्ञान स्पर्शेंद्रिय द्वारा प्राप्त करना चाहिए। रोगी के शरीरगत रस की परीक्षा स्वयं अपनी जीभ से करना उचित न होने के कारण, उसके शरीर या उससे निकले स्वेद, मूत्र, रक्त, पूय आदि में चींटी लगना या न लगना, मक्खियों का आना और न आना, कौए या कुत्ते आदि द्वारा खाना या न खाना, प्रत्यक्ष देखकर उनके स्वरूप का अनुमान किया जा सकता है। युक्तिपूर्वक तर्क (ऊहापाह) के द्वारा प्राप्त ज्ञान अनुमान (इनफ़रेंस) है। जिन विषयों का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता या प्रत्यक्ष होने पर भी उनके संबंध में संदेह होता है वहाँ अनुमान द्वारा परीक्षा करनी चाहिए; यथा, पाचनशक्ति के आधार पर अग्निबल का, व्यायाम की शक्ति के आधार पर शारीरिक बल का, अपने विषयों को ग्रहण करने या न करने से इंद्रियों की प्रकृति या विकृति का तथा इसी प्रकार भोजन में रुचि, अरुचि तथा प्यास एवं भय, शोक, क्रोध, इच्छा, द्वेष आदि मानसिक भावों के द्वारा विभिन्न शारीरिक और मानसिक विषयों का अनुमान करना चाहिए। पूर्वोक्त उपशयानुपशय भी अनुमान का ही विषय है। इसका अर्थ है योजना। अनेक कारणों के सामुदायिक प्रभाव से किसी विशिष्ट कार्य की उत्पत्ति को देखकर, तदनुकूल विचारों से जो कल्पना की जाती है उसे युक्ति कहते हैं। जैसे खेत, जल, जुताई, बीज और ऋतु के संयोग से ही पौधा उगता है। धुएं का आग के साथ सदैव संबंध रहता है, अर्थात् जहाँ धुआँ होगा वहाँ आग भी होगी। इसी को व्याप्तिज्ञान भी कहते हैं और इसी के आधार पर तर्क कर अनुमान किया जाता है। इस प्रकार निदान, पूर्वरूप, रूप, संप्राप्ति और उपशय इन सभी के सामुदायिक विचार से रोग का निर्णय युक्तियुक्त होता है। योजना का दूसरी दृष्टि से भी रोगी की परीक्षा में प्रयोग कर सकते हैं। जैसे किसी इंद्रिय में यदि कोई विषय सरलता से ग्राह्य न हो तो अन्य यंत्रादि उपकरणों की सहायता से उस विषय का ग्रहण करना भी युक्ति में ही अंतर्भूत है। पूर्वोक्त लिंगों के ज्ञान के लिए तथा रोगनिर्णय के साथ साध्यता या असाध्यता के भी ज्ञान के लिए आप्तोपदेश के अनुसार प्रत्यक्ष आदि परीक्षाओं द्वारा रोगी के सार, तत्व (डिसपोज़िशन), सहनन (उपचय), प्रमाण (शरीर और अंग प्रत्यंग की लंबाई, चौड़ाई, भार आदि), सात्म्य (अभ्यास आदि, हैबिट्स), आहारशक्ति, व्यायामशक्ति तथा आयु के अतिरिक्त वर्ण, स्वर, गंध, रस और स्पर्श ये विषय, श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसन और स्पशेंद्रिय, सत्व, भक्ति (रुचि), शैच, शील, आचार, स्मृति, आकृति, बल, ग्लानि, तंद्रा, आरंभ (चेष्टा), गुरुता, लघुता, शीतलता, उष्णता, मृदुता, काठिन्य आदि गुण, आहार के गुण, पाचन और मात्रा, उपाय (साधन), रोग और उसके पूर्वरूप आदि का प्रमाण, उपद्रव (कांप्लिकेशंस), छाया (लस्टर), प्रतिच्छाया, स्वप्न (ड्रीम्स), रोगी को देखने को बुलाने के लिए आए दूत तथा रास्ते और रोगी के घर में प्रवेश के समय के शकुन और अपशकुन, ग्रहयोग आदि सभी विषयों का प्रकृति (स्वाभाविकता) तथा विकृति (अस्वाभाविकता) की दृष्टि से विचार करते हुए परीक्षा करनी चाहिए। | अनुभवी चिकित्सक दोषों और दोषों के साथ-साथ रोगों की प्रकृति का ज्ञान किसके माध्यम से प्राप्त करते है ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Through whom does the experienced practitioner acquire knowledge of doshas and defects as well as the nature of diseases? | Therefore, when studying the scripture from the first qualified and experienced gurus, there is a tendency in gender and medicine for the disease.According to the scriptures, the symptoms are tested with direct, estimates and device.The experience of subjects by the senses is directly called direct.Through this, the patient's body parts should be tested in various words (sounds) and their natural or unnatural knowledge should be done by Shrotrandriya.Knowledge of varna, shape, length, width etc. and shadow etc. should be attained by the eyes, vision of smells, olfactory and the knowledge of the pulses of cold, warm, ripe, balsamic and pulse etc.Examination of the patient's body juice with his tongue is not appropriate, due to his body or from his body, urine, blood, euphoria, etc.Or not eating, their form can be estimated by looking directly.The knowledge obtained by rational argument (ohapah) is an infrastructure.The subjects that cannot be direct or have doubts about them, should be examined by estimates;As such, on the basis of digestive power, of firefall, physical strength on the basis of exercise, taking or not by accepting their subjects, the nature or deformity of the senses and similarly interest in food, anorexia and thirst and fear, mourning, anger, Various physical and mental subjects should be estimated by mental expressions like desire, malice etc.The aforesaid subclass is also a matter of estimate.It means plan.Seeing the origin of a specific work due to the community effect of many reasons, the imagination that is imagined by the corresponding ideas is called Tip.For example, the plant grows only by the combination of fields, water, plowing, seeds and seasons.Smoke always has a relationship with fire, that is, where there will be smoke, there will be fire.This is also called the coverage and on the basis of this, it is estimated to argue.Thus, the decision of the disease is rational by the community idea of all these diagnoses, pre -form, form, conflict and subclass.From another point of view, you can also use the scheme in the examination of the patient.For example, if a subject is not easily acceptable in an senses, then taking that subject with the help of other instruments is also interrupted in the tactic.For the knowledge of the aforesaid sexes and for knowledge of practicableness or incurability along with disease, the abstract of the patient, essence (disposal), tolerant (anabolic), proof (length of body and body sub -subclass, width, width,Weight etc.), samatyya (practice etc., habits), dietary power, exercise and age, vowels, vowels, smells, juices and touch these subjects, shrotra, eye, olfactory, rasan and spashendriya, sattva, devotion (interest), shitch,Sheel, ethos, memory, shape, force, guilt, sleepiness, beginning (chesta), gravity, miniature, coolness, heat, softness, scathing etc. properties, dietary properties, digestion and quantity, measures (means), disease and pre -formEvidence of etc. etc.Examination should be done by considering nature (naturalness) and distortion (unnatural). | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
309 | इसलिए प्रथम योग्य और अनुभवी गुरुजनों से शास्त्र का अध्ययन करने पर रोग के हेतु, लिंग और औषधज्ञान में प्रवृत्ति होती है। शास्त्रवचनों के अनुसार ही लक्षणों की परीक्षा प्रत्यक्ष, अनुमान और युक्ति से की जाती है। मनोयोगपूर्वक इंद्रियों द्वारा विषयों का अनुभव प्राप्त करने को प्रत्यक्ष कहते हैं। इसके द्वारा रोगी के शरीर के अंग प्रत्यंग में होनेवाले विभिन्न शब्दों (ध्वनियों) की परीक्षा कर उनके स्वाभाविक या अस्वाभाविक होने का ज्ञान श्रोत्रेंद्रिय द्वारा करना चाहिए। वर्ण, आकृति, लंबाई, चौड़ाई आदि प्रमाण तथा छाया आदि का ज्ञान नेत्रों द्वारा, गंधों का ज्ञान घ्राणेन्द्रिय तथा शीत, उष्ण, रूक्ष, स्निग्ध एवं नाड़ी आदि के स्पंदन आदि भावों का ज्ञान स्पर्शेंद्रिय द्वारा प्राप्त करना चाहिए। रोगी के शरीरगत रस की परीक्षा स्वयं अपनी जीभ से करना उचित न होने के कारण, उसके शरीर या उससे निकले स्वेद, मूत्र, रक्त, पूय आदि में चींटी लगना या न लगना, मक्खियों का आना और न आना, कौए या कुत्ते आदि द्वारा खाना या न खाना, प्रत्यक्ष देखकर उनके स्वरूप का अनुमान किया जा सकता है। युक्तिपूर्वक तर्क (ऊहापाह) के द्वारा प्राप्त ज्ञान अनुमान (इनफ़रेंस) है। जिन विषयों का प्रत्यक्ष नहीं हो सकता या प्रत्यक्ष होने पर भी उनके संबंध में संदेह होता है वहाँ अनुमान द्वारा परीक्षा करनी चाहिए; यथा, पाचनशक्ति के आधार पर अग्निबल का, व्यायाम की शक्ति के आधार पर शारीरिक बल का, अपने विषयों को ग्रहण करने या न करने से इंद्रियों की प्रकृति या विकृति का तथा इसी प्रकार भोजन में रुचि, अरुचि तथा प्यास एवं भय, शोक, क्रोध, इच्छा, द्वेष आदि मानसिक भावों के द्वारा विभिन्न शारीरिक और मानसिक विषयों का अनुमान करना चाहिए। पूर्वोक्त उपशयानुपशय भी अनुमान का ही विषय है। इसका अर्थ है योजना। अनेक कारणों के सामुदायिक प्रभाव से किसी विशिष्ट कार्य की उत्पत्ति को देखकर, तदनुकूल विचारों से जो कल्पना की जाती है उसे युक्ति कहते हैं। जैसे खेत, जल, जुताई, बीज और ऋतु के संयोग से ही पौधा उगता है। धुएं का आग के साथ सदैव संबंध रहता है, अर्थात् जहाँ धुआँ होगा वहाँ आग भी होगी। इसी को व्याप्तिज्ञान भी कहते हैं और इसी के आधार पर तर्क कर अनुमान किया जाता है। इस प्रकार निदान, पूर्वरूप, रूप, संप्राप्ति और उपशय इन सभी के सामुदायिक विचार से रोग का निर्णय युक्तियुक्त होता है। योजना का दूसरी दृष्टि से भी रोगी की परीक्षा में प्रयोग कर सकते हैं। जैसे किसी इंद्रिय में यदि कोई विषय सरलता से ग्राह्य न हो तो अन्य यंत्रादि उपकरणों की सहायता से उस विषय का ग्रहण करना भी युक्ति में ही अंतर्भूत है। पूर्वोक्त लिंगों के ज्ञान के लिए तथा रोगनिर्णय के साथ साध्यता या असाध्यता के भी ज्ञान के लिए आप्तोपदेश के अनुसार प्रत्यक्ष आदि परीक्षाओं द्वारा रोगी के सार, तत्व (डिसपोज़िशन), सहनन (उपचय), प्रमाण (शरीर और अंग प्रत्यंग की लंबाई, चौड़ाई, भार आदि), सात्म्य (अभ्यास आदि, हैबिट्स), आहारशक्ति, व्यायामशक्ति तथा आयु के अतिरिक्त वर्ण, स्वर, गंध, रस और स्पर्श ये विषय, श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसन और स्पशेंद्रिय, सत्व, भक्ति (रुचि), शैच, शील, आचार, स्मृति, आकृति, बल, ग्लानि, तंद्रा, आरंभ (चेष्टा), गुरुता, लघुता, शीतलता, उष्णता, मृदुता, काठिन्य आदि गुण, आहार के गुण, पाचन और मात्रा, उपाय (साधन), रोग और उसके पूर्वरूप आदि का प्रमाण, उपद्रव (कांप्लिकेशंस), छाया (लस्टर), प्रतिच्छाया, स्वप्न (ड्रीम्स), रोगी को देखने को बुलाने के लिए आए दूत तथा रास्ते और रोगी के घर में प्रवेश के समय के शकुन और अपशकुन, ग्रहयोग आदि सभी विषयों का प्रकृति (स्वाभाविकता) तथा विकृति (अस्वाभाविकता) की दृष्टि से विचार करते हुए परीक्षा करनी चाहिए। | कारकों के सामुदायिक प्रभाव को देखकर किसी विशेष क्रिया की उत्पत्ति के विचार को क्या कहते हैं ? | {
"text": [
"युक्ति"
],
"answer_start": [
183
]
} | What is the idea of the origin of a particular action by looking at the community effect of factors? | Therefore, when studying the scripture from the first qualified and experienced gurus, there is a tendency in gender and medicine for the disease.According to the scriptures, the symptoms are tested with direct, estimates and device.The experience of subjects by the senses is directly called direct.Through this, the patient's body parts should be tested in various words (sounds) and their natural or unnatural knowledge should be done by Shrotrandriya.Knowledge of varna, shape, length, width etc. and shadow etc. should be attained by the eyes, vision of smells, olfactory and the knowledge of the pulses of cold, warm, ripe, balsamic and pulse etc.Examination of the patient's body juice with his tongue is not appropriate, due to his body or from his body, urine, blood, euphoria, etc.Or not eating, their form can be estimated by looking directly.The knowledge obtained by rational argument (ohapah) is an infrastructure.The subjects that cannot be direct or have doubts about them, should be examined by estimates;As such, on the basis of digestive power, of firefall, physical strength on the basis of exercise, taking or not by accepting their subjects, the nature or deformity of the senses and similarly interest in food, anorexia and thirst and fear, mourning, anger, Various physical and mental subjects should be estimated by mental expressions like desire, malice etc.The aforesaid subclass is also a matter of estimate.It means plan.Seeing the origin of a specific work due to the community effect of many reasons, the imagination that is imagined by the corresponding ideas is called Tip.For example, the plant grows only by the combination of fields, water, plowing, seeds and seasons.Smoke always has a relationship with fire, that is, where there will be smoke, there will be fire.This is also called the coverage and on the basis of this, it is estimated to argue.Thus, the decision of the disease is rational by the community idea of all these diagnoses, pre -form, form, conflict and subclass.From another point of view, you can also use the scheme in the examination of the patient.For example, if a subject is not easily acceptable in an senses, then taking that subject with the help of other instruments is also interrupted in the tactic.For the knowledge of the aforesaid sexes and for knowledge of practicableness or incurability along with disease, the abstract of the patient, essence (disposal), tolerant (anabolic), proof (length of body and body sub -subclass, width, width,Weight etc.), samatyya (practice etc., habits), dietary power, exercise and age, vowels, vowels, smells, juices and touch these subjects, shrotra, eye, olfactory, rasan and spashendriya, sattva, devotion (interest), shitch,Sheel, ethos, memory, shape, force, guilt, sleepiness, beginning (chesta), gravity, miniature, coolness, heat, softness, scathing etc. properties, dietary properties, digestion and quantity, measures (means), disease and pre -formEvidence of etc. etc.Examination should be done by considering nature (naturalness) and distortion (unnatural). | {
"answer_start": [
183
],
"text": [
"Tool"
]
} |
310 | इसी वंश परम्परा में कालीसैन के पुत्र मुकुन्दसैन उसके बाद गोविन्दसैन और फिर विजयीराम के पुत्र श्री बुद्धसैन भी अलीगढ़ के एक प्रसिद्ध शासक रहे। उनके उत्तराधिकारी मंगलसैन थे जिन्होंने बालायेकिला पर एक मीनार गंगा दर्शन हेतु बनवाई थी, इससे विदित होता है कि तब गंगा कोल के निकट ही प्रवाह मान रही होगी। पुरात्विक प्रसंग के अनुसार अलीगढ़ में दो किले थे, एक किला ऊपर कोट टीले पर तथा दूसरा मुस्लिम विश्वविद्यालय के उत्तर में बरौली मार्ग पर स्थित है। जैन-बौद्ध काल में भी इस जनपद का नाम कोल था। विभिन्न संग्राहलों में रखी गई महरावल, पंजुपुर, खेरेश्वर आदि से प्राप्त मूर्तियों को देखकर इसके बौद्ध और जैन काल के राजाओं का शासन होने की पुष्टि होती है। चाणक्यकालीन इतिहास साक्षी है कि कूटनीतिज्ञ चाणक्य की कार्यस्थली भी कोल तक थी। कलिंग विजय के उपरान्त अशोक महान ने विजय स्मारक बनवाये जिनमें कौटिल्य नाम का स्थान का भी उल्लेख होता है, यह कौटिल्य कोई और नहीं कोल ही था। [कृपया उद्धरण जोड़ें]मथुरा और भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने सन 1753 में कोल पर अपना अधिकार कर लिया। उसे बहुत ऊँची जगह पर अपना किला पसन्द न आने के कारण एक भूमिगत किले का निर्माण कराया तथा सन 1760 में पूर्ण होने पर इस किले का नाम रामगढ़ रखा। 6 नवम्बर 1768 में यहाँ एक सिया मुस्लिम सरदार मिर्जा साहब का अधिपत्य हो गया। 1775 में उनके सिपहसालार अफरसियाब खान ने मोहम्मद (पैगम्बर) के चचेरे भाई और दमाद अली के नाम पर कोल का नाम अलीगढ़ रखा था। [कृपया उद्धरण जोड़ें]उत्तर प्रदेश का एक शहर जिसका आधुनिक भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण योग है। अलीगढ़ में एक मज़बूत क़िला था। | द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध किस वर्ष हुआ था ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | In which year was the Second Anglo-Maratha War fought? | In this dynasty tradition, Mukundasain, son of Kalisain, was followed by Govindasain and then Vijayiram's son Shri Budhasain was also a famous ruler of Aligarh.His successor was Mangalsain, who built a tower on Balayakila for the Ganga darshan, it is known that then the Ganga must have been accepting the flow near Kol.According to the archaeological context, there were two forts in Aligarh, one fort is situated on a coat mound and the other on the Barauli route in the north of the Muslim University.Even during the Jain-Buddhist period, the name of this district was Cole.Seeing the idols obtained from Maharawal, Panjupur, Khereshwar etc. kept in various municipalities, it is confirmed to rule the Buddhist and Kings of Jain period.Chanakya History is witness that the diplomat Chanakya's workplace was also up to the coal.After Kalinga victory, Ashoka Mahan built the Vijay Memorial, which also mentions the place of Kautilya, this Kautilya was none other than Kol.[Please add quotation] Jat Raja Surajmal of Mathura and Bharatpur took over the coal in 1753.Due to not getting his fort at a very high place, he constructed an underground fort and after completing it in 1760, named this fort Ramgarh.On 6 November 1768, a Siya Muslim Sardar Mirza Saheb was defeated here.In 1775, his warlord Afsiab Khan named Kol, the cousin of Mohammad (Prophet) and Kol named Aligarh after Damad Ali.[Please add quotation] A city in Uttar Pradesh which has an important sum in modern Indian history.There was a strong fort in Aligarh. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
311 | इसी वंश परम्परा में कालीसैन के पुत्र मुकुन्दसैन उसके बाद गोविन्दसैन और फिर विजयीराम के पुत्र श्री बुद्धसैन भी अलीगढ़ के एक प्रसिद्ध शासक रहे। उनके उत्तराधिकारी मंगलसैन थे जिन्होंने बालायेकिला पर एक मीनार गंगा दर्शन हेतु बनवाई थी, इससे विदित होता है कि तब गंगा कोल के निकट ही प्रवाह मान रही होगी। पुरात्विक प्रसंग के अनुसार अलीगढ़ में दो किले थे, एक किला ऊपर कोट टीले पर तथा दूसरा मुस्लिम विश्वविद्यालय के उत्तर में बरौली मार्ग पर स्थित है। जैन-बौद्ध काल में भी इस जनपद का नाम कोल था। विभिन्न संग्राहलों में रखी गई महरावल, पंजुपुर, खेरेश्वर आदि से प्राप्त मूर्तियों को देखकर इसके बौद्ध और जैन काल के राजाओं का शासन होने की पुष्टि होती है। चाणक्यकालीन इतिहास साक्षी है कि कूटनीतिज्ञ चाणक्य की कार्यस्थली भी कोल तक थी। कलिंग विजय के उपरान्त अशोक महान ने विजय स्मारक बनवाये जिनमें कौटिल्य नाम का स्थान का भी उल्लेख होता है, यह कौटिल्य कोई और नहीं कोल ही था। [कृपया उद्धरण जोड़ें]मथुरा और भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने सन 1753 में कोल पर अपना अधिकार कर लिया। उसे बहुत ऊँची जगह पर अपना किला पसन्द न आने के कारण एक भूमिगत किले का निर्माण कराया तथा सन 1760 में पूर्ण होने पर इस किले का नाम रामगढ़ रखा। 6 नवम्बर 1768 में यहाँ एक सिया मुस्लिम सरदार मिर्जा साहब का अधिपत्य हो गया। 1775 में उनके सिपहसालार अफरसियाब खान ने मोहम्मद (पैगम्बर) के चचेरे भाई और दमाद अली के नाम पर कोल का नाम अलीगढ़ रखा था। [कृपया उद्धरण जोड़ें]उत्तर प्रदेश का एक शहर जिसका आधुनिक भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण योग है। अलीगढ़ में एक मज़बूत क़िला था। | बुद्धसेन किस प्रदेश के शासक थे? | {
"text": [
"अलीगढ़"
],
"answer_start": [
110
]
} | Buddhasena was the ruler of which province? | In this dynasty tradition, Mukundasain, son of Kalisain, was followed by Govindasain and then Vijayiram's son Shri Budhasain was also a famous ruler of Aligarh.His successor was Mangalsain, who built a tower on Balayakila for the Ganga darshan, it is known that then the Ganga must have been accepting the flow near Kol.According to the archaeological context, there were two forts in Aligarh, one fort is situated on a coat mound and the other on the Barauli route in the north of the Muslim University.Even during the Jain-Buddhist period, the name of this district was Cole.Seeing the idols obtained from Maharawal, Panjupur, Khereshwar etc. kept in various municipalities, it is confirmed to rule the Buddhist and Kings of Jain period.Chanakya History is witness that the diplomat Chanakya's workplace was also up to the coal.After Kalinga victory, Ashoka Mahan built the Vijay Memorial, which also mentions the place of Kautilya, this Kautilya was none other than Kol.[Please add quotation] Jat Raja Surajmal of Mathura and Bharatpur took over the coal in 1753.Due to not getting his fort at a very high place, he constructed an underground fort and after completing it in 1760, named this fort Ramgarh.On 6 November 1768, a Siya Muslim Sardar Mirza Saheb was defeated here.In 1775, his warlord Afsiab Khan named Kol, the cousin of Mohammad (Prophet) and Kol named Aligarh after Damad Ali.[Please add quotation] A city in Uttar Pradesh which has an important sum in modern Indian history.There was a strong fort in Aligarh. | {
"answer_start": [
110
],
"text": [
"Aligarh"
]
} |
312 | इसी वंश परम्परा में कालीसैन के पुत्र मुकुन्दसैन उसके बाद गोविन्दसैन और फिर विजयीराम के पुत्र श्री बुद्धसैन भी अलीगढ़ के एक प्रसिद्ध शासक रहे। उनके उत्तराधिकारी मंगलसैन थे जिन्होंने बालायेकिला पर एक मीनार गंगा दर्शन हेतु बनवाई थी, इससे विदित होता है कि तब गंगा कोल के निकट ही प्रवाह मान रही होगी। पुरात्विक प्रसंग के अनुसार अलीगढ़ में दो किले थे, एक किला ऊपर कोट टीले पर तथा दूसरा मुस्लिम विश्वविद्यालय के उत्तर में बरौली मार्ग पर स्थित है। जैन-बौद्ध काल में भी इस जनपद का नाम कोल था। विभिन्न संग्राहलों में रखी गई महरावल, पंजुपुर, खेरेश्वर आदि से प्राप्त मूर्तियों को देखकर इसके बौद्ध और जैन काल के राजाओं का शासन होने की पुष्टि होती है। चाणक्यकालीन इतिहास साक्षी है कि कूटनीतिज्ञ चाणक्य की कार्यस्थली भी कोल तक थी। कलिंग विजय के उपरान्त अशोक महान ने विजय स्मारक बनवाये जिनमें कौटिल्य नाम का स्थान का भी उल्लेख होता है, यह कौटिल्य कोई और नहीं कोल ही था। [कृपया उद्धरण जोड़ें]मथुरा और भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने सन 1753 में कोल पर अपना अधिकार कर लिया। उसे बहुत ऊँची जगह पर अपना किला पसन्द न आने के कारण एक भूमिगत किले का निर्माण कराया तथा सन 1760 में पूर्ण होने पर इस किले का नाम रामगढ़ रखा। 6 नवम्बर 1768 में यहाँ एक सिया मुस्लिम सरदार मिर्जा साहब का अधिपत्य हो गया। 1775 में उनके सिपहसालार अफरसियाब खान ने मोहम्मद (पैगम्बर) के चचेरे भाई और दमाद अली के नाम पर कोल का नाम अलीगढ़ रखा था। [कृपया उद्धरण जोड़ें]उत्तर प्रदेश का एक शहर जिसका आधुनिक भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण योग है। अलीगढ़ में एक मज़बूत क़िला था। | मंगलसेन ने गंगा दर्शन के लिए कहां पर मीनार का निर्माण करवाया था? | {
"text": [
"बालायेकिला"
],
"answer_start": [
180
]
} | Where did Mangalasena build a tower for Ganga Darshan? | In this dynasty tradition, Mukundasain, son of Kalisain, was followed by Govindasain and then Vijayiram's son Shri Budhasain was also a famous ruler of Aligarh.His successor was Mangalsain, who built a tower on Balayakila for the Ganga darshan, it is known that then the Ganga must have been accepting the flow near Kol.According to the archaeological context, there were two forts in Aligarh, one fort is situated on a coat mound and the other on the Barauli route in the north of the Muslim University.Even during the Jain-Buddhist period, the name of this district was Cole.Seeing the idols obtained from Maharawal, Panjupur, Khereshwar etc. kept in various municipalities, it is confirmed to rule the Buddhist and Kings of Jain period.Chanakya History is witness that the diplomat Chanakya's workplace was also up to the coal.After Kalinga victory, Ashoka Mahan built the Vijay Memorial, which also mentions the place of Kautilya, this Kautilya was none other than Kol.[Please add quotation] Jat Raja Surajmal of Mathura and Bharatpur took over the coal in 1753.Due to not getting his fort at a very high place, he constructed an underground fort and after completing it in 1760, named this fort Ramgarh.On 6 November 1768, a Siya Muslim Sardar Mirza Saheb was defeated here.In 1775, his warlord Afsiab Khan named Kol, the cousin of Mohammad (Prophet) and Kol named Aligarh after Damad Ali.[Please add quotation] A city in Uttar Pradesh which has an important sum in modern Indian history.There was a strong fort in Aligarh. | {
"answer_start": [
180
],
"text": [
"Balayakeela"
]
} |
313 | इसी वंश परम्परा में कालीसैन के पुत्र मुकुन्दसैन उसके बाद गोविन्दसैन और फिर विजयीराम के पुत्र श्री बुद्धसैन भी अलीगढ़ के एक प्रसिद्ध शासक रहे। उनके उत्तराधिकारी मंगलसैन थे जिन्होंने बालायेकिला पर एक मीनार गंगा दर्शन हेतु बनवाई थी, इससे विदित होता है कि तब गंगा कोल के निकट ही प्रवाह मान रही होगी। पुरात्विक प्रसंग के अनुसार अलीगढ़ में दो किले थे, एक किला ऊपर कोट टीले पर तथा दूसरा मुस्लिम विश्वविद्यालय के उत्तर में बरौली मार्ग पर स्थित है। जैन-बौद्ध काल में भी इस जनपद का नाम कोल था। विभिन्न संग्राहलों में रखी गई महरावल, पंजुपुर, खेरेश्वर आदि से प्राप्त मूर्तियों को देखकर इसके बौद्ध और जैन काल के राजाओं का शासन होने की पुष्टि होती है। चाणक्यकालीन इतिहास साक्षी है कि कूटनीतिज्ञ चाणक्य की कार्यस्थली भी कोल तक थी। कलिंग विजय के उपरान्त अशोक महान ने विजय स्मारक बनवाये जिनमें कौटिल्य नाम का स्थान का भी उल्लेख होता है, यह कौटिल्य कोई और नहीं कोल ही था। [कृपया उद्धरण जोड़ें]मथुरा और भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने सन 1753 में कोल पर अपना अधिकार कर लिया। उसे बहुत ऊँची जगह पर अपना किला पसन्द न आने के कारण एक भूमिगत किले का निर्माण कराया तथा सन 1760 में पूर्ण होने पर इस किले का नाम रामगढ़ रखा। 6 नवम्बर 1768 में यहाँ एक सिया मुस्लिम सरदार मिर्जा साहब का अधिपत्य हो गया। 1775 में उनके सिपहसालार अफरसियाब खान ने मोहम्मद (पैगम्बर) के चचेरे भाई और दमाद अली के नाम पर कोल का नाम अलीगढ़ रखा था। [कृपया उद्धरण जोड़ें]उत्तर प्रदेश का एक शहर जिसका आधुनिक भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण योग है। अलीगढ़ में एक मज़बूत क़िला था। | विजय स्मारक का निर्माण किस शासक द्वारा करवाया गया था? | {
"text": [
"अशोक"
],
"answer_start": [
732
]
} | The Vijay Smarak was built by which ruler? | In this dynasty tradition, Mukundasain, son of Kalisain, was followed by Govindasain and then Vijayiram's son Shri Budhasain was also a famous ruler of Aligarh.His successor was Mangalsain, who built a tower on Balayakila for the Ganga darshan, it is known that then the Ganga must have been accepting the flow near Kol.According to the archaeological context, there were two forts in Aligarh, one fort is situated on a coat mound and the other on the Barauli route in the north of the Muslim University.Even during the Jain-Buddhist period, the name of this district was Cole.Seeing the idols obtained from Maharawal, Panjupur, Khereshwar etc. kept in various municipalities, it is confirmed to rule the Buddhist and Kings of Jain period.Chanakya History is witness that the diplomat Chanakya's workplace was also up to the coal.After Kalinga victory, Ashoka Mahan built the Vijay Memorial, which also mentions the place of Kautilya, this Kautilya was none other than Kol.[Please add quotation] Jat Raja Surajmal of Mathura and Bharatpur took over the coal in 1753.Due to not getting his fort at a very high place, he constructed an underground fort and after completing it in 1760, named this fort Ramgarh.On 6 November 1768, a Siya Muslim Sardar Mirza Saheb was defeated here.In 1775, his warlord Afsiab Khan named Kol, the cousin of Mohammad (Prophet) and Kol named Aligarh after Damad Ali.[Please add quotation] A city in Uttar Pradesh which has an important sum in modern Indian history.There was a strong fort in Aligarh. | {
"answer_start": [
732
],
"text": [
"Ashok"
]
} |
314 | इसी वंश परम्परा में कालीसैन के पुत्र मुकुन्दसैन उसके बाद गोविन्दसैन और फिर विजयीराम के पुत्र श्री बुद्धसैन भी अलीगढ़ के एक प्रसिद्ध शासक रहे। उनके उत्तराधिकारी मंगलसैन थे जिन्होंने बालायेकिला पर एक मीनार गंगा दर्शन हेतु बनवाई थी, इससे विदित होता है कि तब गंगा कोल के निकट ही प्रवाह मान रही होगी। पुरात्विक प्रसंग के अनुसार अलीगढ़ में दो किले थे, एक किला ऊपर कोट टीले पर तथा दूसरा मुस्लिम विश्वविद्यालय के उत्तर में बरौली मार्ग पर स्थित है। जैन-बौद्ध काल में भी इस जनपद का नाम कोल था। विभिन्न संग्राहलों में रखी गई महरावल, पंजुपुर, खेरेश्वर आदि से प्राप्त मूर्तियों को देखकर इसके बौद्ध और जैन काल के राजाओं का शासन होने की पुष्टि होती है। चाणक्यकालीन इतिहास साक्षी है कि कूटनीतिज्ञ चाणक्य की कार्यस्थली भी कोल तक थी। कलिंग विजय के उपरान्त अशोक महान ने विजय स्मारक बनवाये जिनमें कौटिल्य नाम का स्थान का भी उल्लेख होता है, यह कौटिल्य कोई और नहीं कोल ही था। [कृपया उद्धरण जोड़ें]मथुरा और भरतपुर के जाट राजा सूरजमल ने सन 1753 में कोल पर अपना अधिकार कर लिया। उसे बहुत ऊँची जगह पर अपना किला पसन्द न आने के कारण एक भूमिगत किले का निर्माण कराया तथा सन 1760 में पूर्ण होने पर इस किले का नाम रामगढ़ रखा। 6 नवम्बर 1768 में यहाँ एक सिया मुस्लिम सरदार मिर्जा साहब का अधिपत्य हो गया। 1775 में उनके सिपहसालार अफरसियाब खान ने मोहम्मद (पैगम्बर) के चचेरे भाई और दमाद अली के नाम पर कोल का नाम अलीगढ़ रखा था। [कृपया उद्धरण जोड़ें]उत्तर प्रदेश का एक शहर जिसका आधुनिक भारतीय इतिहास में महत्त्वपूर्ण योग है। अलीगढ़ में एक मज़बूत क़िला था। | द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध में किसकी जीत हुई थी ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Who was victorious in the Second Anglo-Maratha War? | In this dynasty tradition, Mukundasain, son of Kalisain, was followed by Govindasain and then Vijayiram's son Shri Budhasain was also a famous ruler of Aligarh.His successor was Mangalsain, who built a tower on Balayakila for the Ganga darshan, it is known that then the Ganga must have been accepting the flow near Kol.According to the archaeological context, there were two forts in Aligarh, one fort is situated on a coat mound and the other on the Barauli route in the north of the Muslim University.Even during the Jain-Buddhist period, the name of this district was Cole.Seeing the idols obtained from Maharawal, Panjupur, Khereshwar etc. kept in various municipalities, it is confirmed to rule the Buddhist and Kings of Jain period.Chanakya History is witness that the diplomat Chanakya's workplace was also up to the coal.After Kalinga victory, Ashoka Mahan built the Vijay Memorial, which also mentions the place of Kautilya, this Kautilya was none other than Kol.[Please add quotation] Jat Raja Surajmal of Mathura and Bharatpur took over the coal in 1753.Due to not getting his fort at a very high place, he constructed an underground fort and after completing it in 1760, named this fort Ramgarh.On 6 November 1768, a Siya Muslim Sardar Mirza Saheb was defeated here.In 1775, his warlord Afsiab Khan named Kol, the cousin of Mohammad (Prophet) and Kol named Aligarh after Damad Ali.[Please add quotation] A city in Uttar Pradesh which has an important sum in modern Indian history.There was a strong fort in Aligarh. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
315 | इसी वजह से 1814–16 रक्तरंजित एंग्लो-नेपाल युद्ध हो गया, जिसमें नेपाल को अपनी दो तिहाई भूभाग से हाथ धोना पड़ा लेकिन अपनी सार्वभौमसत्ता और स्वतन्त्रता को कायम रखा। दक्षिण एशियाई मुल्कों में" यही एक खण्ड है जो कभी भी किसी बाहरी सामन्त (उपनिवेशों) के अधीन में नही आया'। विलायत से लड़ने में पश्चिम में सतलुज से पुर्व में तीस्ता नदी तक फैला हुआ विशाल नेपाल सुगौली सन्धि के बाद पश्चिम में महाकाली और मेची नदियों के बीच सिमट गया लेकिन अपनी स्वाधीनता को बचाए रखने में नेपाल सफल रहा, बाद मे अंग्रेजो ने 1822 में मेची नदी व राप्ती नदी के बीच की तराई का हिस्सा नेपाल को वापस किया उसी तरह 1860 में राणा प्रधानमन्त्री जंगबहादुर से ख़ुश होकर 'भारतीय सैनिक बिद्रोह को कूचलने मे नेपाली सेना का भरपूर सहयोग के बदले अंग्रेजो ने राप्तीनदी से महाकाली नदी के बीच का तराई का थोड़ा और हिस्सा नेपाल को लौटाया। लेकिन सुगौली सन्धी के बाद नेपाल ने जमीन का बहुत बडा हिस्सा गँवा दिया, यह क्षेत्र अभी उत्तराखण्ड राज्य और हिमाचल प्रदेश और पंजाब पहाड़ी राज्य में सम्मिलित है। पूर्व में दार्जिलिंग और उसके आसपास का नेपाली मूल के लोगों का भूमि (जो अब पश्चिम बंगाल मे है) भी ब्रिटिश इण्डिया के अधीन मे हो गया तथा नेपाल का सिक्किम पर प्रभाव और शक्ति भी नेपाल को त्यागने पड़े। राज परिवार व भारदारो के बीच गुटबन्दी के कारण युद्ध के बाद स्थायित्व कायम हुआ। सन् 1846 में शासन कर रही रानी का सेनानायक जंगबहादुर राणा को पदच्युत करने के षड्यन्त्र का खुलासा होने से कोतपर्व नाम का नरसंहार हुवा। हथियारधारी सेना व रानी के प्रति वफादार भाइ-भारदारो के बीच मारकाट चलने से देश के सयौं राजखलाक, भारदारलोग व दूसरे रजवाड़ों की हत्या हुई। जंगबहादुर की जीत के बाद राणा ख़ानदान उन्होंने सुरुकिया व राणा शासन लागु किया। राजा को नाममात्र में सीमित किया व प्रधानमन्त्री पद को शक्तिशाली वंशानुगत किया गया। राणाशासक पूर्णनिष्ठा के साथ ब्रिटिश के पक्ष में रहते थे व ब्रिटिश शासक को 1857 की सेपोई रेबेल्योन (प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम), व बाद में दोनो विश्व युद्धसहयोग किया था। सन 1923 में यूनाइटेड किंगडम व नेपाल बीच आधिकारिक रूप में मित्रता के समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें नेपाल की स्वतन्त्रता को यूनाइटेड किंगडम ने स्वीकार किया। दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला, नेपाली राजदूतावास ब्रिटेन की राजधानी लन्दन मे खुल गया। 1940 दशक के उत्तरार्ध में लोकतन्त्र-समर्थित आन्दोलनों का उदय होने लगा व राजनैतिक पार्टियां राणा शासन के विरुद्ध हो गईं। उसी समय चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया जिसकी वजह से बढ़ती हुई सैनिक गतिविधियों को टालने के लिए भारत नेपाल की स्थायित्व पर चाख बनाने लगा। फलस्वरुप राजा त्रिभुवन को भारत ने समर्थन किया 1951 में सत्ता लेने में सहयोग किया, नई सरकार का निर्माण हो गया, जिसमें ज्यादा आन्दोलनकारी नेपाली कांग्रेस पार्टी के लोगों की सहभागिता थी। राजा व सरकार के बीच वर्षों की शक्ति खींचातानी के पश्चात्, 1959 में राजा महेन्द्र ने लोकतान्त्रिक अभ्यास अन्त किया व "निर्दलीय" पंचायत व्यवस्था लागू करके राज किया। सन् 1989 के "जन आन्दोलन" ने राजतन्त्र को संवैधानिक सुधार करने व बहुदलीय संसद बनाने का वातावरण बन गया सन 1990 में कृष्णप्रसाद भट्टराई अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री बन गए, नये संविधान का निर्माण हुआ राजा बीरेन्द्र ने 1990 में नेपाल के इतिहास में दूसरा प्रजातन्त्रिक बहुदलीय संविधान जारी किया व अन्तरिम सरकार ने संसद के लिए प्रजातान्त्रिक चुनाव करवाए। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्र के दूसरे प्रजातन्त्रिक चुनाव में बहुमत प्राप्त किया व गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमन्त्री बने। | मेची नदी और राप्ती नदी के बीच घाटी के हिस्से को नेपाल ने अंग्रेजों को कब वापस कर दिया था? | {
"text": [
"1822"
],
"answer_start": [
491
]
} | When was the portion of the valley between the Mechi River and the Rapti River returned by Nepal to the British? | This is why 1814–16 Blooden Anglo-Nepal war occurred, in which Nepal had to lose two-thirds of the territory but maintained its universal and freedom.Among South Asian countries, "This is the one section that never came under any external feudal (colonies)". In fighting the west, Mahakali in the west after the huge Nepal Sugauli treaty spread from Sutlej to the Teesta River in the West to the Teesta River in the West and in the west.The Matchi was reduced to between rivers but Nepal was successful in preserving its freedom, later the British returned the Terai between the Mechi River and the Rapti River in 1822 to Nepal, similarly in 1860, Rana Prime Minister Jang Bahadur was happy 'In lieu of the plenty of Nepali Army's support for the troop of military bidarh, the British returned a little more part of the Terai between Rapinadi to Mahakali River. But after Sugauli Sandhi, Nepal lost a large part of the land, this area is still Uttarakhand's stateAnd Himachal Pradesh and Punjab are included in the hilly state. The land of people of Nepali origin (which is now in West Bengal) in the east and its surroundings also became under British India and Nepal's influence and power on Sikkim also NepalHad to abandon. Due to factionalism between the Raj family and the Bhardars, stability was established after the war.Rani, who is ruling in 1846, the conspiracy to promote Jungbahadur Rana was revealed that the massacre of Kotaparva took place.Sayon Rajkhalak, Bhardarlog and other princely states of the country were killed due to the fighting between the weapons of the weapon army and the queen.After the victory of Jungbahadur, Rana Khanadan applied to Surukia and Rana rule.The king was limited to nominal and the post of Prime Minister was made powerful hereditary.The Rana -Sacar lived in favor of the British with full devotion and the British ruler was cooperated by the 1857 Seepoi Rebelion (first Indian freedom struggle), and later both world warfare.In 1923, the United Kingdom and Nepal Beach were officially signed in the affair, in which Nepal's independence was accepted by the United Kingdom.The first in South Asian countries, the Nepalese chamber opened in London, the capital of Britain.In the late 1940s, democracy-supported movements began to rise and political parties became against Rana rule.At the same time, China captured Tibet in 1950, due to which India began to chant the stability of Nepal to avoid increasing military activities.As a result, India supported King Tribhuvan in 1951, cooperated in taking power, the new government was formed, in which the more agitator Nepali Congress Party people participated.After years of drawing the power between the king and the government, in 1959, King Mahendra ended the democratic practice and ruled by implementing the "Independent" panchayat system.The "Jan Movement" of 1989 created an atmosphere of constitutional reforms of the monarchy and creating a multi -party parliament. In 1990, Krishnaprasad Bhattarai became the Prime Minister of the Interim Government, the new constitution was created by King Birendra, King Birendra in 1990The constitution was issued and the interim government conducted democratic elections for Parliament.The Nepali Congress won a majority in the second democratic election of the nation and became Girija Prasad Koirala Prime Minister. | {
"answer_start": [
491
],
"text": [
"1822"
]
} |
316 | इसी वजह से 1814–16 रक्तरंजित एंग्लो-नेपाल युद्ध हो गया, जिसमें नेपाल को अपनी दो तिहाई भूभाग से हाथ धोना पड़ा लेकिन अपनी सार्वभौमसत्ता और स्वतन्त्रता को कायम रखा। दक्षिण एशियाई मुल्कों में" यही एक खण्ड है जो कभी भी किसी बाहरी सामन्त (उपनिवेशों) के अधीन में नही आया'। विलायत से लड़ने में पश्चिम में सतलुज से पुर्व में तीस्ता नदी तक फैला हुआ विशाल नेपाल सुगौली सन्धि के बाद पश्चिम में महाकाली और मेची नदियों के बीच सिमट गया लेकिन अपनी स्वाधीनता को बचाए रखने में नेपाल सफल रहा, बाद मे अंग्रेजो ने 1822 में मेची नदी व राप्ती नदी के बीच की तराई का हिस्सा नेपाल को वापस किया उसी तरह 1860 में राणा प्रधानमन्त्री जंगबहादुर से ख़ुश होकर 'भारतीय सैनिक बिद्रोह को कूचलने मे नेपाली सेना का भरपूर सहयोग के बदले अंग्रेजो ने राप्तीनदी से महाकाली नदी के बीच का तराई का थोड़ा और हिस्सा नेपाल को लौटाया। लेकिन सुगौली सन्धी के बाद नेपाल ने जमीन का बहुत बडा हिस्सा गँवा दिया, यह क्षेत्र अभी उत्तराखण्ड राज्य और हिमाचल प्रदेश और पंजाब पहाड़ी राज्य में सम्मिलित है। पूर्व में दार्जिलिंग और उसके आसपास का नेपाली मूल के लोगों का भूमि (जो अब पश्चिम बंगाल मे है) भी ब्रिटिश इण्डिया के अधीन मे हो गया तथा नेपाल का सिक्किम पर प्रभाव और शक्ति भी नेपाल को त्यागने पड़े। राज परिवार व भारदारो के बीच गुटबन्दी के कारण युद्ध के बाद स्थायित्व कायम हुआ। सन् 1846 में शासन कर रही रानी का सेनानायक जंगबहादुर राणा को पदच्युत करने के षड्यन्त्र का खुलासा होने से कोतपर्व नाम का नरसंहार हुवा। हथियारधारी सेना व रानी के प्रति वफादार भाइ-भारदारो के बीच मारकाट चलने से देश के सयौं राजखलाक, भारदारलोग व दूसरे रजवाड़ों की हत्या हुई। जंगबहादुर की जीत के बाद राणा ख़ानदान उन्होंने सुरुकिया व राणा शासन लागु किया। राजा को नाममात्र में सीमित किया व प्रधानमन्त्री पद को शक्तिशाली वंशानुगत किया गया। राणाशासक पूर्णनिष्ठा के साथ ब्रिटिश के पक्ष में रहते थे व ब्रिटिश शासक को 1857 की सेपोई रेबेल्योन (प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम), व बाद में दोनो विश्व युद्धसहयोग किया था। सन 1923 में यूनाइटेड किंगडम व नेपाल बीच आधिकारिक रूप में मित्रता के समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें नेपाल की स्वतन्त्रता को यूनाइटेड किंगडम ने स्वीकार किया। दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला, नेपाली राजदूतावास ब्रिटेन की राजधानी लन्दन मे खुल गया। 1940 दशक के उत्तरार्ध में लोकतन्त्र-समर्थित आन्दोलनों का उदय होने लगा व राजनैतिक पार्टियां राणा शासन के विरुद्ध हो गईं। उसी समय चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया जिसकी वजह से बढ़ती हुई सैनिक गतिविधियों को टालने के लिए भारत नेपाल की स्थायित्व पर चाख बनाने लगा। फलस्वरुप राजा त्रिभुवन को भारत ने समर्थन किया 1951 में सत्ता लेने में सहयोग किया, नई सरकार का निर्माण हो गया, जिसमें ज्यादा आन्दोलनकारी नेपाली कांग्रेस पार्टी के लोगों की सहभागिता थी। राजा व सरकार के बीच वर्षों की शक्ति खींचातानी के पश्चात्, 1959 में राजा महेन्द्र ने लोकतान्त्रिक अभ्यास अन्त किया व "निर्दलीय" पंचायत व्यवस्था लागू करके राज किया। सन् 1989 के "जन आन्दोलन" ने राजतन्त्र को संवैधानिक सुधार करने व बहुदलीय संसद बनाने का वातावरण बन गया सन 1990 में कृष्णप्रसाद भट्टराई अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री बन गए, नये संविधान का निर्माण हुआ राजा बीरेन्द्र ने 1990 में नेपाल के इतिहास में दूसरा प्रजातन्त्रिक बहुदलीय संविधान जारी किया व अन्तरिम सरकार ने संसद के लिए प्रजातान्त्रिक चुनाव करवाए। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्र के दूसरे प्रजातन्त्रिक चुनाव में बहुमत प्राप्त किया व गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमन्त्री बने। | नेपाल के अंतिम राजा का क्या नाम था ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | What was the name of the last king of Nepal? | This is why 1814–16 Blooden Anglo-Nepal war occurred, in which Nepal had to lose two-thirds of the territory but maintained its universal and freedom.Among South Asian countries, "This is the one section that never came under any external feudal (colonies)". In fighting the west, Mahakali in the west after the huge Nepal Sugauli treaty spread from Sutlej to the Teesta River in the West to the Teesta River in the West and in the west.The Matchi was reduced to between rivers but Nepal was successful in preserving its freedom, later the British returned the Terai between the Mechi River and the Rapti River in 1822 to Nepal, similarly in 1860, Rana Prime Minister Jang Bahadur was happy 'In lieu of the plenty of Nepali Army's support for the troop of military bidarh, the British returned a little more part of the Terai between Rapinadi to Mahakali River. But after Sugauli Sandhi, Nepal lost a large part of the land, this area is still Uttarakhand's stateAnd Himachal Pradesh and Punjab are included in the hilly state. The land of people of Nepali origin (which is now in West Bengal) in the east and its surroundings also became under British India and Nepal's influence and power on Sikkim also NepalHad to abandon. Due to factionalism between the Raj family and the Bhardars, stability was established after the war.Rani, who is ruling in 1846, the conspiracy to promote Jungbahadur Rana was revealed that the massacre of Kotaparva took place.Sayon Rajkhalak, Bhardarlog and other princely states of the country were killed due to the fighting between the weapons of the weapon army and the queen.After the victory of Jungbahadur, Rana Khanadan applied to Surukia and Rana rule.The king was limited to nominal and the post of Prime Minister was made powerful hereditary.The Rana -Sacar lived in favor of the British with full devotion and the British ruler was cooperated by the 1857 Seepoi Rebelion (first Indian freedom struggle), and later both world warfare.In 1923, the United Kingdom and Nepal Beach were officially signed in the affair, in which Nepal's independence was accepted by the United Kingdom.The first in South Asian countries, the Nepalese chamber opened in London, the capital of Britain.In the late 1940s, democracy-supported movements began to rise and political parties became against Rana rule.At the same time, China captured Tibet in 1950, due to which India began to chant the stability of Nepal to avoid increasing military activities.As a result, India supported King Tribhuvan in 1951, cooperated in taking power, the new government was formed, in which the more agitator Nepali Congress Party people participated.After years of drawing the power between the king and the government, in 1959, King Mahendra ended the democratic practice and ruled by implementing the "Independent" panchayat system.The "Jan Movement" of 1989 created an atmosphere of constitutional reforms of the monarchy and creating a multi -party parliament. In 1990, Krishnaprasad Bhattarai became the Prime Minister of the Interim Government, the new constitution was created by King Birendra, King Birendra in 1990The constitution was issued and the interim government conducted democratic elections for Parliament.The Nepali Congress won a majority in the second democratic election of the nation and became Girija Prasad Koirala Prime Minister. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
317 | इसी वजह से 1814–16 रक्तरंजित एंग्लो-नेपाल युद्ध हो गया, जिसमें नेपाल को अपनी दो तिहाई भूभाग से हाथ धोना पड़ा लेकिन अपनी सार्वभौमसत्ता और स्वतन्त्रता को कायम रखा। दक्षिण एशियाई मुल्कों में" यही एक खण्ड है जो कभी भी किसी बाहरी सामन्त (उपनिवेशों) के अधीन में नही आया'। विलायत से लड़ने में पश्चिम में सतलुज से पुर्व में तीस्ता नदी तक फैला हुआ विशाल नेपाल सुगौली सन्धि के बाद पश्चिम में महाकाली और मेची नदियों के बीच सिमट गया लेकिन अपनी स्वाधीनता को बचाए रखने में नेपाल सफल रहा, बाद मे अंग्रेजो ने 1822 में मेची नदी व राप्ती नदी के बीच की तराई का हिस्सा नेपाल को वापस किया उसी तरह 1860 में राणा प्रधानमन्त्री जंगबहादुर से ख़ुश होकर 'भारतीय सैनिक बिद्रोह को कूचलने मे नेपाली सेना का भरपूर सहयोग के बदले अंग्रेजो ने राप्तीनदी से महाकाली नदी के बीच का तराई का थोड़ा और हिस्सा नेपाल को लौटाया। लेकिन सुगौली सन्धी के बाद नेपाल ने जमीन का बहुत बडा हिस्सा गँवा दिया, यह क्षेत्र अभी उत्तराखण्ड राज्य और हिमाचल प्रदेश और पंजाब पहाड़ी राज्य में सम्मिलित है। पूर्व में दार्जिलिंग और उसके आसपास का नेपाली मूल के लोगों का भूमि (जो अब पश्चिम बंगाल मे है) भी ब्रिटिश इण्डिया के अधीन मे हो गया तथा नेपाल का सिक्किम पर प्रभाव और शक्ति भी नेपाल को त्यागने पड़े। राज परिवार व भारदारो के बीच गुटबन्दी के कारण युद्ध के बाद स्थायित्व कायम हुआ। सन् 1846 में शासन कर रही रानी का सेनानायक जंगबहादुर राणा को पदच्युत करने के षड्यन्त्र का खुलासा होने से कोतपर्व नाम का नरसंहार हुवा। हथियारधारी सेना व रानी के प्रति वफादार भाइ-भारदारो के बीच मारकाट चलने से देश के सयौं राजखलाक, भारदारलोग व दूसरे रजवाड़ों की हत्या हुई। जंगबहादुर की जीत के बाद राणा ख़ानदान उन्होंने सुरुकिया व राणा शासन लागु किया। राजा को नाममात्र में सीमित किया व प्रधानमन्त्री पद को शक्तिशाली वंशानुगत किया गया। राणाशासक पूर्णनिष्ठा के साथ ब्रिटिश के पक्ष में रहते थे व ब्रिटिश शासक को 1857 की सेपोई रेबेल्योन (प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम), व बाद में दोनो विश्व युद्धसहयोग किया था। सन 1923 में यूनाइटेड किंगडम व नेपाल बीच आधिकारिक रूप में मित्रता के समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें नेपाल की स्वतन्त्रता को यूनाइटेड किंगडम ने स्वीकार किया। दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला, नेपाली राजदूतावास ब्रिटेन की राजधानी लन्दन मे खुल गया। 1940 दशक के उत्तरार्ध में लोकतन्त्र-समर्थित आन्दोलनों का उदय होने लगा व राजनैतिक पार्टियां राणा शासन के विरुद्ध हो गईं। उसी समय चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया जिसकी वजह से बढ़ती हुई सैनिक गतिविधियों को टालने के लिए भारत नेपाल की स्थायित्व पर चाख बनाने लगा। फलस्वरुप राजा त्रिभुवन को भारत ने समर्थन किया 1951 में सत्ता लेने में सहयोग किया, नई सरकार का निर्माण हो गया, जिसमें ज्यादा आन्दोलनकारी नेपाली कांग्रेस पार्टी के लोगों की सहभागिता थी। राजा व सरकार के बीच वर्षों की शक्ति खींचातानी के पश्चात्, 1959 में राजा महेन्द्र ने लोकतान्त्रिक अभ्यास अन्त किया व "निर्दलीय" पंचायत व्यवस्था लागू करके राज किया। सन् 1989 के "जन आन्दोलन" ने राजतन्त्र को संवैधानिक सुधार करने व बहुदलीय संसद बनाने का वातावरण बन गया सन 1990 में कृष्णप्रसाद भट्टराई अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री बन गए, नये संविधान का निर्माण हुआ राजा बीरेन्द्र ने 1990 में नेपाल के इतिहास में दूसरा प्रजातन्त्रिक बहुदलीय संविधान जारी किया व अन्तरिम सरकार ने संसद के लिए प्रजातान्त्रिक चुनाव करवाए। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्र के दूसरे प्रजातन्त्रिक चुनाव में बहुमत प्राप्त किया व गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमन्त्री बने। | राणा शासक किसके प्रति वफादार थे? | {
"text": [
"ब्रिटिश"
],
"answer_start": [
1035
]
} | To whom were the Rana rulers loyal? | This is why 1814–16 Blooden Anglo-Nepal war occurred, in which Nepal had to lose two-thirds of the territory but maintained its universal and freedom.Among South Asian countries, "This is the one section that never came under any external feudal (colonies)". In fighting the west, Mahakali in the west after the huge Nepal Sugauli treaty spread from Sutlej to the Teesta River in the West to the Teesta River in the West and in the west.The Matchi was reduced to between rivers but Nepal was successful in preserving its freedom, later the British returned the Terai between the Mechi River and the Rapti River in 1822 to Nepal, similarly in 1860, Rana Prime Minister Jang Bahadur was happy 'In lieu of the plenty of Nepali Army's support for the troop of military bidarh, the British returned a little more part of the Terai between Rapinadi to Mahakali River. But after Sugauli Sandhi, Nepal lost a large part of the land, this area is still Uttarakhand's stateAnd Himachal Pradesh and Punjab are included in the hilly state. The land of people of Nepali origin (which is now in West Bengal) in the east and its surroundings also became under British India and Nepal's influence and power on Sikkim also NepalHad to abandon. Due to factionalism between the Raj family and the Bhardars, stability was established after the war.Rani, who is ruling in 1846, the conspiracy to promote Jungbahadur Rana was revealed that the massacre of Kotaparva took place.Sayon Rajkhalak, Bhardarlog and other princely states of the country were killed due to the fighting between the weapons of the weapon army and the queen.After the victory of Jungbahadur, Rana Khanadan applied to Surukia and Rana rule.The king was limited to nominal and the post of Prime Minister was made powerful hereditary.The Rana -Sacar lived in favor of the British with full devotion and the British ruler was cooperated by the 1857 Seepoi Rebelion (first Indian freedom struggle), and later both world warfare.In 1923, the United Kingdom and Nepal Beach were officially signed in the affair, in which Nepal's independence was accepted by the United Kingdom.The first in South Asian countries, the Nepalese chamber opened in London, the capital of Britain.In the late 1940s, democracy-supported movements began to rise and political parties became against Rana rule.At the same time, China captured Tibet in 1950, due to which India began to chant the stability of Nepal to avoid increasing military activities.As a result, India supported King Tribhuvan in 1951, cooperated in taking power, the new government was formed, in which the more agitator Nepali Congress Party people participated.After years of drawing the power between the king and the government, in 1959, King Mahendra ended the democratic practice and ruled by implementing the "Independent" panchayat system.The "Jan Movement" of 1989 created an atmosphere of constitutional reforms of the monarchy and creating a multi -party parliament. In 1990, Krishnaprasad Bhattarai became the Prime Minister of the Interim Government, the new constitution was created by King Birendra, King Birendra in 1990The constitution was issued and the interim government conducted democratic elections for Parliament.The Nepali Congress won a majority in the second democratic election of the nation and became Girija Prasad Koirala Prime Minister. | {
"answer_start": [
1035
],
"text": [
"British"
]
} |
318 | इसी वजह से 1814–16 रक्तरंजित एंग्लो-नेपाल युद्ध हो गया, जिसमें नेपाल को अपनी दो तिहाई भूभाग से हाथ धोना पड़ा लेकिन अपनी सार्वभौमसत्ता और स्वतन्त्रता को कायम रखा। दक्षिण एशियाई मुल्कों में" यही एक खण्ड है जो कभी भी किसी बाहरी सामन्त (उपनिवेशों) के अधीन में नही आया'। विलायत से लड़ने में पश्चिम में सतलुज से पुर्व में तीस्ता नदी तक फैला हुआ विशाल नेपाल सुगौली सन्धि के बाद पश्चिम में महाकाली और मेची नदियों के बीच सिमट गया लेकिन अपनी स्वाधीनता को बचाए रखने में नेपाल सफल रहा, बाद मे अंग्रेजो ने 1822 में मेची नदी व राप्ती नदी के बीच की तराई का हिस्सा नेपाल को वापस किया उसी तरह 1860 में राणा प्रधानमन्त्री जंगबहादुर से ख़ुश होकर 'भारतीय सैनिक बिद्रोह को कूचलने मे नेपाली सेना का भरपूर सहयोग के बदले अंग्रेजो ने राप्तीनदी से महाकाली नदी के बीच का तराई का थोड़ा और हिस्सा नेपाल को लौटाया। लेकिन सुगौली सन्धी के बाद नेपाल ने जमीन का बहुत बडा हिस्सा गँवा दिया, यह क्षेत्र अभी उत्तराखण्ड राज्य और हिमाचल प्रदेश और पंजाब पहाड़ी राज्य में सम्मिलित है। पूर्व में दार्जिलिंग और उसके आसपास का नेपाली मूल के लोगों का भूमि (जो अब पश्चिम बंगाल मे है) भी ब्रिटिश इण्डिया के अधीन मे हो गया तथा नेपाल का सिक्किम पर प्रभाव और शक्ति भी नेपाल को त्यागने पड़े। राज परिवार व भारदारो के बीच गुटबन्दी के कारण युद्ध के बाद स्थायित्व कायम हुआ। सन् 1846 में शासन कर रही रानी का सेनानायक जंगबहादुर राणा को पदच्युत करने के षड्यन्त्र का खुलासा होने से कोतपर्व नाम का नरसंहार हुवा। हथियारधारी सेना व रानी के प्रति वफादार भाइ-भारदारो के बीच मारकाट चलने से देश के सयौं राजखलाक, भारदारलोग व दूसरे रजवाड़ों की हत्या हुई। जंगबहादुर की जीत के बाद राणा ख़ानदान उन्होंने सुरुकिया व राणा शासन लागु किया। राजा को नाममात्र में सीमित किया व प्रधानमन्त्री पद को शक्तिशाली वंशानुगत किया गया। राणाशासक पूर्णनिष्ठा के साथ ब्रिटिश के पक्ष में रहते थे व ब्रिटिश शासक को 1857 की सेपोई रेबेल्योन (प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम), व बाद में दोनो विश्व युद्धसहयोग किया था। सन 1923 में यूनाइटेड किंगडम व नेपाल बीच आधिकारिक रूप में मित्रता के समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें नेपाल की स्वतन्त्रता को यूनाइटेड किंगडम ने स्वीकार किया। दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला, नेपाली राजदूतावास ब्रिटेन की राजधानी लन्दन मे खुल गया। 1940 दशक के उत्तरार्ध में लोकतन्त्र-समर्थित आन्दोलनों का उदय होने लगा व राजनैतिक पार्टियां राणा शासन के विरुद्ध हो गईं। उसी समय चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया जिसकी वजह से बढ़ती हुई सैनिक गतिविधियों को टालने के लिए भारत नेपाल की स्थायित्व पर चाख बनाने लगा। फलस्वरुप राजा त्रिभुवन को भारत ने समर्थन किया 1951 में सत्ता लेने में सहयोग किया, नई सरकार का निर्माण हो गया, जिसमें ज्यादा आन्दोलनकारी नेपाली कांग्रेस पार्टी के लोगों की सहभागिता थी। राजा व सरकार के बीच वर्षों की शक्ति खींचातानी के पश्चात्, 1959 में राजा महेन्द्र ने लोकतान्त्रिक अभ्यास अन्त किया व "निर्दलीय" पंचायत व्यवस्था लागू करके राज किया। सन् 1989 के "जन आन्दोलन" ने राजतन्त्र को संवैधानिक सुधार करने व बहुदलीय संसद बनाने का वातावरण बन गया सन 1990 में कृष्णप्रसाद भट्टराई अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री बन गए, नये संविधान का निर्माण हुआ राजा बीरेन्द्र ने 1990 में नेपाल के इतिहास में दूसरा प्रजातन्त्रिक बहुदलीय संविधान जारी किया व अन्तरिम सरकार ने संसद के लिए प्रजातान्त्रिक चुनाव करवाए। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्र के दूसरे प्रजातन्त्रिक चुनाव में बहुमत प्राप्त किया व गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमन्त्री बने। | ब्रिटेन की राजधानी का क्या नाम है? | {
"text": [
"लन्दन"
],
"answer_start": [
2035
]
} | What is the name of the capital of Great Britain? | This is why 1814–16 Blooden Anglo-Nepal war occurred, in which Nepal had to lose two-thirds of the territory but maintained its universal and freedom.Among South Asian countries, "This is the one section that never came under any external feudal (colonies)". In fighting the west, Mahakali in the west after the huge Nepal Sugauli treaty spread from Sutlej to the Teesta River in the West to the Teesta River in the West and in the west.The Matchi was reduced to between rivers but Nepal was successful in preserving its freedom, later the British returned the Terai between the Mechi River and the Rapti River in 1822 to Nepal, similarly in 1860, Rana Prime Minister Jang Bahadur was happy 'In lieu of the plenty of Nepali Army's support for the troop of military bidarh, the British returned a little more part of the Terai between Rapinadi to Mahakali River. But after Sugauli Sandhi, Nepal lost a large part of the land, this area is still Uttarakhand's stateAnd Himachal Pradesh and Punjab are included in the hilly state. The land of people of Nepali origin (which is now in West Bengal) in the east and its surroundings also became under British India and Nepal's influence and power on Sikkim also NepalHad to abandon. Due to factionalism between the Raj family and the Bhardars, stability was established after the war.Rani, who is ruling in 1846, the conspiracy to promote Jungbahadur Rana was revealed that the massacre of Kotaparva took place.Sayon Rajkhalak, Bhardarlog and other princely states of the country were killed due to the fighting between the weapons of the weapon army and the queen.After the victory of Jungbahadur, Rana Khanadan applied to Surukia and Rana rule.The king was limited to nominal and the post of Prime Minister was made powerful hereditary.The Rana -Sacar lived in favor of the British with full devotion and the British ruler was cooperated by the 1857 Seepoi Rebelion (first Indian freedom struggle), and later both world warfare.In 1923, the United Kingdom and Nepal Beach were officially signed in the affair, in which Nepal's independence was accepted by the United Kingdom.The first in South Asian countries, the Nepalese chamber opened in London, the capital of Britain.In the late 1940s, democracy-supported movements began to rise and political parties became against Rana rule.At the same time, China captured Tibet in 1950, due to which India began to chant the stability of Nepal to avoid increasing military activities.As a result, India supported King Tribhuvan in 1951, cooperated in taking power, the new government was formed, in which the more agitator Nepali Congress Party people participated.After years of drawing the power between the king and the government, in 1959, King Mahendra ended the democratic practice and ruled by implementing the "Independent" panchayat system.The "Jan Movement" of 1989 created an atmosphere of constitutional reforms of the monarchy and creating a multi -party parliament. In 1990, Krishnaprasad Bhattarai became the Prime Minister of the Interim Government, the new constitution was created by King Birendra, King Birendra in 1990The constitution was issued and the interim government conducted democratic elections for Parliament.The Nepali Congress won a majority in the second democratic election of the nation and became Girija Prasad Koirala Prime Minister. | {
"answer_start": [
2035
],
"text": [
"London"
]
} |
319 | इसी वजह से 1814–16 रक्तरंजित एंग्लो-नेपाल युद्ध हो गया, जिसमें नेपाल को अपनी दो तिहाई भूभाग से हाथ धोना पड़ा लेकिन अपनी सार्वभौमसत्ता और स्वतन्त्रता को कायम रखा। दक्षिण एशियाई मुल्कों में" यही एक खण्ड है जो कभी भी किसी बाहरी सामन्त (उपनिवेशों) के अधीन में नही आया'। विलायत से लड़ने में पश्चिम में सतलुज से पुर्व में तीस्ता नदी तक फैला हुआ विशाल नेपाल सुगौली सन्धि के बाद पश्चिम में महाकाली और मेची नदियों के बीच सिमट गया लेकिन अपनी स्वाधीनता को बचाए रखने में नेपाल सफल रहा, बाद मे अंग्रेजो ने 1822 में मेची नदी व राप्ती नदी के बीच की तराई का हिस्सा नेपाल को वापस किया उसी तरह 1860 में राणा प्रधानमन्त्री जंगबहादुर से ख़ुश होकर 'भारतीय सैनिक बिद्रोह को कूचलने मे नेपाली सेना का भरपूर सहयोग के बदले अंग्रेजो ने राप्तीनदी से महाकाली नदी के बीच का तराई का थोड़ा और हिस्सा नेपाल को लौटाया। लेकिन सुगौली सन्धी के बाद नेपाल ने जमीन का बहुत बडा हिस्सा गँवा दिया, यह क्षेत्र अभी उत्तराखण्ड राज्य और हिमाचल प्रदेश और पंजाब पहाड़ी राज्य में सम्मिलित है। पूर्व में दार्जिलिंग और उसके आसपास का नेपाली मूल के लोगों का भूमि (जो अब पश्चिम बंगाल मे है) भी ब्रिटिश इण्डिया के अधीन मे हो गया तथा नेपाल का सिक्किम पर प्रभाव और शक्ति भी नेपाल को त्यागने पड़े। राज परिवार व भारदारो के बीच गुटबन्दी के कारण युद्ध के बाद स्थायित्व कायम हुआ। सन् 1846 में शासन कर रही रानी का सेनानायक जंगबहादुर राणा को पदच्युत करने के षड्यन्त्र का खुलासा होने से कोतपर्व नाम का नरसंहार हुवा। हथियारधारी सेना व रानी के प्रति वफादार भाइ-भारदारो के बीच मारकाट चलने से देश के सयौं राजखलाक, भारदारलोग व दूसरे रजवाड़ों की हत्या हुई। जंगबहादुर की जीत के बाद राणा ख़ानदान उन्होंने सुरुकिया व राणा शासन लागु किया। राजा को नाममात्र में सीमित किया व प्रधानमन्त्री पद को शक्तिशाली वंशानुगत किया गया। राणाशासक पूर्णनिष्ठा के साथ ब्रिटिश के पक्ष में रहते थे व ब्रिटिश शासक को 1857 की सेपोई रेबेल्योन (प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम), व बाद में दोनो विश्व युद्धसहयोग किया था। सन 1923 में यूनाइटेड किंगडम व नेपाल बीच आधिकारिक रूप में मित्रता के समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें नेपाल की स्वतन्त्रता को यूनाइटेड किंगडम ने स्वीकार किया। दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला, नेपाली राजदूतावास ब्रिटेन की राजधानी लन्दन मे खुल गया। 1940 दशक के उत्तरार्ध में लोकतन्त्र-समर्थित आन्दोलनों का उदय होने लगा व राजनैतिक पार्टियां राणा शासन के विरुद्ध हो गईं। उसी समय चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया जिसकी वजह से बढ़ती हुई सैनिक गतिविधियों को टालने के लिए भारत नेपाल की स्थायित्व पर चाख बनाने लगा। फलस्वरुप राजा त्रिभुवन को भारत ने समर्थन किया 1951 में सत्ता लेने में सहयोग किया, नई सरकार का निर्माण हो गया, जिसमें ज्यादा आन्दोलनकारी नेपाली कांग्रेस पार्टी के लोगों की सहभागिता थी। राजा व सरकार के बीच वर्षों की शक्ति खींचातानी के पश्चात्, 1959 में राजा महेन्द्र ने लोकतान्त्रिक अभ्यास अन्त किया व "निर्दलीय" पंचायत व्यवस्था लागू करके राज किया। सन् 1989 के "जन आन्दोलन" ने राजतन्त्र को संवैधानिक सुधार करने व बहुदलीय संसद बनाने का वातावरण बन गया सन 1990 में कृष्णप्रसाद भट्टराई अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री बन गए, नये संविधान का निर्माण हुआ राजा बीरेन्द्र ने 1990 में नेपाल के इतिहास में दूसरा प्रजातन्त्रिक बहुदलीय संविधान जारी किया व अन्तरिम सरकार ने संसद के लिए प्रजातान्त्रिक चुनाव करवाए। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्र के दूसरे प्रजातन्त्रिक चुनाव में बहुमत प्राप्त किया व गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमन्त्री बने। | नेपाल के पहले राष्ट्रपति कौन थे? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Who was the first president of Nepal? | This is why 1814–16 Blooden Anglo-Nepal war occurred, in which Nepal had to lose two-thirds of the territory but maintained its universal and freedom.Among South Asian countries, "This is the one section that never came under any external feudal (colonies)". In fighting the west, Mahakali in the west after the huge Nepal Sugauli treaty spread from Sutlej to the Teesta River in the West to the Teesta River in the West and in the west.The Matchi was reduced to between rivers but Nepal was successful in preserving its freedom, later the British returned the Terai between the Mechi River and the Rapti River in 1822 to Nepal, similarly in 1860, Rana Prime Minister Jang Bahadur was happy 'In lieu of the plenty of Nepali Army's support for the troop of military bidarh, the British returned a little more part of the Terai between Rapinadi to Mahakali River. But after Sugauli Sandhi, Nepal lost a large part of the land, this area is still Uttarakhand's stateAnd Himachal Pradesh and Punjab are included in the hilly state. The land of people of Nepali origin (which is now in West Bengal) in the east and its surroundings also became under British India and Nepal's influence and power on Sikkim also NepalHad to abandon. Due to factionalism between the Raj family and the Bhardars, stability was established after the war.Rani, who is ruling in 1846, the conspiracy to promote Jungbahadur Rana was revealed that the massacre of Kotaparva took place.Sayon Rajkhalak, Bhardarlog and other princely states of the country were killed due to the fighting between the weapons of the weapon army and the queen.After the victory of Jungbahadur, Rana Khanadan applied to Surukia and Rana rule.The king was limited to nominal and the post of Prime Minister was made powerful hereditary.The Rana -Sacar lived in favor of the British with full devotion and the British ruler was cooperated by the 1857 Seepoi Rebelion (first Indian freedom struggle), and later both world warfare.In 1923, the United Kingdom and Nepal Beach were officially signed in the affair, in which Nepal's independence was accepted by the United Kingdom.The first in South Asian countries, the Nepalese chamber opened in London, the capital of Britain.In the late 1940s, democracy-supported movements began to rise and political parties became against Rana rule.At the same time, China captured Tibet in 1950, due to which India began to chant the stability of Nepal to avoid increasing military activities.As a result, India supported King Tribhuvan in 1951, cooperated in taking power, the new government was formed, in which the more agitator Nepali Congress Party people participated.After years of drawing the power between the king and the government, in 1959, King Mahendra ended the democratic practice and ruled by implementing the "Independent" panchayat system.The "Jan Movement" of 1989 created an atmosphere of constitutional reforms of the monarchy and creating a multi -party parliament. In 1990, Krishnaprasad Bhattarai became the Prime Minister of the Interim Government, the new constitution was created by King Birendra, King Birendra in 1990The constitution was issued and the interim government conducted democratic elections for Parliament.The Nepali Congress won a majority in the second democratic election of the nation and became Girija Prasad Koirala Prime Minister. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
320 | इसी वजह से 1814–16 रक्तरंजित एंग्लो-नेपाल युद्ध हो गया, जिसमें नेपाल को अपनी दो तिहाई भूभाग से हाथ धोना पड़ा लेकिन अपनी सार्वभौमसत्ता और स्वतन्त्रता को कायम रखा। दक्षिण एशियाई मुल्कों में" यही एक खण्ड है जो कभी भी किसी बाहरी सामन्त (उपनिवेशों) के अधीन में नही आया'। विलायत से लड़ने में पश्चिम में सतलुज से पुर्व में तीस्ता नदी तक फैला हुआ विशाल नेपाल सुगौली सन्धि के बाद पश्चिम में महाकाली और मेची नदियों के बीच सिमट गया लेकिन अपनी स्वाधीनता को बचाए रखने में नेपाल सफल रहा, बाद मे अंग्रेजो ने 1822 में मेची नदी व राप्ती नदी के बीच की तराई का हिस्सा नेपाल को वापस किया उसी तरह 1860 में राणा प्रधानमन्त्री जंगबहादुर से ख़ुश होकर 'भारतीय सैनिक बिद्रोह को कूचलने मे नेपाली सेना का भरपूर सहयोग के बदले अंग्रेजो ने राप्तीनदी से महाकाली नदी के बीच का तराई का थोड़ा और हिस्सा नेपाल को लौटाया। लेकिन सुगौली सन्धी के बाद नेपाल ने जमीन का बहुत बडा हिस्सा गँवा दिया, यह क्षेत्र अभी उत्तराखण्ड राज्य और हिमाचल प्रदेश और पंजाब पहाड़ी राज्य में सम्मिलित है। पूर्व में दार्जिलिंग और उसके आसपास का नेपाली मूल के लोगों का भूमि (जो अब पश्चिम बंगाल मे है) भी ब्रिटिश इण्डिया के अधीन मे हो गया तथा नेपाल का सिक्किम पर प्रभाव और शक्ति भी नेपाल को त्यागने पड़े। राज परिवार व भारदारो के बीच गुटबन्दी के कारण युद्ध के बाद स्थायित्व कायम हुआ। सन् 1846 में शासन कर रही रानी का सेनानायक जंगबहादुर राणा को पदच्युत करने के षड्यन्त्र का खुलासा होने से कोतपर्व नाम का नरसंहार हुवा। हथियारधारी सेना व रानी के प्रति वफादार भाइ-भारदारो के बीच मारकाट चलने से देश के सयौं राजखलाक, भारदारलोग व दूसरे रजवाड़ों की हत्या हुई। जंगबहादुर की जीत के बाद राणा ख़ानदान उन्होंने सुरुकिया व राणा शासन लागु किया। राजा को नाममात्र में सीमित किया व प्रधानमन्त्री पद को शक्तिशाली वंशानुगत किया गया। राणाशासक पूर्णनिष्ठा के साथ ब्रिटिश के पक्ष में रहते थे व ब्रिटिश शासक को 1857 की सेपोई रेबेल्योन (प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम), व बाद में दोनो विश्व युद्धसहयोग किया था। सन 1923 में यूनाइटेड किंगडम व नेपाल बीच आधिकारिक रूप में मित्रता के समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें नेपाल की स्वतन्त्रता को यूनाइटेड किंगडम ने स्वीकार किया। दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला, नेपाली राजदूतावास ब्रिटेन की राजधानी लन्दन मे खुल गया। 1940 दशक के उत्तरार्ध में लोकतन्त्र-समर्थित आन्दोलनों का उदय होने लगा व राजनैतिक पार्टियां राणा शासन के विरुद्ध हो गईं। उसी समय चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया जिसकी वजह से बढ़ती हुई सैनिक गतिविधियों को टालने के लिए भारत नेपाल की स्थायित्व पर चाख बनाने लगा। फलस्वरुप राजा त्रिभुवन को भारत ने समर्थन किया 1951 में सत्ता लेने में सहयोग किया, नई सरकार का निर्माण हो गया, जिसमें ज्यादा आन्दोलनकारी नेपाली कांग्रेस पार्टी के लोगों की सहभागिता थी। राजा व सरकार के बीच वर्षों की शक्ति खींचातानी के पश्चात्, 1959 में राजा महेन्द्र ने लोकतान्त्रिक अभ्यास अन्त किया व "निर्दलीय" पंचायत व्यवस्था लागू करके राज किया। सन् 1989 के "जन आन्दोलन" ने राजतन्त्र को संवैधानिक सुधार करने व बहुदलीय संसद बनाने का वातावरण बन गया सन 1990 में कृष्णप्रसाद भट्टराई अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री बन गए, नये संविधान का निर्माण हुआ राजा बीरेन्द्र ने 1990 में नेपाल के इतिहास में दूसरा प्रजातन्त्रिक बहुदलीय संविधान जारी किया व अन्तरिम सरकार ने संसद के लिए प्रजातान्त्रिक चुनाव करवाए। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्र के दूसरे प्रजातन्त्रिक चुनाव में बहुमत प्राप्त किया व गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमन्त्री बने। | रानी की सेना के कमांडर का क्या नाम था? | {
"text": [
"जंगबहादुर राणा"
],
"answer_start": [
1253
]
} | What was the name of the commander of the queen's army? | This is why 1814–16 Blooden Anglo-Nepal war occurred, in which Nepal had to lose two-thirds of the territory but maintained its universal and freedom.Among South Asian countries, "This is the one section that never came under any external feudal (colonies)". In fighting the west, Mahakali in the west after the huge Nepal Sugauli treaty spread from Sutlej to the Teesta River in the West to the Teesta River in the West and in the west.The Matchi was reduced to between rivers but Nepal was successful in preserving its freedom, later the British returned the Terai between the Mechi River and the Rapti River in 1822 to Nepal, similarly in 1860, Rana Prime Minister Jang Bahadur was happy 'In lieu of the plenty of Nepali Army's support for the troop of military bidarh, the British returned a little more part of the Terai between Rapinadi to Mahakali River. But after Sugauli Sandhi, Nepal lost a large part of the land, this area is still Uttarakhand's stateAnd Himachal Pradesh and Punjab are included in the hilly state. The land of people of Nepali origin (which is now in West Bengal) in the east and its surroundings also became under British India and Nepal's influence and power on Sikkim also NepalHad to abandon. Due to factionalism between the Raj family and the Bhardars, stability was established after the war.Rani, who is ruling in 1846, the conspiracy to promote Jungbahadur Rana was revealed that the massacre of Kotaparva took place.Sayon Rajkhalak, Bhardarlog and other princely states of the country were killed due to the fighting between the weapons of the weapon army and the queen.After the victory of Jungbahadur, Rana Khanadan applied to Surukia and Rana rule.The king was limited to nominal and the post of Prime Minister was made powerful hereditary.The Rana -Sacar lived in favor of the British with full devotion and the British ruler was cooperated by the 1857 Seepoi Rebelion (first Indian freedom struggle), and later both world warfare.In 1923, the United Kingdom and Nepal Beach were officially signed in the affair, in which Nepal's independence was accepted by the United Kingdom.The first in South Asian countries, the Nepalese chamber opened in London, the capital of Britain.In the late 1940s, democracy-supported movements began to rise and political parties became against Rana rule.At the same time, China captured Tibet in 1950, due to which India began to chant the stability of Nepal to avoid increasing military activities.As a result, India supported King Tribhuvan in 1951, cooperated in taking power, the new government was formed, in which the more agitator Nepali Congress Party people participated.After years of drawing the power between the king and the government, in 1959, King Mahendra ended the democratic practice and ruled by implementing the "Independent" panchayat system.The "Jan Movement" of 1989 created an atmosphere of constitutional reforms of the monarchy and creating a multi -party parliament. In 1990, Krishnaprasad Bhattarai became the Prime Minister of the Interim Government, the new constitution was created by King Birendra, King Birendra in 1990The constitution was issued and the interim government conducted democratic elections for Parliament.The Nepali Congress won a majority in the second democratic election of the nation and became Girija Prasad Koirala Prime Minister. | {
"answer_start": [
1253
],
"text": [
"Jangbahadur Rana"
]
} |
321 | इसी वजह से 1814–16 रक्तरंजित एंग्लो-नेपाल युद्ध हो गया, जिसमें नेपाल को अपनी दो तिहाई भूभाग से हाथ धोना पड़ा लेकिन अपनी सार्वभौमसत्ता और स्वतन्त्रता को कायम रखा। दक्षिण एशियाई मुल्कों में" यही एक खण्ड है जो कभी भी किसी बाहरी सामन्त (उपनिवेशों) के अधीन में नही आया'। विलायत से लड़ने में पश्चिम में सतलुज से पुर्व में तीस्ता नदी तक फैला हुआ विशाल नेपाल सुगौली सन्धि के बाद पश्चिम में महाकाली और मेची नदियों के बीच सिमट गया लेकिन अपनी स्वाधीनता को बचाए रखने में नेपाल सफल रहा, बाद मे अंग्रेजो ने 1822 में मेची नदी व राप्ती नदी के बीच की तराई का हिस्सा नेपाल को वापस किया उसी तरह 1860 में राणा प्रधानमन्त्री जंगबहादुर से ख़ुश होकर 'भारतीय सैनिक बिद्रोह को कूचलने मे नेपाली सेना का भरपूर सहयोग के बदले अंग्रेजो ने राप्तीनदी से महाकाली नदी के बीच का तराई का थोड़ा और हिस्सा नेपाल को लौटाया। लेकिन सुगौली सन्धी के बाद नेपाल ने जमीन का बहुत बडा हिस्सा गँवा दिया, यह क्षेत्र अभी उत्तराखण्ड राज्य और हिमाचल प्रदेश और पंजाब पहाड़ी राज्य में सम्मिलित है। पूर्व में दार्जिलिंग और उसके आसपास का नेपाली मूल के लोगों का भूमि (जो अब पश्चिम बंगाल मे है) भी ब्रिटिश इण्डिया के अधीन मे हो गया तथा नेपाल का सिक्किम पर प्रभाव और शक्ति भी नेपाल को त्यागने पड़े। राज परिवार व भारदारो के बीच गुटबन्दी के कारण युद्ध के बाद स्थायित्व कायम हुआ। सन् 1846 में शासन कर रही रानी का सेनानायक जंगबहादुर राणा को पदच्युत करने के षड्यन्त्र का खुलासा होने से कोतपर्व नाम का नरसंहार हुवा। हथियारधारी सेना व रानी के प्रति वफादार भाइ-भारदारो के बीच मारकाट चलने से देश के सयौं राजखलाक, भारदारलोग व दूसरे रजवाड़ों की हत्या हुई। जंगबहादुर की जीत के बाद राणा ख़ानदान उन्होंने सुरुकिया व राणा शासन लागु किया। राजा को नाममात्र में सीमित किया व प्रधानमन्त्री पद को शक्तिशाली वंशानुगत किया गया। राणाशासक पूर्णनिष्ठा के साथ ब्रिटिश के पक्ष में रहते थे व ब्रिटिश शासक को 1857 की सेपोई रेबेल्योन (प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम), व बाद में दोनो विश्व युद्धसहयोग किया था। सन 1923 में यूनाइटेड किंगडम व नेपाल बीच आधिकारिक रूप में मित्रता के समझौते पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें नेपाल की स्वतन्त्रता को यूनाइटेड किंगडम ने स्वीकार किया। दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला, नेपाली राजदूतावास ब्रिटेन की राजधानी लन्दन मे खुल गया। 1940 दशक के उत्तरार्ध में लोकतन्त्र-समर्थित आन्दोलनों का उदय होने लगा व राजनैतिक पार्टियां राणा शासन के विरुद्ध हो गईं। उसी समय चीन ने 1950 में तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया जिसकी वजह से बढ़ती हुई सैनिक गतिविधियों को टालने के लिए भारत नेपाल की स्थायित्व पर चाख बनाने लगा। फलस्वरुप राजा त्रिभुवन को भारत ने समर्थन किया 1951 में सत्ता लेने में सहयोग किया, नई सरकार का निर्माण हो गया, जिसमें ज्यादा आन्दोलनकारी नेपाली कांग्रेस पार्टी के लोगों की सहभागिता थी। राजा व सरकार के बीच वर्षों की शक्ति खींचातानी के पश्चात्, 1959 में राजा महेन्द्र ने लोकतान्त्रिक अभ्यास अन्त किया व "निर्दलीय" पंचायत व्यवस्था लागू करके राज किया। सन् 1989 के "जन आन्दोलन" ने राजतन्त्र को संवैधानिक सुधार करने व बहुदलीय संसद बनाने का वातावरण बन गया सन 1990 में कृष्णप्रसाद भट्टराई अन्तरिम सरकार के प्रधानमन्त्री बन गए, नये संविधान का निर्माण हुआ राजा बीरेन्द्र ने 1990 में नेपाल के इतिहास में दूसरा प्रजातन्त्रिक बहुदलीय संविधान जारी किया व अन्तरिम सरकार ने संसद के लिए प्रजातान्त्रिक चुनाव करवाए। नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्र के दूसरे प्रजातन्त्रिक चुनाव में बहुमत प्राप्त किया व गिरिजा प्रसाद कोइराला प्रधानमन्त्री बने। | नेपाल में लोकतांत्रिक व्यवस्था को किस शासक द्वारा समाप्त कर दिया गया था? | {
"text": [
"राजा महेन्द्र"
],
"answer_start": [
2567
]
} | The democratic system in Nepal was abolished by which ruler? | This is why 1814–16 Blooden Anglo-Nepal war occurred, in which Nepal had to lose two-thirds of the territory but maintained its universal and freedom.Among South Asian countries, "This is the one section that never came under any external feudal (colonies)". In fighting the west, Mahakali in the west after the huge Nepal Sugauli treaty spread from Sutlej to the Teesta River in the West to the Teesta River in the West and in the west.The Matchi was reduced to between rivers but Nepal was successful in preserving its freedom, later the British returned the Terai between the Mechi River and the Rapti River in 1822 to Nepal, similarly in 1860, Rana Prime Minister Jang Bahadur was happy 'In lieu of the plenty of Nepali Army's support for the troop of military bidarh, the British returned a little more part of the Terai between Rapinadi to Mahakali River. But after Sugauli Sandhi, Nepal lost a large part of the land, this area is still Uttarakhand's stateAnd Himachal Pradesh and Punjab are included in the hilly state. The land of people of Nepali origin (which is now in West Bengal) in the east and its surroundings also became under British India and Nepal's influence and power on Sikkim also NepalHad to abandon. Due to factionalism between the Raj family and the Bhardars, stability was established after the war.Rani, who is ruling in 1846, the conspiracy to promote Jungbahadur Rana was revealed that the massacre of Kotaparva took place.Sayon Rajkhalak, Bhardarlog and other princely states of the country were killed due to the fighting between the weapons of the weapon army and the queen.After the victory of Jungbahadur, Rana Khanadan applied to Surukia and Rana rule.The king was limited to nominal and the post of Prime Minister was made powerful hereditary.The Rana -Sacar lived in favor of the British with full devotion and the British ruler was cooperated by the 1857 Seepoi Rebelion (first Indian freedom struggle), and later both world warfare.In 1923, the United Kingdom and Nepal Beach were officially signed in the affair, in which Nepal's independence was accepted by the United Kingdom.The first in South Asian countries, the Nepalese chamber opened in London, the capital of Britain.In the late 1940s, democracy-supported movements began to rise and political parties became against Rana rule.At the same time, China captured Tibet in 1950, due to which India began to chant the stability of Nepal to avoid increasing military activities.As a result, India supported King Tribhuvan in 1951, cooperated in taking power, the new government was formed, in which the more agitator Nepali Congress Party people participated.After years of drawing the power between the king and the government, in 1959, King Mahendra ended the democratic practice and ruled by implementing the "Independent" panchayat system.The "Jan Movement" of 1989 created an atmosphere of constitutional reforms of the monarchy and creating a multi -party parliament. In 1990, Krishnaprasad Bhattarai became the Prime Minister of the Interim Government, the new constitution was created by King Birendra, King Birendra in 1990The constitution was issued and the interim government conducted democratic elections for Parliament.The Nepali Congress won a majority in the second democratic election of the nation and became Girija Prasad Koirala Prime Minister. | {
"answer_start": [
2567
],
"text": [
"Raja Mahendra."
]
} |
322 | ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गाँव में एक अति निर्धन ब्राम्हण परिवार में हुआ था। पिता का नाम ठाकुरदास वन्द्योपाध्याय था। तीक्ष्णबुद्धि पुत्र को गरीब पिता ने विद्या के प्रति रुचि ही विरासत में प्रदान की थी। नौ वर्ष की अवस्था में बालक ने पिता के साथ पैदल कोलकाता जाकर संस्कृत कालेज में विद्यारम्भ किया। शारीरिक अस्वस्थता, घोर आर्थिक कष्ट तथा गृहकार्य के बावजूद ईश्वरचंद्र ने प्रायः प्रत्येक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। १८४१ में विद्यासमाप्ति पर फोर्ट विलियम कालेज में पचास रुपए मासिक पर मुख्य पण्डित पद पर नियुक्ति मिली। तभी 'विद्यासागर' उपाधि से विभूषित हुए। लोकमत ने 'दानवीर सागर' का सम्बोधन दिया। १८४६ में संस्कृत कालेज में सहकारी सम्पादक नियुक्त हुए; किन्तु मतभेद पर त्यागपत्र दे दिया। १८५१ में उक्त कालेज में मुख्याध्यक्ष बने। १८५५ में असिस्टेंट इंस्पेक्टर, फिर पाँच सौ रुपए मासिक पर स्पेशल इंस्पेक्टर नियुक्त हुए। १८५८ ई. में मतभेद होने पर फिर त्यागपत्र दे दिया। फिर साहित्य तथा समाजसेवा में लगे। १८८० ई. में सी.आई.ई. का सम्मान मिला। आरम्भिक आर्थिक संकटों ने उन्हें कृपण प्रकृति (कंजूस) की अपेक्षा 'दयासागर' ही बनाया। विद्यार्थी जीवन में भी इन्होंने अनेक विद्यार्थियों की सहायता की। समर्थ होने पर बीसों निर्धन विद्यार्थियों, सैकड़ों निस्सहाय विधवाओं, तथा अनेकानेक व्यक्तियों को अर्थकष्ट से उबारा। वस्तुतः उच्चतम स्थानों में सम्मान पाकर भी उन्हें वास्तविक सुख निर्धनसेवा में ही मिला। शिक्षा के क्षेत्र में वे स्त्रीशिक्षा के प्रबल समर्थक थे। श्री बेथ्यून की सहायता से गर्ल्स स्कूल की स्थापना की जिसके संचालन का भार उनपर था। उन्होंने अपने ही व्यय से मेट्रोपोलिस कालेज की स्थापना की। साथ ही अनेक सहायताप्राप्त स्कूलों की भी स्थापना कराई। संस्कृत अध्ययन की सुगम प्रणाली निर्मित की। | फोर्ट विलियम कॉलेज में ईश्वर चंद्र विद्यासागर किस पद के लिए नियुक्त किए गए थे ? | {
"text": [
"पण्डित पद"
],
"answer_start": [
533
]
} | For which post was Ishwar Chandra Vidyasagar appointed at Fort William College? | Ishwar Chandra Vidyasagar was born in a very poor Brahmin family in Veerasingh village of Medinipur district of Bengal.The father's name was Thakurdas Vandyopadhyay.The poor father had inherited interest in Vidya by the poor father.At the age of nine, the child went to Kolkata on foot with his father to Sanskrit College.Despite physical illness, gross financial suffering and homework, Ishwar Chandra often secured first place in every examination.In 171, the appointment was received to the main pandit on a monthly fifty rupees at Fort William College on Vidyasamti.Then he was conferred with the title 'Vidyasagar'.Lokmat addressed 'Danveer Sagar'.In 18, cooperative editor was appointed in Sanskrit College;But resigned on differences.In 1851, he became the head of the said college.In 1855, Assistant Inspector, then a special inspector was appointed on a monthly five hundred rupees monthly.In 1857 AD, he resigned again on differences.Then engaged in literature and social service.CIE in 180 ADGot respectThe initial economic crises made him 'Dayasagar' compared to a wreath nature (stingy).He also helped many students in student life.On being capable, the two poor students, hundreds of helpless widows, and many persons were raised from the meaning.In fact, even after getting respect in the highest places, he got real happiness in poor service.He was a strong supporter of women's education in the field of education.With the help of Sri Bathun, the Girls School was established with the burden of operations.He established the Metropolis College at his own expense.Along with this, many aided schools were also established.Created a smooth system of Sanskrit study. | {
"answer_start": [
533
],
"text": [
"Pundit Post"
]
} |
323 | ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गाँव में एक अति निर्धन ब्राम्हण परिवार में हुआ था। पिता का नाम ठाकुरदास वन्द्योपाध्याय था। तीक्ष्णबुद्धि पुत्र को गरीब पिता ने विद्या के प्रति रुचि ही विरासत में प्रदान की थी। नौ वर्ष की अवस्था में बालक ने पिता के साथ पैदल कोलकाता जाकर संस्कृत कालेज में विद्यारम्भ किया। शारीरिक अस्वस्थता, घोर आर्थिक कष्ट तथा गृहकार्य के बावजूद ईश्वरचंद्र ने प्रायः प्रत्येक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। १८४१ में विद्यासमाप्ति पर फोर्ट विलियम कालेज में पचास रुपए मासिक पर मुख्य पण्डित पद पर नियुक्ति मिली। तभी 'विद्यासागर' उपाधि से विभूषित हुए। लोकमत ने 'दानवीर सागर' का सम्बोधन दिया। १८४६ में संस्कृत कालेज में सहकारी सम्पादक नियुक्त हुए; किन्तु मतभेद पर त्यागपत्र दे दिया। १८५१ में उक्त कालेज में मुख्याध्यक्ष बने। १८५५ में असिस्टेंट इंस्पेक्टर, फिर पाँच सौ रुपए मासिक पर स्पेशल इंस्पेक्टर नियुक्त हुए। १८५८ ई. में मतभेद होने पर फिर त्यागपत्र दे दिया। फिर साहित्य तथा समाजसेवा में लगे। १८८० ई. में सी.आई.ई. का सम्मान मिला। आरम्भिक आर्थिक संकटों ने उन्हें कृपण प्रकृति (कंजूस) की अपेक्षा 'दयासागर' ही बनाया। विद्यार्थी जीवन में भी इन्होंने अनेक विद्यार्थियों की सहायता की। समर्थ होने पर बीसों निर्धन विद्यार्थियों, सैकड़ों निस्सहाय विधवाओं, तथा अनेकानेक व्यक्तियों को अर्थकष्ट से उबारा। वस्तुतः उच्चतम स्थानों में सम्मान पाकर भी उन्हें वास्तविक सुख निर्धनसेवा में ही मिला। शिक्षा के क्षेत्र में वे स्त्रीशिक्षा के प्रबल समर्थक थे। श्री बेथ्यून की सहायता से गर्ल्स स्कूल की स्थापना की जिसके संचालन का भार उनपर था। उन्होंने अपने ही व्यय से मेट्रोपोलिस कालेज की स्थापना की। साथ ही अनेक सहायताप्राप्त स्कूलों की भी स्थापना कराई। संस्कृत अध्ययन की सुगम प्रणाली निर्मित की। | ईश्वर चंद्र विद्यासागर के गांव का क्या नाम था ? | {
"text": [
"वीरसिंह गाँव"
],
"answer_start": [
59
]
} | What was the name of Ishwar Chandra Vidyasagar's village? | Ishwar Chandra Vidyasagar was born in a very poor Brahmin family in Veerasingh village of Medinipur district of Bengal.The father's name was Thakurdas Vandyopadhyay.The poor father had inherited interest in Vidya by the poor father.At the age of nine, the child went to Kolkata on foot with his father to Sanskrit College.Despite physical illness, gross financial suffering and homework, Ishwar Chandra often secured first place in every examination.In 171, the appointment was received to the main pandit on a monthly fifty rupees at Fort William College on Vidyasamti.Then he was conferred with the title 'Vidyasagar'.Lokmat addressed 'Danveer Sagar'.In 18, cooperative editor was appointed in Sanskrit College;But resigned on differences.In 1851, he became the head of the said college.In 1855, Assistant Inspector, then a special inspector was appointed on a monthly five hundred rupees monthly.In 1857 AD, he resigned again on differences.Then engaged in literature and social service.CIE in 180 ADGot respectThe initial economic crises made him 'Dayasagar' compared to a wreath nature (stingy).He also helped many students in student life.On being capable, the two poor students, hundreds of helpless widows, and many persons were raised from the meaning.In fact, even after getting respect in the highest places, he got real happiness in poor service.He was a strong supporter of women's education in the field of education.With the help of Sri Bathun, the Girls School was established with the burden of operations.He established the Metropolis College at his own expense.Along with this, many aided schools were also established.Created a smooth system of Sanskrit study. | {
"answer_start": [
59
],
"text": [
"Veer Singh Village"
]
} |
324 | ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गाँव में एक अति निर्धन ब्राम्हण परिवार में हुआ था। पिता का नाम ठाकुरदास वन्द्योपाध्याय था। तीक्ष्णबुद्धि पुत्र को गरीब पिता ने विद्या के प्रति रुचि ही विरासत में प्रदान की थी। नौ वर्ष की अवस्था में बालक ने पिता के साथ पैदल कोलकाता जाकर संस्कृत कालेज में विद्यारम्भ किया। शारीरिक अस्वस्थता, घोर आर्थिक कष्ट तथा गृहकार्य के बावजूद ईश्वरचंद्र ने प्रायः प्रत्येक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। १८४१ में विद्यासमाप्ति पर फोर्ट विलियम कालेज में पचास रुपए मासिक पर मुख्य पण्डित पद पर नियुक्ति मिली। तभी 'विद्यासागर' उपाधि से विभूषित हुए। लोकमत ने 'दानवीर सागर' का सम्बोधन दिया। १८४६ में संस्कृत कालेज में सहकारी सम्पादक नियुक्त हुए; किन्तु मतभेद पर त्यागपत्र दे दिया। १८५१ में उक्त कालेज में मुख्याध्यक्ष बने। १८५५ में असिस्टेंट इंस्पेक्टर, फिर पाँच सौ रुपए मासिक पर स्पेशल इंस्पेक्टर नियुक्त हुए। १८५८ ई. में मतभेद होने पर फिर त्यागपत्र दे दिया। फिर साहित्य तथा समाजसेवा में लगे। १८८० ई. में सी.आई.ई. का सम्मान मिला। आरम्भिक आर्थिक संकटों ने उन्हें कृपण प्रकृति (कंजूस) की अपेक्षा 'दयासागर' ही बनाया। विद्यार्थी जीवन में भी इन्होंने अनेक विद्यार्थियों की सहायता की। समर्थ होने पर बीसों निर्धन विद्यार्थियों, सैकड़ों निस्सहाय विधवाओं, तथा अनेकानेक व्यक्तियों को अर्थकष्ट से उबारा। वस्तुतः उच्चतम स्थानों में सम्मान पाकर भी उन्हें वास्तविक सुख निर्धनसेवा में ही मिला। शिक्षा के क्षेत्र में वे स्त्रीशिक्षा के प्रबल समर्थक थे। श्री बेथ्यून की सहायता से गर्ल्स स्कूल की स्थापना की जिसके संचालन का भार उनपर था। उन्होंने अपने ही व्यय से मेट्रोपोलिस कालेज की स्थापना की। साथ ही अनेक सहायताप्राप्त स्कूलों की भी स्थापना कराई। संस्कृत अध्ययन की सुगम प्रणाली निर्मित की। | ईश्वर चंद्र विद्यासागर का पसंदीदा क्षेत्र कौन सा था ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Which was Ishwar Chandra Vidyasagar's favourite region? | Ishwar Chandra Vidyasagar was born in a very poor Brahmin family in Veerasingh village of Medinipur district of Bengal.The father's name was Thakurdas Vandyopadhyay.The poor father had inherited interest in Vidya by the poor father.At the age of nine, the child went to Kolkata on foot with his father to Sanskrit College.Despite physical illness, gross financial suffering and homework, Ishwar Chandra often secured first place in every examination.In 171, the appointment was received to the main pandit on a monthly fifty rupees at Fort William College on Vidyasamti.Then he was conferred with the title 'Vidyasagar'.Lokmat addressed 'Danveer Sagar'.In 18, cooperative editor was appointed in Sanskrit College;But resigned on differences.In 1851, he became the head of the said college.In 1855, Assistant Inspector, then a special inspector was appointed on a monthly five hundred rupees monthly.In 1857 AD, he resigned again on differences.Then engaged in literature and social service.CIE in 180 ADGot respectThe initial economic crises made him 'Dayasagar' compared to a wreath nature (stingy).He also helped many students in student life.On being capable, the two poor students, hundreds of helpless widows, and many persons were raised from the meaning.In fact, even after getting respect in the highest places, he got real happiness in poor service.He was a strong supporter of women's education in the field of education.With the help of Sri Bathun, the Girls School was established with the burden of operations.He established the Metropolis College at his own expense.Along with this, many aided schools were also established.Created a smooth system of Sanskrit study. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
325 | ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का जन्म बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गाँव में एक अति निर्धन ब्राम्हण परिवार में हुआ था। पिता का नाम ठाकुरदास वन्द्योपाध्याय था। तीक्ष्णबुद्धि पुत्र को गरीब पिता ने विद्या के प्रति रुचि ही विरासत में प्रदान की थी। नौ वर्ष की अवस्था में बालक ने पिता के साथ पैदल कोलकाता जाकर संस्कृत कालेज में विद्यारम्भ किया। शारीरिक अस्वस्थता, घोर आर्थिक कष्ट तथा गृहकार्य के बावजूद ईश्वरचंद्र ने प्रायः प्रत्येक परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया। १८४१ में विद्यासमाप्ति पर फोर्ट विलियम कालेज में पचास रुपए मासिक पर मुख्य पण्डित पद पर नियुक्ति मिली। तभी 'विद्यासागर' उपाधि से विभूषित हुए। लोकमत ने 'दानवीर सागर' का सम्बोधन दिया। १८४६ में संस्कृत कालेज में सहकारी सम्पादक नियुक्त हुए; किन्तु मतभेद पर त्यागपत्र दे दिया। १८५१ में उक्त कालेज में मुख्याध्यक्ष बने। १८५५ में असिस्टेंट इंस्पेक्टर, फिर पाँच सौ रुपए मासिक पर स्पेशल इंस्पेक्टर नियुक्त हुए। १८५८ ई. में मतभेद होने पर फिर त्यागपत्र दे दिया। फिर साहित्य तथा समाजसेवा में लगे। १८८० ई. में सी.आई.ई. का सम्मान मिला। आरम्भिक आर्थिक संकटों ने उन्हें कृपण प्रकृति (कंजूस) की अपेक्षा 'दयासागर' ही बनाया। विद्यार्थी जीवन में भी इन्होंने अनेक विद्यार्थियों की सहायता की। समर्थ होने पर बीसों निर्धन विद्यार्थियों, सैकड़ों निस्सहाय विधवाओं, तथा अनेकानेक व्यक्तियों को अर्थकष्ट से उबारा। वस्तुतः उच्चतम स्थानों में सम्मान पाकर भी उन्हें वास्तविक सुख निर्धनसेवा में ही मिला। शिक्षा के क्षेत्र में वे स्त्रीशिक्षा के प्रबल समर्थक थे। श्री बेथ्यून की सहायता से गर्ल्स स्कूल की स्थापना की जिसके संचालन का भार उनपर था। उन्होंने अपने ही व्यय से मेट्रोपोलिस कालेज की स्थापना की। साथ ही अनेक सहायताप्राप्त स्कूलों की भी स्थापना कराई। संस्कृत अध्ययन की सुगम प्रणाली निर्मित की। | ईश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म भारत के किस राज्य में हुआ था ? | {
"text": [
"बंगाल"
],
"answer_start": [
32
]
} | Ishwar Chandra Vidyasagar was born in which state of India? | Ishwar Chandra Vidyasagar was born in a very poor Brahmin family in Veerasingh village of Medinipur district of Bengal.The father's name was Thakurdas Vandyopadhyay.The poor father had inherited interest in Vidya by the poor father.At the age of nine, the child went to Kolkata on foot with his father to Sanskrit College.Despite physical illness, gross financial suffering and homework, Ishwar Chandra often secured first place in every examination.In 171, the appointment was received to the main pandit on a monthly fifty rupees at Fort William College on Vidyasamti.Then he was conferred with the title 'Vidyasagar'.Lokmat addressed 'Danveer Sagar'.In 18, cooperative editor was appointed in Sanskrit College;But resigned on differences.In 1851, he became the head of the said college.In 1855, Assistant Inspector, then a special inspector was appointed on a monthly five hundred rupees monthly.In 1857 AD, he resigned again on differences.Then engaged in literature and social service.CIE in 180 ADGot respectThe initial economic crises made him 'Dayasagar' compared to a wreath nature (stingy).He also helped many students in student life.On being capable, the two poor students, hundreds of helpless widows, and many persons were raised from the meaning.In fact, even after getting respect in the highest places, he got real happiness in poor service.He was a strong supporter of women's education in the field of education.With the help of Sri Bathun, the Girls School was established with the burden of operations.He established the Metropolis College at his own expense.Along with this, many aided schools were also established.Created a smooth system of Sanskrit study. | {
"answer_start": [
32
],
"text": [
"Bengal"
]
} |
326 | उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है, जब आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा। इस समय वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ हुआ और उत्तर प्रदेश में इसका जन्म हुआ। आर्यों का फ़ैलाव सिन्धु नदी और सतलुज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी क्षेत्र की ओर हुआ। आर्यों ने दोब (दो-आब, यमुना और गंगा का मैदानी भाग) और घाघरा नदी क्षेत्र को अपना घर बनाया। इन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष (भारत आर्यों के एक प्रमुख राजा थे) पड़ा। समय के साथ आर्य भारत के दूरस्थ भागों में फ़ैल गये। संसार के प्राचीनतम शहरों में एक माना जाने वाला वाराणसी शहर यहीं पर स्थित है। वाराणसी केपास स्थित सारनाथ का चौखन्डी स्तूप भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। समय के साथ यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया या फिर बड़े साम्राज्यों, गुप्त, मोर्य और कुषाण का हिस्सा बन गया। ७वीं शताब्दी में कन्नौज गुप्त साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र था। उत्तर प्रदेश हिन्दू धर्म का प्रमुख स्थल रहा। प्रयाग के कुम्भ का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। त्रेतायुग में विष्णु अवतार श्री रामचंद्र ने अयोध्या में (जो अभी अयोध्या जिले में स्थित है) में जन्म लिया। राम भगवान का चौदह वर्ष के वनवास में प्रयाग, चित्रकूट, श्रंगवेरपुर आदि का महत्त्व है। भगवान कृष्णा का जन्म मथुरा में और पुराणों के अनुसार विष्णु के दसम अवतार का कलयुग में अवतरण भी उत्तर प्रदेश में ही वर्णित है। काशी (वाराणसी) में विश्वनाथ मंदिर के शिवलिंग का सनातन धर्म विशेष महत्त्व रहा है। सनातन धर्म के प्रमुख ऋषि रामायण रचयिता महर्षि बाल्मीकि, रामचरित मानस रचयिता गोस्वामी तुलसीदास (जन्म- राजापुर चित्रकूट), महर्षि भरद्वाज|सातवीं शताब्दी ई. पू. के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में परिनिर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले कुशीनगर में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद और उसके बाद उनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट धनानंद जो नाई समाज से थे। सम्राट महापद्मानंद और धनानंद के समय मगध विश्व का सबसे अमीर और बड़ी सेना वाला साम्राज्य हुआ करता था। [चन्द्रगुप्त प्रथम ]] (शासनकाल लगभग 330-380 ई.) व अशोक (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और समुद्रगुप्त (लगभग 330-380 ई.) और चन्द्रगुप्त द्वितीय हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (शासनकाल 606-647) थे। जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थानके कुछ हिस्सों पर शासन किया। इस काल के दौरान बौद्ध संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त काल (लगभग 320-550) के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता दक्षिण भारत में जन्मे शंकर थे, जो वाराणसी पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं। इस क्षेत्र में हालाँकि 1000-1030 ई. तक मुसलमानों का आक्रमण हो चुका था, किन्तु उत्तरी भारत में 12वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासन स्थापित हुआ, जब मुहम्मद ग़ोरी ने गहड़वालों (जिनका उत्तर प्रदेश पर शासन था) और अन्य प्रतिस्पर्धी वंशों को हराया था। लगभग 650 वर्षों तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी न किसी मुस्लिम वंश का शासन रहा, जिनका केन्द्र दिल्ली या उसके आसपास था। 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराया और सर्वाधिक सफल मुस्लिम वंश, मुग़ल वंश की नींव रखी। इस साम्राज्य ने 350 वर्षों से भी अधिक समय तक उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस साम्राज्य का महानतम काल अकबर (शासनकाल 1556-1605 ई.) से लेकर औरंगजेब आलमगीर (1707) का काल था, जिन्होंने आगरा के पास नई शाही राजधानी फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहाँ (शासनकाल 1628-1658 ई.) ने आगरा में ताजमहल (अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मक़बरा, जो प्रसव के दौरान चल बसी थीं) बनवाया, जो विश्व के महानतम वास्तुशिल्पीय नमूनों में से एक है। शाहजहाँ ने आगरा व दिल्ली में भी वास्तुशिल्प की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण इमारतें बनवाईं थीं। मुस्लिम काल के भारत को ही अँग्रेज़ सोने की चिड़िया कहा करते थे। उत्तर प्रदेश में केन्द्रित मुग़ल साम्राज्य ने एक नई मिश्रित संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया। अकबर इसके प्रतिपादक थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दरबार में वास्तुशिल्प, साहित्य, चित्रकला और संगीत विशेषज्ञों को नियुक्त किया था। भक्ति आन्दोलन के संस्थापक रामानन्द (लगभग 1400-1470 ई.) का प्रतिपादन था कि, किसी व्यक्ती की मुक्ति ‘लिंग’ या ‘जाति’ पर आश्रित नहीं होती। | भगवान बुद्ध के पहले प्रवचन को याद दिलाने वाले स्तूप का क्या नाम है ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | What is the name of the stupa that commemorates the first sermon of Lord Buddha? | The known history of Uttar Pradesh is about 4000 years old, when the Aryans placed their first step at this place.At this time Vedic civilization started and it was born in Uttar Pradesh.The Aryans spread from the Indus River and the plains of the Sutlej towards the Yamuna and the plains of the Ganges.The Aryans made Dob (Do-Aab, Yamuna and Ganga Part of the Ganges) and Ghaghra river area their home.In the name of these Aryans, the country of India was named Aryavarta or Bharatvarsha (a major king of India).Over time, Arya spread to remote parts of India.The city of Varanasi, a considered to be one of the oldest cities of the world, is located here.The Chaukhandi stupa of Sarnath located near Varanasi reminds of the first discourse of Lord Buddha.Over time, the region was divided into small states or became part of large empires, secrets, morya and kushan.Kannauj was the main center of the Gupta Empire in the 7th century.Uttar Pradesh was the main place of Hinduism.The importance of Kumbh of Prayag is described in the Puranas.In Tretayuga, Vishnu avatar Shri Ramchandra was born in Ayodhya (which is currently located in Ayodhya district).Lord Rama has the importance of Prayag, Chitrakoot, Shringverpur etc. in fourteen years of exile.The birth of Lord Krishna in Mathura and according to the Puranas is also described in Uttar Pradesh itself.The eternal religion of the Shivling of Vishwanath Temple in Kashi (Varanasi) has a special significance.Maharishi Balmiki, the author of Sanatan Dharma, Maharishi Balmiki, Ramcharit Manas Author Goswami Tulsidas (Janm- Rajapur Chitrakoot), Maharishi Bhardwaj | Seventh century BC.From the end of the systematic history of India and Uttar Pradesh begins, when 16 Mahajanapada in northern India was involved in the race for superiority, seven of which were under the border of present Uttar Pradesh.Buddha gave his first preaching in Sarnath near Varanasi (Banaras) and laid the foundation of a religion that spread not only in India, but also to remote countries like China and Japan.It is said that Buddha attained Parinirvana (liberation of the soul when free from the body) in Kushinagar, which is located in East district Kushinagar.The fifth century BCFrom the sixth century AD, Uttar Pradesh remained under the control of the powers centered outside its present border, first Magadha, which was located in the present Bihar state and later Ujjain, which is located in the present Madhya Pradesh state.Among the great rulers of this period, which had ruled this kingdom, Chakravarti Emperor Mahapadmanand and then his son Chakravarti Emperor Dhanananda who were from Nai Samaj.At the time of Emperor Mahapadmanand and Dhanananda, Magadha used to be the richest and largest army empire in the world.[Chandragupta I]] (Reign of about 330-380 AD) and Ashoka (reign around 268 or 265-238), who were Maurya Emperor and Samudragupta (about 330-380 AD) and Chandragupta II (about 380-415 AD., Some scholars consider Vikramaditya).Another famous ruler was Harshvardhan (reign 606-647).Who ruled the entire Uttar Pradesh, Bihar, Madhya Pradesh, Punjab and parts of Rajasthan from its capital located in Kanyakubj (near modern Kannauj).During this period, Buddhist culture was flown.During the reign of Ashoka, the architecture and architectural symbols of Buddhist art reached their peak.Hindu art also developed maximum during the Gupta period (about 320-550).After the death of Harsha in about 647 AD, Buddhism gradually collapsed with the revival of Hinduism.The chief author of this revival was Shankar, born in South India, who reached Varanasi, traveled to the plains of Uttar Pradesh and established the famous temple in Badrinath in the Himalayas.The Hindu Matavalambi considers it to be the fourth and the last monastery (center of Hindu culture).Although Muslims were invaded by 1000-1030 AD in this region, Muslim rule was established in northern India only after the last decade of the 12th century, when Muhammad Ghori (who ruled Uttar Pradesh) and other competitorsWas defeated the dynasties.For nearly 650 years, most of India, Uttar Pradesh was ruled by some Muslim dynasty, which was the center of Delhi or around it.In 1526 AD, Babur defeated Sultan Abraham Lodi of Delhi and laid the foundation of the most successful Muslim dynasty, the Mughal dynasty.This empire ruled the subcontinent for more than 350 years.The greatest period of this empire was Akbar (reign 1556–1605 AD) to Aurangzeb Alamgir (1707), who built the new royal capital Fatehpur Sikri near Agra.His grandson Shah Jahan (reign 1628–1658 AD) built the Taj Mahal in Agra (a tomb built in memory of his begum, which passed during delivery), which is one of the world's greatest architectural samples.Shah Jahan also built many important buildings in Agra and Delhi in terms of architecture.India used to call India a golden bird.The Mughal Empire centered in Uttar Pradesh encouraged the development of a new mixed culture.Akbar was its exponent, who appointed architecture, literature, painting and music experts in his court without any discrimination.Ramanand (about 1400–1470 AD), the founder of the Bhakti Movement, was rendered that the liberation of a person is not dependent on 'Linga' or 'caste'. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
327 | उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है, जब आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा। इस समय वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ हुआ और उत्तर प्रदेश में इसका जन्म हुआ। आर्यों का फ़ैलाव सिन्धु नदी और सतलुज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी क्षेत्र की ओर हुआ। आर्यों ने दोब (दो-आब, यमुना और गंगा का मैदानी भाग) और घाघरा नदी क्षेत्र को अपना घर बनाया। इन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष (भारत आर्यों के एक प्रमुख राजा थे) पड़ा। समय के साथ आर्य भारत के दूरस्थ भागों में फ़ैल गये। संसार के प्राचीनतम शहरों में एक माना जाने वाला वाराणसी शहर यहीं पर स्थित है। वाराणसी केपास स्थित सारनाथ का चौखन्डी स्तूप भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। समय के साथ यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया या फिर बड़े साम्राज्यों, गुप्त, मोर्य और कुषाण का हिस्सा बन गया। ७वीं शताब्दी में कन्नौज गुप्त साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र था। उत्तर प्रदेश हिन्दू धर्म का प्रमुख स्थल रहा। प्रयाग के कुम्भ का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। त्रेतायुग में विष्णु अवतार श्री रामचंद्र ने अयोध्या में (जो अभी अयोध्या जिले में स्थित है) में जन्म लिया। राम भगवान का चौदह वर्ष के वनवास में प्रयाग, चित्रकूट, श्रंगवेरपुर आदि का महत्त्व है। भगवान कृष्णा का जन्म मथुरा में और पुराणों के अनुसार विष्णु के दसम अवतार का कलयुग में अवतरण भी उत्तर प्रदेश में ही वर्णित है। काशी (वाराणसी) में विश्वनाथ मंदिर के शिवलिंग का सनातन धर्म विशेष महत्त्व रहा है। सनातन धर्म के प्रमुख ऋषि रामायण रचयिता महर्षि बाल्मीकि, रामचरित मानस रचयिता गोस्वामी तुलसीदास (जन्म- राजापुर चित्रकूट), महर्षि भरद्वाज|सातवीं शताब्दी ई. पू. के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में परिनिर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले कुशीनगर में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद और उसके बाद उनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट धनानंद जो नाई समाज से थे। सम्राट महापद्मानंद और धनानंद के समय मगध विश्व का सबसे अमीर और बड़ी सेना वाला साम्राज्य हुआ करता था। [चन्द्रगुप्त प्रथम ]] (शासनकाल लगभग 330-380 ई.) व अशोक (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और समुद्रगुप्त (लगभग 330-380 ई.) और चन्द्रगुप्त द्वितीय हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (शासनकाल 606-647) थे। जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थानके कुछ हिस्सों पर शासन किया। इस काल के दौरान बौद्ध संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त काल (लगभग 320-550) के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता दक्षिण भारत में जन्मे शंकर थे, जो वाराणसी पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं। इस क्षेत्र में हालाँकि 1000-1030 ई. तक मुसलमानों का आक्रमण हो चुका था, किन्तु उत्तरी भारत में 12वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासन स्थापित हुआ, जब मुहम्मद ग़ोरी ने गहड़वालों (जिनका उत्तर प्रदेश पर शासन था) और अन्य प्रतिस्पर्धी वंशों को हराया था। लगभग 650 वर्षों तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी न किसी मुस्लिम वंश का शासन रहा, जिनका केन्द्र दिल्ली या उसके आसपास था। 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराया और सर्वाधिक सफल मुस्लिम वंश, मुग़ल वंश की नींव रखी। इस साम्राज्य ने 350 वर्षों से भी अधिक समय तक उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस साम्राज्य का महानतम काल अकबर (शासनकाल 1556-1605 ई.) से लेकर औरंगजेब आलमगीर (1707) का काल था, जिन्होंने आगरा के पास नई शाही राजधानी फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहाँ (शासनकाल 1628-1658 ई.) ने आगरा में ताजमहल (अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मक़बरा, जो प्रसव के दौरान चल बसी थीं) बनवाया, जो विश्व के महानतम वास्तुशिल्पीय नमूनों में से एक है। शाहजहाँ ने आगरा व दिल्ली में भी वास्तुशिल्प की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण इमारतें बनवाईं थीं। मुस्लिम काल के भारत को ही अँग्रेज़ सोने की चिड़िया कहा करते थे। उत्तर प्रदेश में केन्द्रित मुग़ल साम्राज्य ने एक नई मिश्रित संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया। अकबर इसके प्रतिपादक थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दरबार में वास्तुशिल्प, साहित्य, चित्रकला और संगीत विशेषज्ञों को नियुक्त किया था। भक्ति आन्दोलन के संस्थापक रामानन्द (लगभग 1400-1470 ई.) का प्रतिपादन था कि, किसी व्यक्ती की मुक्ति ‘लिंग’ या ‘जाति’ पर आश्रित नहीं होती। | कन्नौज गुप्त साम्राज्य का मुख्य केंद्र कब बना था ? | {
"text": [
"७वीं शताब्दी"
],
"answer_start": [
786
]
} | When did Kannauj become the main centre of the Gupta Empire? | The known history of Uttar Pradesh is about 4000 years old, when the Aryans placed their first step at this place.At this time Vedic civilization started and it was born in Uttar Pradesh.The Aryans spread from the Indus River and the plains of the Sutlej towards the Yamuna and the plains of the Ganges.The Aryans made Dob (Do-Aab, Yamuna and Ganga Part of the Ganges) and Ghaghra river area their home.In the name of these Aryans, the country of India was named Aryavarta or Bharatvarsha (a major king of India).Over time, Arya spread to remote parts of India.The city of Varanasi, a considered to be one of the oldest cities of the world, is located here.The Chaukhandi stupa of Sarnath located near Varanasi reminds of the first discourse of Lord Buddha.Over time, the region was divided into small states or became part of large empires, secrets, morya and kushan.Kannauj was the main center of the Gupta Empire in the 7th century.Uttar Pradesh was the main place of Hinduism.The importance of Kumbh of Prayag is described in the Puranas.In Tretayuga, Vishnu avatar Shri Ramchandra was born in Ayodhya (which is currently located in Ayodhya district).Lord Rama has the importance of Prayag, Chitrakoot, Shringverpur etc. in fourteen years of exile.The birth of Lord Krishna in Mathura and according to the Puranas is also described in Uttar Pradesh itself.The eternal religion of the Shivling of Vishwanath Temple in Kashi (Varanasi) has a special significance.Maharishi Balmiki, the author of Sanatan Dharma, Maharishi Balmiki, Ramcharit Manas Author Goswami Tulsidas (Janm- Rajapur Chitrakoot), Maharishi Bhardwaj | Seventh century BC.From the end of the systematic history of India and Uttar Pradesh begins, when 16 Mahajanapada in northern India was involved in the race for superiority, seven of which were under the border of present Uttar Pradesh.Buddha gave his first preaching in Sarnath near Varanasi (Banaras) and laid the foundation of a religion that spread not only in India, but also to remote countries like China and Japan.It is said that Buddha attained Parinirvana (liberation of the soul when free from the body) in Kushinagar, which is located in East district Kushinagar.The fifth century BCFrom the sixth century AD, Uttar Pradesh remained under the control of the powers centered outside its present border, first Magadha, which was located in the present Bihar state and later Ujjain, which is located in the present Madhya Pradesh state.Among the great rulers of this period, which had ruled this kingdom, Chakravarti Emperor Mahapadmanand and then his son Chakravarti Emperor Dhanananda who were from Nai Samaj.At the time of Emperor Mahapadmanand and Dhanananda, Magadha used to be the richest and largest army empire in the world.[Chandragupta I]] (Reign of about 330-380 AD) and Ashoka (reign around 268 or 265-238), who were Maurya Emperor and Samudragupta (about 330-380 AD) and Chandragupta II (about 380-415 AD., Some scholars consider Vikramaditya).Another famous ruler was Harshvardhan (reign 606-647).Who ruled the entire Uttar Pradesh, Bihar, Madhya Pradesh, Punjab and parts of Rajasthan from its capital located in Kanyakubj (near modern Kannauj).During this period, Buddhist culture was flown.During the reign of Ashoka, the architecture and architectural symbols of Buddhist art reached their peak.Hindu art also developed maximum during the Gupta period (about 320-550).After the death of Harsha in about 647 AD, Buddhism gradually collapsed with the revival of Hinduism.The chief author of this revival was Shankar, born in South India, who reached Varanasi, traveled to the plains of Uttar Pradesh and established the famous temple in Badrinath in the Himalayas.The Hindu Matavalambi considers it to be the fourth and the last monastery (center of Hindu culture).Although Muslims were invaded by 1000-1030 AD in this region, Muslim rule was established in northern India only after the last decade of the 12th century, when Muhammad Ghori (who ruled Uttar Pradesh) and other competitorsWas defeated the dynasties.For nearly 650 years, most of India, Uttar Pradesh was ruled by some Muslim dynasty, which was the center of Delhi or around it.In 1526 AD, Babur defeated Sultan Abraham Lodi of Delhi and laid the foundation of the most successful Muslim dynasty, the Mughal dynasty.This empire ruled the subcontinent for more than 350 years.The greatest period of this empire was Akbar (reign 1556–1605 AD) to Aurangzeb Alamgir (1707), who built the new royal capital Fatehpur Sikri near Agra.His grandson Shah Jahan (reign 1628–1658 AD) built the Taj Mahal in Agra (a tomb built in memory of his begum, which passed during delivery), which is one of the world's greatest architectural samples.Shah Jahan also built many important buildings in Agra and Delhi in terms of architecture.India used to call India a golden bird.The Mughal Empire centered in Uttar Pradesh encouraged the development of a new mixed culture.Akbar was its exponent, who appointed architecture, literature, painting and music experts in his court without any discrimination.Ramanand (about 1400–1470 AD), the founder of the Bhakti Movement, was rendered that the liberation of a person is not dependent on 'Linga' or 'caste'. | {
"answer_start": [
786
],
"text": [
"7th century"
]
} |
328 | उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है, जब आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा। इस समय वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ हुआ और उत्तर प्रदेश में इसका जन्म हुआ। आर्यों का फ़ैलाव सिन्धु नदी और सतलुज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी क्षेत्र की ओर हुआ। आर्यों ने दोब (दो-आब, यमुना और गंगा का मैदानी भाग) और घाघरा नदी क्षेत्र को अपना घर बनाया। इन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष (भारत आर्यों के एक प्रमुख राजा थे) पड़ा। समय के साथ आर्य भारत के दूरस्थ भागों में फ़ैल गये। संसार के प्राचीनतम शहरों में एक माना जाने वाला वाराणसी शहर यहीं पर स्थित है। वाराणसी केपास स्थित सारनाथ का चौखन्डी स्तूप भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। समय के साथ यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया या फिर बड़े साम्राज्यों, गुप्त, मोर्य और कुषाण का हिस्सा बन गया। ७वीं शताब्दी में कन्नौज गुप्त साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र था। उत्तर प्रदेश हिन्दू धर्म का प्रमुख स्थल रहा। प्रयाग के कुम्भ का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। त्रेतायुग में विष्णु अवतार श्री रामचंद्र ने अयोध्या में (जो अभी अयोध्या जिले में स्थित है) में जन्म लिया। राम भगवान का चौदह वर्ष के वनवास में प्रयाग, चित्रकूट, श्रंगवेरपुर आदि का महत्त्व है। भगवान कृष्णा का जन्म मथुरा में और पुराणों के अनुसार विष्णु के दसम अवतार का कलयुग में अवतरण भी उत्तर प्रदेश में ही वर्णित है। काशी (वाराणसी) में विश्वनाथ मंदिर के शिवलिंग का सनातन धर्म विशेष महत्त्व रहा है। सनातन धर्म के प्रमुख ऋषि रामायण रचयिता महर्षि बाल्मीकि, रामचरित मानस रचयिता गोस्वामी तुलसीदास (जन्म- राजापुर चित्रकूट), महर्षि भरद्वाज|सातवीं शताब्दी ई. पू. के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में परिनिर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले कुशीनगर में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद और उसके बाद उनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट धनानंद जो नाई समाज से थे। सम्राट महापद्मानंद और धनानंद के समय मगध विश्व का सबसे अमीर और बड़ी सेना वाला साम्राज्य हुआ करता था। [चन्द्रगुप्त प्रथम ]] (शासनकाल लगभग 330-380 ई.) व अशोक (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और समुद्रगुप्त (लगभग 330-380 ई.) और चन्द्रगुप्त द्वितीय हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (शासनकाल 606-647) थे। जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थानके कुछ हिस्सों पर शासन किया। इस काल के दौरान बौद्ध संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त काल (लगभग 320-550) के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता दक्षिण भारत में जन्मे शंकर थे, जो वाराणसी पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं। इस क्षेत्र में हालाँकि 1000-1030 ई. तक मुसलमानों का आक्रमण हो चुका था, किन्तु उत्तरी भारत में 12वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासन स्थापित हुआ, जब मुहम्मद ग़ोरी ने गहड़वालों (जिनका उत्तर प्रदेश पर शासन था) और अन्य प्रतिस्पर्धी वंशों को हराया था। लगभग 650 वर्षों तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी न किसी मुस्लिम वंश का शासन रहा, जिनका केन्द्र दिल्ली या उसके आसपास था। 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराया और सर्वाधिक सफल मुस्लिम वंश, मुग़ल वंश की नींव रखी। इस साम्राज्य ने 350 वर्षों से भी अधिक समय तक उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस साम्राज्य का महानतम काल अकबर (शासनकाल 1556-1605 ई.) से लेकर औरंगजेब आलमगीर (1707) का काल था, जिन्होंने आगरा के पास नई शाही राजधानी फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहाँ (शासनकाल 1628-1658 ई.) ने आगरा में ताजमहल (अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मक़बरा, जो प्रसव के दौरान चल बसी थीं) बनवाया, जो विश्व के महानतम वास्तुशिल्पीय नमूनों में से एक है। शाहजहाँ ने आगरा व दिल्ली में भी वास्तुशिल्प की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण इमारतें बनवाईं थीं। मुस्लिम काल के भारत को ही अँग्रेज़ सोने की चिड़िया कहा करते थे। उत्तर प्रदेश में केन्द्रित मुग़ल साम्राज्य ने एक नई मिश्रित संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया। अकबर इसके प्रतिपादक थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दरबार में वास्तुशिल्प, साहित्य, चित्रकला और संगीत विशेषज्ञों को नियुक्त किया था। भक्ति आन्दोलन के संस्थापक रामानन्द (लगभग 1400-1470 ई.) का प्रतिपादन था कि, किसी व्यक्ती की मुक्ति ‘लिंग’ या ‘जाति’ पर आश्रित नहीं होती। | बुद्ध ने अपना पहला उपदेश कहाँ दिया था ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Where did the Buddha give his first sermon? | The known history of Uttar Pradesh is about 4000 years old, when the Aryans placed their first step at this place.At this time Vedic civilization started and it was born in Uttar Pradesh.The Aryans spread from the Indus River and the plains of the Sutlej towards the Yamuna and the plains of the Ganges.The Aryans made Dob (Do-Aab, Yamuna and Ganga Part of the Ganges) and Ghaghra river area their home.In the name of these Aryans, the country of India was named Aryavarta or Bharatvarsha (a major king of India).Over time, Arya spread to remote parts of India.The city of Varanasi, a considered to be one of the oldest cities of the world, is located here.The Chaukhandi stupa of Sarnath located near Varanasi reminds of the first discourse of Lord Buddha.Over time, the region was divided into small states or became part of large empires, secrets, morya and kushan.Kannauj was the main center of the Gupta Empire in the 7th century.Uttar Pradesh was the main place of Hinduism.The importance of Kumbh of Prayag is described in the Puranas.In Tretayuga, Vishnu avatar Shri Ramchandra was born in Ayodhya (which is currently located in Ayodhya district).Lord Rama has the importance of Prayag, Chitrakoot, Shringverpur etc. in fourteen years of exile.The birth of Lord Krishna in Mathura and according to the Puranas is also described in Uttar Pradesh itself.The eternal religion of the Shivling of Vishwanath Temple in Kashi (Varanasi) has a special significance.Maharishi Balmiki, the author of Sanatan Dharma, Maharishi Balmiki, Ramcharit Manas Author Goswami Tulsidas (Janm- Rajapur Chitrakoot), Maharishi Bhardwaj | Seventh century BC.From the end of the systematic history of India and Uttar Pradesh begins, when 16 Mahajanapada in northern India was involved in the race for superiority, seven of which were under the border of present Uttar Pradesh.Buddha gave his first preaching in Sarnath near Varanasi (Banaras) and laid the foundation of a religion that spread not only in India, but also to remote countries like China and Japan.It is said that Buddha attained Parinirvana (liberation of the soul when free from the body) in Kushinagar, which is located in East district Kushinagar.The fifth century BCFrom the sixth century AD, Uttar Pradesh remained under the control of the powers centered outside its present border, first Magadha, which was located in the present Bihar state and later Ujjain, which is located in the present Madhya Pradesh state.Among the great rulers of this period, which had ruled this kingdom, Chakravarti Emperor Mahapadmanand and then his son Chakravarti Emperor Dhanananda who were from Nai Samaj.At the time of Emperor Mahapadmanand and Dhanananda, Magadha used to be the richest and largest army empire in the world.[Chandragupta I]] (Reign of about 330-380 AD) and Ashoka (reign around 268 or 265-238), who were Maurya Emperor and Samudragupta (about 330-380 AD) and Chandragupta II (about 380-415 AD., Some scholars consider Vikramaditya).Another famous ruler was Harshvardhan (reign 606-647).Who ruled the entire Uttar Pradesh, Bihar, Madhya Pradesh, Punjab and parts of Rajasthan from its capital located in Kanyakubj (near modern Kannauj).During this period, Buddhist culture was flown.During the reign of Ashoka, the architecture and architectural symbols of Buddhist art reached their peak.Hindu art also developed maximum during the Gupta period (about 320-550).After the death of Harsha in about 647 AD, Buddhism gradually collapsed with the revival of Hinduism.The chief author of this revival was Shankar, born in South India, who reached Varanasi, traveled to the plains of Uttar Pradesh and established the famous temple in Badrinath in the Himalayas.The Hindu Matavalambi considers it to be the fourth and the last monastery (center of Hindu culture).Although Muslims were invaded by 1000-1030 AD in this region, Muslim rule was established in northern India only after the last decade of the 12th century, when Muhammad Ghori (who ruled Uttar Pradesh) and other competitorsWas defeated the dynasties.For nearly 650 years, most of India, Uttar Pradesh was ruled by some Muslim dynasty, which was the center of Delhi or around it.In 1526 AD, Babur defeated Sultan Abraham Lodi of Delhi and laid the foundation of the most successful Muslim dynasty, the Mughal dynasty.This empire ruled the subcontinent for more than 350 years.The greatest period of this empire was Akbar (reign 1556–1605 AD) to Aurangzeb Alamgir (1707), who built the new royal capital Fatehpur Sikri near Agra.His grandson Shah Jahan (reign 1628–1658 AD) built the Taj Mahal in Agra (a tomb built in memory of his begum, which passed during delivery), which is one of the world's greatest architectural samples.Shah Jahan also built many important buildings in Agra and Delhi in terms of architecture.India used to call India a golden bird.The Mughal Empire centered in Uttar Pradesh encouraged the development of a new mixed culture.Akbar was its exponent, who appointed architecture, literature, painting and music experts in his court without any discrimination.Ramanand (about 1400–1470 AD), the founder of the Bhakti Movement, was rendered that the liberation of a person is not dependent on 'Linga' or 'caste'. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
329 | उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है, जब आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा। इस समय वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ हुआ और उत्तर प्रदेश में इसका जन्म हुआ। आर्यों का फ़ैलाव सिन्धु नदी और सतलुज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी क्षेत्र की ओर हुआ। आर्यों ने दोब (दो-आब, यमुना और गंगा का मैदानी भाग) और घाघरा नदी क्षेत्र को अपना घर बनाया। इन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष (भारत आर्यों के एक प्रमुख राजा थे) पड़ा। समय के साथ आर्य भारत के दूरस्थ भागों में फ़ैल गये। संसार के प्राचीनतम शहरों में एक माना जाने वाला वाराणसी शहर यहीं पर स्थित है। वाराणसी केपास स्थित सारनाथ का चौखन्डी स्तूप भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। समय के साथ यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया या फिर बड़े साम्राज्यों, गुप्त, मोर्य और कुषाण का हिस्सा बन गया। ७वीं शताब्दी में कन्नौज गुप्त साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र था। उत्तर प्रदेश हिन्दू धर्म का प्रमुख स्थल रहा। प्रयाग के कुम्भ का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। त्रेतायुग में विष्णु अवतार श्री रामचंद्र ने अयोध्या में (जो अभी अयोध्या जिले में स्थित है) में जन्म लिया। राम भगवान का चौदह वर्ष के वनवास में प्रयाग, चित्रकूट, श्रंगवेरपुर आदि का महत्त्व है। भगवान कृष्णा का जन्म मथुरा में और पुराणों के अनुसार विष्णु के दसम अवतार का कलयुग में अवतरण भी उत्तर प्रदेश में ही वर्णित है। काशी (वाराणसी) में विश्वनाथ मंदिर के शिवलिंग का सनातन धर्म विशेष महत्त्व रहा है। सनातन धर्म के प्रमुख ऋषि रामायण रचयिता महर्षि बाल्मीकि, रामचरित मानस रचयिता गोस्वामी तुलसीदास (जन्म- राजापुर चित्रकूट), महर्षि भरद्वाज|सातवीं शताब्दी ई. पू. के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में परिनिर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले कुशीनगर में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद और उसके बाद उनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट धनानंद जो नाई समाज से थे। सम्राट महापद्मानंद और धनानंद के समय मगध विश्व का सबसे अमीर और बड़ी सेना वाला साम्राज्य हुआ करता था। [चन्द्रगुप्त प्रथम ]] (शासनकाल लगभग 330-380 ई.) व अशोक (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और समुद्रगुप्त (लगभग 330-380 ई.) और चन्द्रगुप्त द्वितीय हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (शासनकाल 606-647) थे। जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थानके कुछ हिस्सों पर शासन किया। इस काल के दौरान बौद्ध संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त काल (लगभग 320-550) के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता दक्षिण भारत में जन्मे शंकर थे, जो वाराणसी पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं। इस क्षेत्र में हालाँकि 1000-1030 ई. तक मुसलमानों का आक्रमण हो चुका था, किन्तु उत्तरी भारत में 12वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासन स्थापित हुआ, जब मुहम्मद ग़ोरी ने गहड़वालों (जिनका उत्तर प्रदेश पर शासन था) और अन्य प्रतिस्पर्धी वंशों को हराया था। लगभग 650 वर्षों तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी न किसी मुस्लिम वंश का शासन रहा, जिनका केन्द्र दिल्ली या उसके आसपास था। 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराया और सर्वाधिक सफल मुस्लिम वंश, मुग़ल वंश की नींव रखी। इस साम्राज्य ने 350 वर्षों से भी अधिक समय तक उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस साम्राज्य का महानतम काल अकबर (शासनकाल 1556-1605 ई.) से लेकर औरंगजेब आलमगीर (1707) का काल था, जिन्होंने आगरा के पास नई शाही राजधानी फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहाँ (शासनकाल 1628-1658 ई.) ने आगरा में ताजमहल (अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मक़बरा, जो प्रसव के दौरान चल बसी थीं) बनवाया, जो विश्व के महानतम वास्तुशिल्पीय नमूनों में से एक है। शाहजहाँ ने आगरा व दिल्ली में भी वास्तुशिल्प की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण इमारतें बनवाईं थीं। मुस्लिम काल के भारत को ही अँग्रेज़ सोने की चिड़िया कहा करते थे। उत्तर प्रदेश में केन्द्रित मुग़ल साम्राज्य ने एक नई मिश्रित संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया। अकबर इसके प्रतिपादक थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दरबार में वास्तुशिल्प, साहित्य, चित्रकला और संगीत विशेषज्ञों को नियुक्त किया था। भक्ति आन्दोलन के संस्थापक रामानन्द (लगभग 1400-1470 ई.) का प्रतिपादन था कि, किसी व्यक्ती की मुक्ति ‘लिंग’ या ‘जाति’ पर आश्रित नहीं होती। | महर्षि भरद्वाज के समय उत्तर भारत में महाजनपद की संख्या कितनी थी ? | {
"text": [
"16"
],
"answer_start": [
1576
]
} | What was the number of Mahajanapadas in North India at the time of Maharishi Bharadwaja? | The known history of Uttar Pradesh is about 4000 years old, when the Aryans placed their first step at this place.At this time Vedic civilization started and it was born in Uttar Pradesh.The Aryans spread from the Indus River and the plains of the Sutlej towards the Yamuna and the plains of the Ganges.The Aryans made Dob (Do-Aab, Yamuna and Ganga Part of the Ganges) and Ghaghra river area their home.In the name of these Aryans, the country of India was named Aryavarta or Bharatvarsha (a major king of India).Over time, Arya spread to remote parts of India.The city of Varanasi, a considered to be one of the oldest cities of the world, is located here.The Chaukhandi stupa of Sarnath located near Varanasi reminds of the first discourse of Lord Buddha.Over time, the region was divided into small states or became part of large empires, secrets, morya and kushan.Kannauj was the main center of the Gupta Empire in the 7th century.Uttar Pradesh was the main place of Hinduism.The importance of Kumbh of Prayag is described in the Puranas.In Tretayuga, Vishnu avatar Shri Ramchandra was born in Ayodhya (which is currently located in Ayodhya district).Lord Rama has the importance of Prayag, Chitrakoot, Shringverpur etc. in fourteen years of exile.The birth of Lord Krishna in Mathura and according to the Puranas is also described in Uttar Pradesh itself.The eternal religion of the Shivling of Vishwanath Temple in Kashi (Varanasi) has a special significance.Maharishi Balmiki, the author of Sanatan Dharma, Maharishi Balmiki, Ramcharit Manas Author Goswami Tulsidas (Janm- Rajapur Chitrakoot), Maharishi Bhardwaj | Seventh century BC.From the end of the systematic history of India and Uttar Pradesh begins, when 16 Mahajanapada in northern India was involved in the race for superiority, seven of which were under the border of present Uttar Pradesh.Buddha gave his first preaching in Sarnath near Varanasi (Banaras) and laid the foundation of a religion that spread not only in India, but also to remote countries like China and Japan.It is said that Buddha attained Parinirvana (liberation of the soul when free from the body) in Kushinagar, which is located in East district Kushinagar.The fifth century BCFrom the sixth century AD, Uttar Pradesh remained under the control of the powers centered outside its present border, first Magadha, which was located in the present Bihar state and later Ujjain, which is located in the present Madhya Pradesh state.Among the great rulers of this period, which had ruled this kingdom, Chakravarti Emperor Mahapadmanand and then his son Chakravarti Emperor Dhanananda who were from Nai Samaj.At the time of Emperor Mahapadmanand and Dhanananda, Magadha used to be the richest and largest army empire in the world.[Chandragupta I]] (Reign of about 330-380 AD) and Ashoka (reign around 268 or 265-238), who were Maurya Emperor and Samudragupta (about 330-380 AD) and Chandragupta II (about 380-415 AD., Some scholars consider Vikramaditya).Another famous ruler was Harshvardhan (reign 606-647).Who ruled the entire Uttar Pradesh, Bihar, Madhya Pradesh, Punjab and parts of Rajasthan from its capital located in Kanyakubj (near modern Kannauj).During this period, Buddhist culture was flown.During the reign of Ashoka, the architecture and architectural symbols of Buddhist art reached their peak.Hindu art also developed maximum during the Gupta period (about 320-550).After the death of Harsha in about 647 AD, Buddhism gradually collapsed with the revival of Hinduism.The chief author of this revival was Shankar, born in South India, who reached Varanasi, traveled to the plains of Uttar Pradesh and established the famous temple in Badrinath in the Himalayas.The Hindu Matavalambi considers it to be the fourth and the last monastery (center of Hindu culture).Although Muslims were invaded by 1000-1030 AD in this region, Muslim rule was established in northern India only after the last decade of the 12th century, when Muhammad Ghori (who ruled Uttar Pradesh) and other competitorsWas defeated the dynasties.For nearly 650 years, most of India, Uttar Pradesh was ruled by some Muslim dynasty, which was the center of Delhi or around it.In 1526 AD, Babur defeated Sultan Abraham Lodi of Delhi and laid the foundation of the most successful Muslim dynasty, the Mughal dynasty.This empire ruled the subcontinent for more than 350 years.The greatest period of this empire was Akbar (reign 1556–1605 AD) to Aurangzeb Alamgir (1707), who built the new royal capital Fatehpur Sikri near Agra.His grandson Shah Jahan (reign 1628–1658 AD) built the Taj Mahal in Agra (a tomb built in memory of his begum, which passed during delivery), which is one of the world's greatest architectural samples.Shah Jahan also built many important buildings in Agra and Delhi in terms of architecture.India used to call India a golden bird.The Mughal Empire centered in Uttar Pradesh encouraged the development of a new mixed culture.Akbar was its exponent, who appointed architecture, literature, painting and music experts in his court without any discrimination.Ramanand (about 1400–1470 AD), the founder of the Bhakti Movement, was rendered that the liberation of a person is not dependent on 'Linga' or 'caste'. | {
"answer_start": [
1576
],
"text": [
"16"
]
} |
330 | उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है, जब आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा। इस समय वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ हुआ और उत्तर प्रदेश में इसका जन्म हुआ। आर्यों का फ़ैलाव सिन्धु नदी और सतलुज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी क्षेत्र की ओर हुआ। आर्यों ने दोब (दो-आब, यमुना और गंगा का मैदानी भाग) और घाघरा नदी क्षेत्र को अपना घर बनाया। इन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष (भारत आर्यों के एक प्रमुख राजा थे) पड़ा। समय के साथ आर्य भारत के दूरस्थ भागों में फ़ैल गये। संसार के प्राचीनतम शहरों में एक माना जाने वाला वाराणसी शहर यहीं पर स्थित है। वाराणसी केपास स्थित सारनाथ का चौखन्डी स्तूप भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। समय के साथ यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया या फिर बड़े साम्राज्यों, गुप्त, मोर्य और कुषाण का हिस्सा बन गया। ७वीं शताब्दी में कन्नौज गुप्त साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र था। उत्तर प्रदेश हिन्दू धर्म का प्रमुख स्थल रहा। प्रयाग के कुम्भ का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। त्रेतायुग में विष्णु अवतार श्री रामचंद्र ने अयोध्या में (जो अभी अयोध्या जिले में स्थित है) में जन्म लिया। राम भगवान का चौदह वर्ष के वनवास में प्रयाग, चित्रकूट, श्रंगवेरपुर आदि का महत्त्व है। भगवान कृष्णा का जन्म मथुरा में और पुराणों के अनुसार विष्णु के दसम अवतार का कलयुग में अवतरण भी उत्तर प्रदेश में ही वर्णित है। काशी (वाराणसी) में विश्वनाथ मंदिर के शिवलिंग का सनातन धर्म विशेष महत्त्व रहा है। सनातन धर्म के प्रमुख ऋषि रामायण रचयिता महर्षि बाल्मीकि, रामचरित मानस रचयिता गोस्वामी तुलसीदास (जन्म- राजापुर चित्रकूट), महर्षि भरद्वाज|सातवीं शताब्दी ई. पू. के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में परिनिर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले कुशीनगर में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद और उसके बाद उनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट धनानंद जो नाई समाज से थे। सम्राट महापद्मानंद और धनानंद के समय मगध विश्व का सबसे अमीर और बड़ी सेना वाला साम्राज्य हुआ करता था। [चन्द्रगुप्त प्रथम ]] (शासनकाल लगभग 330-380 ई.) व अशोक (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और समुद्रगुप्त (लगभग 330-380 ई.) और चन्द्रगुप्त द्वितीय हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (शासनकाल 606-647) थे। जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थानके कुछ हिस्सों पर शासन किया। इस काल के दौरान बौद्ध संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त काल (लगभग 320-550) के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता दक्षिण भारत में जन्मे शंकर थे, जो वाराणसी पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं। इस क्षेत्र में हालाँकि 1000-1030 ई. तक मुसलमानों का आक्रमण हो चुका था, किन्तु उत्तरी भारत में 12वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासन स्थापित हुआ, जब मुहम्मद ग़ोरी ने गहड़वालों (जिनका उत्तर प्रदेश पर शासन था) और अन्य प्रतिस्पर्धी वंशों को हराया था। लगभग 650 वर्षों तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी न किसी मुस्लिम वंश का शासन रहा, जिनका केन्द्र दिल्ली या उसके आसपास था। 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराया और सर्वाधिक सफल मुस्लिम वंश, मुग़ल वंश की नींव रखी। इस साम्राज्य ने 350 वर्षों से भी अधिक समय तक उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस साम्राज्य का महानतम काल अकबर (शासनकाल 1556-1605 ई.) से लेकर औरंगजेब आलमगीर (1707) का काल था, जिन्होंने आगरा के पास नई शाही राजधानी फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहाँ (शासनकाल 1628-1658 ई.) ने आगरा में ताजमहल (अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मक़बरा, जो प्रसव के दौरान चल बसी थीं) बनवाया, जो विश्व के महानतम वास्तुशिल्पीय नमूनों में से एक है। शाहजहाँ ने आगरा व दिल्ली में भी वास्तुशिल्प की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण इमारतें बनवाईं थीं। मुस्लिम काल के भारत को ही अँग्रेज़ सोने की चिड़िया कहा करते थे। उत्तर प्रदेश में केन्द्रित मुग़ल साम्राज्य ने एक नई मिश्रित संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया। अकबर इसके प्रतिपादक थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दरबार में वास्तुशिल्प, साहित्य, चित्रकला और संगीत विशेषज्ञों को नियुक्त किया था। भक्ति आन्दोलन के संस्थापक रामानन्द (लगभग 1400-1470 ई.) का प्रतिपादन था कि, किसी व्यक्ती की मुक्ति ‘लिंग’ या ‘जाति’ पर आश्रित नहीं होती। | भक्ति आंदोलन के संस्थापक कौन थे ? | {
"text": [
"रामानन्द"
],
"answer_start": [
4803
]
} | Who was the founder of Bhakti movement? | The known history of Uttar Pradesh is about 4000 years old, when the Aryans placed their first step at this place.At this time Vedic civilization started and it was born in Uttar Pradesh.The Aryans spread from the Indus River and the plains of the Sutlej towards the Yamuna and the plains of the Ganges.The Aryans made Dob (Do-Aab, Yamuna and Ganga Part of the Ganges) and Ghaghra river area their home.In the name of these Aryans, the country of India was named Aryavarta or Bharatvarsha (a major king of India).Over time, Arya spread to remote parts of India.The city of Varanasi, a considered to be one of the oldest cities of the world, is located here.The Chaukhandi stupa of Sarnath located near Varanasi reminds of the first discourse of Lord Buddha.Over time, the region was divided into small states or became part of large empires, secrets, morya and kushan.Kannauj was the main center of the Gupta Empire in the 7th century.Uttar Pradesh was the main place of Hinduism.The importance of Kumbh of Prayag is described in the Puranas.In Tretayuga, Vishnu avatar Shri Ramchandra was born in Ayodhya (which is currently located in Ayodhya district).Lord Rama has the importance of Prayag, Chitrakoot, Shringverpur etc. in fourteen years of exile.The birth of Lord Krishna in Mathura and according to the Puranas is also described in Uttar Pradesh itself.The eternal religion of the Shivling of Vishwanath Temple in Kashi (Varanasi) has a special significance.Maharishi Balmiki, the author of Sanatan Dharma, Maharishi Balmiki, Ramcharit Manas Author Goswami Tulsidas (Janm- Rajapur Chitrakoot), Maharishi Bhardwaj | Seventh century BC.From the end of the systematic history of India and Uttar Pradesh begins, when 16 Mahajanapada in northern India was involved in the race for superiority, seven of which were under the border of present Uttar Pradesh.Buddha gave his first preaching in Sarnath near Varanasi (Banaras) and laid the foundation of a religion that spread not only in India, but also to remote countries like China and Japan.It is said that Buddha attained Parinirvana (liberation of the soul when free from the body) in Kushinagar, which is located in East district Kushinagar.The fifth century BCFrom the sixth century AD, Uttar Pradesh remained under the control of the powers centered outside its present border, first Magadha, which was located in the present Bihar state and later Ujjain, which is located in the present Madhya Pradesh state.Among the great rulers of this period, which had ruled this kingdom, Chakravarti Emperor Mahapadmanand and then his son Chakravarti Emperor Dhanananda who were from Nai Samaj.At the time of Emperor Mahapadmanand and Dhanananda, Magadha used to be the richest and largest army empire in the world.[Chandragupta I]] (Reign of about 330-380 AD) and Ashoka (reign around 268 or 265-238), who were Maurya Emperor and Samudragupta (about 330-380 AD) and Chandragupta II (about 380-415 AD., Some scholars consider Vikramaditya).Another famous ruler was Harshvardhan (reign 606-647).Who ruled the entire Uttar Pradesh, Bihar, Madhya Pradesh, Punjab and parts of Rajasthan from its capital located in Kanyakubj (near modern Kannauj).During this period, Buddhist culture was flown.During the reign of Ashoka, the architecture and architectural symbols of Buddhist art reached their peak.Hindu art also developed maximum during the Gupta period (about 320-550).After the death of Harsha in about 647 AD, Buddhism gradually collapsed with the revival of Hinduism.The chief author of this revival was Shankar, born in South India, who reached Varanasi, traveled to the plains of Uttar Pradesh and established the famous temple in Badrinath in the Himalayas.The Hindu Matavalambi considers it to be the fourth and the last monastery (center of Hindu culture).Although Muslims were invaded by 1000-1030 AD in this region, Muslim rule was established in northern India only after the last decade of the 12th century, when Muhammad Ghori (who ruled Uttar Pradesh) and other competitorsWas defeated the dynasties.For nearly 650 years, most of India, Uttar Pradesh was ruled by some Muslim dynasty, which was the center of Delhi or around it.In 1526 AD, Babur defeated Sultan Abraham Lodi of Delhi and laid the foundation of the most successful Muslim dynasty, the Mughal dynasty.This empire ruled the subcontinent for more than 350 years.The greatest period of this empire was Akbar (reign 1556–1605 AD) to Aurangzeb Alamgir (1707), who built the new royal capital Fatehpur Sikri near Agra.His grandson Shah Jahan (reign 1628–1658 AD) built the Taj Mahal in Agra (a tomb built in memory of his begum, which passed during delivery), which is one of the world's greatest architectural samples.Shah Jahan also built many important buildings in Agra and Delhi in terms of architecture.India used to call India a golden bird.The Mughal Empire centered in Uttar Pradesh encouraged the development of a new mixed culture.Akbar was its exponent, who appointed architecture, literature, painting and music experts in his court without any discrimination.Ramanand (about 1400–1470 AD), the founder of the Bhakti Movement, was rendered that the liberation of a person is not dependent on 'Linga' or 'caste'. | {
"answer_start": [
4803
],
"text": [
"Ramanand"
]
} |
331 | उत्तर प्रदेश का ज्ञात इतिहास लगभग 4000 वर्ष पुराना है, जब आर्यों ने अपना पहला कदम इस जगह पर रखा। इस समय वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ हुआ और उत्तर प्रदेश में इसका जन्म हुआ। आर्यों का फ़ैलाव सिन्धु नदी और सतलुज के मैदानी भागों से यमुना और गंगा के मैदानी क्षेत्र की ओर हुआ। आर्यों ने दोब (दो-आब, यमुना और गंगा का मैदानी भाग) और घाघरा नदी क्षेत्र को अपना घर बनाया। इन्हीं आर्यों के नाम पर भारत देश का नाम आर्यावर्त या भारतवर्ष (भारत आर्यों के एक प्रमुख राजा थे) पड़ा। समय के साथ आर्य भारत के दूरस्थ भागों में फ़ैल गये। संसार के प्राचीनतम शहरों में एक माना जाने वाला वाराणसी शहर यहीं पर स्थित है। वाराणसी केपास स्थित सारनाथ का चौखन्डी स्तूप भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। समय के साथ यह क्षेत्र छोटे-छोटे राज्यों में बँट गया या फिर बड़े साम्राज्यों, गुप्त, मोर्य और कुषाण का हिस्सा बन गया। ७वीं शताब्दी में कन्नौज गुप्त साम्राज्य का प्रमुख केन्द्र था। उत्तर प्रदेश हिन्दू धर्म का प्रमुख स्थल रहा। प्रयाग के कुम्भ का महत्त्व पुराणों में वर्णित है। त्रेतायुग में विष्णु अवतार श्री रामचंद्र ने अयोध्या में (जो अभी अयोध्या जिले में स्थित है) में जन्म लिया। राम भगवान का चौदह वर्ष के वनवास में प्रयाग, चित्रकूट, श्रंगवेरपुर आदि का महत्त्व है। भगवान कृष्णा का जन्म मथुरा में और पुराणों के अनुसार विष्णु के दसम अवतार का कलयुग में अवतरण भी उत्तर प्रदेश में ही वर्णित है। काशी (वाराणसी) में विश्वनाथ मंदिर के शिवलिंग का सनातन धर्म विशेष महत्त्व रहा है। सनातन धर्म के प्रमुख ऋषि रामायण रचयिता महर्षि बाल्मीकि, रामचरित मानस रचयिता गोस्वामी तुलसीदास (जन्म- राजापुर चित्रकूट), महर्षि भरद्वाज|सातवीं शताब्दी ई. पू. के अन्त से भारत और उत्तर प्रदेश का व्यवस्थित इतिहास आरम्भ होता है, जब उत्तरी भारत में 16 महाजनपद श्रेष्ठता की दौड़ में शामिल थे, इनमें से सात वर्तमान उत्तर प्रदेश की सीमा के अंतर्गत थे। बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी (बनारस) के निकट सारनाथ में दिया और एक ऐसे धर्म की नींव रखी, जो न केवल भारत में, बल्कि चीन व जापान जैसे सुदूर देशों तक भी फैला। कहा जाता है कि बुद्ध को कुशीनगर में परिनिर्वाण (शरीर से मुक्त होने पर आत्मा की मुक्ति) प्राप्त हुआ था, जो पूर्वी ज़िले कुशीनगर में स्थित है। पाँचवीं शताब्दी ई. पू. से छठी शताब्दी ई. तक उत्तर प्रदेश अपनी वर्तमान सीमा से बाहर केन्द्रित शक्तियों के नियंत्रण में रहा, पहले मगध, जो वर्तमान बिहार राज्य में स्थित था और बाद में उज्जैन, जो वर्तमान मध्य प्रदेश राज्य में स्थित है। इस राज्य पर शासन कर चुके इस काल के महान शासकों में चक्रवर्ती सम्राट महापद्मनंद और उसके बाद उनके पुत्र चक्रवर्ती सम्राट धनानंद जो नाई समाज से थे। सम्राट महापद्मानंद और धनानंद के समय मगध विश्व का सबसे अमीर और बड़ी सेना वाला साम्राज्य हुआ करता था। [चन्द्रगुप्त प्रथम ]] (शासनकाल लगभग 330-380 ई.) व अशोक (शासनकाल लगभग 268 या 265-238), जो मौर्य सम्राट थे और समुद्रगुप्त (लगभग 330-380 ई.) और चन्द्रगुप्त द्वितीय हैं (लगभग 380-415 ई., जिन्हें कुछ विद्वान विक्रमादित्य मानते हैं)। एक अन्य प्रसिद्ध शासक हर्षवर्धन (शासनकाल 606-647) थे। जिन्होंने कान्यकुब्ज (आधुनिक कन्नौज के निकट) स्थित अपनी राजधानी से समूचे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थानके कुछ हिस्सों पर शासन किया। इस काल के दौरान बौद्ध संस्कृति, का उत्कर्ष हुआ। अशोक के शासनकाल के दौरान बौद्ध कला के स्थापत्य व वास्तुशिल्प प्रतीक अपने चरम पर पहुँचे। गुप्त काल (लगभग 320-550) के दौरान हिन्दू कला का भी अधिकतम विकास हुआ। लगभग 647 ई. में हर्ष की मृत्यु के बाद हिन्दूवाद के पुनरुत्थान के साथ ही बौद्ध धर्म का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस पुनरुत्थान के प्रमुख रचयिता दक्षिण भारत में जन्मे शंकर थे, जो वाराणसी पहुँचे, उन्होंने उत्तर प्रदेश के मैदानों की यात्रा की और हिमालय में बद्रीनाथ में प्रसिद्ध मन्दिर की स्थापना की। इसे हिन्दू मतावलम्बी चौथा एवं अन्तिम मठ (हिन्दू संस्कृति का केन्द्र) मानते हैं। इस क्षेत्र में हालाँकि 1000-1030 ई. तक मुसलमानों का आक्रमण हो चुका था, किन्तु उत्तरी भारत में 12वीं शताब्दी के अन्तिम दशक के बाद ही मुस्लिम शासन स्थापित हुआ, जब मुहम्मद ग़ोरी ने गहड़वालों (जिनका उत्तर प्रदेश पर शासन था) और अन्य प्रतिस्पर्धी वंशों को हराया था। लगभग 650 वर्षों तक अधिकांश भारत की तरह उत्तर प्रदेश पर भी किसी न किसी मुस्लिम वंश का शासन रहा, जिनका केन्द्र दिल्ली या उसके आसपास था। 1526 ई. में बाबर ने दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी को हराया और सर्वाधिक सफल मुस्लिम वंश, मुग़ल वंश की नींव रखी। इस साम्राज्य ने 350 वर्षों से भी अधिक समय तक उपमहाद्वीप पर शासन किया। इस साम्राज्य का महानतम काल अकबर (शासनकाल 1556-1605 ई.) से लेकर औरंगजेब आलमगीर (1707) का काल था, जिन्होंने आगरा के पास नई शाही राजधानी फ़तेहपुर सीकरी का निर्माण किया। उनके पोते शाहजहाँ (शासनकाल 1628-1658 ई.) ने आगरा में ताजमहल (अपनी बेगम की याद में बनवाया गया मक़बरा, जो प्रसव के दौरान चल बसी थीं) बनवाया, जो विश्व के महानतम वास्तुशिल्पीय नमूनों में से एक है। शाहजहाँ ने आगरा व दिल्ली में भी वास्तुशिल्प की दृष्टि से कई महत्त्वपूर्ण इमारतें बनवाईं थीं। मुस्लिम काल के भारत को ही अँग्रेज़ सोने की चिड़िया कहा करते थे। उत्तर प्रदेश में केन्द्रित मुग़ल साम्राज्य ने एक नई मिश्रित संस्कृति के विकास को प्रोत्साहित किया। अकबर इसके प्रतिपादक थे, जिन्होंने बिना किसी भेदभाव के अपने दरबार में वास्तुशिल्प, साहित्य, चित्रकला और संगीत विशेषज्ञों को नियुक्त किया था। भक्ति आन्दोलन के संस्थापक रामानन्द (लगभग 1400-1470 ई.) का प्रतिपादन था कि, किसी व्यक्ती की मुक्ति ‘लिंग’ या ‘जाति’ पर आश्रित नहीं होती। | बाबर ने दिल्ली के किस सुल्तान को युद्ध में हराया था ? | {
"text": [
"इब्राहीम लोदी"
],
"answer_start": [
3885
]
} | Which Sultan of Delhi was defeated by Babur in battle? | The known history of Uttar Pradesh is about 4000 years old, when the Aryans placed their first step at this place.At this time Vedic civilization started and it was born in Uttar Pradesh.The Aryans spread from the Indus River and the plains of the Sutlej towards the Yamuna and the plains of the Ganges.The Aryans made Dob (Do-Aab, Yamuna and Ganga Part of the Ganges) and Ghaghra river area their home.In the name of these Aryans, the country of India was named Aryavarta or Bharatvarsha (a major king of India).Over time, Arya spread to remote parts of India.The city of Varanasi, a considered to be one of the oldest cities of the world, is located here.The Chaukhandi stupa of Sarnath located near Varanasi reminds of the first discourse of Lord Buddha.Over time, the region was divided into small states or became part of large empires, secrets, morya and kushan.Kannauj was the main center of the Gupta Empire in the 7th century.Uttar Pradesh was the main place of Hinduism.The importance of Kumbh of Prayag is described in the Puranas.In Tretayuga, Vishnu avatar Shri Ramchandra was born in Ayodhya (which is currently located in Ayodhya district).Lord Rama has the importance of Prayag, Chitrakoot, Shringverpur etc. in fourteen years of exile.The birth of Lord Krishna in Mathura and according to the Puranas is also described in Uttar Pradesh itself.The eternal religion of the Shivling of Vishwanath Temple in Kashi (Varanasi) has a special significance.Maharishi Balmiki, the author of Sanatan Dharma, Maharishi Balmiki, Ramcharit Manas Author Goswami Tulsidas (Janm- Rajapur Chitrakoot), Maharishi Bhardwaj | Seventh century BC.From the end of the systematic history of India and Uttar Pradesh begins, when 16 Mahajanapada in northern India was involved in the race for superiority, seven of which were under the border of present Uttar Pradesh.Buddha gave his first preaching in Sarnath near Varanasi (Banaras) and laid the foundation of a religion that spread not only in India, but also to remote countries like China and Japan.It is said that Buddha attained Parinirvana (liberation of the soul when free from the body) in Kushinagar, which is located in East district Kushinagar.The fifth century BCFrom the sixth century AD, Uttar Pradesh remained under the control of the powers centered outside its present border, first Magadha, which was located in the present Bihar state and later Ujjain, which is located in the present Madhya Pradesh state.Among the great rulers of this period, which had ruled this kingdom, Chakravarti Emperor Mahapadmanand and then his son Chakravarti Emperor Dhanananda who were from Nai Samaj.At the time of Emperor Mahapadmanand and Dhanananda, Magadha used to be the richest and largest army empire in the world.[Chandragupta I]] (Reign of about 330-380 AD) and Ashoka (reign around 268 or 265-238), who were Maurya Emperor and Samudragupta (about 330-380 AD) and Chandragupta II (about 380-415 AD., Some scholars consider Vikramaditya).Another famous ruler was Harshvardhan (reign 606-647).Who ruled the entire Uttar Pradesh, Bihar, Madhya Pradesh, Punjab and parts of Rajasthan from its capital located in Kanyakubj (near modern Kannauj).During this period, Buddhist culture was flown.During the reign of Ashoka, the architecture and architectural symbols of Buddhist art reached their peak.Hindu art also developed maximum during the Gupta period (about 320-550).After the death of Harsha in about 647 AD, Buddhism gradually collapsed with the revival of Hinduism.The chief author of this revival was Shankar, born in South India, who reached Varanasi, traveled to the plains of Uttar Pradesh and established the famous temple in Badrinath in the Himalayas.The Hindu Matavalambi considers it to be the fourth and the last monastery (center of Hindu culture).Although Muslims were invaded by 1000-1030 AD in this region, Muslim rule was established in northern India only after the last decade of the 12th century, when Muhammad Ghori (who ruled Uttar Pradesh) and other competitorsWas defeated the dynasties.For nearly 650 years, most of India, Uttar Pradesh was ruled by some Muslim dynasty, which was the center of Delhi or around it.In 1526 AD, Babur defeated Sultan Abraham Lodi of Delhi and laid the foundation of the most successful Muslim dynasty, the Mughal dynasty.This empire ruled the subcontinent for more than 350 years.The greatest period of this empire was Akbar (reign 1556–1605 AD) to Aurangzeb Alamgir (1707), who built the new royal capital Fatehpur Sikri near Agra.His grandson Shah Jahan (reign 1628–1658 AD) built the Taj Mahal in Agra (a tomb built in memory of his begum, which passed during delivery), which is one of the world's greatest architectural samples.Shah Jahan also built many important buildings in Agra and Delhi in terms of architecture.India used to call India a golden bird.The Mughal Empire centered in Uttar Pradesh encouraged the development of a new mixed culture.Akbar was its exponent, who appointed architecture, literature, painting and music experts in his court without any discrimination.Ramanand (about 1400–1470 AD), the founder of the Bhakti Movement, was rendered that the liberation of a person is not dependent on 'Linga' or 'caste'. | {
"answer_start": [
3885
],
"text": [
"Ibrahim Lodi"
]
} |
332 | उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है। प्रदेश के उत्तरी एवम पूर्वी भाग की तरफ़ पहाड़ तथा पश्चिमी एवम मध्य भाग में मैदान हैं। उत्तर प्रदेश को मुख्यतः तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। उत्तर में हिमालय का - यह् क्षेत्र बहुत ही ऊँचा-नीचा और प्रतिकूल भू-भाग है। यह क्षेत्र अब उत्तरांचल के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र की स्थलाकृति बदलाव युक्त है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई ३०० से ५००० मीटर तथा ढलान १५० से ६०० मीटर/किलोमीटर है। मध्य में गंगा का मैदानी भाग - यह क्षेत्र अत्यन्त ही उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र है। इसकी स्थलाकृति सपाट है। इस क्षेत्र में अनेक तालाब, झीलें और नदियाँ हैं। इसका ढलान २ मीटर/किलोमीटर है। दक्षिण का विन्ध्याचल क्षेत्र - यह एक पठारी क्षेत्र है, तथा इसकी स्थलाकृति पहाड़ों, मैंदानों और घाटियों से घिरी हुई है। इस क्षेत्र में पानी कम मात्रा में उप्लब्ध है। यहाँ की जलवायु मुख्यतः उष्णदेशीय मानसून की है परन्तु समुद्र तल से ऊँचाई बदलने के साथ इसमें परिवर्तन होता है। उत्तर प्रदेश ८ राज्यों - उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार से घिरा राज्य हैउत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्व इस प्रकार से हैं-भूमि -भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है। नदियाँउत्तर प्रदेश में अनेक नदियाँ है जिनमें गंगा, यमुना,बेतवा, केन, चम्बल, घाघरा, गोमती, सोन आदि मुख्य है। हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँगंगा के मैदानी भाग से निकलने वाली नदियाँदक्षिणी पठार से निकलने वाली नदियाँ हैं बेतवा, केन, चम्बल आदि प्रमुख हैंझीलउत्तर प्रदेश में झीलों का अभाव है। | गंगा के मध्य भाग में किस तरह की मिट्टी पाई जाती है? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | What kind of soil is found in the central part of the Ganges? | Uttar Pradesh is located in the north eastern part of India.There are mountains towards the northern and eastern part of the state and plains in the western and central part.Uttar Pradesh can be divided mainly into three regions.The Himalayas in the north-This region is a very high-low and unfavorable terrain.This area now comes under Uttaranchal.The topography of this region is with change.Its height is 300 to 5000 meters above sea level and the slope is 150 to 400 meters/km.The plains of the Ganges in the middle - this area is a very fertile alluvial soil area.Its topography is flat.There are many ponds, lakes and rivers in this region.Its slope is 2 meters/km.Vindhyachal region of the south - It is a plateau region, and its topography is surrounded by mountains, donations and valleys.Water is available in small amounts in this area.The climate here is mainly of a tropical monsoon, but it changes with changing height above sea level.Uttar Pradesh is surrounded by 4 states -Uttarakhand, Himachal Pradesh, Haryana, Rajasthan, Madhya Pradesh, Chhattisgarh, Jharkhand, Bihar. Major geological elements of Uttar Pradesh are as follows -Bhoomi -Bhabhi -Drama -Uttar Pradesh has two special geographical areas,The intermediate plains of the Ganges and can be divided into the southern highland.About 90 percent of the total area of Uttar Pradesh is in the Ganges ground.The grounds are mostly made of alluvial depression brought by the Ganges and its tributaries.Most parts of the region do not fluctuate, although the ground is very fertile, there is some variation in their height, 305 meters in the northwest and 58 meters in the Far East.The southern highland of the Ganges ground is a part of the highly dissected and asymmetrical Vindhya ranges, which usually leads to the south-east.Here height is more than 305 at some places.There are many rivers in the Uttar Pradesh, which are the main ones Ganga, Yamuna, Betwa, Kane, Chambal, Ghaghra, Gomti, Son etc.The rivers originating from the Nadiani part of the Nadianganga, originating from the Himalayan mountain, are Betwa, Kane, Chambal etc. are prominent. There is a lack of lakes in Uttar Pradesh. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
333 | उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है। प्रदेश के उत्तरी एवम पूर्वी भाग की तरफ़ पहाड़ तथा पश्चिमी एवम मध्य भाग में मैदान हैं। उत्तर प्रदेश को मुख्यतः तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। उत्तर में हिमालय का - यह् क्षेत्र बहुत ही ऊँचा-नीचा और प्रतिकूल भू-भाग है। यह क्षेत्र अब उत्तरांचल के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र की स्थलाकृति बदलाव युक्त है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई ३०० से ५००० मीटर तथा ढलान १५० से ६०० मीटर/किलोमीटर है। मध्य में गंगा का मैदानी भाग - यह क्षेत्र अत्यन्त ही उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र है। इसकी स्थलाकृति सपाट है। इस क्षेत्र में अनेक तालाब, झीलें और नदियाँ हैं। इसका ढलान २ मीटर/किलोमीटर है। दक्षिण का विन्ध्याचल क्षेत्र - यह एक पठारी क्षेत्र है, तथा इसकी स्थलाकृति पहाड़ों, मैंदानों और घाटियों से घिरी हुई है। इस क्षेत्र में पानी कम मात्रा में उप्लब्ध है। यहाँ की जलवायु मुख्यतः उष्णदेशीय मानसून की है परन्तु समुद्र तल से ऊँचाई बदलने के साथ इसमें परिवर्तन होता है। उत्तर प्रदेश ८ राज्यों - उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार से घिरा राज्य हैउत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्व इस प्रकार से हैं-भूमि -भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है। नदियाँउत्तर प्रदेश में अनेक नदियाँ है जिनमें गंगा, यमुना,बेतवा, केन, चम्बल, घाघरा, गोमती, सोन आदि मुख्य है। हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँगंगा के मैदानी भाग से निकलने वाली नदियाँदक्षिणी पठार से निकलने वाली नदियाँ हैं बेतवा, केन, चम्बल आदि प्रमुख हैंझीलउत्तर प्रदेश में झीलों का अभाव है। | उत्तर प्रदेश राज्य समुद्र तल से कितनी ऊंचाई पर स्थित है ? | {
"text": [
"३०० से ५००० मीटर"
],
"answer_start": [
383
]
} | The state of Uttar Pradesh is located at what height above sea level? | Uttar Pradesh is located in the north eastern part of India.There are mountains towards the northern and eastern part of the state and plains in the western and central part.Uttar Pradesh can be divided mainly into three regions.The Himalayas in the north-This region is a very high-low and unfavorable terrain.This area now comes under Uttaranchal.The topography of this region is with change.Its height is 300 to 5000 meters above sea level and the slope is 150 to 400 meters/km.The plains of the Ganges in the middle - this area is a very fertile alluvial soil area.Its topography is flat.There are many ponds, lakes and rivers in this region.Its slope is 2 meters/km.Vindhyachal region of the south - It is a plateau region, and its topography is surrounded by mountains, donations and valleys.Water is available in small amounts in this area.The climate here is mainly of a tropical monsoon, but it changes with changing height above sea level.Uttar Pradesh is surrounded by 4 states -Uttarakhand, Himachal Pradesh, Haryana, Rajasthan, Madhya Pradesh, Chhattisgarh, Jharkhand, Bihar. Major geological elements of Uttar Pradesh are as follows -Bhoomi -Bhabhi -Drama -Uttar Pradesh has two special geographical areas,The intermediate plains of the Ganges and can be divided into the southern highland.About 90 percent of the total area of Uttar Pradesh is in the Ganges ground.The grounds are mostly made of alluvial depression brought by the Ganges and its tributaries.Most parts of the region do not fluctuate, although the ground is very fertile, there is some variation in their height, 305 meters in the northwest and 58 meters in the Far East.The southern highland of the Ganges ground is a part of the highly dissected and asymmetrical Vindhya ranges, which usually leads to the south-east.Here height is more than 305 at some places.There are many rivers in the Uttar Pradesh, which are the main ones Ganga, Yamuna, Betwa, Kane, Chambal, Ghaghra, Gomti, Son etc.The rivers originating from the Nadiani part of the Nadianganga, originating from the Himalayan mountain, are Betwa, Kane, Chambal etc. are prominent. There is a lack of lakes in Uttar Pradesh. | {
"answer_start": [
383
],
"text": [
"300 to 5000 meters"
]
} |
334 | उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है। प्रदेश के उत्तरी एवम पूर्वी भाग की तरफ़ पहाड़ तथा पश्चिमी एवम मध्य भाग में मैदान हैं। उत्तर प्रदेश को मुख्यतः तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। उत्तर में हिमालय का - यह् क्षेत्र बहुत ही ऊँचा-नीचा और प्रतिकूल भू-भाग है। यह क्षेत्र अब उत्तरांचल के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र की स्थलाकृति बदलाव युक्त है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई ३०० से ५००० मीटर तथा ढलान १५० से ६०० मीटर/किलोमीटर है। मध्य में गंगा का मैदानी भाग - यह क्षेत्र अत्यन्त ही उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र है। इसकी स्थलाकृति सपाट है। इस क्षेत्र में अनेक तालाब, झीलें और नदियाँ हैं। इसका ढलान २ मीटर/किलोमीटर है। दक्षिण का विन्ध्याचल क्षेत्र - यह एक पठारी क्षेत्र है, तथा इसकी स्थलाकृति पहाड़ों, मैंदानों और घाटियों से घिरी हुई है। इस क्षेत्र में पानी कम मात्रा में उप्लब्ध है। यहाँ की जलवायु मुख्यतः उष्णदेशीय मानसून की है परन्तु समुद्र तल से ऊँचाई बदलने के साथ इसमें परिवर्तन होता है। उत्तर प्रदेश ८ राज्यों - उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार से घिरा राज्य हैउत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्व इस प्रकार से हैं-भूमि -भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है। नदियाँउत्तर प्रदेश में अनेक नदियाँ है जिनमें गंगा, यमुना,बेतवा, केन, चम्बल, घाघरा, गोमती, सोन आदि मुख्य है। हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँगंगा के मैदानी भाग से निकलने वाली नदियाँदक्षिणी पठार से निकलने वाली नदियाँ हैं बेतवा, केन, चम्बल आदि प्रमुख हैंझीलउत्तर प्रदेश में झीलों का अभाव है। | उत्तर प्रदेश राज्य भारत में किस दिशा में स्थित है? | {
"text": [
"उत्तर पूर्वी"
],
"answer_start": [
21
]
} | In which direction is the state of Uttar Pradesh located in India? | Uttar Pradesh is located in the north eastern part of India.There are mountains towards the northern and eastern part of the state and plains in the western and central part.Uttar Pradesh can be divided mainly into three regions.The Himalayas in the north-This region is a very high-low and unfavorable terrain.This area now comes under Uttaranchal.The topography of this region is with change.Its height is 300 to 5000 meters above sea level and the slope is 150 to 400 meters/km.The plains of the Ganges in the middle - this area is a very fertile alluvial soil area.Its topography is flat.There are many ponds, lakes and rivers in this region.Its slope is 2 meters/km.Vindhyachal region of the south - It is a plateau region, and its topography is surrounded by mountains, donations and valleys.Water is available in small amounts in this area.The climate here is mainly of a tropical monsoon, but it changes with changing height above sea level.Uttar Pradesh is surrounded by 4 states -Uttarakhand, Himachal Pradesh, Haryana, Rajasthan, Madhya Pradesh, Chhattisgarh, Jharkhand, Bihar. Major geological elements of Uttar Pradesh are as follows -Bhoomi -Bhabhi -Drama -Uttar Pradesh has two special geographical areas,The intermediate plains of the Ganges and can be divided into the southern highland.About 90 percent of the total area of Uttar Pradesh is in the Ganges ground.The grounds are mostly made of alluvial depression brought by the Ganges and its tributaries.Most parts of the region do not fluctuate, although the ground is very fertile, there is some variation in their height, 305 meters in the northwest and 58 meters in the Far East.The southern highland of the Ganges ground is a part of the highly dissected and asymmetrical Vindhya ranges, which usually leads to the south-east.Here height is more than 305 at some places.There are many rivers in the Uttar Pradesh, which are the main ones Ganga, Yamuna, Betwa, Kane, Chambal, Ghaghra, Gomti, Son etc.The rivers originating from the Nadiani part of the Nadianganga, originating from the Himalayan mountain, are Betwa, Kane, Chambal etc. are prominent. There is a lack of lakes in Uttar Pradesh. | {
"answer_start": [
21
],
"text": [
"North East"
]
} |
335 | उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है। प्रदेश के उत्तरी एवम पूर्वी भाग की तरफ़ पहाड़ तथा पश्चिमी एवम मध्य भाग में मैदान हैं। उत्तर प्रदेश को मुख्यतः तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। उत्तर में हिमालय का - यह् क्षेत्र बहुत ही ऊँचा-नीचा और प्रतिकूल भू-भाग है। यह क्षेत्र अब उत्तरांचल के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र की स्थलाकृति बदलाव युक्त है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई ३०० से ५००० मीटर तथा ढलान १५० से ६०० मीटर/किलोमीटर है। मध्य में गंगा का मैदानी भाग - यह क्षेत्र अत्यन्त ही उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र है। इसकी स्थलाकृति सपाट है। इस क्षेत्र में अनेक तालाब, झीलें और नदियाँ हैं। इसका ढलान २ मीटर/किलोमीटर है। दक्षिण का विन्ध्याचल क्षेत्र - यह एक पठारी क्षेत्र है, तथा इसकी स्थलाकृति पहाड़ों, मैंदानों और घाटियों से घिरी हुई है। इस क्षेत्र में पानी कम मात्रा में उप्लब्ध है। यहाँ की जलवायु मुख्यतः उष्णदेशीय मानसून की है परन्तु समुद्र तल से ऊँचाई बदलने के साथ इसमें परिवर्तन होता है। उत्तर प्रदेश ८ राज्यों - उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार से घिरा राज्य हैउत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्व इस प्रकार से हैं-भूमि -भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है। नदियाँउत्तर प्रदेश में अनेक नदियाँ है जिनमें गंगा, यमुना,बेतवा, केन, चम्बल, घाघरा, गोमती, सोन आदि मुख्य है। हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँगंगा के मैदानी भाग से निकलने वाली नदियाँदक्षिणी पठार से निकलने वाली नदियाँ हैं बेतवा, केन, चम्बल आदि प्रमुख हैंझीलउत्तर प्रदेश में झीलों का अभाव है। | दक्षिणी पठार से निकलने वाली नदियों के क्या नाम हैं? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | What are the names of the rivers that originate from the southern plateau? | Uttar Pradesh is located in the north eastern part of India.There are mountains towards the northern and eastern part of the state and plains in the western and central part.Uttar Pradesh can be divided mainly into three regions.The Himalayas in the north-This region is a very high-low and unfavorable terrain.This area now comes under Uttaranchal.The topography of this region is with change.Its height is 300 to 5000 meters above sea level and the slope is 150 to 400 meters/km.The plains of the Ganges in the middle - this area is a very fertile alluvial soil area.Its topography is flat.There are many ponds, lakes and rivers in this region.Its slope is 2 meters/km.Vindhyachal region of the south - It is a plateau region, and its topography is surrounded by mountains, donations and valleys.Water is available in small amounts in this area.The climate here is mainly of a tropical monsoon, but it changes with changing height above sea level.Uttar Pradesh is surrounded by 4 states -Uttarakhand, Himachal Pradesh, Haryana, Rajasthan, Madhya Pradesh, Chhattisgarh, Jharkhand, Bihar. Major geological elements of Uttar Pradesh are as follows -Bhoomi -Bhabhi -Drama -Uttar Pradesh has two special geographical areas,The intermediate plains of the Ganges and can be divided into the southern highland.About 90 percent of the total area of Uttar Pradesh is in the Ganges ground.The grounds are mostly made of alluvial depression brought by the Ganges and its tributaries.Most parts of the region do not fluctuate, although the ground is very fertile, there is some variation in their height, 305 meters in the northwest and 58 meters in the Far East.The southern highland of the Ganges ground is a part of the highly dissected and asymmetrical Vindhya ranges, which usually leads to the south-east.Here height is more than 305 at some places.There are many rivers in the Uttar Pradesh, which are the main ones Ganga, Yamuna, Betwa, Kane, Chambal, Ghaghra, Gomti, Son etc.The rivers originating from the Nadiani part of the Nadianganga, originating from the Himalayan mountain, are Betwa, Kane, Chambal etc. are prominent. There is a lack of lakes in Uttar Pradesh. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
336 | उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है। प्रदेश के उत्तरी एवम पूर्वी भाग की तरफ़ पहाड़ तथा पश्चिमी एवम मध्य भाग में मैदान हैं। उत्तर प्रदेश को मुख्यतः तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। उत्तर में हिमालय का - यह् क्षेत्र बहुत ही ऊँचा-नीचा और प्रतिकूल भू-भाग है। यह क्षेत्र अब उत्तरांचल के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र की स्थलाकृति बदलाव युक्त है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई ३०० से ५००० मीटर तथा ढलान १५० से ६०० मीटर/किलोमीटर है। मध्य में गंगा का मैदानी भाग - यह क्षेत्र अत्यन्त ही उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र है। इसकी स्थलाकृति सपाट है। इस क्षेत्र में अनेक तालाब, झीलें और नदियाँ हैं। इसका ढलान २ मीटर/किलोमीटर है। दक्षिण का विन्ध्याचल क्षेत्र - यह एक पठारी क्षेत्र है, तथा इसकी स्थलाकृति पहाड़ों, मैंदानों और घाटियों से घिरी हुई है। इस क्षेत्र में पानी कम मात्रा में उप्लब्ध है। यहाँ की जलवायु मुख्यतः उष्णदेशीय मानसून की है परन्तु समुद्र तल से ऊँचाई बदलने के साथ इसमें परिवर्तन होता है। उत्तर प्रदेश ८ राज्यों - उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार से घिरा राज्य हैउत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्व इस प्रकार से हैं-भूमि -भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है। नदियाँउत्तर प्रदेश में अनेक नदियाँ है जिनमें गंगा, यमुना,बेतवा, केन, चम्बल, घाघरा, गोमती, सोन आदि मुख्य है। हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँगंगा के मैदानी भाग से निकलने वाली नदियाँदक्षिणी पठार से निकलने वाली नदियाँ हैं बेतवा, केन, चम्बल आदि प्रमुख हैंझीलउत्तर प्रदेश में झीलों का अभाव है। | उत्तर प्रदेश राज्य की सीमा से कुल कितने राज्यों की सीमाएं साझा होती है? | {
"text": [
"८ राज्यों"
],
"answer_start": [
904
]
} | How many states share a border with the state of Uttar Pradesh? | Uttar Pradesh is located in the north eastern part of India.There are mountains towards the northern and eastern part of the state and plains in the western and central part.Uttar Pradesh can be divided mainly into three regions.The Himalayas in the north-This region is a very high-low and unfavorable terrain.This area now comes under Uttaranchal.The topography of this region is with change.Its height is 300 to 5000 meters above sea level and the slope is 150 to 400 meters/km.The plains of the Ganges in the middle - this area is a very fertile alluvial soil area.Its topography is flat.There are many ponds, lakes and rivers in this region.Its slope is 2 meters/km.Vindhyachal region of the south - It is a plateau region, and its topography is surrounded by mountains, donations and valleys.Water is available in small amounts in this area.The climate here is mainly of a tropical monsoon, but it changes with changing height above sea level.Uttar Pradesh is surrounded by 4 states -Uttarakhand, Himachal Pradesh, Haryana, Rajasthan, Madhya Pradesh, Chhattisgarh, Jharkhand, Bihar. Major geological elements of Uttar Pradesh are as follows -Bhoomi -Bhabhi -Drama -Uttar Pradesh has two special geographical areas,The intermediate plains of the Ganges and can be divided into the southern highland.About 90 percent of the total area of Uttar Pradesh is in the Ganges ground.The grounds are mostly made of alluvial depression brought by the Ganges and its tributaries.Most parts of the region do not fluctuate, although the ground is very fertile, there is some variation in their height, 305 meters in the northwest and 58 meters in the Far East.The southern highland of the Ganges ground is a part of the highly dissected and asymmetrical Vindhya ranges, which usually leads to the south-east.Here height is more than 305 at some places.There are many rivers in the Uttar Pradesh, which are the main ones Ganga, Yamuna, Betwa, Kane, Chambal, Ghaghra, Gomti, Son etc.The rivers originating from the Nadiani part of the Nadianganga, originating from the Himalayan mountain, are Betwa, Kane, Chambal etc. are prominent. There is a lack of lakes in Uttar Pradesh. | {
"answer_start": [
904
],
"text": [
"There are 8 states"
]
} |
337 | उत्तर प्रदेश भारत के उत्तर पूर्वी भाग में स्थित है। प्रदेश के उत्तरी एवम पूर्वी भाग की तरफ़ पहाड़ तथा पश्चिमी एवम मध्य भाग में मैदान हैं। उत्तर प्रदेश को मुख्यतः तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है। उत्तर में हिमालय का - यह् क्षेत्र बहुत ही ऊँचा-नीचा और प्रतिकूल भू-भाग है। यह क्षेत्र अब उत्तरांचल के अन्तर्गत आता है। इस क्षेत्र की स्थलाकृति बदलाव युक्त है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई ३०० से ५००० मीटर तथा ढलान १५० से ६०० मीटर/किलोमीटर है। मध्य में गंगा का मैदानी भाग - यह क्षेत्र अत्यन्त ही उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी का क्षेत्र है। इसकी स्थलाकृति सपाट है। इस क्षेत्र में अनेक तालाब, झीलें और नदियाँ हैं। इसका ढलान २ मीटर/किलोमीटर है। दक्षिण का विन्ध्याचल क्षेत्र - यह एक पठारी क्षेत्र है, तथा इसकी स्थलाकृति पहाड़ों, मैंदानों और घाटियों से घिरी हुई है। इस क्षेत्र में पानी कम मात्रा में उप्लब्ध है। यहाँ की जलवायु मुख्यतः उष्णदेशीय मानसून की है परन्तु समुद्र तल से ऊँचाई बदलने के साथ इसमें परिवर्तन होता है। उत्तर प्रदेश ८ राज्यों - उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार से घिरा राज्य हैउत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्व इस प्रकार से हैं-भूमि -भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है। नदियाँउत्तर प्रदेश में अनेक नदियाँ है जिनमें गंगा, यमुना,बेतवा, केन, चम्बल, घाघरा, गोमती, सोन आदि मुख्य है। हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियाँगंगा के मैदानी भाग से निकलने वाली नदियाँदक्षिणी पठार से निकलने वाली नदियाँ हैं बेतवा, केन, चम्बल आदि प्रमुख हैंझीलउत्तर प्रदेश में झीलों का अभाव है। | उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत भाग गंगा के मैदान के रूप में है? | {
"text": [
"90 प्रतिशत"
],
"answer_start": [
1236
]
} | What percentage of the total area of Uttar Pradesh is covered by the Gangetic plain? | Uttar Pradesh is located in the north eastern part of India.There are mountains towards the northern and eastern part of the state and plains in the western and central part.Uttar Pradesh can be divided mainly into three regions.The Himalayas in the north-This region is a very high-low and unfavorable terrain.This area now comes under Uttaranchal.The topography of this region is with change.Its height is 300 to 5000 meters above sea level and the slope is 150 to 400 meters/km.The plains of the Ganges in the middle - this area is a very fertile alluvial soil area.Its topography is flat.There are many ponds, lakes and rivers in this region.Its slope is 2 meters/km.Vindhyachal region of the south - It is a plateau region, and its topography is surrounded by mountains, donations and valleys.Water is available in small amounts in this area.The climate here is mainly of a tropical monsoon, but it changes with changing height above sea level.Uttar Pradesh is surrounded by 4 states -Uttarakhand, Himachal Pradesh, Haryana, Rajasthan, Madhya Pradesh, Chhattisgarh, Jharkhand, Bihar. Major geological elements of Uttar Pradesh are as follows -Bhoomi -Bhabhi -Drama -Uttar Pradesh has two special geographical areas,The intermediate plains of the Ganges and can be divided into the southern highland.About 90 percent of the total area of Uttar Pradesh is in the Ganges ground.The grounds are mostly made of alluvial depression brought by the Ganges and its tributaries.Most parts of the region do not fluctuate, although the ground is very fertile, there is some variation in their height, 305 meters in the northwest and 58 meters in the Far East.The southern highland of the Ganges ground is a part of the highly dissected and asymmetrical Vindhya ranges, which usually leads to the south-east.Here height is more than 305 at some places.There are many rivers in the Uttar Pradesh, which are the main ones Ganga, Yamuna, Betwa, Kane, Chambal, Ghaghra, Gomti, Son etc.The rivers originating from the Nadiani part of the Nadianganga, originating from the Himalayan mountain, are Betwa, Kane, Chambal etc. are prominent. There is a lack of lakes in Uttar Pradesh. | {
"answer_start": [
1236
],
"text": [
"90 per cent"
]
} |
338 | उत्तर प्रदेश में शिक्षा की एक पुरानी परम्परा रही है, हालांकि ऐतिहासिक रूप से यह मुख्य रूप से कुलीन वर्ग और धार्मिक विद्यालयों तक ही सीमित थी। संस्कृत आधारित शिक्षा वैदिक से गुप्त काल तक शिक्षा का प्रमुख हिस्सा थी। जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियों के लोग इस क्षेत्र में आये, वे अपने-अपने ज्ञान को साथ लाए, और क्षेत्र में पाली, फारसी और अरबी की विद्व्त्ता आयी, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के उदय तक क्षेत्र में हिंदू-बौद्ध-मुस्लिम शिक्षा का मूल रही। देश के अन्य हिस्सों की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा की वर्तमान स्कूल-टू-यूनिवर्सिटी प्रणाली की स्थापना और विकास का श्रेय विदेशी ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को जाता है। राज्य में विद्यालयों का प्रबंधन या तो सरकार द्वारा, या निजी ट्रस्टों द्वारा किया जाता है। सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड की परिषद से संबद्ध विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालयों में हिन्दी ही शिक्षा का माध्यम है। राज्य में १०+२+३ शिक्षा प्रणाली है, जिसके तहत माध्यमिक विद्यालय पूरा करने के बाद, छात्र आमतौर पर दो साल के लिए एक इण्टर कॉलेज या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद अथवा किसी केंद्रीय बोर्ड से संबद्ध उच्च माध्यमिक विद्यालयों में दाखिला लेते हैं, जहाँ छात्र कला, वाणिज्य या विज्ञान - इन तीन धाराओं में से एक का चयन करते हैं। इण्टर कॉलेज तक की शिक्षा पूरी करने पर, छात्र सामान्य या व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रमों में नामांकन कर सकते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल (नोएडा), ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज (लखनऊ), और स्टेप बाय स्टेप स्कूल (नोएडा) समेत उत्तर प्रदेश के कई विद्यालयों को देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में स्थान दिया गया है। उत्तर प्रदेश में ४५ से अधिक विश्वविद्यालय हैं, जिसमें ५ केन्द्रीय विश्वविद्यालय, २८ राज्य विश्वविद्यालय, ८ मानित विश्वविद्यालय, वाराणसी और कानपुर में २ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गोरखपुर और रायबरेली में २ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में १ भारतीय प्रबन्धन संस्थान, इलाहाबाद में १ राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद और लखनऊ में २ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ में १ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इनके अतिरिक्त कई पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं। राज्य में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी, भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को अपने-अपने क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्व भर में जाना जाता है। ऐसे संस्थानों की उपस्थिति राज्य के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की स्थापना भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय केवल विकलांगों के लिए स्थापित विश्व भर में एकमात्र विश्वविद्यालय है। | उत्तर प्रदेश में कितने केंद्रीय विश्वविद्यालय है? | {
"text": [
"५"
],
"answer_start": [
1468
]
} | How many central universities are there in Uttar Pradesh? | There has been an old tradition of education in Uttar Pradesh, although historically it was mainly limited to elite and religious schools.Sanskrit -based education was a major part of education from Vedic to Gupta period.As people of different cultures came to this field, they brought their knowledge together, and came to Pali, Persian and Arabic scholars in the region, which was the origin of Hindu-Buddhist-Muslim education in the region until the rise of British colonialism..Like other parts of the country, the credit for the establishment and development of the current school-to-university system of education in Uttar Pradesh also goes to foreign Christian missionaries and British colonial administration.Schools in the state are managed either by the government, or by private trusts.Except for CBSE or ICSE Board Council, Hindi is the medium of education in most schools.The state has 10+2+3 education system, under which after completing the secondary school, students usually enroll in an Inter College or Uttar Pradesh Secondary Education Council or Higher Secondary Schools affiliated to a Central Board for two years,Where students select one of these three sections - Arts, Commerce or Science.On completing education up to Inter College, students can enroll in general or professional degree programs.Many schools in Uttar Pradesh including Delhi Public School (Noida), La Martinier Girls College (Lucknow), and Step by Step School (Noida) have been ranked in the best schools in the country.There are more than 75 universities in Uttar Pradesh, with 5 Central Universities, 24 State Universities, 7 Honorable University, Varanasi and Kanpur 2 Indian Institutes of Technology, Gorakhpur and Rae Bareli 2 All India Institute of Medical Institute, Lucknow, 1 Indian Management Institute in Lucknow, Lucknow1 National Institute of Technology, Allahabad and Lucknow include 2 Indian Information Technology Institutes, 1 National Law University at Lucknow and many other polytechnic, engineering colleges and industrial training institutes.Indian Institute of Technology in the state Kanpur, Indian Institute of Technology (Kashi Hindu University) Varanasi, Indian Institute of Management, Lucknow, Motilal Nehru National Institute of Technology Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Lucknow, Aligarh Muslim University, SanjayInstitutes such as Gandhi Postgraduate Institute of Pradual Medical Sciences, University of Engineering and Technology, Kanpur, King George Medical University, Dr. Ram Manohar Lohia National Law University and Harakourt Butler Technical University are known worldwide for quality education and research in their respective fields..The presence of such institutions provides sufficient opportunities to the students of the state for higher education.The Central Higher Tibetan Education Institute was established by the Ministry of Culture of Culture as an autonomous organization.Jagadguru Rambhadracharya Disabled University is the only university worldwide established for disabled only. | {
"answer_start": [
1468
],
"text": [
"5"
]
} |
339 | उत्तर प्रदेश में शिक्षा की एक पुरानी परम्परा रही है, हालांकि ऐतिहासिक रूप से यह मुख्य रूप से कुलीन वर्ग और धार्मिक विद्यालयों तक ही सीमित थी। संस्कृत आधारित शिक्षा वैदिक से गुप्त काल तक शिक्षा का प्रमुख हिस्सा थी। जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियों के लोग इस क्षेत्र में आये, वे अपने-अपने ज्ञान को साथ लाए, और क्षेत्र में पाली, फारसी और अरबी की विद्व्त्ता आयी, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के उदय तक क्षेत्र में हिंदू-बौद्ध-मुस्लिम शिक्षा का मूल रही। देश के अन्य हिस्सों की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा की वर्तमान स्कूल-टू-यूनिवर्सिटी प्रणाली की स्थापना और विकास का श्रेय विदेशी ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को जाता है। राज्य में विद्यालयों का प्रबंधन या तो सरकार द्वारा, या निजी ट्रस्टों द्वारा किया जाता है। सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड की परिषद से संबद्ध विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालयों में हिन्दी ही शिक्षा का माध्यम है। राज्य में १०+२+३ शिक्षा प्रणाली है, जिसके तहत माध्यमिक विद्यालय पूरा करने के बाद, छात्र आमतौर पर दो साल के लिए एक इण्टर कॉलेज या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद अथवा किसी केंद्रीय बोर्ड से संबद्ध उच्च माध्यमिक विद्यालयों में दाखिला लेते हैं, जहाँ छात्र कला, वाणिज्य या विज्ञान - इन तीन धाराओं में से एक का चयन करते हैं। इण्टर कॉलेज तक की शिक्षा पूरी करने पर, छात्र सामान्य या व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रमों में नामांकन कर सकते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल (नोएडा), ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज (लखनऊ), और स्टेप बाय स्टेप स्कूल (नोएडा) समेत उत्तर प्रदेश के कई विद्यालयों को देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में स्थान दिया गया है। उत्तर प्रदेश में ४५ से अधिक विश्वविद्यालय हैं, जिसमें ५ केन्द्रीय विश्वविद्यालय, २८ राज्य विश्वविद्यालय, ८ मानित विश्वविद्यालय, वाराणसी और कानपुर में २ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गोरखपुर और रायबरेली में २ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में १ भारतीय प्रबन्धन संस्थान, इलाहाबाद में १ राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद और लखनऊ में २ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ में १ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इनके अतिरिक्त कई पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं। राज्य में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी, भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को अपने-अपने क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्व भर में जाना जाता है। ऐसे संस्थानों की उपस्थिति राज्य के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की स्थापना भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय केवल विकलांगों के लिए स्थापित विश्व भर में एकमात्र विश्वविद्यालय है। | भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान की स्थापना किस वर्ष हुई थी? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | In which year was the Indian Veterinary Research Institute established? | There has been an old tradition of education in Uttar Pradesh, although historically it was mainly limited to elite and religious schools.Sanskrit -based education was a major part of education from Vedic to Gupta period.As people of different cultures came to this field, they brought their knowledge together, and came to Pali, Persian and Arabic scholars in the region, which was the origin of Hindu-Buddhist-Muslim education in the region until the rise of British colonialism..Like other parts of the country, the credit for the establishment and development of the current school-to-university system of education in Uttar Pradesh also goes to foreign Christian missionaries and British colonial administration.Schools in the state are managed either by the government, or by private trusts.Except for CBSE or ICSE Board Council, Hindi is the medium of education in most schools.The state has 10+2+3 education system, under which after completing the secondary school, students usually enroll in an Inter College or Uttar Pradesh Secondary Education Council or Higher Secondary Schools affiliated to a Central Board for two years,Where students select one of these three sections - Arts, Commerce or Science.On completing education up to Inter College, students can enroll in general or professional degree programs.Many schools in Uttar Pradesh including Delhi Public School (Noida), La Martinier Girls College (Lucknow), and Step by Step School (Noida) have been ranked in the best schools in the country.There are more than 75 universities in Uttar Pradesh, with 5 Central Universities, 24 State Universities, 7 Honorable University, Varanasi and Kanpur 2 Indian Institutes of Technology, Gorakhpur and Rae Bareli 2 All India Institute of Medical Institute, Lucknow, 1 Indian Management Institute in Lucknow, Lucknow1 National Institute of Technology, Allahabad and Lucknow include 2 Indian Information Technology Institutes, 1 National Law University at Lucknow and many other polytechnic, engineering colleges and industrial training institutes.Indian Institute of Technology in the state Kanpur, Indian Institute of Technology (Kashi Hindu University) Varanasi, Indian Institute of Management, Lucknow, Motilal Nehru National Institute of Technology Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Lucknow, Aligarh Muslim University, SanjayInstitutes such as Gandhi Postgraduate Institute of Pradual Medical Sciences, University of Engineering and Technology, Kanpur, King George Medical University, Dr. Ram Manohar Lohia National Law University and Harakourt Butler Technical University are known worldwide for quality education and research in their respective fields..The presence of such institutions provides sufficient opportunities to the students of the state for higher education.The Central Higher Tibetan Education Institute was established by the Ministry of Culture of Culture as an autonomous organization.Jagadguru Rambhadracharya Disabled University is the only university worldwide established for disabled only. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
340 | उत्तर प्रदेश में शिक्षा की एक पुरानी परम्परा रही है, हालांकि ऐतिहासिक रूप से यह मुख्य रूप से कुलीन वर्ग और धार्मिक विद्यालयों तक ही सीमित थी। संस्कृत आधारित शिक्षा वैदिक से गुप्त काल तक शिक्षा का प्रमुख हिस्सा थी। जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियों के लोग इस क्षेत्र में आये, वे अपने-अपने ज्ञान को साथ लाए, और क्षेत्र में पाली, फारसी और अरबी की विद्व्त्ता आयी, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के उदय तक क्षेत्र में हिंदू-बौद्ध-मुस्लिम शिक्षा का मूल रही। देश के अन्य हिस्सों की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा की वर्तमान स्कूल-टू-यूनिवर्सिटी प्रणाली की स्थापना और विकास का श्रेय विदेशी ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को जाता है। राज्य में विद्यालयों का प्रबंधन या तो सरकार द्वारा, या निजी ट्रस्टों द्वारा किया जाता है। सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड की परिषद से संबद्ध विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालयों में हिन्दी ही शिक्षा का माध्यम है। राज्य में १०+२+३ शिक्षा प्रणाली है, जिसके तहत माध्यमिक विद्यालय पूरा करने के बाद, छात्र आमतौर पर दो साल के लिए एक इण्टर कॉलेज या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद अथवा किसी केंद्रीय बोर्ड से संबद्ध उच्च माध्यमिक विद्यालयों में दाखिला लेते हैं, जहाँ छात्र कला, वाणिज्य या विज्ञान - इन तीन धाराओं में से एक का चयन करते हैं। इण्टर कॉलेज तक की शिक्षा पूरी करने पर, छात्र सामान्य या व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रमों में नामांकन कर सकते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल (नोएडा), ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज (लखनऊ), और स्टेप बाय स्टेप स्कूल (नोएडा) समेत उत्तर प्रदेश के कई विद्यालयों को देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में स्थान दिया गया है। उत्तर प्रदेश में ४५ से अधिक विश्वविद्यालय हैं, जिसमें ५ केन्द्रीय विश्वविद्यालय, २८ राज्य विश्वविद्यालय, ८ मानित विश्वविद्यालय, वाराणसी और कानपुर में २ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गोरखपुर और रायबरेली में २ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में १ भारतीय प्रबन्धन संस्थान, इलाहाबाद में १ राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद और लखनऊ में २ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ में १ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इनके अतिरिक्त कई पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं। राज्य में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी, भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को अपने-अपने क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्व भर में जाना जाता है। ऐसे संस्थानों की उपस्थिति राज्य के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की स्थापना भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय केवल विकलांगों के लिए स्थापित विश्व भर में एकमात्र विश्वविद्यालय है। | उत्तर प्रदेश में सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड से सम्बंधित स्कूलों को छोड़कर अधिकांश स्कूलों में शिक्षा का माध्यम किस भाषा में है? | {
"text": [
"हिन्दी"
],
"answer_start": [
801
]
} | Which language is the medium of instruction in most schools except those affiliated with CBSE or ICSE boards in Uttar Pradesh? | There has been an old tradition of education in Uttar Pradesh, although historically it was mainly limited to elite and religious schools.Sanskrit -based education was a major part of education from Vedic to Gupta period.As people of different cultures came to this field, they brought their knowledge together, and came to Pali, Persian and Arabic scholars in the region, which was the origin of Hindu-Buddhist-Muslim education in the region until the rise of British colonialism..Like other parts of the country, the credit for the establishment and development of the current school-to-university system of education in Uttar Pradesh also goes to foreign Christian missionaries and British colonial administration.Schools in the state are managed either by the government, or by private trusts.Except for CBSE or ICSE Board Council, Hindi is the medium of education in most schools.The state has 10+2+3 education system, under which after completing the secondary school, students usually enroll in an Inter College or Uttar Pradesh Secondary Education Council or Higher Secondary Schools affiliated to a Central Board for two years,Where students select one of these three sections - Arts, Commerce or Science.On completing education up to Inter College, students can enroll in general or professional degree programs.Many schools in Uttar Pradesh including Delhi Public School (Noida), La Martinier Girls College (Lucknow), and Step by Step School (Noida) have been ranked in the best schools in the country.There are more than 75 universities in Uttar Pradesh, with 5 Central Universities, 24 State Universities, 7 Honorable University, Varanasi and Kanpur 2 Indian Institutes of Technology, Gorakhpur and Rae Bareli 2 All India Institute of Medical Institute, Lucknow, 1 Indian Management Institute in Lucknow, Lucknow1 National Institute of Technology, Allahabad and Lucknow include 2 Indian Information Technology Institutes, 1 National Law University at Lucknow and many other polytechnic, engineering colleges and industrial training institutes.Indian Institute of Technology in the state Kanpur, Indian Institute of Technology (Kashi Hindu University) Varanasi, Indian Institute of Management, Lucknow, Motilal Nehru National Institute of Technology Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Lucknow, Aligarh Muslim University, SanjayInstitutes such as Gandhi Postgraduate Institute of Pradual Medical Sciences, University of Engineering and Technology, Kanpur, King George Medical University, Dr. Ram Manohar Lohia National Law University and Harakourt Butler Technical University are known worldwide for quality education and research in their respective fields..The presence of such institutions provides sufficient opportunities to the students of the state for higher education.The Central Higher Tibetan Education Institute was established by the Ministry of Culture of Culture as an autonomous organization.Jagadguru Rambhadracharya Disabled University is the only university worldwide established for disabled only. | {
"answer_start": [
801
],
"text": [
"Hindi"
]
} |
341 | उत्तर प्रदेश में शिक्षा की एक पुरानी परम्परा रही है, हालांकि ऐतिहासिक रूप से यह मुख्य रूप से कुलीन वर्ग और धार्मिक विद्यालयों तक ही सीमित थी। संस्कृत आधारित शिक्षा वैदिक से गुप्त काल तक शिक्षा का प्रमुख हिस्सा थी। जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियों के लोग इस क्षेत्र में आये, वे अपने-अपने ज्ञान को साथ लाए, और क्षेत्र में पाली, फारसी और अरबी की विद्व्त्ता आयी, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के उदय तक क्षेत्र में हिंदू-बौद्ध-मुस्लिम शिक्षा का मूल रही। देश के अन्य हिस्सों की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा की वर्तमान स्कूल-टू-यूनिवर्सिटी प्रणाली की स्थापना और विकास का श्रेय विदेशी ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को जाता है। राज्य में विद्यालयों का प्रबंधन या तो सरकार द्वारा, या निजी ट्रस्टों द्वारा किया जाता है। सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड की परिषद से संबद्ध विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालयों में हिन्दी ही शिक्षा का माध्यम है। राज्य में १०+२+३ शिक्षा प्रणाली है, जिसके तहत माध्यमिक विद्यालय पूरा करने के बाद, छात्र आमतौर पर दो साल के लिए एक इण्टर कॉलेज या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद अथवा किसी केंद्रीय बोर्ड से संबद्ध उच्च माध्यमिक विद्यालयों में दाखिला लेते हैं, जहाँ छात्र कला, वाणिज्य या विज्ञान - इन तीन धाराओं में से एक का चयन करते हैं। इण्टर कॉलेज तक की शिक्षा पूरी करने पर, छात्र सामान्य या व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रमों में नामांकन कर सकते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल (नोएडा), ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज (लखनऊ), और स्टेप बाय स्टेप स्कूल (नोएडा) समेत उत्तर प्रदेश के कई विद्यालयों को देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में स्थान दिया गया है। उत्तर प्रदेश में ४५ से अधिक विश्वविद्यालय हैं, जिसमें ५ केन्द्रीय विश्वविद्यालय, २८ राज्य विश्वविद्यालय, ८ मानित विश्वविद्यालय, वाराणसी और कानपुर में २ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गोरखपुर और रायबरेली में २ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में १ भारतीय प्रबन्धन संस्थान, इलाहाबाद में १ राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद और लखनऊ में २ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ में १ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इनके अतिरिक्त कई पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं। राज्य में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी, भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को अपने-अपने क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्व भर में जाना जाता है। ऐसे संस्थानों की उपस्थिति राज्य के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की स्थापना भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय केवल विकलांगों के लिए स्थापित विश्व भर में एकमात्र विश्वविद्यालय है। | भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान किस राज्य में स्थित है ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | The Indian Veterinary Research Institute is located in which state? | There has been an old tradition of education in Uttar Pradesh, although historically it was mainly limited to elite and religious schools.Sanskrit -based education was a major part of education from Vedic to Gupta period.As people of different cultures came to this field, they brought their knowledge together, and came to Pali, Persian and Arabic scholars in the region, which was the origin of Hindu-Buddhist-Muslim education in the region until the rise of British colonialism..Like other parts of the country, the credit for the establishment and development of the current school-to-university system of education in Uttar Pradesh also goes to foreign Christian missionaries and British colonial administration.Schools in the state are managed either by the government, or by private trusts.Except for CBSE or ICSE Board Council, Hindi is the medium of education in most schools.The state has 10+2+3 education system, under which after completing the secondary school, students usually enroll in an Inter College or Uttar Pradesh Secondary Education Council or Higher Secondary Schools affiliated to a Central Board for two years,Where students select one of these three sections - Arts, Commerce or Science.On completing education up to Inter College, students can enroll in general or professional degree programs.Many schools in Uttar Pradesh including Delhi Public School (Noida), La Martinier Girls College (Lucknow), and Step by Step School (Noida) have been ranked in the best schools in the country.There are more than 75 universities in Uttar Pradesh, with 5 Central Universities, 24 State Universities, 7 Honorable University, Varanasi and Kanpur 2 Indian Institutes of Technology, Gorakhpur and Rae Bareli 2 All India Institute of Medical Institute, Lucknow, 1 Indian Management Institute in Lucknow, Lucknow1 National Institute of Technology, Allahabad and Lucknow include 2 Indian Information Technology Institutes, 1 National Law University at Lucknow and many other polytechnic, engineering colleges and industrial training institutes.Indian Institute of Technology in the state Kanpur, Indian Institute of Technology (Kashi Hindu University) Varanasi, Indian Institute of Management, Lucknow, Motilal Nehru National Institute of Technology Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Lucknow, Aligarh Muslim University, SanjayInstitutes such as Gandhi Postgraduate Institute of Pradual Medical Sciences, University of Engineering and Technology, Kanpur, King George Medical University, Dr. Ram Manohar Lohia National Law University and Harakourt Butler Technical University are known worldwide for quality education and research in their respective fields..The presence of such institutions provides sufficient opportunities to the students of the state for higher education.The Central Higher Tibetan Education Institute was established by the Ministry of Culture of Culture as an autonomous organization.Jagadguru Rambhadracharya Disabled University is the only university worldwide established for disabled only. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
342 | उत्तर प्रदेश में शिक्षा की एक पुरानी परम्परा रही है, हालांकि ऐतिहासिक रूप से यह मुख्य रूप से कुलीन वर्ग और धार्मिक विद्यालयों तक ही सीमित थी। संस्कृत आधारित शिक्षा वैदिक से गुप्त काल तक शिक्षा का प्रमुख हिस्सा थी। जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियों के लोग इस क्षेत्र में आये, वे अपने-अपने ज्ञान को साथ लाए, और क्षेत्र में पाली, फारसी और अरबी की विद्व्त्ता आयी, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के उदय तक क्षेत्र में हिंदू-बौद्ध-मुस्लिम शिक्षा का मूल रही। देश के अन्य हिस्सों की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा की वर्तमान स्कूल-टू-यूनिवर्सिटी प्रणाली की स्थापना और विकास का श्रेय विदेशी ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को जाता है। राज्य में विद्यालयों का प्रबंधन या तो सरकार द्वारा, या निजी ट्रस्टों द्वारा किया जाता है। सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड की परिषद से संबद्ध विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालयों में हिन्दी ही शिक्षा का माध्यम है। राज्य में १०+२+३ शिक्षा प्रणाली है, जिसके तहत माध्यमिक विद्यालय पूरा करने के बाद, छात्र आमतौर पर दो साल के लिए एक इण्टर कॉलेज या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद अथवा किसी केंद्रीय बोर्ड से संबद्ध उच्च माध्यमिक विद्यालयों में दाखिला लेते हैं, जहाँ छात्र कला, वाणिज्य या विज्ञान - इन तीन धाराओं में से एक का चयन करते हैं। इण्टर कॉलेज तक की शिक्षा पूरी करने पर, छात्र सामान्य या व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रमों में नामांकन कर सकते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल (नोएडा), ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज (लखनऊ), और स्टेप बाय स्टेप स्कूल (नोएडा) समेत उत्तर प्रदेश के कई विद्यालयों को देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में स्थान दिया गया है। उत्तर प्रदेश में ४५ से अधिक विश्वविद्यालय हैं, जिसमें ५ केन्द्रीय विश्वविद्यालय, २८ राज्य विश्वविद्यालय, ८ मानित विश्वविद्यालय, वाराणसी और कानपुर में २ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गोरखपुर और रायबरेली में २ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में १ भारतीय प्रबन्धन संस्थान, इलाहाबाद में १ राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद और लखनऊ में २ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ में १ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इनके अतिरिक्त कई पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं। राज्य में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी, भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को अपने-अपने क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्व भर में जाना जाता है। ऐसे संस्थानों की उपस्थिति राज्य के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की स्थापना भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय केवल विकलांगों के लिए स्थापित विश्व भर में एकमात्र विश्वविद्यालय है। | उत्तर प्रदेश में स्कूलों का प्रबंधन किसके द्वारा किया जाता है? | {
"text": [
"सरकार द्वारा, या निजी ट्रस्टों"
],
"answer_start": [
662
]
} | Schools in Uttar Pradesh are managed by whom? | There has been an old tradition of education in Uttar Pradesh, although historically it was mainly limited to elite and religious schools.Sanskrit -based education was a major part of education from Vedic to Gupta period.As people of different cultures came to this field, they brought their knowledge together, and came to Pali, Persian and Arabic scholars in the region, which was the origin of Hindu-Buddhist-Muslim education in the region until the rise of British colonialism..Like other parts of the country, the credit for the establishment and development of the current school-to-university system of education in Uttar Pradesh also goes to foreign Christian missionaries and British colonial administration.Schools in the state are managed either by the government, or by private trusts.Except for CBSE or ICSE Board Council, Hindi is the medium of education in most schools.The state has 10+2+3 education system, under which after completing the secondary school, students usually enroll in an Inter College or Uttar Pradesh Secondary Education Council or Higher Secondary Schools affiliated to a Central Board for two years,Where students select one of these three sections - Arts, Commerce or Science.On completing education up to Inter College, students can enroll in general or professional degree programs.Many schools in Uttar Pradesh including Delhi Public School (Noida), La Martinier Girls College (Lucknow), and Step by Step School (Noida) have been ranked in the best schools in the country.There are more than 75 universities in Uttar Pradesh, with 5 Central Universities, 24 State Universities, 7 Honorable University, Varanasi and Kanpur 2 Indian Institutes of Technology, Gorakhpur and Rae Bareli 2 All India Institute of Medical Institute, Lucknow, 1 Indian Management Institute in Lucknow, Lucknow1 National Institute of Technology, Allahabad and Lucknow include 2 Indian Information Technology Institutes, 1 National Law University at Lucknow and many other polytechnic, engineering colleges and industrial training institutes.Indian Institute of Technology in the state Kanpur, Indian Institute of Technology (Kashi Hindu University) Varanasi, Indian Institute of Management, Lucknow, Motilal Nehru National Institute of Technology Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Lucknow, Aligarh Muslim University, SanjayInstitutes such as Gandhi Postgraduate Institute of Pradual Medical Sciences, University of Engineering and Technology, Kanpur, King George Medical University, Dr. Ram Manohar Lohia National Law University and Harakourt Butler Technical University are known worldwide for quality education and research in their respective fields..The presence of such institutions provides sufficient opportunities to the students of the state for higher education.The Central Higher Tibetan Education Institute was established by the Ministry of Culture of Culture as an autonomous organization.Jagadguru Rambhadracharya Disabled University is the only university worldwide established for disabled only. | {
"answer_start": [
662
],
"text": [
"By the government, or by private trusts."
]
} |
343 | उत्तर प्रदेश में शिक्षा की एक पुरानी परम्परा रही है, हालांकि ऐतिहासिक रूप से यह मुख्य रूप से कुलीन वर्ग और धार्मिक विद्यालयों तक ही सीमित थी। संस्कृत आधारित शिक्षा वैदिक से गुप्त काल तक शिक्षा का प्रमुख हिस्सा थी। जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियों के लोग इस क्षेत्र में आये, वे अपने-अपने ज्ञान को साथ लाए, और क्षेत्र में पाली, फारसी और अरबी की विद्व्त्ता आयी, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के उदय तक क्षेत्र में हिंदू-बौद्ध-मुस्लिम शिक्षा का मूल रही। देश के अन्य हिस्सों की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा की वर्तमान स्कूल-टू-यूनिवर्सिटी प्रणाली की स्थापना और विकास का श्रेय विदेशी ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को जाता है। राज्य में विद्यालयों का प्रबंधन या तो सरकार द्वारा, या निजी ट्रस्टों द्वारा किया जाता है। सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड की परिषद से संबद्ध विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालयों में हिन्दी ही शिक्षा का माध्यम है। राज्य में १०+२+३ शिक्षा प्रणाली है, जिसके तहत माध्यमिक विद्यालय पूरा करने के बाद, छात्र आमतौर पर दो साल के लिए एक इण्टर कॉलेज या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद अथवा किसी केंद्रीय बोर्ड से संबद्ध उच्च माध्यमिक विद्यालयों में दाखिला लेते हैं, जहाँ छात्र कला, वाणिज्य या विज्ञान - इन तीन धाराओं में से एक का चयन करते हैं। इण्टर कॉलेज तक की शिक्षा पूरी करने पर, छात्र सामान्य या व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रमों में नामांकन कर सकते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल (नोएडा), ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज (लखनऊ), और स्टेप बाय स्टेप स्कूल (नोएडा) समेत उत्तर प्रदेश के कई विद्यालयों को देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में स्थान दिया गया है। उत्तर प्रदेश में ४५ से अधिक विश्वविद्यालय हैं, जिसमें ५ केन्द्रीय विश्वविद्यालय, २८ राज्य विश्वविद्यालय, ८ मानित विश्वविद्यालय, वाराणसी और कानपुर में २ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गोरखपुर और रायबरेली में २ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में १ भारतीय प्रबन्धन संस्थान, इलाहाबाद में १ राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद और लखनऊ में २ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ में १ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इनके अतिरिक्त कई पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं। राज्य में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी, भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को अपने-अपने क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्व भर में जाना जाता है। ऐसे संस्थानों की उपस्थिति राज्य के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की स्थापना भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय केवल विकलांगों के लिए स्थापित विश्व भर में एकमात्र विश्वविद्यालय है। | कौन सी शिक्षा वैदिक से गुप्त काल तक शिक्षा का एक प्रमुख हिस्सा थी? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Which education was a major part of education from the Vedic to the Gupta period? | There has been an old tradition of education in Uttar Pradesh, although historically it was mainly limited to elite and religious schools.Sanskrit -based education was a major part of education from Vedic to Gupta period.As people of different cultures came to this field, they brought their knowledge together, and came to Pali, Persian and Arabic scholars in the region, which was the origin of Hindu-Buddhist-Muslim education in the region until the rise of British colonialism..Like other parts of the country, the credit for the establishment and development of the current school-to-university system of education in Uttar Pradesh also goes to foreign Christian missionaries and British colonial administration.Schools in the state are managed either by the government, or by private trusts.Except for CBSE or ICSE Board Council, Hindi is the medium of education in most schools.The state has 10+2+3 education system, under which after completing the secondary school, students usually enroll in an Inter College or Uttar Pradesh Secondary Education Council or Higher Secondary Schools affiliated to a Central Board for two years,Where students select one of these three sections - Arts, Commerce or Science.On completing education up to Inter College, students can enroll in general or professional degree programs.Many schools in Uttar Pradesh including Delhi Public School (Noida), La Martinier Girls College (Lucknow), and Step by Step School (Noida) have been ranked in the best schools in the country.There are more than 75 universities in Uttar Pradesh, with 5 Central Universities, 24 State Universities, 7 Honorable University, Varanasi and Kanpur 2 Indian Institutes of Technology, Gorakhpur and Rae Bareli 2 All India Institute of Medical Institute, Lucknow, 1 Indian Management Institute in Lucknow, Lucknow1 National Institute of Technology, Allahabad and Lucknow include 2 Indian Information Technology Institutes, 1 National Law University at Lucknow and many other polytechnic, engineering colleges and industrial training institutes.Indian Institute of Technology in the state Kanpur, Indian Institute of Technology (Kashi Hindu University) Varanasi, Indian Institute of Management, Lucknow, Motilal Nehru National Institute of Technology Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Lucknow, Aligarh Muslim University, SanjayInstitutes such as Gandhi Postgraduate Institute of Pradual Medical Sciences, University of Engineering and Technology, Kanpur, King George Medical University, Dr. Ram Manohar Lohia National Law University and Harakourt Butler Technical University are known worldwide for quality education and research in their respective fields..The presence of such institutions provides sufficient opportunities to the students of the state for higher education.The Central Higher Tibetan Education Institute was established by the Ministry of Culture of Culture as an autonomous organization.Jagadguru Rambhadracharya Disabled University is the only university worldwide established for disabled only. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
344 | उत्तर प्रदेश में शिक्षा की एक पुरानी परम्परा रही है, हालांकि ऐतिहासिक रूप से यह मुख्य रूप से कुलीन वर्ग और धार्मिक विद्यालयों तक ही सीमित थी। संस्कृत आधारित शिक्षा वैदिक से गुप्त काल तक शिक्षा का प्रमुख हिस्सा थी। जैसे-जैसे विभिन्न संस्कृतियों के लोग इस क्षेत्र में आये, वे अपने-अपने ज्ञान को साथ लाए, और क्षेत्र में पाली, फारसी और अरबी की विद्व्त्ता आयी, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद के उदय तक क्षेत्र में हिंदू-बौद्ध-मुस्लिम शिक्षा का मूल रही। देश के अन्य हिस्सों की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी शिक्षा की वर्तमान स्कूल-टू-यूनिवर्सिटी प्रणाली की स्थापना और विकास का श्रेय विदेशी ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन को जाता है। राज्य में विद्यालयों का प्रबंधन या तो सरकार द्वारा, या निजी ट्रस्टों द्वारा किया जाता है। सीबीएसई या आईसीएसई बोर्ड की परिषद से संबद्ध विद्यालयों को छोड़कर अधिकांश विद्यालयों में हिन्दी ही शिक्षा का माध्यम है। राज्य में १०+२+३ शिक्षा प्रणाली है, जिसके तहत माध्यमिक विद्यालय पूरा करने के बाद, छात्र आमतौर पर दो साल के लिए एक इण्टर कॉलेज या उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद अथवा किसी केंद्रीय बोर्ड से संबद्ध उच्च माध्यमिक विद्यालयों में दाखिला लेते हैं, जहाँ छात्र कला, वाणिज्य या विज्ञान - इन तीन धाराओं में से एक का चयन करते हैं। इण्टर कॉलेज तक की शिक्षा पूरी करने पर, छात्र सामान्य या व्यावसायिक डिग्री कार्यक्रमों में नामांकन कर सकते हैं। दिल्ली पब्लिक स्कूल (नोएडा), ला मार्टिनियर गर्ल्स कॉलेज (लखनऊ), और स्टेप बाय स्टेप स्कूल (नोएडा) समेत उत्तर प्रदेश के कई विद्यालयों को देश के सर्वश्रेष्ठ विद्यालयों में स्थान दिया गया है। उत्तर प्रदेश में ४५ से अधिक विश्वविद्यालय हैं, जिसमें ५ केन्द्रीय विश्वविद्यालय, २८ राज्य विश्वविद्यालय, ८ मानित विश्वविद्यालय, वाराणसी और कानपुर में २ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गोरखपुर और रायबरेली में २ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ में १ भारतीय प्रबन्धन संस्थान, इलाहाबाद में १ राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद और लखनऊ में २ भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ में १ राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और इनके अतिरिक्त कई पॉलिटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान शामिल हैं। राज्य में स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान कानपुर, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) वाराणसी, भारतीय प्रबंध संस्थान, लखनऊ, मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, इलाहाबाद, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान, विश्वविद्यालय इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर, किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय और हरकोर्ट बटलर प्राविधिक विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों को अपने-अपने क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और अनुसंधान के लिए विश्व भर में जाना जाता है। ऐसे संस्थानों की उपस्थिति राज्य के छात्रों को उच्च शिक्षा के लिए पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की स्थापना भारतीय संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक स्वायत्त संगठन के रूप में की गई थी। जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय केवल विकलांगों के लिए स्थापित विश्व भर में एकमात्र विश्वविद्यालय है। | केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान की स्थापना किसके द्वारा की गई थी? | {
"text": [
"भारतीय संस्कृति मंत्रालय"
],
"answer_start": [
2761
]
} | The Central Institute of Higher Tibetan Education was established by whom? | There has been an old tradition of education in Uttar Pradesh, although historically it was mainly limited to elite and religious schools.Sanskrit -based education was a major part of education from Vedic to Gupta period.As people of different cultures came to this field, they brought their knowledge together, and came to Pali, Persian and Arabic scholars in the region, which was the origin of Hindu-Buddhist-Muslim education in the region until the rise of British colonialism..Like other parts of the country, the credit for the establishment and development of the current school-to-university system of education in Uttar Pradesh also goes to foreign Christian missionaries and British colonial administration.Schools in the state are managed either by the government, or by private trusts.Except for CBSE or ICSE Board Council, Hindi is the medium of education in most schools.The state has 10+2+3 education system, under which after completing the secondary school, students usually enroll in an Inter College or Uttar Pradesh Secondary Education Council or Higher Secondary Schools affiliated to a Central Board for two years,Where students select one of these three sections - Arts, Commerce or Science.On completing education up to Inter College, students can enroll in general or professional degree programs.Many schools in Uttar Pradesh including Delhi Public School (Noida), La Martinier Girls College (Lucknow), and Step by Step School (Noida) have been ranked in the best schools in the country.There are more than 75 universities in Uttar Pradesh, with 5 Central Universities, 24 State Universities, 7 Honorable University, Varanasi and Kanpur 2 Indian Institutes of Technology, Gorakhpur and Rae Bareli 2 All India Institute of Medical Institute, Lucknow, 1 Indian Management Institute in Lucknow, Lucknow1 National Institute of Technology, Allahabad and Lucknow include 2 Indian Information Technology Institutes, 1 National Law University at Lucknow and many other polytechnic, engineering colleges and industrial training institutes.Indian Institute of Technology in the state Kanpur, Indian Institute of Technology (Kashi Hindu University) Varanasi, Indian Institute of Management, Lucknow, Motilal Nehru National Institute of Technology Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Allahabad, Indian Institute of Information Technology, Lucknow, Aligarh Muslim University, SanjayInstitutes such as Gandhi Postgraduate Institute of Pradual Medical Sciences, University of Engineering and Technology, Kanpur, King George Medical University, Dr. Ram Manohar Lohia National Law University and Harakourt Butler Technical University are known worldwide for quality education and research in their respective fields..The presence of such institutions provides sufficient opportunities to the students of the state for higher education.The Central Higher Tibetan Education Institute was established by the Ministry of Culture of Culture as an autonomous organization.Jagadguru Rambhadracharya Disabled University is the only university worldwide established for disabled only. | {
"answer_start": [
2761
],
"text": [
"Ministry of Indian Culture"
]
} |
345 | उत्तर भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियन्त्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ अपने 1,50,000 फ़ौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने ३ साल तक मावल में लुटमार कि। एक रात शिवाजी ने अपने 350 मवलो के साथ उनपर हमला कर दिया। शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र अबुल फतह तथा चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों का कत्ल कर दिया गया। यहॉ पर मराठों ने अन्धेरे मे स्त्री पुरूष के बीच भेद न कर पाने के कारण खान के जनान खाने की बहुत सी औरतों को मार डालाथा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा गया। इस जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। 6 साल शाईस्ता खान ने अपनी 1,50,000 फ़ौज लेकर राजा शिवाजी का पुरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। इस लिए उस् का हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरम्भ किया। सूरत उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ 1664 में छः दिनों तक सूरत के धनाड्य व्यापारियों को लूटा। आम आदमी को उन्होनें नहीं लूटा और फिर लौट गए। इस घटना का ज़िक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है। उस समय तक यूरोपीय व्यापारियों ने भारत तथा अन्य एशियाई देशों में बस गये थे। | औरंगजेब ने कितने सैनिकों द्वारा सुपन और चाकन के किले पर कब्जा किया था? | {
"text": [
"1,50,000 फ़ौज"
],
"answer_start": [
248
]
} | By how many troops did Aurangzeb capture the fort of Supan and Chakan? | Aurangzeb's attention went south after the end of the race to become a king in North India.He was familiar with Shivaji's growing sovereignty and appointed his maternal uncle Shaista Khan as the Subedar of the South for the purpose of controlling Shivaji.Shayaska Khan took his 1,50,000 army and reached Poona by authority over the fort of soupon and Chakan.He looted Maval for 3 years.One night Shivaji attacked him with his 350 Mawlo.Shaista managed to escape through the window, but he had to wash his hands with his four fingers in this sequence.Shaista Khan's son Abul Fatah and forty guards and countless soldiers were killed.On here, the Marathas killed many women of Khan's food due to not being able to distinguish between men in the dark.After this incident, Aurangzeb made Shaista a subedar of Bengal in exchange for Deccan and was sent to replace Shahzada Muazzam Shaista.This victory increased Shivaji's reputation.6 -year -old Shaista Khan, with his 1,50,000 army, destroyed King Shivaji's full Mulukh.Therefore, Shivaji started looting in the Mughal areas to recover the compensation of him.Surat was the stronghold of Western traders at that time and the door to Haj for Hindustani Muslims.It was a rich city and its port was very important.Shivaji, along with a four thousand army, looted the traders of Surat for six days in 1664.He did not rob the common man and then returned.Dutch and the British have mentioned this incident in their articles.By that time European traders had settled in India and other Asian countries. | {
"answer_start": [
248
],
"text": [
"1,50,000 Army"
]
} |
346 | उत्तर भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियन्त्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ अपने 1,50,000 फ़ौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने ३ साल तक मावल में लुटमार कि। एक रात शिवाजी ने अपने 350 मवलो के साथ उनपर हमला कर दिया। शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र अबुल फतह तथा चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों का कत्ल कर दिया गया। यहॉ पर मराठों ने अन्धेरे मे स्त्री पुरूष के बीच भेद न कर पाने के कारण खान के जनान खाने की बहुत सी औरतों को मार डालाथा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा गया। इस जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। 6 साल शाईस्ता खान ने अपनी 1,50,000 फ़ौज लेकर राजा शिवाजी का पुरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। इस लिए उस् का हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरम्भ किया। सूरत उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ 1664 में छः दिनों तक सूरत के धनाड्य व्यापारियों को लूटा। आम आदमी को उन्होनें नहीं लूटा और फिर लौट गए। इस घटना का ज़िक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है। उस समय तक यूरोपीय व्यापारियों ने भारत तथा अन्य एशियाई देशों में बस गये थे। | अपने मुआवजे की वसूली के लिए शिवाजी ने किन क्षेत्रों को लूटना शुरू कर दिया था? | {
"text": [
"मुगल क्षेत्रों"
],
"answer_start": [
1032
]
} | To recover his compensation, Shivaji had started plundering which areas? | Aurangzeb's attention went south after the end of the race to become a king in North India.He was familiar with Shivaji's growing sovereignty and appointed his maternal uncle Shaista Khan as the Subedar of the South for the purpose of controlling Shivaji.Shayaska Khan took his 1,50,000 army and reached Poona by authority over the fort of soupon and Chakan.He looted Maval for 3 years.One night Shivaji attacked him with his 350 Mawlo.Shaista managed to escape through the window, but he had to wash his hands with his four fingers in this sequence.Shaista Khan's son Abul Fatah and forty guards and countless soldiers were killed.On here, the Marathas killed many women of Khan's food due to not being able to distinguish between men in the dark.After this incident, Aurangzeb made Shaista a subedar of Bengal in exchange for Deccan and was sent to replace Shahzada Muazzam Shaista.This victory increased Shivaji's reputation.6 -year -old Shaista Khan, with his 1,50,000 army, destroyed King Shivaji's full Mulukh.Therefore, Shivaji started looting in the Mughal areas to recover the compensation of him.Surat was the stronghold of Western traders at that time and the door to Haj for Hindustani Muslims.It was a rich city and its port was very important.Shivaji, along with a four thousand army, looted the traders of Surat for six days in 1664.He did not rob the common man and then returned.Dutch and the British have mentioned this incident in their articles.By that time European traders had settled in India and other Asian countries. | {
"answer_start": [
1032
],
"text": [
"Mughal territories"
]
} |
347 | उत्तर भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियन्त्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ अपने 1,50,000 फ़ौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने ३ साल तक मावल में लुटमार कि। एक रात शिवाजी ने अपने 350 मवलो के साथ उनपर हमला कर दिया। शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र अबुल फतह तथा चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों का कत्ल कर दिया गया। यहॉ पर मराठों ने अन्धेरे मे स्त्री पुरूष के बीच भेद न कर पाने के कारण खान के जनान खाने की बहुत सी औरतों को मार डालाथा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा गया। इस जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। 6 साल शाईस्ता खान ने अपनी 1,50,000 फ़ौज लेकर राजा शिवाजी का पुरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। इस लिए उस् का हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरम्भ किया। सूरत उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ 1664 में छः दिनों तक सूरत के धनाड्य व्यापारियों को लूटा। आम आदमी को उन्होनें नहीं लूटा और फिर लौट गए। इस घटना का ज़िक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है। उस समय तक यूरोपीय व्यापारियों ने भारत तथा अन्य एशियाई देशों में बस गये थे। | औरंगजेब ने दक्षिण का सूबेदार किसे नियुक्त किया था? | {
"text": [
"शाइस्ता खाँ"
],
"answer_start": [
184
]
} | Who was appointed by Aurangzeb as the Subahdar of Dakshin? | Aurangzeb's attention went south after the end of the race to become a king in North India.He was familiar with Shivaji's growing sovereignty and appointed his maternal uncle Shaista Khan as the Subedar of the South for the purpose of controlling Shivaji.Shayaska Khan took his 1,50,000 army and reached Poona by authority over the fort of soupon and Chakan.He looted Maval for 3 years.One night Shivaji attacked him with his 350 Mawlo.Shaista managed to escape through the window, but he had to wash his hands with his four fingers in this sequence.Shaista Khan's son Abul Fatah and forty guards and countless soldiers were killed.On here, the Marathas killed many women of Khan's food due to not being able to distinguish between men in the dark.After this incident, Aurangzeb made Shaista a subedar of Bengal in exchange for Deccan and was sent to replace Shahzada Muazzam Shaista.This victory increased Shivaji's reputation.6 -year -old Shaista Khan, with his 1,50,000 army, destroyed King Shivaji's full Mulukh.Therefore, Shivaji started looting in the Mughal areas to recover the compensation of him.Surat was the stronghold of Western traders at that time and the door to Haj for Hindustani Muslims.It was a rich city and its port was very important.Shivaji, along with a four thousand army, looted the traders of Surat for six days in 1664.He did not rob the common man and then returned.Dutch and the British have mentioned this incident in their articles.By that time European traders had settled in India and other Asian countries. | {
"answer_start": [
184
],
"text": [
"Shaista Khan"
]
} |
348 | उत्तर भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियन्त्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ अपने 1,50,000 फ़ौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने ३ साल तक मावल में लुटमार कि। एक रात शिवाजी ने अपने 350 मवलो के साथ उनपर हमला कर दिया। शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र अबुल फतह तथा चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों का कत्ल कर दिया गया। यहॉ पर मराठों ने अन्धेरे मे स्त्री पुरूष के बीच भेद न कर पाने के कारण खान के जनान खाने की बहुत सी औरतों को मार डालाथा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा गया। इस जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। 6 साल शाईस्ता खान ने अपनी 1,50,000 फ़ौज लेकर राजा शिवाजी का पुरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। इस लिए उस् का हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरम्भ किया। सूरत उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ 1664 में छः दिनों तक सूरत के धनाड्य व्यापारियों को लूटा। आम आदमी को उन्होनें नहीं लूटा और फिर लौट गए। इस घटना का ज़िक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है। उस समय तक यूरोपीय व्यापारियों ने भारत तथा अन्य एशियाई देशों में बस गये थे। | औरंगजेब ने इनायत खान के स्थान पर किसको सूरत का फौजदार नियुक्त किया था? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Who was appointed Faujdar of Surat by Aurangzeb in place of Inayat Khan? | Aurangzeb's attention went south after the end of the race to become a king in North India.He was familiar with Shivaji's growing sovereignty and appointed his maternal uncle Shaista Khan as the Subedar of the South for the purpose of controlling Shivaji.Shayaska Khan took his 1,50,000 army and reached Poona by authority over the fort of soupon and Chakan.He looted Maval for 3 years.One night Shivaji attacked him with his 350 Mawlo.Shaista managed to escape through the window, but he had to wash his hands with his four fingers in this sequence.Shaista Khan's son Abul Fatah and forty guards and countless soldiers were killed.On here, the Marathas killed many women of Khan's food due to not being able to distinguish between men in the dark.After this incident, Aurangzeb made Shaista a subedar of Bengal in exchange for Deccan and was sent to replace Shahzada Muazzam Shaista.This victory increased Shivaji's reputation.6 -year -old Shaista Khan, with his 1,50,000 army, destroyed King Shivaji's full Mulukh.Therefore, Shivaji started looting in the Mughal areas to recover the compensation of him.Surat was the stronghold of Western traders at that time and the door to Haj for Hindustani Muslims.It was a rich city and its port was very important.Shivaji, along with a four thousand army, looted the traders of Surat for six days in 1664.He did not rob the common man and then returned.Dutch and the British have mentioned this incident in their articles.By that time European traders had settled in India and other Asian countries. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
349 | उत्तर भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियन्त्रण रखने के उद्येश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का खाँ अपने 1,50,000 फ़ौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने ३ साल तक मावल में लुटमार कि। एक रात शिवाजी ने अपने 350 मवलो के साथ उनपर हमला कर दिया। शाइस्ता तो खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार अंगुलियों से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र अबुल फतह तथा चालीस रक्षकों और अनगिनत सैनिकों का कत्ल कर दिया गया। यहॉ पर मराठों ने अन्धेरे मे स्त्री पुरूष के बीच भेद न कर पाने के कारण खान के जनान खाने की बहुत सी औरतों को मार डालाथा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा गया। इस जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। 6 साल शाईस्ता खान ने अपनी 1,50,000 फ़ौज लेकर राजा शिवाजी का पुरा मुलुख जलाकर तबाह कर दिया था। इस लिए उस् का हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरम्भ किया। सूरत उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी ने चार हजार की सेना के साथ 1664 में छः दिनों तक सूरत के धनाड्य व्यापारियों को लूटा। आम आदमी को उन्होनें नहीं लूटा और फिर लौट गए। इस घटना का ज़िक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है। उस समय तक यूरोपीय व्यापारियों ने भारत तथा अन्य एशियाई देशों में बस गये थे। | नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण कब किया था? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | When did Nadirshah invade India? | Aurangzeb's attention went south after the end of the race to become a king in North India.He was familiar with Shivaji's growing sovereignty and appointed his maternal uncle Shaista Khan as the Subedar of the South for the purpose of controlling Shivaji.Shayaska Khan took his 1,50,000 army and reached Poona by authority over the fort of soupon and Chakan.He looted Maval for 3 years.One night Shivaji attacked him with his 350 Mawlo.Shaista managed to escape through the window, but he had to wash his hands with his four fingers in this sequence.Shaista Khan's son Abul Fatah and forty guards and countless soldiers were killed.On here, the Marathas killed many women of Khan's food due to not being able to distinguish between men in the dark.After this incident, Aurangzeb made Shaista a subedar of Bengal in exchange for Deccan and was sent to replace Shahzada Muazzam Shaista.This victory increased Shivaji's reputation.6 -year -old Shaista Khan, with his 1,50,000 army, destroyed King Shivaji's full Mulukh.Therefore, Shivaji started looting in the Mughal areas to recover the compensation of him.Surat was the stronghold of Western traders at that time and the door to Haj for Hindustani Muslims.It was a rich city and its port was very important.Shivaji, along with a four thousand army, looted the traders of Surat for six days in 1664.He did not rob the common man and then returned.Dutch and the British have mentioned this incident in their articles.By that time European traders had settled in India and other Asian countries. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
350 | उदाहरणतः मुख्य मकबरा 1643 में पूर्ण हुआ था, किंतु शेष समूह इमारतें बनती रहीं। इसी प्रकार इसकी निर्माण कीमत में भी भिन्नताएं हैं, क्योंकि इसकी कीमत तय करने में समय के अंतराल से काफी फर्क आ गया है। फिर भी कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है; जो कि वर्तमान में खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है, यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए। ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। पराभासी श्वेत संगमरमर पत्थर को राजस्थान मकराना से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या (कार्नेलियन) लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे. गए थे। उत्तरी भारत से लगभग बीस हजा़र मज़दूरों की सेना अन्वरत कार्यरत थी। बुखारा से शिल्पकार, सीरिया एवं ईरान से सुलेखन कर्ता, दक्षिण भारत से पच्चीकारी के कारीगर, बलूचिस्तान से पत्थर तराशने एवं काटने वाले कारीगर इनमें शामिल थे। कंगूरे, बुर्जी एवं कलश आदि बनाने वाले, दूसरा जो केवल संगमर्मर पर पुष्प तराश्ता था, इत्यादि सत्ताईस कारीगरों में से कुछ थे, जिन्होंने सृजन इकाई गठित की थी। कुछ खास कारीगर, जो कि ताजमहल के निर्माण में अपना स्थान रखते हैं, वे हैं:-– मुख्य गुम्बद का अभिकल्पक इस्माइल (ए.का.इस्माइल खाँ),, जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य का प्रमुख गोलार्ध एवं गुम्बद अभिकल्पक थे। – फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, इनका बार बार यहाँ के मूर अभिकल्पना में उल्लेख आता है। परंतु इस दावे के पीछे बहुत कम साक्ष्य हैं। – बेनारुस, फारस (ईरान) से 'पुरु' को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया – का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया। | ताजमहल के निर्माण के लिए जेड और क्रिस्टल कहाँ से मंगवाए गए थे? | {
"text": [
"चीन"
],
"answer_start": [
610
]
} | From where the jade and crystals were sourced for the construction of the Taj Mahal? | For example, the main tomb was completed in 1643, but the remaining group buildings continued.Similarly, there are variations in its construction price, because the time interval of time has made a lot of difference.Nevertheless, the total value is about 3 billion 20 crores rupees, at that time, it is estimated at that time;Which can currently be more than trillion dollars, if converted into the current posture.The Taj Mahal was built from the material brought from the whole of India and Asia.More than 1,000 elephants were used for traffic during construction.The transcendent white marble stone was brought from Rajasthan Makrana, Jasper from Punjab, Haritashm or Z and Rhinestone or Crystal from China.From Tibet, Firoza, Afghanistan were brought from Lapiz Lazili, Sri Lanka from Neelam and Arabia from Indragop or (Carnellian).Overall, twenty -eight types of precious stones and gems in white marbles.They went.The army of about twenty Hajar workers from northern India was working innocent.Craftsmen from Bukhara, calligator from Syria and Iran, artisans from South India, stones and cutting stones from Balochistan and cutting artisans were involved.Those who made Kangura, Burji and Kalash etc., the second one who had a flower carvage only on the marble, etc. was some of the twenty -seven artisans who formed the creation unit.Some special artisans, who hold their place in the construction of the Taj Mahal, are:-Ismail (A.C. ISMIL Khan), the main dome, who was the major hemisphere and dome design of the Attoman Empire.- Persia's Ustad Jesus and Jesus Muhammad Fesi (both from Iran), who were trained by Mimar Sinan Aga of the Attoman Empire, are repeatedly mentioned in the Moore designing here.But there are very few evidence behind this claim.- Benarus, Purus (Puru 'from Persia (Puru' was appointed as a supervision architect - Kajim Khan, a resident of Lahore, created a solid golden urn. | {
"answer_start": [
610
],
"text": [
"China"
]
} |
351 | उदाहरणतः मुख्य मकबरा 1643 में पूर्ण हुआ था, किंतु शेष समूह इमारतें बनती रहीं। इसी प्रकार इसकी निर्माण कीमत में भी भिन्नताएं हैं, क्योंकि इसकी कीमत तय करने में समय के अंतराल से काफी फर्क आ गया है। फिर भी कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है; जो कि वर्तमान में खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है, यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए। ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। पराभासी श्वेत संगमरमर पत्थर को राजस्थान मकराना से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या (कार्नेलियन) लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे. गए थे। उत्तरी भारत से लगभग बीस हजा़र मज़दूरों की सेना अन्वरत कार्यरत थी। बुखारा से शिल्पकार, सीरिया एवं ईरान से सुलेखन कर्ता, दक्षिण भारत से पच्चीकारी के कारीगर, बलूचिस्तान से पत्थर तराशने एवं काटने वाले कारीगर इनमें शामिल थे। कंगूरे, बुर्जी एवं कलश आदि बनाने वाले, दूसरा जो केवल संगमर्मर पर पुष्प तराश्ता था, इत्यादि सत्ताईस कारीगरों में से कुछ थे, जिन्होंने सृजन इकाई गठित की थी। कुछ खास कारीगर, जो कि ताजमहल के निर्माण में अपना स्थान रखते हैं, वे हैं:-– मुख्य गुम्बद का अभिकल्पक इस्माइल (ए.का.इस्माइल खाँ),, जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य का प्रमुख गोलार्ध एवं गुम्बद अभिकल्पक थे। – फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, इनका बार बार यहाँ के मूर अभिकल्पना में उल्लेख आता है। परंतु इस दावे के पीछे बहुत कम साक्ष्य हैं। – बेनारुस, फारस (ईरान) से 'पुरु' को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया – का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया। | ताजमहल का मुख्य मकबरा किस वर्ष बनकर तैयार हो गया था ? | {
"text": [
"1643"
],
"answer_start": [
21
]
} | In which year was the main mausoleum of the Taj Mahal completed? | For example, the main tomb was completed in 1643, but the remaining group buildings continued.Similarly, there are variations in its construction price, because the time interval of time has made a lot of difference.Nevertheless, the total value is about 3 billion 20 crores rupees, at that time, it is estimated at that time;Which can currently be more than trillion dollars, if converted into the current posture.The Taj Mahal was built from the material brought from the whole of India and Asia.More than 1,000 elephants were used for traffic during construction.The transcendent white marble stone was brought from Rajasthan Makrana, Jasper from Punjab, Haritashm or Z and Rhinestone or Crystal from China.From Tibet, Firoza, Afghanistan were brought from Lapiz Lazili, Sri Lanka from Neelam and Arabia from Indragop or (Carnellian).Overall, twenty -eight types of precious stones and gems in white marbles.They went.The army of about twenty Hajar workers from northern India was working innocent.Craftsmen from Bukhara, calligator from Syria and Iran, artisans from South India, stones and cutting stones from Balochistan and cutting artisans were involved.Those who made Kangura, Burji and Kalash etc., the second one who had a flower carvage only on the marble, etc. was some of the twenty -seven artisans who formed the creation unit.Some special artisans, who hold their place in the construction of the Taj Mahal, are:-Ismail (A.C. ISMIL Khan), the main dome, who was the major hemisphere and dome design of the Attoman Empire.- Persia's Ustad Jesus and Jesus Muhammad Fesi (both from Iran), who were trained by Mimar Sinan Aga of the Attoman Empire, are repeatedly mentioned in the Moore designing here.But there are very few evidence behind this claim.- Benarus, Purus (Puru 'from Persia (Puru' was appointed as a supervision architect - Kajim Khan, a resident of Lahore, created a solid golden urn. | {
"answer_start": [
21
],
"text": [
"1643"
]
} |
352 | उदाहरणतः मुख्य मकबरा 1643 में पूर्ण हुआ था, किंतु शेष समूह इमारतें बनती रहीं। इसी प्रकार इसकी निर्माण कीमत में भी भिन्नताएं हैं, क्योंकि इसकी कीमत तय करने में समय के अंतराल से काफी फर्क आ गया है। फिर भी कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है; जो कि वर्तमान में खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है, यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए। ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। पराभासी श्वेत संगमरमर पत्थर को राजस्थान मकराना से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या (कार्नेलियन) लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे. गए थे। उत्तरी भारत से लगभग बीस हजा़र मज़दूरों की सेना अन्वरत कार्यरत थी। बुखारा से शिल्पकार, सीरिया एवं ईरान से सुलेखन कर्ता, दक्षिण भारत से पच्चीकारी के कारीगर, बलूचिस्तान से पत्थर तराशने एवं काटने वाले कारीगर इनमें शामिल थे। कंगूरे, बुर्जी एवं कलश आदि बनाने वाले, दूसरा जो केवल संगमर्मर पर पुष्प तराश्ता था, इत्यादि सत्ताईस कारीगरों में से कुछ थे, जिन्होंने सृजन इकाई गठित की थी। कुछ खास कारीगर, जो कि ताजमहल के निर्माण में अपना स्थान रखते हैं, वे हैं:-– मुख्य गुम्बद का अभिकल्पक इस्माइल (ए.का.इस्माइल खाँ),, जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य का प्रमुख गोलार्ध एवं गुम्बद अभिकल्पक थे। – फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, इनका बार बार यहाँ के मूर अभिकल्पना में उल्लेख आता है। परंतु इस दावे के पीछे बहुत कम साक्ष्य हैं। – बेनारुस, फारस (ईरान) से 'पुरु' को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया – का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया। | अमानत खान कहाँ के रहने वाले थे ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Where was Amanat Khan from? | For example, the main tomb was completed in 1643, but the remaining group buildings continued.Similarly, there are variations in its construction price, because the time interval of time has made a lot of difference.Nevertheless, the total value is about 3 billion 20 crores rupees, at that time, it is estimated at that time;Which can currently be more than trillion dollars, if converted into the current posture.The Taj Mahal was built from the material brought from the whole of India and Asia.More than 1,000 elephants were used for traffic during construction.The transcendent white marble stone was brought from Rajasthan Makrana, Jasper from Punjab, Haritashm or Z and Rhinestone or Crystal from China.From Tibet, Firoza, Afghanistan were brought from Lapiz Lazili, Sri Lanka from Neelam and Arabia from Indragop or (Carnellian).Overall, twenty -eight types of precious stones and gems in white marbles.They went.The army of about twenty Hajar workers from northern India was working innocent.Craftsmen from Bukhara, calligator from Syria and Iran, artisans from South India, stones and cutting stones from Balochistan and cutting artisans were involved.Those who made Kangura, Burji and Kalash etc., the second one who had a flower carvage only on the marble, etc. was some of the twenty -seven artisans who formed the creation unit.Some special artisans, who hold their place in the construction of the Taj Mahal, are:-Ismail (A.C. ISMIL Khan), the main dome, who was the major hemisphere and dome design of the Attoman Empire.- Persia's Ustad Jesus and Jesus Muhammad Fesi (both from Iran), who were trained by Mimar Sinan Aga of the Attoman Empire, are repeatedly mentioned in the Moore designing here.But there are very few evidence behind this claim.- Benarus, Purus (Puru 'from Persia (Puru' was appointed as a supervision architect - Kajim Khan, a resident of Lahore, created a solid golden urn. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
353 | उदाहरणतः मुख्य मकबरा 1643 में पूर्ण हुआ था, किंतु शेष समूह इमारतें बनती रहीं। इसी प्रकार इसकी निर्माण कीमत में भी भिन्नताएं हैं, क्योंकि इसकी कीमत तय करने में समय के अंतराल से काफी फर्क आ गया है। फिर भी कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है; जो कि वर्तमान में खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है, यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए। ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। पराभासी श्वेत संगमरमर पत्थर को राजस्थान मकराना से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या (कार्नेलियन) लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे. गए थे। उत्तरी भारत से लगभग बीस हजा़र मज़दूरों की सेना अन्वरत कार्यरत थी। बुखारा से शिल्पकार, सीरिया एवं ईरान से सुलेखन कर्ता, दक्षिण भारत से पच्चीकारी के कारीगर, बलूचिस्तान से पत्थर तराशने एवं काटने वाले कारीगर इनमें शामिल थे। कंगूरे, बुर्जी एवं कलश आदि बनाने वाले, दूसरा जो केवल संगमर्मर पर पुष्प तराश्ता था, इत्यादि सत्ताईस कारीगरों में से कुछ थे, जिन्होंने सृजन इकाई गठित की थी। कुछ खास कारीगर, जो कि ताजमहल के निर्माण में अपना स्थान रखते हैं, वे हैं:-– मुख्य गुम्बद का अभिकल्पक इस्माइल (ए.का.इस्माइल खाँ),, जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य का प्रमुख गोलार्ध एवं गुम्बद अभिकल्पक थे। – फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, इनका बार बार यहाँ के मूर अभिकल्पना में उल्लेख आता है। परंतु इस दावे के पीछे बहुत कम साक्ष्य हैं। – बेनारुस, फारस (ईरान) से 'पुरु' को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया – का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया। | ताजमहल को बनाने में अनुमानित कितना खर्च हुआ था? | {
"text": [
"3 अरब 20 करोड़ रुपए,"
],
"answer_start": [
216
]
} | What was the estimated cost of building the Taj Mahal? | For example, the main tomb was completed in 1643, but the remaining group buildings continued.Similarly, there are variations in its construction price, because the time interval of time has made a lot of difference.Nevertheless, the total value is about 3 billion 20 crores rupees, at that time, it is estimated at that time;Which can currently be more than trillion dollars, if converted into the current posture.The Taj Mahal was built from the material brought from the whole of India and Asia.More than 1,000 elephants were used for traffic during construction.The transcendent white marble stone was brought from Rajasthan Makrana, Jasper from Punjab, Haritashm or Z and Rhinestone or Crystal from China.From Tibet, Firoza, Afghanistan were brought from Lapiz Lazili, Sri Lanka from Neelam and Arabia from Indragop or (Carnellian).Overall, twenty -eight types of precious stones and gems in white marbles.They went.The army of about twenty Hajar workers from northern India was working innocent.Craftsmen from Bukhara, calligator from Syria and Iran, artisans from South India, stones and cutting stones from Balochistan and cutting artisans were involved.Those who made Kangura, Burji and Kalash etc., the second one who had a flower carvage only on the marble, etc. was some of the twenty -seven artisans who formed the creation unit.Some special artisans, who hold their place in the construction of the Taj Mahal, are:-Ismail (A.C. ISMIL Khan), the main dome, who was the major hemisphere and dome design of the Attoman Empire.- Persia's Ustad Jesus and Jesus Muhammad Fesi (both from Iran), who were trained by Mimar Sinan Aga of the Attoman Empire, are repeatedly mentioned in the Moore designing here.But there are very few evidence behind this claim.- Benarus, Purus (Puru 'from Persia (Puru' was appointed as a supervision architect - Kajim Khan, a resident of Lahore, created a solid golden urn. | {
"answer_start": [
216
],
"text": [
"3 billion 20 million rupees,"
]
} |
354 | उदाहरणतः मुख्य मकबरा 1643 में पूर्ण हुआ था, किंतु शेष समूह इमारतें बनती रहीं। इसी प्रकार इसकी निर्माण कीमत में भी भिन्नताएं हैं, क्योंकि इसकी कीमत तय करने में समय के अंतराल से काफी फर्क आ गया है। फिर भी कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है; जो कि वर्तमान में खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है, यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए। ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। पराभासी श्वेत संगमरमर पत्थर को राजस्थान मकराना से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या (कार्नेलियन) लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे. गए थे। उत्तरी भारत से लगभग बीस हजा़र मज़दूरों की सेना अन्वरत कार्यरत थी। बुखारा से शिल्पकार, सीरिया एवं ईरान से सुलेखन कर्ता, दक्षिण भारत से पच्चीकारी के कारीगर, बलूचिस्तान से पत्थर तराशने एवं काटने वाले कारीगर इनमें शामिल थे। कंगूरे, बुर्जी एवं कलश आदि बनाने वाले, दूसरा जो केवल संगमर्मर पर पुष्प तराश्ता था, इत्यादि सत्ताईस कारीगरों में से कुछ थे, जिन्होंने सृजन इकाई गठित की थी। कुछ खास कारीगर, जो कि ताजमहल के निर्माण में अपना स्थान रखते हैं, वे हैं:-– मुख्य गुम्बद का अभिकल्पक इस्माइल (ए.का.इस्माइल खाँ),, जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य का प्रमुख गोलार्ध एवं गुम्बद अभिकल्पक थे। – फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, इनका बार बार यहाँ के मूर अभिकल्पना में उल्लेख आता है। परंतु इस दावे के पीछे बहुत कम साक्ष्य हैं। – बेनारुस, फारस (ईरान) से 'पुरु' को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया – का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया। | ताजमहल के निर्माण में कुल कितने श्रमिक लगे थे? | {
"text": [
"बीस हजा़र मज़दूरों"
],
"answer_start": [
836
]
} | How many workers were involved in the construction of the Taj Mahal? | For example, the main tomb was completed in 1643, but the remaining group buildings continued.Similarly, there are variations in its construction price, because the time interval of time has made a lot of difference.Nevertheless, the total value is about 3 billion 20 crores rupees, at that time, it is estimated at that time;Which can currently be more than trillion dollars, if converted into the current posture.The Taj Mahal was built from the material brought from the whole of India and Asia.More than 1,000 elephants were used for traffic during construction.The transcendent white marble stone was brought from Rajasthan Makrana, Jasper from Punjab, Haritashm or Z and Rhinestone or Crystal from China.From Tibet, Firoza, Afghanistan were brought from Lapiz Lazili, Sri Lanka from Neelam and Arabia from Indragop or (Carnellian).Overall, twenty -eight types of precious stones and gems in white marbles.They went.The army of about twenty Hajar workers from northern India was working innocent.Craftsmen from Bukhara, calligator from Syria and Iran, artisans from South India, stones and cutting stones from Balochistan and cutting artisans were involved.Those who made Kangura, Burji and Kalash etc., the second one who had a flower carvage only on the marble, etc. was some of the twenty -seven artisans who formed the creation unit.Some special artisans, who hold their place in the construction of the Taj Mahal, are:-Ismail (A.C. ISMIL Khan), the main dome, who was the major hemisphere and dome design of the Attoman Empire.- Persia's Ustad Jesus and Jesus Muhammad Fesi (both from Iran), who were trained by Mimar Sinan Aga of the Attoman Empire, are repeatedly mentioned in the Moore designing here.But there are very few evidence behind this claim.- Benarus, Purus (Puru 'from Persia (Puru' was appointed as a supervision architect - Kajim Khan, a resident of Lahore, created a solid golden urn. | {
"answer_start": [
836
],
"text": [
"Twenty thousand workers"
]
} |
355 | उदाहरणतः मुख्य मकबरा 1643 में पूर्ण हुआ था, किंतु शेष समूह इमारतें बनती रहीं। इसी प्रकार इसकी निर्माण कीमत में भी भिन्नताएं हैं, क्योंकि इसकी कीमत तय करने में समय के अंतराल से काफी फर्क आ गया है। फिर भी कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है; जो कि वर्तमान में खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है, यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए। ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। पराभासी श्वेत संगमरमर पत्थर को राजस्थान मकराना से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या (कार्नेलियन) लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे. गए थे। उत्तरी भारत से लगभग बीस हजा़र मज़दूरों की सेना अन्वरत कार्यरत थी। बुखारा से शिल्पकार, सीरिया एवं ईरान से सुलेखन कर्ता, दक्षिण भारत से पच्चीकारी के कारीगर, बलूचिस्तान से पत्थर तराशने एवं काटने वाले कारीगर इनमें शामिल थे। कंगूरे, बुर्जी एवं कलश आदि बनाने वाले, दूसरा जो केवल संगमर्मर पर पुष्प तराश्ता था, इत्यादि सत्ताईस कारीगरों में से कुछ थे, जिन्होंने सृजन इकाई गठित की थी। कुछ खास कारीगर, जो कि ताजमहल के निर्माण में अपना स्थान रखते हैं, वे हैं:-– मुख्य गुम्बद का अभिकल्पक इस्माइल (ए.का.इस्माइल खाँ),, जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य का प्रमुख गोलार्ध एवं गुम्बद अभिकल्पक थे। – फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, इनका बार बार यहाँ के मूर अभिकल्पना में उल्लेख आता है। परंतु इस दावे के पीछे बहुत कम साक्ष्य हैं। – बेनारुस, फारस (ईरान) से 'पुरु' को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया – का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया। | ताजमहल के निर्माण के समय पत्थर काटने और नक्काशी करने वाले श्रमिक मुख्यतः किस प्रांत से आए थे? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | The stone-cutting and carving workers at the time of the construction of the Taj Mahal mainly came from which province? | For example, the main tomb was completed in 1643, but the remaining group buildings continued.Similarly, there are variations in its construction price, because the time interval of time has made a lot of difference.Nevertheless, the total value is about 3 billion 20 crores rupees, at that time, it is estimated at that time;Which can currently be more than trillion dollars, if converted into the current posture.The Taj Mahal was built from the material brought from the whole of India and Asia.More than 1,000 elephants were used for traffic during construction.The transcendent white marble stone was brought from Rajasthan Makrana, Jasper from Punjab, Haritashm or Z and Rhinestone or Crystal from China.From Tibet, Firoza, Afghanistan were brought from Lapiz Lazili, Sri Lanka from Neelam and Arabia from Indragop or (Carnellian).Overall, twenty -eight types of precious stones and gems in white marbles.They went.The army of about twenty Hajar workers from northern India was working innocent.Craftsmen from Bukhara, calligator from Syria and Iran, artisans from South India, stones and cutting stones from Balochistan and cutting artisans were involved.Those who made Kangura, Burji and Kalash etc., the second one who had a flower carvage only on the marble, etc. was some of the twenty -seven artisans who formed the creation unit.Some special artisans, who hold their place in the construction of the Taj Mahal, are:-Ismail (A.C. ISMIL Khan), the main dome, who was the major hemisphere and dome design of the Attoman Empire.- Persia's Ustad Jesus and Jesus Muhammad Fesi (both from Iran), who were trained by Mimar Sinan Aga of the Attoman Empire, are repeatedly mentioned in the Moore designing here.But there are very few evidence behind this claim.- Benarus, Purus (Puru 'from Persia (Puru' was appointed as a supervision architect - Kajim Khan, a resident of Lahore, created a solid golden urn. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
356 | उदाहरणतः मुख्य मकबरा 1643 में पूर्ण हुआ था, किंतु शेष समूह इमारतें बनती रहीं। इसी प्रकार इसकी निर्माण कीमत में भी भिन्नताएं हैं, क्योंकि इसकी कीमत तय करने में समय के अंतराल से काफी फर्क आ गया है। फिर भी कुल मूल्य लगभग 3 अरब 20 करोड़ रुपए, उस समयानुसार आंका गया है; जो कि वर्तमान में खरबों डॉलर से भी अधिक हो सकता है, यदि वर्तमान मुद्रा में बदला जाए। ताजमहल को सम्पूर्ण भारत एवं एशिया से लाई गई सामग्री से निर्मित किया गया था। 1,000 से अधिक हाथी निर्माण के दौरान यातायात हेतु प्रयोग हुए थे। पराभासी श्वेत संगमरमर पत्थर को राजस्थान मकराना से लाया गया था, जैस्पर को पंजाब से, हरिताश्म या जेड एवं स्फटिक या क्रिस्टल को चीन से। तिब्बत से फीरोजा़, अफगानिस्तान से लैपिज़ लजू़ली, श्रीलंका से नीलम एवं अरबिया से इंद्रगोप या (कार्नेलियन) लाए गए थे। कुल मिला कर अठ्ठाइस प्रकार के बहुमूल्य पत्थर एवं रत्न श्वेत संगमर्मर में जडे. गए थे। उत्तरी भारत से लगभग बीस हजा़र मज़दूरों की सेना अन्वरत कार्यरत थी। बुखारा से शिल्पकार, सीरिया एवं ईरान से सुलेखन कर्ता, दक्षिण भारत से पच्चीकारी के कारीगर, बलूचिस्तान से पत्थर तराशने एवं काटने वाले कारीगर इनमें शामिल थे। कंगूरे, बुर्जी एवं कलश आदि बनाने वाले, दूसरा जो केवल संगमर्मर पर पुष्प तराश्ता था, इत्यादि सत्ताईस कारीगरों में से कुछ थे, जिन्होंने सृजन इकाई गठित की थी। कुछ खास कारीगर, जो कि ताजमहल के निर्माण में अपना स्थान रखते हैं, वे हैं:-– मुख्य गुम्बद का अभिकल्पक इस्माइल (ए.का.इस्माइल खाँ),, जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य का प्रमुख गोलार्ध एवं गुम्बद अभिकल्पक थे। – फारस के उस्ताद ईसा एवं ईसा मुहम्मद एफेंदी (दोनों ईरान से), जो कि ऑट्टोमन साम्राज्य के कोचा मिमार सिनान आगा द्वारा प्रशिक्षित किये गये थे, इनका बार बार यहाँ के मूर अभिकल्पना में उल्लेख आता है। परंतु इस दावे के पीछे बहुत कम साक्ष्य हैं। – बेनारुस, फारस (ईरान) से 'पुरु' को पर्यवेक्षण वास्तुकार नियुक्त किया गया – का़जि़म खान, लाहौर का निवासी, ने ठोस सुवर्ण कलश निर्मित किया। | लैपिडरी चिरंजी लाल को कहाँ का मास्टर शिल्पकार और रसोइया घोषित किया गया था ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Lapidary Chiranji Lal was declared the master craftsman and cook of where? | For example, the main tomb was completed in 1643, but the remaining group buildings continued.Similarly, there are variations in its construction price, because the time interval of time has made a lot of difference.Nevertheless, the total value is about 3 billion 20 crores rupees, at that time, it is estimated at that time;Which can currently be more than trillion dollars, if converted into the current posture.The Taj Mahal was built from the material brought from the whole of India and Asia.More than 1,000 elephants were used for traffic during construction.The transcendent white marble stone was brought from Rajasthan Makrana, Jasper from Punjab, Haritashm or Z and Rhinestone or Crystal from China.From Tibet, Firoza, Afghanistan were brought from Lapiz Lazili, Sri Lanka from Neelam and Arabia from Indragop or (Carnellian).Overall, twenty -eight types of precious stones and gems in white marbles.They went.The army of about twenty Hajar workers from northern India was working innocent.Craftsmen from Bukhara, calligator from Syria and Iran, artisans from South India, stones and cutting stones from Balochistan and cutting artisans were involved.Those who made Kangura, Burji and Kalash etc., the second one who had a flower carvage only on the marble, etc. was some of the twenty -seven artisans who formed the creation unit.Some special artisans, who hold their place in the construction of the Taj Mahal, are:-Ismail (A.C. ISMIL Khan), the main dome, who was the major hemisphere and dome design of the Attoman Empire.- Persia's Ustad Jesus and Jesus Muhammad Fesi (both from Iran), who were trained by Mimar Sinan Aga of the Attoman Empire, are repeatedly mentioned in the Moore designing here.But there are very few evidence behind this claim.- Benarus, Purus (Puru 'from Persia (Puru' was appointed as a supervision architect - Kajim Khan, a resident of Lahore, created a solid golden urn. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
357 | उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। दीवाली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है। दीवाली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा सीज़न है। प्रत्येक वर्ष दीवाली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है। | जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर का क्या नाम है ? | {
"text": [
"महावीर स्वामी"
],
"answer_start": [
434
]
} | What is the name of the 24th Tirthankara of Jainism? | People still celebrate this festival in the joy of their return.The people of Krishna Bhakti Dhara are of the opinion that on this day Lord Krishna killed the tyrannical king Narakasura.Due to the slaughter of this brutal demon spread immense joy in the public and people filled with joy burnt lamps of ghee.According to a legend, Vinnu took the form of Narasimha and killed Hiranyakashyapa and on this day Lakshmi and Dhanvantari appeared after Samudramanthan.According to Jain Matawalambi, the twenty -fourth Tirthankara, Mahavir Swami attained salvation on this day.On this day, his first disciple, Gautam Ganadhar, received only knowledge.Deepawali is celebrated by Jain society as Nirvana Day of Mahavir Swami.Mahavir Swami (the last Tirthankara of the present Avasarpini period) received salvation on this day (Kartik Amavasya).On this day, in the evening, his first disciple Gautam Ganadhar attained only knowledge.Therefore, the worship method of Jain Deepawali is completely different from other sects.Diwali is also important for Sikhs because on this day, the foundation stone of the Golden Temple was laid in Amritsar in 1577.And apart from this, on the day of Diwali in 1619, the sixth Sikh Guru Hargobind Singh ji was released from jail.Punjab -born Swami Ramatirtha was born and Mahaprayana was both on the day of Deepawali.On the day of Diwali, he took samadhi while bathing on Gangaat on Gangaat.Maharishi Dayanand became the great Jananayak of Indian culture and exploded near Ajmer on the day of Deepawali.He founded the Arya Samaj.During the reign of Mughal Emperor Akbar, the originator of Deen-e-Ilahi, a big sky was hung on a big bamboo in front of Daulatakhana on the day of Diwali.Emperor Jahangir also used to celebrate Deepawali with pomp.Bahadur Shah Zafar, the last emperor of the Mughal dynasty, used to celebrate Deepawali as a festival and he participated in programs organized on the occasion.During the time of Shah Alam II, the entire royal palace was decorated with lamps and both Hindus and Muslims participated in the programs organized in the Red Fort.The Diwali festival is a symbol of a major shopping period in India.Diwali is equal to Christmas in the West in terms of consumer procurement and economic activities.This festival is a time of new clothes, household items, gifts, gold and other big purchases.The expenses and purchases on this festival are considered auspicious because Lakshmi is considered the goddess of wealth, prosperity, and investment.Diwali is the biggest season of gold and jewelry in India.Every year during Diwali, firecrackers worth five thousand crores are consumed. | {
"answer_start": [
434
],
"text": [
"Mahavir Swami."
]
} |
358 | उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। दीवाली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है। दीवाली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा सीज़न है। प्रत्येक वर्ष दीवाली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है। | सिख समुदाय के छठे गुरु का क्या नाम है? | {
"text": [
"गुरु हरगोबिन्द सिंह"
],
"answer_start": [
1055
]
} | What is the name of the sixth Guru of the Sikh community? | People still celebrate this festival in the joy of their return.The people of Krishna Bhakti Dhara are of the opinion that on this day Lord Krishna killed the tyrannical king Narakasura.Due to the slaughter of this brutal demon spread immense joy in the public and people filled with joy burnt lamps of ghee.According to a legend, Vinnu took the form of Narasimha and killed Hiranyakashyapa and on this day Lakshmi and Dhanvantari appeared after Samudramanthan.According to Jain Matawalambi, the twenty -fourth Tirthankara, Mahavir Swami attained salvation on this day.On this day, his first disciple, Gautam Ganadhar, received only knowledge.Deepawali is celebrated by Jain society as Nirvana Day of Mahavir Swami.Mahavir Swami (the last Tirthankara of the present Avasarpini period) received salvation on this day (Kartik Amavasya).On this day, in the evening, his first disciple Gautam Ganadhar attained only knowledge.Therefore, the worship method of Jain Deepawali is completely different from other sects.Diwali is also important for Sikhs because on this day, the foundation stone of the Golden Temple was laid in Amritsar in 1577.And apart from this, on the day of Diwali in 1619, the sixth Sikh Guru Hargobind Singh ji was released from jail.Punjab -born Swami Ramatirtha was born and Mahaprayana was both on the day of Deepawali.On the day of Diwali, he took samadhi while bathing on Gangaat on Gangaat.Maharishi Dayanand became the great Jananayak of Indian culture and exploded near Ajmer on the day of Deepawali.He founded the Arya Samaj.During the reign of Mughal Emperor Akbar, the originator of Deen-e-Ilahi, a big sky was hung on a big bamboo in front of Daulatakhana on the day of Diwali.Emperor Jahangir also used to celebrate Deepawali with pomp.Bahadur Shah Zafar, the last emperor of the Mughal dynasty, used to celebrate Deepawali as a festival and he participated in programs organized on the occasion.During the time of Shah Alam II, the entire royal palace was decorated with lamps and both Hindus and Muslims participated in the programs organized in the Red Fort.The Diwali festival is a symbol of a major shopping period in India.Diwali is equal to Christmas in the West in terms of consumer procurement and economic activities.This festival is a time of new clothes, household items, gifts, gold and other big purchases.The expenses and purchases on this festival are considered auspicious because Lakshmi is considered the goddess of wealth, prosperity, and investment.Diwali is the biggest season of gold and jewelry in India.Every year during Diwali, firecrackers worth five thousand crores are consumed. | {
"answer_start": [
1055
],
"text": [
"Guru Hargobind Singh"
]
} |
359 | उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। दीवाली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है। दीवाली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा सीज़न है। प्रत्येक वर्ष दीवाली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है। | स्वर्ण मंदिर की आधारशिला किस वर्ष रखी गई थी? | {
"text": [
"1577"
],
"answer_start": [
960
]
} | The foundation stone of the Golden Temple was laid in which year? | People still celebrate this festival in the joy of their return.The people of Krishna Bhakti Dhara are of the opinion that on this day Lord Krishna killed the tyrannical king Narakasura.Due to the slaughter of this brutal demon spread immense joy in the public and people filled with joy burnt lamps of ghee.According to a legend, Vinnu took the form of Narasimha and killed Hiranyakashyapa and on this day Lakshmi and Dhanvantari appeared after Samudramanthan.According to Jain Matawalambi, the twenty -fourth Tirthankara, Mahavir Swami attained salvation on this day.On this day, his first disciple, Gautam Ganadhar, received only knowledge.Deepawali is celebrated by Jain society as Nirvana Day of Mahavir Swami.Mahavir Swami (the last Tirthankara of the present Avasarpini period) received salvation on this day (Kartik Amavasya).On this day, in the evening, his first disciple Gautam Ganadhar attained only knowledge.Therefore, the worship method of Jain Deepawali is completely different from other sects.Diwali is also important for Sikhs because on this day, the foundation stone of the Golden Temple was laid in Amritsar in 1577.And apart from this, on the day of Diwali in 1619, the sixth Sikh Guru Hargobind Singh ji was released from jail.Punjab -born Swami Ramatirtha was born and Mahaprayana was both on the day of Deepawali.On the day of Diwali, he took samadhi while bathing on Gangaat on Gangaat.Maharishi Dayanand became the great Jananayak of Indian culture and exploded near Ajmer on the day of Deepawali.He founded the Arya Samaj.During the reign of Mughal Emperor Akbar, the originator of Deen-e-Ilahi, a big sky was hung on a big bamboo in front of Daulatakhana on the day of Diwali.Emperor Jahangir also used to celebrate Deepawali with pomp.Bahadur Shah Zafar, the last emperor of the Mughal dynasty, used to celebrate Deepawali as a festival and he participated in programs organized on the occasion.During the time of Shah Alam II, the entire royal palace was decorated with lamps and both Hindus and Muslims participated in the programs organized in the Red Fort.The Diwali festival is a symbol of a major shopping period in India.Diwali is equal to Christmas in the West in terms of consumer procurement and economic activities.This festival is a time of new clothes, household items, gifts, gold and other big purchases.The expenses and purchases on this festival are considered auspicious because Lakshmi is considered the goddess of wealth, prosperity, and investment.Diwali is the biggest season of gold and jewelry in India.Every year during Diwali, firecrackers worth five thousand crores are consumed. | {
"answer_start": [
960
],
"text": [
"1577"
]
} |
360 | उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। दीवाली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है। दीवाली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा सीज़न है। प्रत्येक वर्ष दीवाली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है। | नरसिंह किस भगवान के अवतार थे ? | {
"text": [
"विंष्णु"
],
"answer_start": [
272
]
} | Narasimha was the incarnation of which god? | People still celebrate this festival in the joy of their return.The people of Krishna Bhakti Dhara are of the opinion that on this day Lord Krishna killed the tyrannical king Narakasura.Due to the slaughter of this brutal demon spread immense joy in the public and people filled with joy burnt lamps of ghee.According to a legend, Vinnu took the form of Narasimha and killed Hiranyakashyapa and on this day Lakshmi and Dhanvantari appeared after Samudramanthan.According to Jain Matawalambi, the twenty -fourth Tirthankara, Mahavir Swami attained salvation on this day.On this day, his first disciple, Gautam Ganadhar, received only knowledge.Deepawali is celebrated by Jain society as Nirvana Day of Mahavir Swami.Mahavir Swami (the last Tirthankara of the present Avasarpini period) received salvation on this day (Kartik Amavasya).On this day, in the evening, his first disciple Gautam Ganadhar attained only knowledge.Therefore, the worship method of Jain Deepawali is completely different from other sects.Diwali is also important for Sikhs because on this day, the foundation stone of the Golden Temple was laid in Amritsar in 1577.And apart from this, on the day of Diwali in 1619, the sixth Sikh Guru Hargobind Singh ji was released from jail.Punjab -born Swami Ramatirtha was born and Mahaprayana was both on the day of Deepawali.On the day of Diwali, he took samadhi while bathing on Gangaat on Gangaat.Maharishi Dayanand became the great Jananayak of Indian culture and exploded near Ajmer on the day of Deepawali.He founded the Arya Samaj.During the reign of Mughal Emperor Akbar, the originator of Deen-e-Ilahi, a big sky was hung on a big bamboo in front of Daulatakhana on the day of Diwali.Emperor Jahangir also used to celebrate Deepawali with pomp.Bahadur Shah Zafar, the last emperor of the Mughal dynasty, used to celebrate Deepawali as a festival and he participated in programs organized on the occasion.During the time of Shah Alam II, the entire royal palace was decorated with lamps and both Hindus and Muslims participated in the programs organized in the Red Fort.The Diwali festival is a symbol of a major shopping period in India.Diwali is equal to Christmas in the West in terms of consumer procurement and economic activities.This festival is a time of new clothes, household items, gifts, gold and other big purchases.The expenses and purchases on this festival are considered auspicious because Lakshmi is considered the goddess of wealth, prosperity, and investment.Diwali is the biggest season of gold and jewelry in India.Every year during Diwali, firecrackers worth five thousand crores are consumed. | {
"answer_start": [
272
],
"text": [
"Vinshnu"
]
} |
361 | उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। दीवाली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है। दीवाली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा सीज़न है। प्रत्येक वर्ष दीवाली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है। | दीवाली के समय कितने रूपए के पटाखों की खपत होती है ? | {
"text": [
"पांच हज़ार करोड़"
],
"answer_start": [
2277
]
} | How much firecrackers are consumed during Diwali? | People still celebrate this festival in the joy of their return.The people of Krishna Bhakti Dhara are of the opinion that on this day Lord Krishna killed the tyrannical king Narakasura.Due to the slaughter of this brutal demon spread immense joy in the public and people filled with joy burnt lamps of ghee.According to a legend, Vinnu took the form of Narasimha and killed Hiranyakashyapa and on this day Lakshmi and Dhanvantari appeared after Samudramanthan.According to Jain Matawalambi, the twenty -fourth Tirthankara, Mahavir Swami attained salvation on this day.On this day, his first disciple, Gautam Ganadhar, received only knowledge.Deepawali is celebrated by Jain society as Nirvana Day of Mahavir Swami.Mahavir Swami (the last Tirthankara of the present Avasarpini period) received salvation on this day (Kartik Amavasya).On this day, in the evening, his first disciple Gautam Ganadhar attained only knowledge.Therefore, the worship method of Jain Deepawali is completely different from other sects.Diwali is also important for Sikhs because on this day, the foundation stone of the Golden Temple was laid in Amritsar in 1577.And apart from this, on the day of Diwali in 1619, the sixth Sikh Guru Hargobind Singh ji was released from jail.Punjab -born Swami Ramatirtha was born and Mahaprayana was both on the day of Deepawali.On the day of Diwali, he took samadhi while bathing on Gangaat on Gangaat.Maharishi Dayanand became the great Jananayak of Indian culture and exploded near Ajmer on the day of Deepawali.He founded the Arya Samaj.During the reign of Mughal Emperor Akbar, the originator of Deen-e-Ilahi, a big sky was hung on a big bamboo in front of Daulatakhana on the day of Diwali.Emperor Jahangir also used to celebrate Deepawali with pomp.Bahadur Shah Zafar, the last emperor of the Mughal dynasty, used to celebrate Deepawali as a festival and he participated in programs organized on the occasion.During the time of Shah Alam II, the entire royal palace was decorated with lamps and both Hindus and Muslims participated in the programs organized in the Red Fort.The Diwali festival is a symbol of a major shopping period in India.Diwali is equal to Christmas in the West in terms of consumer procurement and economic activities.This festival is a time of new clothes, household items, gifts, gold and other big purchases.The expenses and purchases on this festival are considered auspicious because Lakshmi is considered the goddess of wealth, prosperity, and investment.Diwali is the biggest season of gold and jewelry in India.Every year during Diwali, firecrackers worth five thousand crores are consumed. | {
"answer_start": [
2277
],
"text": [
"five thousand crore."
]
} |
362 | उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। दीवाली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है। दीवाली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा सीज़न है। प्रत्येक वर्ष दीवाली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है। | किस त्योहार के समय मिठाई, कैंडी और पटाखों की खरीदारी ज्यादा होती है ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | During which festival is there more shopping for sweets, candy and crackers? | People still celebrate this festival in the joy of their return.The people of Krishna Bhakti Dhara are of the opinion that on this day Lord Krishna killed the tyrannical king Narakasura.Due to the slaughter of this brutal demon spread immense joy in the public and people filled with joy burnt lamps of ghee.According to a legend, Vinnu took the form of Narasimha and killed Hiranyakashyapa and on this day Lakshmi and Dhanvantari appeared after Samudramanthan.According to Jain Matawalambi, the twenty -fourth Tirthankara, Mahavir Swami attained salvation on this day.On this day, his first disciple, Gautam Ganadhar, received only knowledge.Deepawali is celebrated by Jain society as Nirvana Day of Mahavir Swami.Mahavir Swami (the last Tirthankara of the present Avasarpini period) received salvation on this day (Kartik Amavasya).On this day, in the evening, his first disciple Gautam Ganadhar attained only knowledge.Therefore, the worship method of Jain Deepawali is completely different from other sects.Diwali is also important for Sikhs because on this day, the foundation stone of the Golden Temple was laid in Amritsar in 1577.And apart from this, on the day of Diwali in 1619, the sixth Sikh Guru Hargobind Singh ji was released from jail.Punjab -born Swami Ramatirtha was born and Mahaprayana was both on the day of Deepawali.On the day of Diwali, he took samadhi while bathing on Gangaat on Gangaat.Maharishi Dayanand became the great Jananayak of Indian culture and exploded near Ajmer on the day of Deepawali.He founded the Arya Samaj.During the reign of Mughal Emperor Akbar, the originator of Deen-e-Ilahi, a big sky was hung on a big bamboo in front of Daulatakhana on the day of Diwali.Emperor Jahangir also used to celebrate Deepawali with pomp.Bahadur Shah Zafar, the last emperor of the Mughal dynasty, used to celebrate Deepawali as a festival and he participated in programs organized on the occasion.During the time of Shah Alam II, the entire royal palace was decorated with lamps and both Hindus and Muslims participated in the programs organized in the Red Fort.The Diwali festival is a symbol of a major shopping period in India.Diwali is equal to Christmas in the West in terms of consumer procurement and economic activities.This festival is a time of new clothes, household items, gifts, gold and other big purchases.The expenses and purchases on this festival are considered auspicious because Lakshmi is considered the goddess of wealth, prosperity, and investment.Diwali is the biggest season of gold and jewelry in India.Every year during Diwali, firecrackers worth five thousand crores are consumed. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
363 | उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था। जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है। सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। और इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाशदीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे। दीवाली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीवाली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है। दीवाली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा सीज़न है। प्रत्येक वर्ष दीवाली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है। | नरकासुर का वध किसने किया था ? | {
"text": [
"श्री कृष्ण"
],
"answer_start": [
100
]
} | Who killed Narakasura? | People still celebrate this festival in the joy of their return.The people of Krishna Bhakti Dhara are of the opinion that on this day Lord Krishna killed the tyrannical king Narakasura.Due to the slaughter of this brutal demon spread immense joy in the public and people filled with joy burnt lamps of ghee.According to a legend, Vinnu took the form of Narasimha and killed Hiranyakashyapa and on this day Lakshmi and Dhanvantari appeared after Samudramanthan.According to Jain Matawalambi, the twenty -fourth Tirthankara, Mahavir Swami attained salvation on this day.On this day, his first disciple, Gautam Ganadhar, received only knowledge.Deepawali is celebrated by Jain society as Nirvana Day of Mahavir Swami.Mahavir Swami (the last Tirthankara of the present Avasarpini period) received salvation on this day (Kartik Amavasya).On this day, in the evening, his first disciple Gautam Ganadhar attained only knowledge.Therefore, the worship method of Jain Deepawali is completely different from other sects.Diwali is also important for Sikhs because on this day, the foundation stone of the Golden Temple was laid in Amritsar in 1577.And apart from this, on the day of Diwali in 1619, the sixth Sikh Guru Hargobind Singh ji was released from jail.Punjab -born Swami Ramatirtha was born and Mahaprayana was both on the day of Deepawali.On the day of Diwali, he took samadhi while bathing on Gangaat on Gangaat.Maharishi Dayanand became the great Jananayak of Indian culture and exploded near Ajmer on the day of Deepawali.He founded the Arya Samaj.During the reign of Mughal Emperor Akbar, the originator of Deen-e-Ilahi, a big sky was hung on a big bamboo in front of Daulatakhana on the day of Diwali.Emperor Jahangir also used to celebrate Deepawali with pomp.Bahadur Shah Zafar, the last emperor of the Mughal dynasty, used to celebrate Deepawali as a festival and he participated in programs organized on the occasion.During the time of Shah Alam II, the entire royal palace was decorated with lamps and both Hindus and Muslims participated in the programs organized in the Red Fort.The Diwali festival is a symbol of a major shopping period in India.Diwali is equal to Christmas in the West in terms of consumer procurement and economic activities.This festival is a time of new clothes, household items, gifts, gold and other big purchases.The expenses and purchases on this festival are considered auspicious because Lakshmi is considered the goddess of wealth, prosperity, and investment.Diwali is the biggest season of gold and jewelry in India.Every year during Diwali, firecrackers worth five thousand crores are consumed. | {
"answer_start": [
100
],
"text": [
"Sri Krishna"
]
} |
364 | उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया। भारतीय दंड संहिता में धारा 124-ए ब्रिटिश सरकार ने 1870 में जोड़ा था जिसके अंतर्गत "भारत में विधि द्वारा स्थापित ब्रिटिश सरकार के प्रति विरोध की भावना भड़काने वाले व्यक्ति को 3 साल की कैद से लेकर आजीवन देश निकाला तक की सजा दिए जाने का प्रावधान था। " 1898 में ब्रिटिश सरकार ने धारा 124-ए में संशोधन किया और दंड संहिता में नई धारा 153-ए जोड़ी जिसके अंतर्गत "अगर कोई व्यक्ति सरकार की मानहानि करता है यह विभिन्न वर्गों में नफरत फैलाता है या अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा का प्रचार करता है तो यह भी अपराध होगा। "ब्रिटिश सरकार ने लोकमान्य तिलक को ६ वर्ष के कारावास की सजा सुनाई, इस दौरान कारावास में लोकमान्य तिलक ने कुछ किताबो की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ऐसे किसी पत्र को लिखने पर रोक लगवा दी थी जिसमे राजनैतिक गतिविधियां हो। लोकमान्य तिलक ने कारावास में एक किताब भी लिखी, कारावास पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया, इस ढुखद खबर की जानकारी उन्हे जेल में एक ख़त से प्राप्त हुई। और लोकमान्य तिलक को इस बात का बेहद अफसोस था की वे अपनी म्रतक पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकते। बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट जी की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की |होम रूल आन्दोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रसिद्धी मिली, जिस कारण उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी। अप्रैल 1916 में उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की थी। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था। । यह कोई सत्याग्रह आन्दोलन जैसा नहीं था। | बाल गंगाधर तिलक को देशद्रोह के आरोप में कब गिरफ्तार किया गया था? | {
"text": [
"27 जुलाई 1897"
],
"answer_start": [
72
]
} | When was Bal Gangadhar Tilak arrested on charges of sedition? | He was arrested on 27 July 1897 in a treason under Section 124-A of the Indian Penal Code.He was lodged in Mandley (Burma) jail under 6 years of rigorous imprisonment.Section 124-A British government added to the Indian Penal Code in 1870 under which "provision of punishment for a person who provokes a sense of protest against the British government established in India from 3 years captivity to lifetime countryWas. "In 1898, the British government amended Section 124-A and in the Penal Code, the new section 153-A under which" if a person defames the government, it spreads hatred in different classes or propagating hatred against the BritishIt would also be a crime. "The British government sentenced Lokmanya Tilak to 6 years imprisonment, during which Lokmanya Tilak demanded some books in imprisonment, but the British government had stopped writing such a letter to him.Which has political activities.Lokmanya Tilak also wrote a book in imprisonment, the wife of Bal Gangadhar Tilak died shortly before the imprisonment was completed, she got information about this dhukhad news from a letter in jail.And Lokmanya Tilak was very sorry that he could not even see his last wife.Bal Gangadhar Tilak established the Home Ruel League with the help of Annie Besant Ji. During the Home Ruel movement, Bal Gangadhar Tilak got a lot of fame, due to which he got the title of "Lokmanya".In April 1916, he founded the Home Rule League.The main objective of this movement was to establish Swaraj in India.,This was not like a Satyagraha movement. | {
"answer_start": [
72
],
"text": [
"27 July 1897"
]
} |
365 | उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया। भारतीय दंड संहिता में धारा 124-ए ब्रिटिश सरकार ने 1870 में जोड़ा था जिसके अंतर्गत "भारत में विधि द्वारा स्थापित ब्रिटिश सरकार के प्रति विरोध की भावना भड़काने वाले व्यक्ति को 3 साल की कैद से लेकर आजीवन देश निकाला तक की सजा दिए जाने का प्रावधान था। " 1898 में ब्रिटिश सरकार ने धारा 124-ए में संशोधन किया और दंड संहिता में नई धारा 153-ए जोड़ी जिसके अंतर्गत "अगर कोई व्यक्ति सरकार की मानहानि करता है यह विभिन्न वर्गों में नफरत फैलाता है या अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा का प्रचार करता है तो यह भी अपराध होगा। "ब्रिटिश सरकार ने लोकमान्य तिलक को ६ वर्ष के कारावास की सजा सुनाई, इस दौरान कारावास में लोकमान्य तिलक ने कुछ किताबो की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ऐसे किसी पत्र को लिखने पर रोक लगवा दी थी जिसमे राजनैतिक गतिविधियां हो। लोकमान्य तिलक ने कारावास में एक किताब भी लिखी, कारावास पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया, इस ढुखद खबर की जानकारी उन्हे जेल में एक ख़त से प्राप्त हुई। और लोकमान्य तिलक को इस बात का बेहद अफसोस था की वे अपनी म्रतक पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकते। बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट जी की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की |होम रूल आन्दोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रसिद्धी मिली, जिस कारण उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी। अप्रैल 1916 में उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की थी। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था। । यह कोई सत्याग्रह आन्दोलन जैसा नहीं था। | बाल गंगाधर तिलक को किस जेल में कैद किया गया था? | {
"text": [
"माण्डले (बर्मा) जेल"
],
"answer_start": [
151
]
} | In which jail was Bal Gangadhar Tilak imprisoned? | He was arrested on 27 July 1897 in a treason under Section 124-A of the Indian Penal Code.He was lodged in Mandley (Burma) jail under 6 years of rigorous imprisonment.Section 124-A British government added to the Indian Penal Code in 1870 under which "provision of punishment for a person who provokes a sense of protest against the British government established in India from 3 years captivity to lifetime countryWas. "In 1898, the British government amended Section 124-A and in the Penal Code, the new section 153-A under which" if a person defames the government, it spreads hatred in different classes or propagating hatred against the BritishIt would also be a crime. "The British government sentenced Lokmanya Tilak to 6 years imprisonment, during which Lokmanya Tilak demanded some books in imprisonment, but the British government had stopped writing such a letter to him.Which has political activities.Lokmanya Tilak also wrote a book in imprisonment, the wife of Bal Gangadhar Tilak died shortly before the imprisonment was completed, she got information about this dhukhad news from a letter in jail.And Lokmanya Tilak was very sorry that he could not even see his last wife.Bal Gangadhar Tilak established the Home Ruel League with the help of Annie Besant Ji. During the Home Ruel movement, Bal Gangadhar Tilak got a lot of fame, due to which he got the title of "Lokmanya".In April 1916, he founded the Home Rule League.The main objective of this movement was to establish Swaraj in India.,This was not like a Satyagraha movement. | {
"answer_start": [
151
],
"text": [
"Mandalay (Burma) Prison"
]
} |
366 | उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया। भारतीय दंड संहिता में धारा 124-ए ब्रिटिश सरकार ने 1870 में जोड़ा था जिसके अंतर्गत "भारत में विधि द्वारा स्थापित ब्रिटिश सरकार के प्रति विरोध की भावना भड़काने वाले व्यक्ति को 3 साल की कैद से लेकर आजीवन देश निकाला तक की सजा दिए जाने का प्रावधान था। " 1898 में ब्रिटिश सरकार ने धारा 124-ए में संशोधन किया और दंड संहिता में नई धारा 153-ए जोड़ी जिसके अंतर्गत "अगर कोई व्यक्ति सरकार की मानहानि करता है यह विभिन्न वर्गों में नफरत फैलाता है या अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा का प्रचार करता है तो यह भी अपराध होगा। "ब्रिटिश सरकार ने लोकमान्य तिलक को ६ वर्ष के कारावास की सजा सुनाई, इस दौरान कारावास में लोकमान्य तिलक ने कुछ किताबो की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ऐसे किसी पत्र को लिखने पर रोक लगवा दी थी जिसमे राजनैतिक गतिविधियां हो। लोकमान्य तिलक ने कारावास में एक किताब भी लिखी, कारावास पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया, इस ढुखद खबर की जानकारी उन्हे जेल में एक ख़त से प्राप्त हुई। और लोकमान्य तिलक को इस बात का बेहद अफसोस था की वे अपनी म्रतक पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकते। बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट जी की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की |होम रूल आन्दोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रसिद्धी मिली, जिस कारण उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी। अप्रैल 1916 में उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की थी। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था। । यह कोई सत्याग्रह आन्दोलन जैसा नहीं था। | ब्रिटिश सरकार द्वारा धारा 153 - ए कब जोड़ी गई थी? | {
"text": [
"1898 में"
],
"answer_start": [
441
]
} | When was Section 153-A added by the British government? | He was arrested on 27 July 1897 in a treason under Section 124-A of the Indian Penal Code.He was lodged in Mandley (Burma) jail under 6 years of rigorous imprisonment.Section 124-A British government added to the Indian Penal Code in 1870 under which "provision of punishment for a person who provokes a sense of protest against the British government established in India from 3 years captivity to lifetime countryWas. "In 1898, the British government amended Section 124-A and in the Penal Code, the new section 153-A under which" if a person defames the government, it spreads hatred in different classes or propagating hatred against the BritishIt would also be a crime. "The British government sentenced Lokmanya Tilak to 6 years imprisonment, during which Lokmanya Tilak demanded some books in imprisonment, but the British government had stopped writing such a letter to him.Which has political activities.Lokmanya Tilak also wrote a book in imprisonment, the wife of Bal Gangadhar Tilak died shortly before the imprisonment was completed, she got information about this dhukhad news from a letter in jail.And Lokmanya Tilak was very sorry that he could not even see his last wife.Bal Gangadhar Tilak established the Home Ruel League with the help of Annie Besant Ji. During the Home Ruel movement, Bal Gangadhar Tilak got a lot of fame, due to which he got the title of "Lokmanya".In April 1916, he founded the Home Rule League.The main objective of this movement was to establish Swaraj in India.,This was not like a Satyagraha movement. | {
"answer_start": [
441
],
"text": [
"In the year 1898."
]
} |
367 | उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया। भारतीय दंड संहिता में धारा 124-ए ब्रिटिश सरकार ने 1870 में जोड़ा था जिसके अंतर्गत "भारत में विधि द्वारा स्थापित ब्रिटिश सरकार के प्रति विरोध की भावना भड़काने वाले व्यक्ति को 3 साल की कैद से लेकर आजीवन देश निकाला तक की सजा दिए जाने का प्रावधान था। " 1898 में ब्रिटिश सरकार ने धारा 124-ए में संशोधन किया और दंड संहिता में नई धारा 153-ए जोड़ी जिसके अंतर्गत "अगर कोई व्यक्ति सरकार की मानहानि करता है यह विभिन्न वर्गों में नफरत फैलाता है या अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा का प्रचार करता है तो यह भी अपराध होगा। "ब्रिटिश सरकार ने लोकमान्य तिलक को ६ वर्ष के कारावास की सजा सुनाई, इस दौरान कारावास में लोकमान्य तिलक ने कुछ किताबो की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ऐसे किसी पत्र को लिखने पर रोक लगवा दी थी जिसमे राजनैतिक गतिविधियां हो। लोकमान्य तिलक ने कारावास में एक किताब भी लिखी, कारावास पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया, इस ढुखद खबर की जानकारी उन्हे जेल में एक ख़त से प्राप्त हुई। और लोकमान्य तिलक को इस बात का बेहद अफसोस था की वे अपनी म्रतक पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकते। बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट जी की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की |होम रूल आन्दोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रसिद्धी मिली, जिस कारण उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी। अप्रैल 1916 में उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की थी। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था। । यह कोई सत्याग्रह आन्दोलन जैसा नहीं था। | बाल गंगाधर तिलक ने जेल में किस चीज़ की मांग की थी? | {
"text": [
"किताबो"
],
"answer_start": [
801
]
} | What did Bal Gangadhar Tilak demand in jail? | He was arrested on 27 July 1897 in a treason under Section 124-A of the Indian Penal Code.He was lodged in Mandley (Burma) jail under 6 years of rigorous imprisonment.Section 124-A British government added to the Indian Penal Code in 1870 under which "provision of punishment for a person who provokes a sense of protest against the British government established in India from 3 years captivity to lifetime countryWas. "In 1898, the British government amended Section 124-A and in the Penal Code, the new section 153-A under which" if a person defames the government, it spreads hatred in different classes or propagating hatred against the BritishIt would also be a crime. "The British government sentenced Lokmanya Tilak to 6 years imprisonment, during which Lokmanya Tilak demanded some books in imprisonment, but the British government had stopped writing such a letter to him.Which has political activities.Lokmanya Tilak also wrote a book in imprisonment, the wife of Bal Gangadhar Tilak died shortly before the imprisonment was completed, she got information about this dhukhad news from a letter in jail.And Lokmanya Tilak was very sorry that he could not even see his last wife.Bal Gangadhar Tilak established the Home Ruel League with the help of Annie Besant Ji. During the Home Ruel movement, Bal Gangadhar Tilak got a lot of fame, due to which he got the title of "Lokmanya".In April 1916, he founded the Home Rule League.The main objective of this movement was to establish Swaraj in India.,This was not like a Satyagraha movement. | {
"answer_start": [
801
],
"text": [
"Kitabo"
]
} |
368 | उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया। भारतीय दंड संहिता में धारा 124-ए ब्रिटिश सरकार ने 1870 में जोड़ा था जिसके अंतर्गत "भारत में विधि द्वारा स्थापित ब्रिटिश सरकार के प्रति विरोध की भावना भड़काने वाले व्यक्ति को 3 साल की कैद से लेकर आजीवन देश निकाला तक की सजा दिए जाने का प्रावधान था। " 1898 में ब्रिटिश सरकार ने धारा 124-ए में संशोधन किया और दंड संहिता में नई धारा 153-ए जोड़ी जिसके अंतर्गत "अगर कोई व्यक्ति सरकार की मानहानि करता है यह विभिन्न वर्गों में नफरत फैलाता है या अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा का प्रचार करता है तो यह भी अपराध होगा। "ब्रिटिश सरकार ने लोकमान्य तिलक को ६ वर्ष के कारावास की सजा सुनाई, इस दौरान कारावास में लोकमान्य तिलक ने कुछ किताबो की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ऐसे किसी पत्र को लिखने पर रोक लगवा दी थी जिसमे राजनैतिक गतिविधियां हो। लोकमान्य तिलक ने कारावास में एक किताब भी लिखी, कारावास पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया, इस ढुखद खबर की जानकारी उन्हे जेल में एक ख़त से प्राप्त हुई। और लोकमान्य तिलक को इस बात का बेहद अफसोस था की वे अपनी म्रतक पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकते। बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट जी की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की |होम रूल आन्दोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रसिद्धी मिली, जिस कारण उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी। अप्रैल 1916 में उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की थी। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था। । यह कोई सत्याग्रह आन्दोलन जैसा नहीं था। | एनी बेसेंट किस प्रदेश से भारत आई थी ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Annie Besant came to India from which state? | He was arrested on 27 July 1897 in a treason under Section 124-A of the Indian Penal Code.He was lodged in Mandley (Burma) jail under 6 years of rigorous imprisonment.Section 124-A British government added to the Indian Penal Code in 1870 under which "provision of punishment for a person who provokes a sense of protest against the British government established in India from 3 years captivity to lifetime countryWas. "In 1898, the British government amended Section 124-A and in the Penal Code, the new section 153-A under which" if a person defames the government, it spreads hatred in different classes or propagating hatred against the BritishIt would also be a crime. "The British government sentenced Lokmanya Tilak to 6 years imprisonment, during which Lokmanya Tilak demanded some books in imprisonment, but the British government had stopped writing such a letter to him.Which has political activities.Lokmanya Tilak also wrote a book in imprisonment, the wife of Bal Gangadhar Tilak died shortly before the imprisonment was completed, she got information about this dhukhad news from a letter in jail.And Lokmanya Tilak was very sorry that he could not even see his last wife.Bal Gangadhar Tilak established the Home Ruel League with the help of Annie Besant Ji. During the Home Ruel movement, Bal Gangadhar Tilak got a lot of fame, due to which he got the title of "Lokmanya".In April 1916, he founded the Home Rule League.The main objective of this movement was to establish Swaraj in India.,This was not like a Satyagraha movement. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
369 | उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया। भारतीय दंड संहिता में धारा 124-ए ब्रिटिश सरकार ने 1870 में जोड़ा था जिसके अंतर्गत "भारत में विधि द्वारा स्थापित ब्रिटिश सरकार के प्रति विरोध की भावना भड़काने वाले व्यक्ति को 3 साल की कैद से लेकर आजीवन देश निकाला तक की सजा दिए जाने का प्रावधान था। " 1898 में ब्रिटिश सरकार ने धारा 124-ए में संशोधन किया और दंड संहिता में नई धारा 153-ए जोड़ी जिसके अंतर्गत "अगर कोई व्यक्ति सरकार की मानहानि करता है यह विभिन्न वर्गों में नफरत फैलाता है या अंग्रेजों के विरुद्ध घृणा का प्रचार करता है तो यह भी अपराध होगा। "ब्रिटिश सरकार ने लोकमान्य तिलक को ६ वर्ष के कारावास की सजा सुनाई, इस दौरान कारावास में लोकमान्य तिलक ने कुछ किताबो की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ऐसे किसी पत्र को लिखने पर रोक लगवा दी थी जिसमे राजनैतिक गतिविधियां हो। लोकमान्य तिलक ने कारावास में एक किताब भी लिखी, कारावास पूर्ण होने के कुछ समय पूर्व ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का स्वर्गवास हो गया, इस ढुखद खबर की जानकारी उन्हे जेल में एक ख़त से प्राप्त हुई। और लोकमान्य तिलक को इस बात का बेहद अफसोस था की वे अपनी म्रतक पत्नी के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकते। बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट जी की मदद से होम रुल लीग की स्थापना की |होम रूल आन्दोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक को काफी प्रसिद्धी मिली, जिस कारण उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी। अप्रैल 1916 में उन्होंने होम रूल लीग की स्थापना की थी। इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारत में स्वराज स्थापित करना था। । यह कोई सत्याग्रह आन्दोलन जैसा नहीं था। | होम रूल लीग की स्थापना कब की गई थी? | {
"text": [
"अप्रैल 1916"
],
"answer_start": [
1387
]
} | When was the Home Rule League founded? | He was arrested on 27 July 1897 in a treason under Section 124-A of the Indian Penal Code.He was lodged in Mandley (Burma) jail under 6 years of rigorous imprisonment.Section 124-A British government added to the Indian Penal Code in 1870 under which "provision of punishment for a person who provokes a sense of protest against the British government established in India from 3 years captivity to lifetime countryWas. "In 1898, the British government amended Section 124-A and in the Penal Code, the new section 153-A under which" if a person defames the government, it spreads hatred in different classes or propagating hatred against the BritishIt would also be a crime. "The British government sentenced Lokmanya Tilak to 6 years imprisonment, during which Lokmanya Tilak demanded some books in imprisonment, but the British government had stopped writing such a letter to him.Which has political activities.Lokmanya Tilak also wrote a book in imprisonment, the wife of Bal Gangadhar Tilak died shortly before the imprisonment was completed, she got information about this dhukhad news from a letter in jail.And Lokmanya Tilak was very sorry that he could not even see his last wife.Bal Gangadhar Tilak established the Home Ruel League with the help of Annie Besant Ji. During the Home Ruel movement, Bal Gangadhar Tilak got a lot of fame, due to which he got the title of "Lokmanya".In April 1916, he founded the Home Rule League.The main objective of this movement was to establish Swaraj in India.,This was not like a Satyagraha movement. | {
"answer_start": [
1387
],
"text": [
"April 1916"
]
} |
370 | उन्होंने 1857 की क्रान्ति के बारे में गहन अध्ययन किया कि किस तरह अंग्रेजों को जड़ से उखाड़ा जा सकता है। लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु 8 जुलाई 1910 को एम॰एस॰ मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। 24 दिसम्बर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार - मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की। सावरकर ने अपने मित्रो को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई। 1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी। ढींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी। सावरकर ने ढींगरा को राजनीतिक और कानूनी सहयोग दिया, लेकिन बाद में अंग्रेज सरकार ने एक गुप्त और प्रतिबन्धित परीक्षण कर ढींगरा को मौत की सजा सुना दी, जिससे लन्दन में रहने वाले भारतीय छात्र भड़क गये। सावरकर ने ढींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रान्तिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया था। सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में फँसा दिया, जिसके बाद सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया। अब सावरकर को आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने का विचार किया गया। जब सावरकर को भारत जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने अपने मित्र को जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना पत्र में लिखी। जहाज रुका और सावरकर खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग गए, लेकिन मित्र को आने में देर होने की वजह से उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। सावरकर की गिरफ्तारी से फ़्रेंच सरकार ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था। । सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। 1920 में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उनकी रिहाई हो गई। | सावरकर को उनकी क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा कितनी बार आजीवन कारावास की सजा दी गई थी? | {
"text": [
"दो"
],
"answer_start": [
679
]
} | How many times was Savarkar sentenced to life imprisonment by the British government for his revolutionary activities? | He studied intensely about the revolution of 1857 how the British can be uprooted.While living in London, he met Lala Hardayal, who used to look after India House in those days.He also wrote an article in the London Times after Madanlal Dhingra was shot dead by Madanlal Dhingra on 1 July 1909.On 13 May 1910, he was arrested on reaching London from Paris, but on 8 July 1910, he escaped through a sewer hole, taking him to India by a ship called MS Moriya.On 24 December 1910, he was sentenced to life imprisonment.After this, he was given life imprisonment again on 31 January 1911.Thus Savarkar was punished by the British government for two or two life imprisonment for revolution works, which was the first and unique punishment in the history of the world.According to Savarkar - Motherland!I have already offered my mind at your feet.Considering that the country and service is God, I served God through your service.Savarkar taught his friends the art of making bombs and war with guerrilla method.In 1909, Savarkar's friend and follower Madanlal Dhingra killed the British officer Curzon in a public meeting.This work of Dhingra increased revolutionary activities in India and Britain.Savarkar gave political and legal support to Dhingra, but later the British government sentenced Dhingra to death by conducting a secret and banned test, which provoked Indian students in London.Savarkar raised the revolutionary rebellion by calling Dhingra a patriot.In view of Savarkar's activities, the British government trapped in the crime of joining the murder plan and sending pistol in India, after which Savarkar was arrested.Now it was considered to take Savarkar to India for further prosecution.When Savarkar came to know about the news of going to India, Savarkar wrote to his friend in a plan to run away from France while staying from France.The ship stopped and Savarkar ran out of the window and ran away floating in sea water, but the friend was arrested again due to his delay.The French government opposed the British government with the arrest of Savarkar.He was sent to a Cellular Jail on 7 April 1911 under the Nashik Conspiracy Kand for the murder of Nashik district collector Jackson.According to him, freedom fighters had to work hard here.The prisoners had to peel coconut here and extract oil from it.Also, they had to extract mustard and coconut etc. in the crusher here like a bull.Apart from this, they had to clean the marshy land and mountainous region by cleaning the forests and outside the forest.On stopping, they were also punished and beaten with cane and whip.Even then, he was not even given a lot of food.,Savarkar was in Port Blair's jail from July 4, 1911 to May 21, 1921.In 1920, at the behest of Vallabhbhai Patel and Bal Gangadhar Tilak, he was released on the condition of not breaking the British law and not rebelling. | {
"answer_start": [
679
],
"text": [
"Two"
]
} |
371 | उन्होंने 1857 की क्रान्ति के बारे में गहन अध्ययन किया कि किस तरह अंग्रेजों को जड़ से उखाड़ा जा सकता है। लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु 8 जुलाई 1910 को एम॰एस॰ मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। 24 दिसम्बर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार - मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की। सावरकर ने अपने मित्रो को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई। 1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी। ढींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी। सावरकर ने ढींगरा को राजनीतिक और कानूनी सहयोग दिया, लेकिन बाद में अंग्रेज सरकार ने एक गुप्त और प्रतिबन्धित परीक्षण कर ढींगरा को मौत की सजा सुना दी, जिससे लन्दन में रहने वाले भारतीय छात्र भड़क गये। सावरकर ने ढींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रान्तिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया था। सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में फँसा दिया, जिसके बाद सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया। अब सावरकर को आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने का विचार किया गया। जब सावरकर को भारत जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने अपने मित्र को जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना पत्र में लिखी। जहाज रुका और सावरकर खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग गए, लेकिन मित्र को आने में देर होने की वजह से उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। सावरकर की गिरफ्तारी से फ़्रेंच सरकार ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था। । सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। 1920 में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उनकी रिहाई हो गई। | लोग किसके लिए भारत रत्न की मांग कर रहे थे? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | For whom were people demanding Bharat Ratna? | He studied intensely about the revolution of 1857 how the British can be uprooted.While living in London, he met Lala Hardayal, who used to look after India House in those days.He also wrote an article in the London Times after Madanlal Dhingra was shot dead by Madanlal Dhingra on 1 July 1909.On 13 May 1910, he was arrested on reaching London from Paris, but on 8 July 1910, he escaped through a sewer hole, taking him to India by a ship called MS Moriya.On 24 December 1910, he was sentenced to life imprisonment.After this, he was given life imprisonment again on 31 January 1911.Thus Savarkar was punished by the British government for two or two life imprisonment for revolution works, which was the first and unique punishment in the history of the world.According to Savarkar - Motherland!I have already offered my mind at your feet.Considering that the country and service is God, I served God through your service.Savarkar taught his friends the art of making bombs and war with guerrilla method.In 1909, Savarkar's friend and follower Madanlal Dhingra killed the British officer Curzon in a public meeting.This work of Dhingra increased revolutionary activities in India and Britain.Savarkar gave political and legal support to Dhingra, but later the British government sentenced Dhingra to death by conducting a secret and banned test, which provoked Indian students in London.Savarkar raised the revolutionary rebellion by calling Dhingra a patriot.In view of Savarkar's activities, the British government trapped in the crime of joining the murder plan and sending pistol in India, after which Savarkar was arrested.Now it was considered to take Savarkar to India for further prosecution.When Savarkar came to know about the news of going to India, Savarkar wrote to his friend in a plan to run away from France while staying from France.The ship stopped and Savarkar ran out of the window and ran away floating in sea water, but the friend was arrested again due to his delay.The French government opposed the British government with the arrest of Savarkar.He was sent to a Cellular Jail on 7 April 1911 under the Nashik Conspiracy Kand for the murder of Nashik district collector Jackson.According to him, freedom fighters had to work hard here.The prisoners had to peel coconut here and extract oil from it.Also, they had to extract mustard and coconut etc. in the crusher here like a bull.Apart from this, they had to clean the marshy land and mountainous region by cleaning the forests and outside the forest.On stopping, they were also punished and beaten with cane and whip.Even then, he was not even given a lot of food.,Savarkar was in Port Blair's jail from July 4, 1911 to May 21, 1921.In 1920, at the behest of Vallabhbhai Patel and Bal Gangadhar Tilak, he was released on the condition of not breaking the British law and not rebelling. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
372 | उन्होंने 1857 की क्रान्ति के बारे में गहन अध्ययन किया कि किस तरह अंग्रेजों को जड़ से उखाड़ा जा सकता है। लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु 8 जुलाई 1910 को एम॰एस॰ मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। 24 दिसम्बर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार - मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की। सावरकर ने अपने मित्रो को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई। 1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी। ढींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी। सावरकर ने ढींगरा को राजनीतिक और कानूनी सहयोग दिया, लेकिन बाद में अंग्रेज सरकार ने एक गुप्त और प्रतिबन्धित परीक्षण कर ढींगरा को मौत की सजा सुना दी, जिससे लन्दन में रहने वाले भारतीय छात्र भड़क गये। सावरकर ने ढींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रान्तिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया था। सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में फँसा दिया, जिसके बाद सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया। अब सावरकर को आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने का विचार किया गया। जब सावरकर को भारत जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने अपने मित्र को जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना पत्र में लिखी। जहाज रुका और सावरकर खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग गए, लेकिन मित्र को आने में देर होने की वजह से उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। सावरकर की गिरफ्तारी से फ़्रेंच सरकार ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था। । सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। 1920 में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उनकी रिहाई हो गई। | विलियम हट कर्जन वायली को किसने गोली मारी थी? | {
"text": [
"मदनलाल ढींगरा"
],
"answer_start": [
214
]
} | Who shot William Hutt Curzon Wyllie? | He studied intensely about the revolution of 1857 how the British can be uprooted.While living in London, he met Lala Hardayal, who used to look after India House in those days.He also wrote an article in the London Times after Madanlal Dhingra was shot dead by Madanlal Dhingra on 1 July 1909.On 13 May 1910, he was arrested on reaching London from Paris, but on 8 July 1910, he escaped through a sewer hole, taking him to India by a ship called MS Moriya.On 24 December 1910, he was sentenced to life imprisonment.After this, he was given life imprisonment again on 31 January 1911.Thus Savarkar was punished by the British government for two or two life imprisonment for revolution works, which was the first and unique punishment in the history of the world.According to Savarkar - Motherland!I have already offered my mind at your feet.Considering that the country and service is God, I served God through your service.Savarkar taught his friends the art of making bombs and war with guerrilla method.In 1909, Savarkar's friend and follower Madanlal Dhingra killed the British officer Curzon in a public meeting.This work of Dhingra increased revolutionary activities in India and Britain.Savarkar gave political and legal support to Dhingra, but later the British government sentenced Dhingra to death by conducting a secret and banned test, which provoked Indian students in London.Savarkar raised the revolutionary rebellion by calling Dhingra a patriot.In view of Savarkar's activities, the British government trapped in the crime of joining the murder plan and sending pistol in India, after which Savarkar was arrested.Now it was considered to take Savarkar to India for further prosecution.When Savarkar came to know about the news of going to India, Savarkar wrote to his friend in a plan to run away from France while staying from France.The ship stopped and Savarkar ran out of the window and ran away floating in sea water, but the friend was arrested again due to his delay.The French government opposed the British government with the arrest of Savarkar.He was sent to a Cellular Jail on 7 April 1911 under the Nashik Conspiracy Kand for the murder of Nashik district collector Jackson.According to him, freedom fighters had to work hard here.The prisoners had to peel coconut here and extract oil from it.Also, they had to extract mustard and coconut etc. in the crusher here like a bull.Apart from this, they had to clean the marshy land and mountainous region by cleaning the forests and outside the forest.On stopping, they were also punished and beaten with cane and whip.Even then, he was not even given a lot of food.,Savarkar was in Port Blair's jail from July 4, 1911 to May 21, 1921.In 1920, at the behest of Vallabhbhai Patel and Bal Gangadhar Tilak, he was released on the condition of not breaking the British law and not rebelling. | {
"answer_start": [
214
],
"text": [
"Madanlal Dhingra"
]
} |
373 | उन्होंने 1857 की क्रान्ति के बारे में गहन अध्ययन किया कि किस तरह अंग्रेजों को जड़ से उखाड़ा जा सकता है। लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु 8 जुलाई 1910 को एम॰एस॰ मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। 24 दिसम्बर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार - मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की। सावरकर ने अपने मित्रो को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई। 1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी। ढींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी। सावरकर ने ढींगरा को राजनीतिक और कानूनी सहयोग दिया, लेकिन बाद में अंग्रेज सरकार ने एक गुप्त और प्रतिबन्धित परीक्षण कर ढींगरा को मौत की सजा सुना दी, जिससे लन्दन में रहने वाले भारतीय छात्र भड़क गये। सावरकर ने ढींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रान्तिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया था। सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में फँसा दिया, जिसके बाद सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया। अब सावरकर को आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने का विचार किया गया। जब सावरकर को भारत जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने अपने मित्र को जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना पत्र में लिखी। जहाज रुका और सावरकर खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग गए, लेकिन मित्र को आने में देर होने की वजह से उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। सावरकर की गिरफ्तारी से फ़्रेंच सरकार ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था। । सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। 1920 में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उनकी रिहाई हो गई। | सावरकर को आजीवन कारावास की सजा कब सुनाई गई थी? | {
"text": [
"24 दिसम्बर 1910"
],
"answer_start": [
498
]
} | When was Savarkar sentenced to life imprisonment? | He studied intensely about the revolution of 1857 how the British can be uprooted.While living in London, he met Lala Hardayal, who used to look after India House in those days.He also wrote an article in the London Times after Madanlal Dhingra was shot dead by Madanlal Dhingra on 1 July 1909.On 13 May 1910, he was arrested on reaching London from Paris, but on 8 July 1910, he escaped through a sewer hole, taking him to India by a ship called MS Moriya.On 24 December 1910, he was sentenced to life imprisonment.After this, he was given life imprisonment again on 31 January 1911.Thus Savarkar was punished by the British government for two or two life imprisonment for revolution works, which was the first and unique punishment in the history of the world.According to Savarkar - Motherland!I have already offered my mind at your feet.Considering that the country and service is God, I served God through your service.Savarkar taught his friends the art of making bombs and war with guerrilla method.In 1909, Savarkar's friend and follower Madanlal Dhingra killed the British officer Curzon in a public meeting.This work of Dhingra increased revolutionary activities in India and Britain.Savarkar gave political and legal support to Dhingra, but later the British government sentenced Dhingra to death by conducting a secret and banned test, which provoked Indian students in London.Savarkar raised the revolutionary rebellion by calling Dhingra a patriot.In view of Savarkar's activities, the British government trapped in the crime of joining the murder plan and sending pistol in India, after which Savarkar was arrested.Now it was considered to take Savarkar to India for further prosecution.When Savarkar came to know about the news of going to India, Savarkar wrote to his friend in a plan to run away from France while staying from France.The ship stopped and Savarkar ran out of the window and ran away floating in sea water, but the friend was arrested again due to his delay.The French government opposed the British government with the arrest of Savarkar.He was sent to a Cellular Jail on 7 April 1911 under the Nashik Conspiracy Kand for the murder of Nashik district collector Jackson.According to him, freedom fighters had to work hard here.The prisoners had to peel coconut here and extract oil from it.Also, they had to extract mustard and coconut etc. in the crusher here like a bull.Apart from this, they had to clean the marshy land and mountainous region by cleaning the forests and outside the forest.On stopping, they were also punished and beaten with cane and whip.Even then, he was not even given a lot of food.,Savarkar was in Port Blair's jail from July 4, 1911 to May 21, 1921.In 1920, at the behest of Vallabhbhai Patel and Bal Gangadhar Tilak, he was released on the condition of not breaking the British law and not rebelling. | {
"answer_start": [
498
],
"text": [
"24 December 1910"
]
} |
374 | उन्होंने 1857 की क्रान्ति के बारे में गहन अध्ययन किया कि किस तरह अंग्रेजों को जड़ से उखाड़ा जा सकता है। लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु 8 जुलाई 1910 को एम॰एस॰ मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। 24 दिसम्बर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार - मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की। सावरकर ने अपने मित्रो को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई। 1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी। ढींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी। सावरकर ने ढींगरा को राजनीतिक और कानूनी सहयोग दिया, लेकिन बाद में अंग्रेज सरकार ने एक गुप्त और प्रतिबन्धित परीक्षण कर ढींगरा को मौत की सजा सुना दी, जिससे लन्दन में रहने वाले भारतीय छात्र भड़क गये। सावरकर ने ढींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रान्तिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया था। सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में फँसा दिया, जिसके बाद सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया। अब सावरकर को आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने का विचार किया गया। जब सावरकर को भारत जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने अपने मित्र को जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना पत्र में लिखी। जहाज रुका और सावरकर खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग गए, लेकिन मित्र को आने में देर होने की वजह से उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। सावरकर की गिरफ्तारी से फ़्रेंच सरकार ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था। । सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। 1920 में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उनकी रिहाई हो गई। | सावरकर के मित्र का क्या नाम था? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | What was the name of Savarkar's friend? | He studied intensely about the revolution of 1857 how the British can be uprooted.While living in London, he met Lala Hardayal, who used to look after India House in those days.He also wrote an article in the London Times after Madanlal Dhingra was shot dead by Madanlal Dhingra on 1 July 1909.On 13 May 1910, he was arrested on reaching London from Paris, but on 8 July 1910, he escaped through a sewer hole, taking him to India by a ship called MS Moriya.On 24 December 1910, he was sentenced to life imprisonment.After this, he was given life imprisonment again on 31 January 1911.Thus Savarkar was punished by the British government for two or two life imprisonment for revolution works, which was the first and unique punishment in the history of the world.According to Savarkar - Motherland!I have already offered my mind at your feet.Considering that the country and service is God, I served God through your service.Savarkar taught his friends the art of making bombs and war with guerrilla method.In 1909, Savarkar's friend and follower Madanlal Dhingra killed the British officer Curzon in a public meeting.This work of Dhingra increased revolutionary activities in India and Britain.Savarkar gave political and legal support to Dhingra, but later the British government sentenced Dhingra to death by conducting a secret and banned test, which provoked Indian students in London.Savarkar raised the revolutionary rebellion by calling Dhingra a patriot.In view of Savarkar's activities, the British government trapped in the crime of joining the murder plan and sending pistol in India, after which Savarkar was arrested.Now it was considered to take Savarkar to India for further prosecution.When Savarkar came to know about the news of going to India, Savarkar wrote to his friend in a plan to run away from France while staying from France.The ship stopped and Savarkar ran out of the window and ran away floating in sea water, but the friend was arrested again due to his delay.The French government opposed the British government with the arrest of Savarkar.He was sent to a Cellular Jail on 7 April 1911 under the Nashik Conspiracy Kand for the murder of Nashik district collector Jackson.According to him, freedom fighters had to work hard here.The prisoners had to peel coconut here and extract oil from it.Also, they had to extract mustard and coconut etc. in the crusher here like a bull.Apart from this, they had to clean the marshy land and mountainous region by cleaning the forests and outside the forest.On stopping, they were also punished and beaten with cane and whip.Even then, he was not even given a lot of food.,Savarkar was in Port Blair's jail from July 4, 1911 to May 21, 1921.In 1920, at the behest of Vallabhbhai Patel and Bal Gangadhar Tilak, he was released on the condition of not breaking the British law and not rebelling. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
375 | उन्होंने 1857 की क्रान्ति के बारे में गहन अध्ययन किया कि किस तरह अंग्रेजों को जड़ से उखाड़ा जा सकता है। लन्दन में रहते हुये उनकी मुलाकात लाला हरदयाल से हुई जो उन दिनों इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे। 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिये जाने के बाद उन्होंने लन्दन टाइम्स में एक लेख भी लिखा था। 13 मई 1910 को पैरिस से लन्दन पहुँचने पर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया परन्तु 8 जुलाई 1910 को एम॰एस॰ मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते हुए सीवर होल के रास्ते ये भाग निकले। 24 दिसम्बर 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी। इसके बाद 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास दिया गया। इस प्रकार सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी। सावरकर के अनुसार - मातृभूमि! तेरे चरणों में पहले ही मैं अपना मन अर्पित कर चुका हूँ। देश-सेवा ही ईश्वर-सेवा है, यह मानकर मैंने तेरी सेवा के माध्यम से भगवान की सेवा की। सावरकर ने अपने मित्रो को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला सिखाई। 1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी मदनलाल ढींगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी। ढींगरा के इस काम से भारत और ब्रिटेन में क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी। सावरकर ने ढींगरा को राजनीतिक और कानूनी सहयोग दिया, लेकिन बाद में अंग्रेज सरकार ने एक गुप्त और प्रतिबन्धित परीक्षण कर ढींगरा को मौत की सजा सुना दी, जिससे लन्दन में रहने वाले भारतीय छात्र भड़क गये। सावरकर ने ढींगरा को एक देशभक्त बताकर क्रान्तिकारी विद्रोह को ओर उग्र कर दिया था। सावरकर की गतिविधियों को देखते हुए अंग्रेज सरकार ने हत्या की योजना में शामिल होने और पिस्तौले भारत भेजने के जुर्म में फँसा दिया, जिसके बाद सावरकर को गिरफ्तार कर लिया गया। अब सावरकर को आगे के अभियोग के लिए भारत ले जाने का विचार किया गया। जब सावरकर को भारत जाने की खबर पता चली तो सावरकर ने अपने मित्र को जहाज से फ्रांस के रुकते वक्त भाग जाने की योजना पत्र में लिखी। जहाज रुका और सावरकर खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग गए, लेकिन मित्र को आने में देर होने की वजह से उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। सावरकर की गिरफ्तारी से फ़्रेंच सरकार ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के अन्तर्गत इन्हें 7 अप्रैल, 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल भेजा गया। उनके अनुसार यहां स्वतंत्रता सेनानियों को कड़ा परिश्रम करना पड़ता था। कैदियों को यहां नारियल छीलकर उसमें से तेल निकालना पड़ता था। साथ ही इन्हें यहां कोल्हू में बैल की तरह जुत कर सरसों व नारियल आदि का तेल निकालना होता था। इसके अलावा उन्हें जेल के साथ लगे व बाहर के जंगलों को साफ कर दलदली भूमी व पहाड़ी क्षेत्र को समतल भी करना होता था। रुकने पर उनको कड़ी सजा व बेंत व कोड़ों से पिटाई भी की जाती थीं। इतने पर भी उन्हें भरपेट खाना भी नहीं दिया जाता था। । सावरकर 4 जुलाई, 1911 से 21 मई, 1921 तक पोर्ट ब्लेयर की जेल में रहे। 1920 में वल्लभ भाई पटेल और बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्त पर उनकी रिहाई हो गई। | सावरकर और मदनलाल ढींगरा ने किस ब्रिटिश अधिकारी की हत्या की थी? | {
"text": [
"अंग्रेज अफसर कर्जन"
],
"answer_start": [
1070
]
} | Which British officer was assassinated by Savarkar and Madanlal Dhingra? | He studied intensely about the revolution of 1857 how the British can be uprooted.While living in London, he met Lala Hardayal, who used to look after India House in those days.He also wrote an article in the London Times after Madanlal Dhingra was shot dead by Madanlal Dhingra on 1 July 1909.On 13 May 1910, he was arrested on reaching London from Paris, but on 8 July 1910, he escaped through a sewer hole, taking him to India by a ship called MS Moriya.On 24 December 1910, he was sentenced to life imprisonment.After this, he was given life imprisonment again on 31 January 1911.Thus Savarkar was punished by the British government for two or two life imprisonment for revolution works, which was the first and unique punishment in the history of the world.According to Savarkar - Motherland!I have already offered my mind at your feet.Considering that the country and service is God, I served God through your service.Savarkar taught his friends the art of making bombs and war with guerrilla method.In 1909, Savarkar's friend and follower Madanlal Dhingra killed the British officer Curzon in a public meeting.This work of Dhingra increased revolutionary activities in India and Britain.Savarkar gave political and legal support to Dhingra, but later the British government sentenced Dhingra to death by conducting a secret and banned test, which provoked Indian students in London.Savarkar raised the revolutionary rebellion by calling Dhingra a patriot.In view of Savarkar's activities, the British government trapped in the crime of joining the murder plan and sending pistol in India, after which Savarkar was arrested.Now it was considered to take Savarkar to India for further prosecution.When Savarkar came to know about the news of going to India, Savarkar wrote to his friend in a plan to run away from France while staying from France.The ship stopped and Savarkar ran out of the window and ran away floating in sea water, but the friend was arrested again due to his delay.The French government opposed the British government with the arrest of Savarkar.He was sent to a Cellular Jail on 7 April 1911 under the Nashik Conspiracy Kand for the murder of Nashik district collector Jackson.According to him, freedom fighters had to work hard here.The prisoners had to peel coconut here and extract oil from it.Also, they had to extract mustard and coconut etc. in the crusher here like a bull.Apart from this, they had to clean the marshy land and mountainous region by cleaning the forests and outside the forest.On stopping, they were also punished and beaten with cane and whip.Even then, he was not even given a lot of food.,Savarkar was in Port Blair's jail from July 4, 1911 to May 21, 1921.In 1920, at the behest of Vallabhbhai Patel and Bal Gangadhar Tilak, he was released on the condition of not breaking the British law and not rebelling. | {
"answer_start": [
1070
],
"text": [
"English officer Curzon"
]
} |
376 | उन्होंने एक काल्पनिक शहर मालगुडी को आधार बनाकर अपनी अनेक रचनाएँ की हैं। मालगुडी को प्रायः दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है; परंतु स्वयं लेखक के कथनानुसार "अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे। "उनका पहला उपन्यास स्वामी और उसके दोस्त (स्वामी एंड फ्रेंड्स) 1935 ई॰ में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में एक स्कूली लड़के स्वामीनाथन का बेहद मनोरंजक वर्णन है तथा उपन्यास के शीर्षक का स्वामी उसी के नाम का संक्षिप्तीकरण है। इस उपन्यास के शीर्षक में ही व्यंग्य सन्निहित है। शीर्षक से कहानी के बारे में पाठक जैसी उम्मीद करने लगता है, उसे लेखक पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। यह स्वामी ऐसा लड़का है जो स्कूल में वर्ग में अनुपस्थित रहकर हेड मास्टर के दफ्तर की खिड़कियों के शीशे तोड़ता है और अगले दिन सवाल किए जाने पर कोई जवाब नहीं दे पाता है तो बेवकूफों की तरह ताकते रहता है और सरासर पीठ पर बेंत पड़ने पर तथा डेस्क पर खड़े किए जाने पर अचानक कूदकर किताबें उठा कर यह कहते हुए भाग निकलता है कि 'मैं तुम्हारे गंदे स्कूल की परवाह नहीं करता'। इसी तरह स्वामी की कहानी में एक लड़के की सामान्य शरारतों और उसके एवज में मिलने वाली सजाओं का ही वर्णन है। किंतु लेखक उसे बड़े मजाकिया लहजे में किसी लड़के के मन को पूरी तरह समझते हुए कहते हैं। आरंभिक उपन्यास होने से इसमें नारायण बढ़ती उम्र के साथ अनुभव की जाने वाली तकलीफ तथा समय के बीतने की अनुभूति का अहसास आदि के रूप में रचनात्मक प्रौढ़ता का पूरा परिचय तो नहीं दे पाते, परंतु बचपन की पूरी ताजगी को कथा में उतार देने में बिल्कुल सफल होते हैं। 'स्नातक' (द बैचलर ऑफ आर्ट्स) 1935 ई० में प्रकाशित हुआ। यह एक संवेदनशील युवक चंदन की कहानी है जो उसके शिक्षा द्वारा प्राप्त प्रेम एवं विवाह संबंधी पश्चिमी विचारों तथा जिस सामाजिक ढांचे में वह रहता है के बीच के द्वंद्व को प्रस्तुत करता है। द डार्क रूम (1938) भी दैनंदिन जीवन की छोटी-छोटी बातों और घटनाओं के विवरण से बुनी कहानी है। इसमें सावित्री नामक एक ऐसी परंपरागत नारी की कथा है जो समस्त कष्टों को मौन रहकर सहन करती है। उसका पति दूसरी कामकाजी महिला की ओर आकर्षित होता है और इस बात से आहत होने के बावजूद अंततः सावित्री सामंजस्य स्थापित करके ही रहती है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि कहानी सपाट रूप में कह दी गयी है। भावनाओं का बिंब उकेरने में लेखक ने कुशलता का परिचय दिया है। पति के दूसरी औरत को न छोड़ने से उत्पन्न निराशा में सावित्री लड़ती भी है और घर छोड़कर चली भी जाती है। निराशा की इस स्थिति में उसे महसूस होता है कि स्वावलंबन के योग्य बनने पर ही जीवन वास्तव में जीवन होता है। अन्यथा "वेश्या और शादीशुदा औरतों में फर्क ही क्या है? -- सिर्फ यह कि वेश्या आदमी बदलती रहती है और बीवी एक से ही चिपकी रहती है। दोनों अपनी रोटी और सहारे के लिए आदमी पर ही निर्भर है। " निराशा के इसी आलम में वह आत्महत्या की भी कोशिश करती है। बचा लिए जाने पर घर न लौटकर स्वाभिमान से अपनी कमाई से गुजारा चलाने का निश्चय करके एक मंदिर में नौकरी भी कर लेती है। परंतु, अंततः इस सब की व्यर्थता, हताशा और स्वयं अपनी दुर्बलता महसूस करके हार मान लेती है और फिर घर लौटने का निश्चय कर लेती है। छोटी-छोटी बातों का विवरण देते हुए लेखक भावनाओं की पूर्णता का चित्र अंकित करता है। | द इंग्लिश टीचर उपन्यास अमेरिका में किस नाम से प्रकाशित हुआ था? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | The novel The English Teacher was published in the US under which name? | He has done many of his compositions on the basis of Malgudi, a fictional city of Malgudi.Malgudi is often considered a fictional town of South India;But according to the author of the author himself, "If I say that Malgudi is a town in South India, then it will also be an incomplete truth, because the symptoms of Malgudi will be found everywhere in the world." His first novel Swami and his friends (Swami and Friends) are 1935 AD.Published in 4.This novel has a very entertaining description of a school boy Swaminathan and the owner of the title of the novel is a summarization of his name.Satire is embodied in the title of this novel.From the title, the reader starts expecting about the story, the author completely destroys it.This master is such a boy who remains absent in the class in school and breaks the glass of the windows of the head master's office and if someone is unable to answer the next day, then he keeps staring like an idiot and when thereWhen standing on the desk, suddenly jumped and picked up books and escapes, saying 'I do not care about your dirty school'.Similarly, the story of Swami describes the general mischief of a boy and the punishment for him.But the writer calls him a very funny tone and understands the mind of a boy completely.Due to being an initial novel, Narayan is unable to give full introduction to creative maturity as the feeling of suffering and feeling of time experience with increasing age, but it is absolutely successful in bringing out the entire freshness of childhood in the storyAre.'Graduate' (The Bachelor of Arts) was published in 1935 AD.It is the story of a sensitive young man Chandan who presents the duality between the love and marriage related to his education and the social structure in which he lives.The Dark Room (1938) is also a story woven by the details of small things and events of Dainandin life.It has a story of a traditional woman named Savitri who tolerates all the sufferings silently.Her husband is attracted to another working woman and despite being hurt by this, Savitri eventually remains in harmony.However, it is not that the story has been told flat.The author has introduced skill in the images to engrave the images.Savitri also fights in despair arising out of her husband's other woman and leaves home.In this situation of despair, he realizes that life is really life only when you become worthy of self -reliance.Otherwise, "What is the difference between prostitute and married women? - Only that the prostitute man keeps changing and his wife is sticking from one. Both are dependent on the man for their bread and support."She also tries to commit suicide.On not being saved, she does not return home and decides to make a job in a temple by deciding to spend her earnings from self -respect.However, eventually, the futility, frustration and feeling of their own weakness, finally accepts defeat and then decides to return home.Giving details of small things, the author marks a picture of the perfection of emotions. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
377 | उन्होंने एक काल्पनिक शहर मालगुडी को आधार बनाकर अपनी अनेक रचनाएँ की हैं। मालगुडी को प्रायः दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है; परंतु स्वयं लेखक के कथनानुसार "अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे। "उनका पहला उपन्यास स्वामी और उसके दोस्त (स्वामी एंड फ्रेंड्स) 1935 ई॰ में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में एक स्कूली लड़के स्वामीनाथन का बेहद मनोरंजक वर्णन है तथा उपन्यास के शीर्षक का स्वामी उसी के नाम का संक्षिप्तीकरण है। इस उपन्यास के शीर्षक में ही व्यंग्य सन्निहित है। शीर्षक से कहानी के बारे में पाठक जैसी उम्मीद करने लगता है, उसे लेखक पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। यह स्वामी ऐसा लड़का है जो स्कूल में वर्ग में अनुपस्थित रहकर हेड मास्टर के दफ्तर की खिड़कियों के शीशे तोड़ता है और अगले दिन सवाल किए जाने पर कोई जवाब नहीं दे पाता है तो बेवकूफों की तरह ताकते रहता है और सरासर पीठ पर बेंत पड़ने पर तथा डेस्क पर खड़े किए जाने पर अचानक कूदकर किताबें उठा कर यह कहते हुए भाग निकलता है कि 'मैं तुम्हारे गंदे स्कूल की परवाह नहीं करता'। इसी तरह स्वामी की कहानी में एक लड़के की सामान्य शरारतों और उसके एवज में मिलने वाली सजाओं का ही वर्णन है। किंतु लेखक उसे बड़े मजाकिया लहजे में किसी लड़के के मन को पूरी तरह समझते हुए कहते हैं। आरंभिक उपन्यास होने से इसमें नारायण बढ़ती उम्र के साथ अनुभव की जाने वाली तकलीफ तथा समय के बीतने की अनुभूति का अहसास आदि के रूप में रचनात्मक प्रौढ़ता का पूरा परिचय तो नहीं दे पाते, परंतु बचपन की पूरी ताजगी को कथा में उतार देने में बिल्कुल सफल होते हैं। 'स्नातक' (द बैचलर ऑफ आर्ट्स) 1935 ई० में प्रकाशित हुआ। यह एक संवेदनशील युवक चंदन की कहानी है जो उसके शिक्षा द्वारा प्राप्त प्रेम एवं विवाह संबंधी पश्चिमी विचारों तथा जिस सामाजिक ढांचे में वह रहता है के बीच के द्वंद्व को प्रस्तुत करता है। द डार्क रूम (1938) भी दैनंदिन जीवन की छोटी-छोटी बातों और घटनाओं के विवरण से बुनी कहानी है। इसमें सावित्री नामक एक ऐसी परंपरागत नारी की कथा है जो समस्त कष्टों को मौन रहकर सहन करती है। उसका पति दूसरी कामकाजी महिला की ओर आकर्षित होता है और इस बात से आहत होने के बावजूद अंततः सावित्री सामंजस्य स्थापित करके ही रहती है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि कहानी सपाट रूप में कह दी गयी है। भावनाओं का बिंब उकेरने में लेखक ने कुशलता का परिचय दिया है। पति के दूसरी औरत को न छोड़ने से उत्पन्न निराशा में सावित्री लड़ती भी है और घर छोड़कर चली भी जाती है। निराशा की इस स्थिति में उसे महसूस होता है कि स्वावलंबन के योग्य बनने पर ही जीवन वास्तव में जीवन होता है। अन्यथा "वेश्या और शादीशुदा औरतों में फर्क ही क्या है? -- सिर्फ यह कि वेश्या आदमी बदलती रहती है और बीवी एक से ही चिपकी रहती है। दोनों अपनी रोटी और सहारे के लिए आदमी पर ही निर्भर है। " निराशा के इसी आलम में वह आत्महत्या की भी कोशिश करती है। बचा लिए जाने पर घर न लौटकर स्वाभिमान से अपनी कमाई से गुजारा चलाने का निश्चय करके एक मंदिर में नौकरी भी कर लेती है। परंतु, अंततः इस सब की व्यर्थता, हताशा और स्वयं अपनी दुर्बलता महसूस करके हार मान लेती है और फिर घर लौटने का निश्चय कर लेती है। छोटी-छोटी बातों का विवरण देते हुए लेखक भावनाओं की पूर्णता का चित्र अंकित करता है। | डार्क रूम उपन्यास कब प्रकाशित हुआ था? | {
"text": [
"1938"
],
"answer_start": [
1709
]
} | When was the novel Dark Room published? | He has done many of his compositions on the basis of Malgudi, a fictional city of Malgudi.Malgudi is often considered a fictional town of South India;But according to the author of the author himself, "If I say that Malgudi is a town in South India, then it will also be an incomplete truth, because the symptoms of Malgudi will be found everywhere in the world." His first novel Swami and his friends (Swami and Friends) are 1935 AD.Published in 4.This novel has a very entertaining description of a school boy Swaminathan and the owner of the title of the novel is a summarization of his name.Satire is embodied in the title of this novel.From the title, the reader starts expecting about the story, the author completely destroys it.This master is such a boy who remains absent in the class in school and breaks the glass of the windows of the head master's office and if someone is unable to answer the next day, then he keeps staring like an idiot and when thereWhen standing on the desk, suddenly jumped and picked up books and escapes, saying 'I do not care about your dirty school'.Similarly, the story of Swami describes the general mischief of a boy and the punishment for him.But the writer calls him a very funny tone and understands the mind of a boy completely.Due to being an initial novel, Narayan is unable to give full introduction to creative maturity as the feeling of suffering and feeling of time experience with increasing age, but it is absolutely successful in bringing out the entire freshness of childhood in the storyAre.'Graduate' (The Bachelor of Arts) was published in 1935 AD.It is the story of a sensitive young man Chandan who presents the duality between the love and marriage related to his education and the social structure in which he lives.The Dark Room (1938) is also a story woven by the details of small things and events of Dainandin life.It has a story of a traditional woman named Savitri who tolerates all the sufferings silently.Her husband is attracted to another working woman and despite being hurt by this, Savitri eventually remains in harmony.However, it is not that the story has been told flat.The author has introduced skill in the images to engrave the images.Savitri also fights in despair arising out of her husband's other woman and leaves home.In this situation of despair, he realizes that life is really life only when you become worthy of self -reliance.Otherwise, "What is the difference between prostitute and married women? - Only that the prostitute man keeps changing and his wife is sticking from one. Both are dependent on the man for their bread and support."She also tries to commit suicide.On not being saved, she does not return home and decides to make a job in a temple by deciding to spend her earnings from self -respect.However, eventually, the futility, frustration and feeling of their own weakness, finally accepts defeat and then decides to return home.Giving details of small things, the author marks a picture of the perfection of emotions. | {
"answer_start": [
1709
],
"text": [
"1938."
]
} |
378 | उन्होंने एक काल्पनिक शहर मालगुडी को आधार बनाकर अपनी अनेक रचनाएँ की हैं। मालगुडी को प्रायः दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है; परंतु स्वयं लेखक के कथनानुसार "अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे। "उनका पहला उपन्यास स्वामी और उसके दोस्त (स्वामी एंड फ्रेंड्स) 1935 ई॰ में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में एक स्कूली लड़के स्वामीनाथन का बेहद मनोरंजक वर्णन है तथा उपन्यास के शीर्षक का स्वामी उसी के नाम का संक्षिप्तीकरण है। इस उपन्यास के शीर्षक में ही व्यंग्य सन्निहित है। शीर्षक से कहानी के बारे में पाठक जैसी उम्मीद करने लगता है, उसे लेखक पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। यह स्वामी ऐसा लड़का है जो स्कूल में वर्ग में अनुपस्थित रहकर हेड मास्टर के दफ्तर की खिड़कियों के शीशे तोड़ता है और अगले दिन सवाल किए जाने पर कोई जवाब नहीं दे पाता है तो बेवकूफों की तरह ताकते रहता है और सरासर पीठ पर बेंत पड़ने पर तथा डेस्क पर खड़े किए जाने पर अचानक कूदकर किताबें उठा कर यह कहते हुए भाग निकलता है कि 'मैं तुम्हारे गंदे स्कूल की परवाह नहीं करता'। इसी तरह स्वामी की कहानी में एक लड़के की सामान्य शरारतों और उसके एवज में मिलने वाली सजाओं का ही वर्णन है। किंतु लेखक उसे बड़े मजाकिया लहजे में किसी लड़के के मन को पूरी तरह समझते हुए कहते हैं। आरंभिक उपन्यास होने से इसमें नारायण बढ़ती उम्र के साथ अनुभव की जाने वाली तकलीफ तथा समय के बीतने की अनुभूति का अहसास आदि के रूप में रचनात्मक प्रौढ़ता का पूरा परिचय तो नहीं दे पाते, परंतु बचपन की पूरी ताजगी को कथा में उतार देने में बिल्कुल सफल होते हैं। 'स्नातक' (द बैचलर ऑफ आर्ट्स) 1935 ई० में प्रकाशित हुआ। यह एक संवेदनशील युवक चंदन की कहानी है जो उसके शिक्षा द्वारा प्राप्त प्रेम एवं विवाह संबंधी पश्चिमी विचारों तथा जिस सामाजिक ढांचे में वह रहता है के बीच के द्वंद्व को प्रस्तुत करता है। द डार्क रूम (1938) भी दैनंदिन जीवन की छोटी-छोटी बातों और घटनाओं के विवरण से बुनी कहानी है। इसमें सावित्री नामक एक ऐसी परंपरागत नारी की कथा है जो समस्त कष्टों को मौन रहकर सहन करती है। उसका पति दूसरी कामकाजी महिला की ओर आकर्षित होता है और इस बात से आहत होने के बावजूद अंततः सावित्री सामंजस्य स्थापित करके ही रहती है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि कहानी सपाट रूप में कह दी गयी है। भावनाओं का बिंब उकेरने में लेखक ने कुशलता का परिचय दिया है। पति के दूसरी औरत को न छोड़ने से उत्पन्न निराशा में सावित्री लड़ती भी है और घर छोड़कर चली भी जाती है। निराशा की इस स्थिति में उसे महसूस होता है कि स्वावलंबन के योग्य बनने पर ही जीवन वास्तव में जीवन होता है। अन्यथा "वेश्या और शादीशुदा औरतों में फर्क ही क्या है? -- सिर्फ यह कि वेश्या आदमी बदलती रहती है और बीवी एक से ही चिपकी रहती है। दोनों अपनी रोटी और सहारे के लिए आदमी पर ही निर्भर है। " निराशा के इसी आलम में वह आत्महत्या की भी कोशिश करती है। बचा लिए जाने पर घर न लौटकर स्वाभिमान से अपनी कमाई से गुजारा चलाने का निश्चय करके एक मंदिर में नौकरी भी कर लेती है। परंतु, अंततः इस सब की व्यर्थता, हताशा और स्वयं अपनी दुर्बलता महसूस करके हार मान लेती है और फिर घर लौटने का निश्चय कर लेती है। छोटी-छोटी बातों का विवरण देते हुए लेखक भावनाओं की पूर्णता का चित्र अंकित करता है। | द इंग्लिश टीचर उपन्यास कब प्रकाशित हुआ था? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | When was the novel The English Teacher published? | He has done many of his compositions on the basis of Malgudi, a fictional city of Malgudi.Malgudi is often considered a fictional town of South India;But according to the author of the author himself, "If I say that Malgudi is a town in South India, then it will also be an incomplete truth, because the symptoms of Malgudi will be found everywhere in the world." His first novel Swami and his friends (Swami and Friends) are 1935 AD.Published in 4.This novel has a very entertaining description of a school boy Swaminathan and the owner of the title of the novel is a summarization of his name.Satire is embodied in the title of this novel.From the title, the reader starts expecting about the story, the author completely destroys it.This master is such a boy who remains absent in the class in school and breaks the glass of the windows of the head master's office and if someone is unable to answer the next day, then he keeps staring like an idiot and when thereWhen standing on the desk, suddenly jumped and picked up books and escapes, saying 'I do not care about your dirty school'.Similarly, the story of Swami describes the general mischief of a boy and the punishment for him.But the writer calls him a very funny tone and understands the mind of a boy completely.Due to being an initial novel, Narayan is unable to give full introduction to creative maturity as the feeling of suffering and feeling of time experience with increasing age, but it is absolutely successful in bringing out the entire freshness of childhood in the storyAre.'Graduate' (The Bachelor of Arts) was published in 1935 AD.It is the story of a sensitive young man Chandan who presents the duality between the love and marriage related to his education and the social structure in which he lives.The Dark Room (1938) is also a story woven by the details of small things and events of Dainandin life.It has a story of a traditional woman named Savitri who tolerates all the sufferings silently.Her husband is attracted to another working woman and despite being hurt by this, Savitri eventually remains in harmony.However, it is not that the story has been told flat.The author has introduced skill in the images to engrave the images.Savitri also fights in despair arising out of her husband's other woman and leaves home.In this situation of despair, he realizes that life is really life only when you become worthy of self -reliance.Otherwise, "What is the difference between prostitute and married women? - Only that the prostitute man keeps changing and his wife is sticking from one. Both are dependent on the man for their bread and support."She also tries to commit suicide.On not being saved, she does not return home and decides to make a job in a temple by deciding to spend her earnings from self -respect.However, eventually, the futility, frustration and feeling of their own weakness, finally accepts defeat and then decides to return home.Giving details of small things, the author marks a picture of the perfection of emotions. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
379 | उन्होंने एक काल्पनिक शहर मालगुडी को आधार बनाकर अपनी अनेक रचनाएँ की हैं। मालगुडी को प्रायः दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है; परंतु स्वयं लेखक के कथनानुसार "अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे। "उनका पहला उपन्यास स्वामी और उसके दोस्त (स्वामी एंड फ्रेंड्स) 1935 ई॰ में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में एक स्कूली लड़के स्वामीनाथन का बेहद मनोरंजक वर्णन है तथा उपन्यास के शीर्षक का स्वामी उसी के नाम का संक्षिप्तीकरण है। इस उपन्यास के शीर्षक में ही व्यंग्य सन्निहित है। शीर्षक से कहानी के बारे में पाठक जैसी उम्मीद करने लगता है, उसे लेखक पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। यह स्वामी ऐसा लड़का है जो स्कूल में वर्ग में अनुपस्थित रहकर हेड मास्टर के दफ्तर की खिड़कियों के शीशे तोड़ता है और अगले दिन सवाल किए जाने पर कोई जवाब नहीं दे पाता है तो बेवकूफों की तरह ताकते रहता है और सरासर पीठ पर बेंत पड़ने पर तथा डेस्क पर खड़े किए जाने पर अचानक कूदकर किताबें उठा कर यह कहते हुए भाग निकलता है कि 'मैं तुम्हारे गंदे स्कूल की परवाह नहीं करता'। इसी तरह स्वामी की कहानी में एक लड़के की सामान्य शरारतों और उसके एवज में मिलने वाली सजाओं का ही वर्णन है। किंतु लेखक उसे बड़े मजाकिया लहजे में किसी लड़के के मन को पूरी तरह समझते हुए कहते हैं। आरंभिक उपन्यास होने से इसमें नारायण बढ़ती उम्र के साथ अनुभव की जाने वाली तकलीफ तथा समय के बीतने की अनुभूति का अहसास आदि के रूप में रचनात्मक प्रौढ़ता का पूरा परिचय तो नहीं दे पाते, परंतु बचपन की पूरी ताजगी को कथा में उतार देने में बिल्कुल सफल होते हैं। 'स्नातक' (द बैचलर ऑफ आर्ट्स) 1935 ई० में प्रकाशित हुआ। यह एक संवेदनशील युवक चंदन की कहानी है जो उसके शिक्षा द्वारा प्राप्त प्रेम एवं विवाह संबंधी पश्चिमी विचारों तथा जिस सामाजिक ढांचे में वह रहता है के बीच के द्वंद्व को प्रस्तुत करता है। द डार्क रूम (1938) भी दैनंदिन जीवन की छोटी-छोटी बातों और घटनाओं के विवरण से बुनी कहानी है। इसमें सावित्री नामक एक ऐसी परंपरागत नारी की कथा है जो समस्त कष्टों को मौन रहकर सहन करती है। उसका पति दूसरी कामकाजी महिला की ओर आकर्षित होता है और इस बात से आहत होने के बावजूद अंततः सावित्री सामंजस्य स्थापित करके ही रहती है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि कहानी सपाट रूप में कह दी गयी है। भावनाओं का बिंब उकेरने में लेखक ने कुशलता का परिचय दिया है। पति के दूसरी औरत को न छोड़ने से उत्पन्न निराशा में सावित्री लड़ती भी है और घर छोड़कर चली भी जाती है। निराशा की इस स्थिति में उसे महसूस होता है कि स्वावलंबन के योग्य बनने पर ही जीवन वास्तव में जीवन होता है। अन्यथा "वेश्या और शादीशुदा औरतों में फर्क ही क्या है? -- सिर्फ यह कि वेश्या आदमी बदलती रहती है और बीवी एक से ही चिपकी रहती है। दोनों अपनी रोटी और सहारे के लिए आदमी पर ही निर्भर है। " निराशा के इसी आलम में वह आत्महत्या की भी कोशिश करती है। बचा लिए जाने पर घर न लौटकर स्वाभिमान से अपनी कमाई से गुजारा चलाने का निश्चय करके एक मंदिर में नौकरी भी कर लेती है। परंतु, अंततः इस सब की व्यर्थता, हताशा और स्वयं अपनी दुर्बलता महसूस करके हार मान लेती है और फिर घर लौटने का निश्चय कर लेती है। छोटी-छोटी बातों का विवरण देते हुए लेखक भावनाओं की पूर्णता का चित्र अंकित करता है। | बैचलर ऑफ आर्ट्स उपन्यास कब प्रकाशित हुआ था? | {
"text": [
"1935 ई०"
],
"answer_start": [
1488
]
} | When was the novel Bachelor of Arts published? | He has done many of his compositions on the basis of Malgudi, a fictional city of Malgudi.Malgudi is often considered a fictional town of South India;But according to the author of the author himself, "If I say that Malgudi is a town in South India, then it will also be an incomplete truth, because the symptoms of Malgudi will be found everywhere in the world." His first novel Swami and his friends (Swami and Friends) are 1935 AD.Published in 4.This novel has a very entertaining description of a school boy Swaminathan and the owner of the title of the novel is a summarization of his name.Satire is embodied in the title of this novel.From the title, the reader starts expecting about the story, the author completely destroys it.This master is such a boy who remains absent in the class in school and breaks the glass of the windows of the head master's office and if someone is unable to answer the next day, then he keeps staring like an idiot and when thereWhen standing on the desk, suddenly jumped and picked up books and escapes, saying 'I do not care about your dirty school'.Similarly, the story of Swami describes the general mischief of a boy and the punishment for him.But the writer calls him a very funny tone and understands the mind of a boy completely.Due to being an initial novel, Narayan is unable to give full introduction to creative maturity as the feeling of suffering and feeling of time experience with increasing age, but it is absolutely successful in bringing out the entire freshness of childhood in the storyAre.'Graduate' (The Bachelor of Arts) was published in 1935 AD.It is the story of a sensitive young man Chandan who presents the duality between the love and marriage related to his education and the social structure in which he lives.The Dark Room (1938) is also a story woven by the details of small things and events of Dainandin life.It has a story of a traditional woman named Savitri who tolerates all the sufferings silently.Her husband is attracted to another working woman and despite being hurt by this, Savitri eventually remains in harmony.However, it is not that the story has been told flat.The author has introduced skill in the images to engrave the images.Savitri also fights in despair arising out of her husband's other woman and leaves home.In this situation of despair, he realizes that life is really life only when you become worthy of self -reliance.Otherwise, "What is the difference between prostitute and married women? - Only that the prostitute man keeps changing and his wife is sticking from one. Both are dependent on the man for their bread and support."She also tries to commit suicide.On not being saved, she does not return home and decides to make a job in a temple by deciding to spend her earnings from self -respect.However, eventually, the futility, frustration and feeling of their own weakness, finally accepts defeat and then decides to return home.Giving details of small things, the author marks a picture of the perfection of emotions. | {
"answer_start": [
1488
],
"text": [
"1935 A.D."
]
} |
380 | उन्होंने एक काल्पनिक शहर मालगुडी को आधार बनाकर अपनी अनेक रचनाएँ की हैं। मालगुडी को प्रायः दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है; परंतु स्वयं लेखक के कथनानुसार "अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे। "उनका पहला उपन्यास स्वामी और उसके दोस्त (स्वामी एंड फ्रेंड्स) 1935 ई॰ में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में एक स्कूली लड़के स्वामीनाथन का बेहद मनोरंजक वर्णन है तथा उपन्यास के शीर्षक का स्वामी उसी के नाम का संक्षिप्तीकरण है। इस उपन्यास के शीर्षक में ही व्यंग्य सन्निहित है। शीर्षक से कहानी के बारे में पाठक जैसी उम्मीद करने लगता है, उसे लेखक पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। यह स्वामी ऐसा लड़का है जो स्कूल में वर्ग में अनुपस्थित रहकर हेड मास्टर के दफ्तर की खिड़कियों के शीशे तोड़ता है और अगले दिन सवाल किए जाने पर कोई जवाब नहीं दे पाता है तो बेवकूफों की तरह ताकते रहता है और सरासर पीठ पर बेंत पड़ने पर तथा डेस्क पर खड़े किए जाने पर अचानक कूदकर किताबें उठा कर यह कहते हुए भाग निकलता है कि 'मैं तुम्हारे गंदे स्कूल की परवाह नहीं करता'। इसी तरह स्वामी की कहानी में एक लड़के की सामान्य शरारतों और उसके एवज में मिलने वाली सजाओं का ही वर्णन है। किंतु लेखक उसे बड़े मजाकिया लहजे में किसी लड़के के मन को पूरी तरह समझते हुए कहते हैं। आरंभिक उपन्यास होने से इसमें नारायण बढ़ती उम्र के साथ अनुभव की जाने वाली तकलीफ तथा समय के बीतने की अनुभूति का अहसास आदि के रूप में रचनात्मक प्रौढ़ता का पूरा परिचय तो नहीं दे पाते, परंतु बचपन की पूरी ताजगी को कथा में उतार देने में बिल्कुल सफल होते हैं। 'स्नातक' (द बैचलर ऑफ आर्ट्स) 1935 ई० में प्रकाशित हुआ। यह एक संवेदनशील युवक चंदन की कहानी है जो उसके शिक्षा द्वारा प्राप्त प्रेम एवं विवाह संबंधी पश्चिमी विचारों तथा जिस सामाजिक ढांचे में वह रहता है के बीच के द्वंद्व को प्रस्तुत करता है। द डार्क रूम (1938) भी दैनंदिन जीवन की छोटी-छोटी बातों और घटनाओं के विवरण से बुनी कहानी है। इसमें सावित्री नामक एक ऐसी परंपरागत नारी की कथा है जो समस्त कष्टों को मौन रहकर सहन करती है। उसका पति दूसरी कामकाजी महिला की ओर आकर्षित होता है और इस बात से आहत होने के बावजूद अंततः सावित्री सामंजस्य स्थापित करके ही रहती है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि कहानी सपाट रूप में कह दी गयी है। भावनाओं का बिंब उकेरने में लेखक ने कुशलता का परिचय दिया है। पति के दूसरी औरत को न छोड़ने से उत्पन्न निराशा में सावित्री लड़ती भी है और घर छोड़कर चली भी जाती है। निराशा की इस स्थिति में उसे महसूस होता है कि स्वावलंबन के योग्य बनने पर ही जीवन वास्तव में जीवन होता है। अन्यथा "वेश्या और शादीशुदा औरतों में फर्क ही क्या है? -- सिर्फ यह कि वेश्या आदमी बदलती रहती है और बीवी एक से ही चिपकी रहती है। दोनों अपनी रोटी और सहारे के लिए आदमी पर ही निर्भर है। " निराशा के इसी आलम में वह आत्महत्या की भी कोशिश करती है। बचा लिए जाने पर घर न लौटकर स्वाभिमान से अपनी कमाई से गुजारा चलाने का निश्चय करके एक मंदिर में नौकरी भी कर लेती है। परंतु, अंततः इस सब की व्यर्थता, हताशा और स्वयं अपनी दुर्बलता महसूस करके हार मान लेती है और फिर घर लौटने का निश्चय कर लेती है। छोटी-छोटी बातों का विवरण देते हुए लेखक भावनाओं की पूर्णता का चित्र अंकित करता है। | स्वामी और दोस्त उपन्यास कब प्रकाशित हुआ था? | {
"text": [
"1935 ई॰"
],
"answer_start": [
363
]
} | When was the novel Swami and Dost published? | He has done many of his compositions on the basis of Malgudi, a fictional city of Malgudi.Malgudi is often considered a fictional town of South India;But according to the author of the author himself, "If I say that Malgudi is a town in South India, then it will also be an incomplete truth, because the symptoms of Malgudi will be found everywhere in the world." His first novel Swami and his friends (Swami and Friends) are 1935 AD.Published in 4.This novel has a very entertaining description of a school boy Swaminathan and the owner of the title of the novel is a summarization of his name.Satire is embodied in the title of this novel.From the title, the reader starts expecting about the story, the author completely destroys it.This master is such a boy who remains absent in the class in school and breaks the glass of the windows of the head master's office and if someone is unable to answer the next day, then he keeps staring like an idiot and when thereWhen standing on the desk, suddenly jumped and picked up books and escapes, saying 'I do not care about your dirty school'.Similarly, the story of Swami describes the general mischief of a boy and the punishment for him.But the writer calls him a very funny tone and understands the mind of a boy completely.Due to being an initial novel, Narayan is unable to give full introduction to creative maturity as the feeling of suffering and feeling of time experience with increasing age, but it is absolutely successful in bringing out the entire freshness of childhood in the storyAre.'Graduate' (The Bachelor of Arts) was published in 1935 AD.It is the story of a sensitive young man Chandan who presents the duality between the love and marriage related to his education and the social structure in which he lives.The Dark Room (1938) is also a story woven by the details of small things and events of Dainandin life.It has a story of a traditional woman named Savitri who tolerates all the sufferings silently.Her husband is attracted to another working woman and despite being hurt by this, Savitri eventually remains in harmony.However, it is not that the story has been told flat.The author has introduced skill in the images to engrave the images.Savitri also fights in despair arising out of her husband's other woman and leaves home.In this situation of despair, he realizes that life is really life only when you become worthy of self -reliance.Otherwise, "What is the difference between prostitute and married women? - Only that the prostitute man keeps changing and his wife is sticking from one. Both are dependent on the man for their bread and support."She also tries to commit suicide.On not being saved, she does not return home and decides to make a job in a temple by deciding to spend her earnings from self -respect.However, eventually, the futility, frustration and feeling of their own weakness, finally accepts defeat and then decides to return home.Giving details of small things, the author marks a picture of the perfection of emotions. | {
"answer_start": [
363
],
"text": [
"1935."
]
} |
381 | उन्होंने एक काल्पनिक शहर मालगुडी को आधार बनाकर अपनी अनेक रचनाएँ की हैं। मालगुडी को प्रायः दक्षिण भारत का एक काल्पनिक कस्बा माना जाता है; परंतु स्वयं लेखक के कथनानुसार "अगर मैं कहूँ कि मालगुडी दक्षिण भारत में एक कस्बा है तो यह भी अधूरी सच्चाई होगी, क्योंकि मालगुडी के लक्षण दुनिया में हर जगह मिल जाएँगे। "उनका पहला उपन्यास स्वामी और उसके दोस्त (स्वामी एंड फ्रेंड्स) 1935 ई॰ में प्रकाशित हुआ। इस उपन्यास में एक स्कूली लड़के स्वामीनाथन का बेहद मनोरंजक वर्णन है तथा उपन्यास के शीर्षक का स्वामी उसी के नाम का संक्षिप्तीकरण है। इस उपन्यास के शीर्षक में ही व्यंग्य सन्निहित है। शीर्षक से कहानी के बारे में पाठक जैसी उम्मीद करने लगता है, उसे लेखक पूरी तरह ध्वस्त कर देता है। यह स्वामी ऐसा लड़का है जो स्कूल में वर्ग में अनुपस्थित रहकर हेड मास्टर के दफ्तर की खिड़कियों के शीशे तोड़ता है और अगले दिन सवाल किए जाने पर कोई जवाब नहीं दे पाता है तो बेवकूफों की तरह ताकते रहता है और सरासर पीठ पर बेंत पड़ने पर तथा डेस्क पर खड़े किए जाने पर अचानक कूदकर किताबें उठा कर यह कहते हुए भाग निकलता है कि 'मैं तुम्हारे गंदे स्कूल की परवाह नहीं करता'। इसी तरह स्वामी की कहानी में एक लड़के की सामान्य शरारतों और उसके एवज में मिलने वाली सजाओं का ही वर्णन है। किंतु लेखक उसे बड़े मजाकिया लहजे में किसी लड़के के मन को पूरी तरह समझते हुए कहते हैं। आरंभिक उपन्यास होने से इसमें नारायण बढ़ती उम्र के साथ अनुभव की जाने वाली तकलीफ तथा समय के बीतने की अनुभूति का अहसास आदि के रूप में रचनात्मक प्रौढ़ता का पूरा परिचय तो नहीं दे पाते, परंतु बचपन की पूरी ताजगी को कथा में उतार देने में बिल्कुल सफल होते हैं। 'स्नातक' (द बैचलर ऑफ आर्ट्स) 1935 ई० में प्रकाशित हुआ। यह एक संवेदनशील युवक चंदन की कहानी है जो उसके शिक्षा द्वारा प्राप्त प्रेम एवं विवाह संबंधी पश्चिमी विचारों तथा जिस सामाजिक ढांचे में वह रहता है के बीच के द्वंद्व को प्रस्तुत करता है। द डार्क रूम (1938) भी दैनंदिन जीवन की छोटी-छोटी बातों और घटनाओं के विवरण से बुनी कहानी है। इसमें सावित्री नामक एक ऐसी परंपरागत नारी की कथा है जो समस्त कष्टों को मौन रहकर सहन करती है। उसका पति दूसरी कामकाजी महिला की ओर आकर्षित होता है और इस बात से आहत होने के बावजूद अंततः सावित्री सामंजस्य स्थापित करके ही रहती है। हालाँकि ऐसा नहीं है कि कहानी सपाट रूप में कह दी गयी है। भावनाओं का बिंब उकेरने में लेखक ने कुशलता का परिचय दिया है। पति के दूसरी औरत को न छोड़ने से उत्पन्न निराशा में सावित्री लड़ती भी है और घर छोड़कर चली भी जाती है। निराशा की इस स्थिति में उसे महसूस होता है कि स्वावलंबन के योग्य बनने पर ही जीवन वास्तव में जीवन होता है। अन्यथा "वेश्या और शादीशुदा औरतों में फर्क ही क्या है? -- सिर्फ यह कि वेश्या आदमी बदलती रहती है और बीवी एक से ही चिपकी रहती है। दोनों अपनी रोटी और सहारे के लिए आदमी पर ही निर्भर है। " निराशा के इसी आलम में वह आत्महत्या की भी कोशिश करती है। बचा लिए जाने पर घर न लौटकर स्वाभिमान से अपनी कमाई से गुजारा चलाने का निश्चय करके एक मंदिर में नौकरी भी कर लेती है। परंतु, अंततः इस सब की व्यर्थता, हताशा और स्वयं अपनी दुर्बलता महसूस करके हार मान लेती है और फिर घर लौटने का निश्चय कर लेती है। छोटी-छोटी बातों का विवरण देते हुए लेखक भावनाओं की पूर्णता का चित्र अंकित करता है। | आर.के. नारायण के पहले उपन्यास का क्या नाम है? | {
"text": [
"मास्टर"
],
"answer_start": [
725
]
} | What is the name of R.K. Narayan's first novel? | He has done many of his compositions on the basis of Malgudi, a fictional city of Malgudi.Malgudi is often considered a fictional town of South India;But according to the author of the author himself, "If I say that Malgudi is a town in South India, then it will also be an incomplete truth, because the symptoms of Malgudi will be found everywhere in the world." His first novel Swami and his friends (Swami and Friends) are 1935 AD.Published in 4.This novel has a very entertaining description of a school boy Swaminathan and the owner of the title of the novel is a summarization of his name.Satire is embodied in the title of this novel.From the title, the reader starts expecting about the story, the author completely destroys it.This master is such a boy who remains absent in the class in school and breaks the glass of the windows of the head master's office and if someone is unable to answer the next day, then he keeps staring like an idiot and when thereWhen standing on the desk, suddenly jumped and picked up books and escapes, saying 'I do not care about your dirty school'.Similarly, the story of Swami describes the general mischief of a boy and the punishment for him.But the writer calls him a very funny tone and understands the mind of a boy completely.Due to being an initial novel, Narayan is unable to give full introduction to creative maturity as the feeling of suffering and feeling of time experience with increasing age, but it is absolutely successful in bringing out the entire freshness of childhood in the storyAre.'Graduate' (The Bachelor of Arts) was published in 1935 AD.It is the story of a sensitive young man Chandan who presents the duality between the love and marriage related to his education and the social structure in which he lives.The Dark Room (1938) is also a story woven by the details of small things and events of Dainandin life.It has a story of a traditional woman named Savitri who tolerates all the sufferings silently.Her husband is attracted to another working woman and despite being hurt by this, Savitri eventually remains in harmony.However, it is not that the story has been told flat.The author has introduced skill in the images to engrave the images.Savitri also fights in despair arising out of her husband's other woman and leaves home.In this situation of despair, he realizes that life is really life only when you become worthy of self -reliance.Otherwise, "What is the difference between prostitute and married women? - Only that the prostitute man keeps changing and his wife is sticking from one. Both are dependent on the man for their bread and support."She also tries to commit suicide.On not being saved, she does not return home and decides to make a job in a temple by deciding to spend her earnings from self -respect.However, eventually, the futility, frustration and feeling of their own weakness, finally accepts defeat and then decides to return home.Giving details of small things, the author marks a picture of the perfection of emotions. | {
"answer_start": [
725
],
"text": [
"Master"
]
} |
382 | उन्होंने बौद्धों को भी दान दिया। जैन भी शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन और प्रचार करते थे। पूर्वयुग के तमिल धार्मिक पद वेदों जैसे पूजित होने लगे और उनके रचयिता देवता स्वरूप माने जाने लगे। नंबि आंडार नंबि ने सर्वप्रथम राजराज प्रथम के राज्यकाल में शैव धर्मग्रंथों को संकलित किया। वैष्णव धर्म के लिए यही कार्य नाथमुनि ने किया। उन्होंने भक्ति के मार्ग का दार्शनिक समर्थन प्रस्तुत किया। उनके पौत्र आलवंदार अथवा यमुनाचार्य का वैष्णव आचार्यों में महत्वपूर्ण स्थान है। रामानुज ने विशिष्टाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया मंदिरों की पूजा विधि में सुधार किया और कुछ मंदिरों में वर्ष में एक दिन अंत्यजों के प्रवेश की भी व्यवस्था की। शैवों में भक्तिमार्ग के अतिरिक्त बीभत्स आचारोंवाले कुछ संप्रदाय, पाशुपत, कापालिक और कालामुख जैसे थे, जिनमें से कुछ स्त्रीत्व की आराधना करते थे, जो प्राय: विकृत रूप ले लेती थी। देवी के उपासकों में अपना सिर काटकर चढ़ाने की भी प्रथा थी। इस युग के धार्मिक जीवन में मंदिरों का विशेष महत्व था। छोटे या बड़े मंदिर, चोल राज्य के प्राय: सभी नगरों और गाँवों में इस युग में बने। ये मंदिर, शिक्षा के केंद्र भी थे। त्योहारों और उत्सवों पर इनमें गान, नृत्य, नाट्य और मनोरंजन के आयोजन भी होते थे। मंदिरों के स्वामित्व में भूमि भी होती थी और कई कर्मचारी इनकी अधीनता में होते थे। ये बैंक का कार्य थे। कई उद्योगों और शिल्पों के व्यक्तियों को मंदिरों के कारण जीविका मिलती थी। चोलों के मंदिरों की विशेषता उनके विमानों और प्रांगणों में दिखलाई पड़ती है। इनके शिखरस्तंभ छोटे होते हैं, किंतु गोपुरम् पर अत्यधिक अलंकरण होता है। प्रारंभिक चोल मंदिर साधारण योजना की कृतियाँ हैं लेकिन साम्राज्य की शक्ति और साधनों की वृद्धि के साथ मंदिरों के आकार और प्रभाव में भी परिवर्तन हुआ। इन मंदिरों में सबसे अधिक प्रसिद्ध और प्रभावोत्पादक राजराज प्रथम द्वारा तंजोर में निर्मित राजराजेश्वर मंदिर, राजेंद्र प्रथम द्वारा गंगैकोंडचोलपुरम् में निर्मित गंगैकोंडचोलेश्वर मंदिर है। चोल युग अपनी कांस्य प्रतिमाओं की सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें नटराज की मूर्तियाँ सर्वात्कृष्ट हैं। इसके अतिरिक्त शिव के दूसरे कई रूप, ब्रह्मा, सप्तमातृका, लक्ष्मी तथा भूदेवी के साथ विष्णु, अपने अनुचरों के साथ राम और सीता, शैव संत और कालियदमन करते हुए कृष्ण की मूर्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं। तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को 'स्वर्ण युग' की संज्ञा दी जाती है। प्रबंध साहित्यरचना का प्रमुख रूप था। दर्शन में शैव सिद्धांत के शास्त्रीय विवेचन का आरंभ हुआ। शेक्किलार का तिरुत्तोंडर् पुराणम् या पेरियपुराणम् युगांतरकारी रचना है। वैष्णव भक्ति-साहित्य और टीकाओं की भी रचना हुई। आश्चर्य है कि वैष्णव आचार्य नाथमुनि, यामुनाचार्य और रामानुज ने प्राय: संस्कृत में ही रचनाएँ की हैं। टीकाकारों ने भी संस्कृत शब्दों में आक्रांत मणिप्रवाल शैली अपनाई। रामानुज की प्रशंसा में सौ पदों की रचना रामानुजनूर्रदादि इस दृष्टि से प्रमुख अपवाद है। जैन और बौद्ध साहित्य की प्रगति भी उल्लेखनीय थी। जैन कवि तिरुत्तक्कदेवर् ने प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य जीवकचिंतामणि की रचना 10वीं शताब्दी में की थी। तोलामोलि रचित सूलामणि की गणना तमिल के पाँच लघु काव्यों में होती है। कल्लाडनार के कल्लाडम् में प्रेम की विभिन्न मनोदशाओं पर सौ पद हैं। राजकवि जयन्गोंडा ने कलिंगत्तुप्परणि में कुलोत्तुंग प्रथम के कलिंगयुद्ध का वर्णन किया है। ओट्टकूत्तन भी राजकवि था जिसकी अनेक कृतियों में कुलोत्तुंग द्वितीय के बाल्यकाल पर एक पिल्लैत्तामिल और तीन चोल राजाओं पर उला उल्लेखनीय हैं। प्रसिद्ध तमिल रामायणम् अथवा रामावतारम् की रचना कंबन् ने कुलोत्तुंग तृतीय के राज्यकाल में की थी। किसी अज्ञात कवि की सुंदर कृति कुलोत्तुंगन्कोवै में कुलोत्तुंग द्वितीय के प्रारंभिक कृत्यों का वर्णन है। जैन विद्वान् अमितसागर ने छंदशास्त्र पर याप्परुंगलम् नाम के एक ग्रंथ और उसके एक संक्षिप्त रूप (कारिगै) की रचना की। बौद्ध बुद्धमित्र ने तमिल व्याकरण पर वीरशोलियम् नाम का ग्रंथ लिखा। दंडियलंगारम् का लेखक अज्ञात है; यह ग्रंथ दंडिन के काव्यादर्श के आदर्श पर रचा गया है। इस काल के कुछ अन्य व्याकरण ग्रंथ हैं- गुणवीर पंडित का नेमिनादम् और वच्चणंदिमालै, पवणंदि का नन्नूल तथा ऐयनारिदनार का पुरप्पोरलवेण्बामालै। पिंगलम् नाम का कोश भी इसी काल की कृति है। चोलवंश के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चोल नरेशों ने संस्कृत साहित्य और भाषा के अध्ययन के लिए विद्यालय (ब्रह्मपुरी, घटिका) स्थापित किए और उनकी व्यवस्था के लिए समुचित दान दिए। किंतु संस्कृत साहित्य में, सृजन की दृष्टि से, चोलों का शासनकाल अत्यल्प महत्व का है। | केशवस्वामी ने किसके आदेश पर शब्दकोश बनाया था ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | On whose orders was the dictionary made by Kesavaswamy? | He also donated to Buddhists.Jain also used to follow and propagate his religion peacefully.The Tamil religious positions of the East Yuga began to be worshiped like the Vedas and their creators began to be considered as the form of the deity.Nambi Andar Nambi first compiled Shaivism during the reign of Rajaraja I.Nathamuni did this work for Vaishnavism.He presented philosophical support for the path of devotion.His grandson Alavandar or Yamunacharya has an important place in Vaishnava Acharyas.Ramanuja proposed to the Vishwasvait Darshan improved the worship method of temples and also arranged for the entry of Antyas in some temples one day.In addition to the devotion among the Shaivas, some sects with Bibhata ethos, Pashupat, Kapalik and Kalamukh, some of which worshiped femininity, which often took a distorted form.The worshipers of the goddess were also practiced to offer their heads and offer their heads.Temples had special significance in the religious life of this era.Small or big temples, built in this era in almost all cities and villages of the Chola state.These temples were also centers of education.On festivals and festivals, they also had anthem, dance, drama and entertainment.There was also land under the ownership of temples and many employees were under their subjugation.These were the work of the bank.People of many industries and crafts used to get livelihood due to temples.The specialty of the temples of the Cholas is seen in their aircraft and courtyard.Their summit is small, but there is excessive decoration on Gopuram.The initial Chola temple is the works of the simple plan but the size and impact of the temples also changed with the power and growth of the empire.The most famous and influential of these temples is the Gangakondcholeshwar Temple built by Rajarajeshwar Temple in Tanjor, Rajendra I, built by Rajendra I.The Chola Yuga is also famous for the beauty of its bronze statues.Among them, the idols of Nataraja are universal.Apart from this, many other forms of Shiva, Brahma, Saptamatrika, Lakshmi and Bhudevi along with Vishnu, Rama and Sita, Shaiva saints and Kaliyadaman along with their followers are also notable.In the history of Tamil literature, Chola reign is called the 'Golden Age'.Managing was the main form of literature.In philosophy, the classical interpretation of Shaiva theory began.The Tiruttadar Puranam or Periyapuranam of Shekkilar is the composition.Vaishnava devotional literature and commentaries were also composed.Surprisingly, Vaishnav Acharya Nathamuni, Yamunacharya and Ramanuja have often composed in Sanskrit.The commentators also adopted the Akrant Maniprawal style in Sanskrit words.Ramanujanurradadi, the composition of hundred positions in praise of Ramanuja, is the main exception from this point of view.The progress of Jain and Buddhist literature was also notable.The famous Tamil epic Jeevakachintamani was composed by Jain poet Tiruttakkdev in the 10th century.Sulamani, composed by Tolamoli, is counted among the five small poets of Tamil.Kalladam in Kalladnar has a hundred terms on various moods of love.Rajavi Jayangonda has described the Kalotung War of Kulottung I in Kalingtaupani.Ottakuthan was also a Rajya, in many works, a pillaetamil and three Chola kings are notable on the childhood of Kulottung II.The famous Tamil Ramayanam or Ramavataram was composed by Kamban in the reign of Kulottung III.The beautiful work of an unknown poet is described in Kulottungnkovai's initial acts of Kulottung II.Jain scholar Amitasagar composed a book called Yapparaungam on verses and a brief form (Karigai).Buddhist Budhmitra wrote a book called Veerasolium on Tamil grammar.The author of Dandiyalangaram is unknown;This book is composed on the ideal of Kavyadarsha of Dandin.There are some other grammar texts of this period- Naminadam of Guni Pandit and Vachanandimalai, Nannul of Pavanandi and Purapporalevenbamalai of Ayionadar.The dictionary named Pingalam is also a work of this period.It is known from the records of the Chola dynasty that Chola kings established the school (Brahmapuri, Ghatika) for the study of Sanskrit literature and language and made appropriate donations for their arrangements.But in Sanskrit literature, from the point of view of creation, the reign of the Cholas is of very important importance. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
383 | उन्होंने बौद्धों को भी दान दिया। जैन भी शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन और प्रचार करते थे। पूर्वयुग के तमिल धार्मिक पद वेदों जैसे पूजित होने लगे और उनके रचयिता देवता स्वरूप माने जाने लगे। नंबि आंडार नंबि ने सर्वप्रथम राजराज प्रथम के राज्यकाल में शैव धर्मग्रंथों को संकलित किया। वैष्णव धर्म के लिए यही कार्य नाथमुनि ने किया। उन्होंने भक्ति के मार्ग का दार्शनिक समर्थन प्रस्तुत किया। उनके पौत्र आलवंदार अथवा यमुनाचार्य का वैष्णव आचार्यों में महत्वपूर्ण स्थान है। रामानुज ने विशिष्टाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया मंदिरों की पूजा विधि में सुधार किया और कुछ मंदिरों में वर्ष में एक दिन अंत्यजों के प्रवेश की भी व्यवस्था की। शैवों में भक्तिमार्ग के अतिरिक्त बीभत्स आचारोंवाले कुछ संप्रदाय, पाशुपत, कापालिक और कालामुख जैसे थे, जिनमें से कुछ स्त्रीत्व की आराधना करते थे, जो प्राय: विकृत रूप ले लेती थी। देवी के उपासकों में अपना सिर काटकर चढ़ाने की भी प्रथा थी। इस युग के धार्मिक जीवन में मंदिरों का विशेष महत्व था। छोटे या बड़े मंदिर, चोल राज्य के प्राय: सभी नगरों और गाँवों में इस युग में बने। ये मंदिर, शिक्षा के केंद्र भी थे। त्योहारों और उत्सवों पर इनमें गान, नृत्य, नाट्य और मनोरंजन के आयोजन भी होते थे। मंदिरों के स्वामित्व में भूमि भी होती थी और कई कर्मचारी इनकी अधीनता में होते थे। ये बैंक का कार्य थे। कई उद्योगों और शिल्पों के व्यक्तियों को मंदिरों के कारण जीविका मिलती थी। चोलों के मंदिरों की विशेषता उनके विमानों और प्रांगणों में दिखलाई पड़ती है। इनके शिखरस्तंभ छोटे होते हैं, किंतु गोपुरम् पर अत्यधिक अलंकरण होता है। प्रारंभिक चोल मंदिर साधारण योजना की कृतियाँ हैं लेकिन साम्राज्य की शक्ति और साधनों की वृद्धि के साथ मंदिरों के आकार और प्रभाव में भी परिवर्तन हुआ। इन मंदिरों में सबसे अधिक प्रसिद्ध और प्रभावोत्पादक राजराज प्रथम द्वारा तंजोर में निर्मित राजराजेश्वर मंदिर, राजेंद्र प्रथम द्वारा गंगैकोंडचोलपुरम् में निर्मित गंगैकोंडचोलेश्वर मंदिर है। चोल युग अपनी कांस्य प्रतिमाओं की सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें नटराज की मूर्तियाँ सर्वात्कृष्ट हैं। इसके अतिरिक्त शिव के दूसरे कई रूप, ब्रह्मा, सप्तमातृका, लक्ष्मी तथा भूदेवी के साथ विष्णु, अपने अनुचरों के साथ राम और सीता, शैव संत और कालियदमन करते हुए कृष्ण की मूर्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं। तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को 'स्वर्ण युग' की संज्ञा दी जाती है। प्रबंध साहित्यरचना का प्रमुख रूप था। दर्शन में शैव सिद्धांत के शास्त्रीय विवेचन का आरंभ हुआ। शेक्किलार का तिरुत्तोंडर् पुराणम् या पेरियपुराणम् युगांतरकारी रचना है। वैष्णव भक्ति-साहित्य और टीकाओं की भी रचना हुई। आश्चर्य है कि वैष्णव आचार्य नाथमुनि, यामुनाचार्य और रामानुज ने प्राय: संस्कृत में ही रचनाएँ की हैं। टीकाकारों ने भी संस्कृत शब्दों में आक्रांत मणिप्रवाल शैली अपनाई। रामानुज की प्रशंसा में सौ पदों की रचना रामानुजनूर्रदादि इस दृष्टि से प्रमुख अपवाद है। जैन और बौद्ध साहित्य की प्रगति भी उल्लेखनीय थी। जैन कवि तिरुत्तक्कदेवर् ने प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य जीवकचिंतामणि की रचना 10वीं शताब्दी में की थी। तोलामोलि रचित सूलामणि की गणना तमिल के पाँच लघु काव्यों में होती है। कल्लाडनार के कल्लाडम् में प्रेम की विभिन्न मनोदशाओं पर सौ पद हैं। राजकवि जयन्गोंडा ने कलिंगत्तुप्परणि में कुलोत्तुंग प्रथम के कलिंगयुद्ध का वर्णन किया है। ओट्टकूत्तन भी राजकवि था जिसकी अनेक कृतियों में कुलोत्तुंग द्वितीय के बाल्यकाल पर एक पिल्लैत्तामिल और तीन चोल राजाओं पर उला उल्लेखनीय हैं। प्रसिद्ध तमिल रामायणम् अथवा रामावतारम् की रचना कंबन् ने कुलोत्तुंग तृतीय के राज्यकाल में की थी। किसी अज्ञात कवि की सुंदर कृति कुलोत्तुंगन्कोवै में कुलोत्तुंग द्वितीय के प्रारंभिक कृत्यों का वर्णन है। जैन विद्वान् अमितसागर ने छंदशास्त्र पर याप्परुंगलम् नाम के एक ग्रंथ और उसके एक संक्षिप्त रूप (कारिगै) की रचना की। बौद्ध बुद्धमित्र ने तमिल व्याकरण पर वीरशोलियम् नाम का ग्रंथ लिखा। दंडियलंगारम् का लेखक अज्ञात है; यह ग्रंथ दंडिन के काव्यादर्श के आदर्श पर रचा गया है। इस काल के कुछ अन्य व्याकरण ग्रंथ हैं- गुणवीर पंडित का नेमिनादम् और वच्चणंदिमालै, पवणंदि का नन्नूल तथा ऐयनारिदनार का पुरप्पोरलवेण्बामालै। पिंगलम् नाम का कोश भी इसी काल की कृति है। चोलवंश के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चोल नरेशों ने संस्कृत साहित्य और भाषा के अध्ययन के लिए विद्यालय (ब्रह्मपुरी, घटिका) स्थापित किए और उनकी व्यवस्था के लिए समुचित दान दिए। किंतु संस्कृत साहित्य में, सृजन की दृष्टि से, चोलों का शासनकाल अत्यल्प महत्व का है। | अलवंडर का दूसरा नाम क्या था? | {
"text": [
"यमुनाचार्य"
],
"answer_start": [
398
]
} | What was Alwander's second name? | He also donated to Buddhists.Jain also used to follow and propagate his religion peacefully.The Tamil religious positions of the East Yuga began to be worshiped like the Vedas and their creators began to be considered as the form of the deity.Nambi Andar Nambi first compiled Shaivism during the reign of Rajaraja I.Nathamuni did this work for Vaishnavism.He presented philosophical support for the path of devotion.His grandson Alavandar or Yamunacharya has an important place in Vaishnava Acharyas.Ramanuja proposed to the Vishwasvait Darshan improved the worship method of temples and also arranged for the entry of Antyas in some temples one day.In addition to the devotion among the Shaivas, some sects with Bibhata ethos, Pashupat, Kapalik and Kalamukh, some of which worshiped femininity, which often took a distorted form.The worshipers of the goddess were also practiced to offer their heads and offer their heads.Temples had special significance in the religious life of this era.Small or big temples, built in this era in almost all cities and villages of the Chola state.These temples were also centers of education.On festivals and festivals, they also had anthem, dance, drama and entertainment.There was also land under the ownership of temples and many employees were under their subjugation.These were the work of the bank.People of many industries and crafts used to get livelihood due to temples.The specialty of the temples of the Cholas is seen in their aircraft and courtyard.Their summit is small, but there is excessive decoration on Gopuram.The initial Chola temple is the works of the simple plan but the size and impact of the temples also changed with the power and growth of the empire.The most famous and influential of these temples is the Gangakondcholeshwar Temple built by Rajarajeshwar Temple in Tanjor, Rajendra I, built by Rajendra I.The Chola Yuga is also famous for the beauty of its bronze statues.Among them, the idols of Nataraja are universal.Apart from this, many other forms of Shiva, Brahma, Saptamatrika, Lakshmi and Bhudevi along with Vishnu, Rama and Sita, Shaiva saints and Kaliyadaman along with their followers are also notable.In the history of Tamil literature, Chola reign is called the 'Golden Age'.Managing was the main form of literature.In philosophy, the classical interpretation of Shaiva theory began.The Tiruttadar Puranam or Periyapuranam of Shekkilar is the composition.Vaishnava devotional literature and commentaries were also composed.Surprisingly, Vaishnav Acharya Nathamuni, Yamunacharya and Ramanuja have often composed in Sanskrit.The commentators also adopted the Akrant Maniprawal style in Sanskrit words.Ramanujanurradadi, the composition of hundred positions in praise of Ramanuja, is the main exception from this point of view.The progress of Jain and Buddhist literature was also notable.The famous Tamil epic Jeevakachintamani was composed by Jain poet Tiruttakkdev in the 10th century.Sulamani, composed by Tolamoli, is counted among the five small poets of Tamil.Kalladam in Kalladnar has a hundred terms on various moods of love.Rajavi Jayangonda has described the Kalotung War of Kulottung I in Kalingtaupani.Ottakuthan was also a Rajya, in many works, a pillaetamil and three Chola kings are notable on the childhood of Kulottung II.The famous Tamil Ramayanam or Ramavataram was composed by Kamban in the reign of Kulottung III.The beautiful work of an unknown poet is described in Kulottungnkovai's initial acts of Kulottung II.Jain scholar Amitasagar composed a book called Yapparaungam on verses and a brief form (Karigai).Buddhist Budhmitra wrote a book called Veerasolium on Tamil grammar.The author of Dandiyalangaram is unknown;This book is composed on the ideal of Kavyadarsha of Dandin.There are some other grammar texts of this period- Naminadam of Guni Pandit and Vachanandimalai, Nannul of Pavanandi and Purapporalevenbamalai of Ayionadar.The dictionary named Pingalam is also a work of this period.It is known from the records of the Chola dynasty that Chola kings established the school (Brahmapuri, Ghatika) for the study of Sanskrit literature and language and made appropriate donations for their arrangements.But in Sanskrit literature, from the point of view of creation, the reign of the Cholas is of very important importance. | {
"answer_start": [
398
],
"text": [
"Yamunacharya"
]
} |
384 | उन्होंने बौद्धों को भी दान दिया। जैन भी शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन और प्रचार करते थे। पूर्वयुग के तमिल धार्मिक पद वेदों जैसे पूजित होने लगे और उनके रचयिता देवता स्वरूप माने जाने लगे। नंबि आंडार नंबि ने सर्वप्रथम राजराज प्रथम के राज्यकाल में शैव धर्मग्रंथों को संकलित किया। वैष्णव धर्म के लिए यही कार्य नाथमुनि ने किया। उन्होंने भक्ति के मार्ग का दार्शनिक समर्थन प्रस्तुत किया। उनके पौत्र आलवंदार अथवा यमुनाचार्य का वैष्णव आचार्यों में महत्वपूर्ण स्थान है। रामानुज ने विशिष्टाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया मंदिरों की पूजा विधि में सुधार किया और कुछ मंदिरों में वर्ष में एक दिन अंत्यजों के प्रवेश की भी व्यवस्था की। शैवों में भक्तिमार्ग के अतिरिक्त बीभत्स आचारोंवाले कुछ संप्रदाय, पाशुपत, कापालिक और कालामुख जैसे थे, जिनमें से कुछ स्त्रीत्व की आराधना करते थे, जो प्राय: विकृत रूप ले लेती थी। देवी के उपासकों में अपना सिर काटकर चढ़ाने की भी प्रथा थी। इस युग के धार्मिक जीवन में मंदिरों का विशेष महत्व था। छोटे या बड़े मंदिर, चोल राज्य के प्राय: सभी नगरों और गाँवों में इस युग में बने। ये मंदिर, शिक्षा के केंद्र भी थे। त्योहारों और उत्सवों पर इनमें गान, नृत्य, नाट्य और मनोरंजन के आयोजन भी होते थे। मंदिरों के स्वामित्व में भूमि भी होती थी और कई कर्मचारी इनकी अधीनता में होते थे। ये बैंक का कार्य थे। कई उद्योगों और शिल्पों के व्यक्तियों को मंदिरों के कारण जीविका मिलती थी। चोलों के मंदिरों की विशेषता उनके विमानों और प्रांगणों में दिखलाई पड़ती है। इनके शिखरस्तंभ छोटे होते हैं, किंतु गोपुरम् पर अत्यधिक अलंकरण होता है। प्रारंभिक चोल मंदिर साधारण योजना की कृतियाँ हैं लेकिन साम्राज्य की शक्ति और साधनों की वृद्धि के साथ मंदिरों के आकार और प्रभाव में भी परिवर्तन हुआ। इन मंदिरों में सबसे अधिक प्रसिद्ध और प्रभावोत्पादक राजराज प्रथम द्वारा तंजोर में निर्मित राजराजेश्वर मंदिर, राजेंद्र प्रथम द्वारा गंगैकोंडचोलपुरम् में निर्मित गंगैकोंडचोलेश्वर मंदिर है। चोल युग अपनी कांस्य प्रतिमाओं की सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें नटराज की मूर्तियाँ सर्वात्कृष्ट हैं। इसके अतिरिक्त शिव के दूसरे कई रूप, ब्रह्मा, सप्तमातृका, लक्ष्मी तथा भूदेवी के साथ विष्णु, अपने अनुचरों के साथ राम और सीता, शैव संत और कालियदमन करते हुए कृष्ण की मूर्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं। तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को 'स्वर्ण युग' की संज्ञा दी जाती है। प्रबंध साहित्यरचना का प्रमुख रूप था। दर्शन में शैव सिद्धांत के शास्त्रीय विवेचन का आरंभ हुआ। शेक्किलार का तिरुत्तोंडर् पुराणम् या पेरियपुराणम् युगांतरकारी रचना है। वैष्णव भक्ति-साहित्य और टीकाओं की भी रचना हुई। आश्चर्य है कि वैष्णव आचार्य नाथमुनि, यामुनाचार्य और रामानुज ने प्राय: संस्कृत में ही रचनाएँ की हैं। टीकाकारों ने भी संस्कृत शब्दों में आक्रांत मणिप्रवाल शैली अपनाई। रामानुज की प्रशंसा में सौ पदों की रचना रामानुजनूर्रदादि इस दृष्टि से प्रमुख अपवाद है। जैन और बौद्ध साहित्य की प्रगति भी उल्लेखनीय थी। जैन कवि तिरुत्तक्कदेवर् ने प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य जीवकचिंतामणि की रचना 10वीं शताब्दी में की थी। तोलामोलि रचित सूलामणि की गणना तमिल के पाँच लघु काव्यों में होती है। कल्लाडनार के कल्लाडम् में प्रेम की विभिन्न मनोदशाओं पर सौ पद हैं। राजकवि जयन्गोंडा ने कलिंगत्तुप्परणि में कुलोत्तुंग प्रथम के कलिंगयुद्ध का वर्णन किया है। ओट्टकूत्तन भी राजकवि था जिसकी अनेक कृतियों में कुलोत्तुंग द्वितीय के बाल्यकाल पर एक पिल्लैत्तामिल और तीन चोल राजाओं पर उला उल्लेखनीय हैं। प्रसिद्ध तमिल रामायणम् अथवा रामावतारम् की रचना कंबन् ने कुलोत्तुंग तृतीय के राज्यकाल में की थी। किसी अज्ञात कवि की सुंदर कृति कुलोत्तुंगन्कोवै में कुलोत्तुंग द्वितीय के प्रारंभिक कृत्यों का वर्णन है। जैन विद्वान् अमितसागर ने छंदशास्त्र पर याप्परुंगलम् नाम के एक ग्रंथ और उसके एक संक्षिप्त रूप (कारिगै) की रचना की। बौद्ध बुद्धमित्र ने तमिल व्याकरण पर वीरशोलियम् नाम का ग्रंथ लिखा। दंडियलंगारम् का लेखक अज्ञात है; यह ग्रंथ दंडिन के काव्यादर्श के आदर्श पर रचा गया है। इस काल के कुछ अन्य व्याकरण ग्रंथ हैं- गुणवीर पंडित का नेमिनादम् और वच्चणंदिमालै, पवणंदि का नन्नूल तथा ऐयनारिदनार का पुरप्पोरलवेण्बामालै। पिंगलम् नाम का कोश भी इसी काल की कृति है। चोलवंश के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चोल नरेशों ने संस्कृत साहित्य और भाषा के अध्ययन के लिए विद्यालय (ब्रह्मपुरी, घटिका) स्थापित किए और उनकी व्यवस्था के लिए समुचित दान दिए। किंतु संस्कृत साहित्य में, सृजन की दृष्टि से, चोलों का शासनकाल अत्यल्प महत्व का है। | विशिष्टाद्वैत दर्शन को प्रतिपादित किसने किया था? | {
"text": [
"रामानुज"
],
"answer_start": [
452
]
} | Who propounded the Vishishtadvaita philosophy? | He also donated to Buddhists.Jain also used to follow and propagate his religion peacefully.The Tamil religious positions of the East Yuga began to be worshiped like the Vedas and their creators began to be considered as the form of the deity.Nambi Andar Nambi first compiled Shaivism during the reign of Rajaraja I.Nathamuni did this work for Vaishnavism.He presented philosophical support for the path of devotion.His grandson Alavandar or Yamunacharya has an important place in Vaishnava Acharyas.Ramanuja proposed to the Vishwasvait Darshan improved the worship method of temples and also arranged for the entry of Antyas in some temples one day.In addition to the devotion among the Shaivas, some sects with Bibhata ethos, Pashupat, Kapalik and Kalamukh, some of which worshiped femininity, which often took a distorted form.The worshipers of the goddess were also practiced to offer their heads and offer their heads.Temples had special significance in the religious life of this era.Small or big temples, built in this era in almost all cities and villages of the Chola state.These temples were also centers of education.On festivals and festivals, they also had anthem, dance, drama and entertainment.There was also land under the ownership of temples and many employees were under their subjugation.These were the work of the bank.People of many industries and crafts used to get livelihood due to temples.The specialty of the temples of the Cholas is seen in their aircraft and courtyard.Their summit is small, but there is excessive decoration on Gopuram.The initial Chola temple is the works of the simple plan but the size and impact of the temples also changed with the power and growth of the empire.The most famous and influential of these temples is the Gangakondcholeshwar Temple built by Rajarajeshwar Temple in Tanjor, Rajendra I, built by Rajendra I.The Chola Yuga is also famous for the beauty of its bronze statues.Among them, the idols of Nataraja are universal.Apart from this, many other forms of Shiva, Brahma, Saptamatrika, Lakshmi and Bhudevi along with Vishnu, Rama and Sita, Shaiva saints and Kaliyadaman along with their followers are also notable.In the history of Tamil literature, Chola reign is called the 'Golden Age'.Managing was the main form of literature.In philosophy, the classical interpretation of Shaiva theory began.The Tiruttadar Puranam or Periyapuranam of Shekkilar is the composition.Vaishnava devotional literature and commentaries were also composed.Surprisingly, Vaishnav Acharya Nathamuni, Yamunacharya and Ramanuja have often composed in Sanskrit.The commentators also adopted the Akrant Maniprawal style in Sanskrit words.Ramanujanurradadi, the composition of hundred positions in praise of Ramanuja, is the main exception from this point of view.The progress of Jain and Buddhist literature was also notable.The famous Tamil epic Jeevakachintamani was composed by Jain poet Tiruttakkdev in the 10th century.Sulamani, composed by Tolamoli, is counted among the five small poets of Tamil.Kalladam in Kalladnar has a hundred terms on various moods of love.Rajavi Jayangonda has described the Kalotung War of Kulottung I in Kalingtaupani.Ottakuthan was also a Rajya, in many works, a pillaetamil and three Chola kings are notable on the childhood of Kulottung II.The famous Tamil Ramayanam or Ramavataram was composed by Kamban in the reign of Kulottung III.The beautiful work of an unknown poet is described in Kulottungnkovai's initial acts of Kulottung II.Jain scholar Amitasagar composed a book called Yapparaungam on verses and a brief form (Karigai).Buddhist Budhmitra wrote a book called Veerasolium on Tamil grammar.The author of Dandiyalangaram is unknown;This book is composed on the ideal of Kavyadarsha of Dandin.There are some other grammar texts of this period- Naminadam of Guni Pandit and Vachanandimalai, Nannul of Pavanandi and Purapporalevenbamalai of Ayionadar.The dictionary named Pingalam is also a work of this period.It is known from the records of the Chola dynasty that Chola kings established the school (Brahmapuri, Ghatika) for the study of Sanskrit literature and language and made appropriate donations for their arrangements.But in Sanskrit literature, from the point of view of creation, the reign of the Cholas is of very important importance. | {
"answer_start": [
452
],
"text": [
"Ramanuja."
]
} |
385 | उन्होंने बौद्धों को भी दान दिया। जैन भी शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन और प्रचार करते थे। पूर्वयुग के तमिल धार्मिक पद वेदों जैसे पूजित होने लगे और उनके रचयिता देवता स्वरूप माने जाने लगे। नंबि आंडार नंबि ने सर्वप्रथम राजराज प्रथम के राज्यकाल में शैव धर्मग्रंथों को संकलित किया। वैष्णव धर्म के लिए यही कार्य नाथमुनि ने किया। उन्होंने भक्ति के मार्ग का दार्शनिक समर्थन प्रस्तुत किया। उनके पौत्र आलवंदार अथवा यमुनाचार्य का वैष्णव आचार्यों में महत्वपूर्ण स्थान है। रामानुज ने विशिष्टाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया मंदिरों की पूजा विधि में सुधार किया और कुछ मंदिरों में वर्ष में एक दिन अंत्यजों के प्रवेश की भी व्यवस्था की। शैवों में भक्तिमार्ग के अतिरिक्त बीभत्स आचारोंवाले कुछ संप्रदाय, पाशुपत, कापालिक और कालामुख जैसे थे, जिनमें से कुछ स्त्रीत्व की आराधना करते थे, जो प्राय: विकृत रूप ले लेती थी। देवी के उपासकों में अपना सिर काटकर चढ़ाने की भी प्रथा थी। इस युग के धार्मिक जीवन में मंदिरों का विशेष महत्व था। छोटे या बड़े मंदिर, चोल राज्य के प्राय: सभी नगरों और गाँवों में इस युग में बने। ये मंदिर, शिक्षा के केंद्र भी थे। त्योहारों और उत्सवों पर इनमें गान, नृत्य, नाट्य और मनोरंजन के आयोजन भी होते थे। मंदिरों के स्वामित्व में भूमि भी होती थी और कई कर्मचारी इनकी अधीनता में होते थे। ये बैंक का कार्य थे। कई उद्योगों और शिल्पों के व्यक्तियों को मंदिरों के कारण जीविका मिलती थी। चोलों के मंदिरों की विशेषता उनके विमानों और प्रांगणों में दिखलाई पड़ती है। इनके शिखरस्तंभ छोटे होते हैं, किंतु गोपुरम् पर अत्यधिक अलंकरण होता है। प्रारंभिक चोल मंदिर साधारण योजना की कृतियाँ हैं लेकिन साम्राज्य की शक्ति और साधनों की वृद्धि के साथ मंदिरों के आकार और प्रभाव में भी परिवर्तन हुआ। इन मंदिरों में सबसे अधिक प्रसिद्ध और प्रभावोत्पादक राजराज प्रथम द्वारा तंजोर में निर्मित राजराजेश्वर मंदिर, राजेंद्र प्रथम द्वारा गंगैकोंडचोलपुरम् में निर्मित गंगैकोंडचोलेश्वर मंदिर है। चोल युग अपनी कांस्य प्रतिमाओं की सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें नटराज की मूर्तियाँ सर्वात्कृष्ट हैं। इसके अतिरिक्त शिव के दूसरे कई रूप, ब्रह्मा, सप्तमातृका, लक्ष्मी तथा भूदेवी के साथ विष्णु, अपने अनुचरों के साथ राम और सीता, शैव संत और कालियदमन करते हुए कृष्ण की मूर्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं। तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को 'स्वर्ण युग' की संज्ञा दी जाती है। प्रबंध साहित्यरचना का प्रमुख रूप था। दर्शन में शैव सिद्धांत के शास्त्रीय विवेचन का आरंभ हुआ। शेक्किलार का तिरुत्तोंडर् पुराणम् या पेरियपुराणम् युगांतरकारी रचना है। वैष्णव भक्ति-साहित्य और टीकाओं की भी रचना हुई। आश्चर्य है कि वैष्णव आचार्य नाथमुनि, यामुनाचार्य और रामानुज ने प्राय: संस्कृत में ही रचनाएँ की हैं। टीकाकारों ने भी संस्कृत शब्दों में आक्रांत मणिप्रवाल शैली अपनाई। रामानुज की प्रशंसा में सौ पदों की रचना रामानुजनूर्रदादि इस दृष्टि से प्रमुख अपवाद है। जैन और बौद्ध साहित्य की प्रगति भी उल्लेखनीय थी। जैन कवि तिरुत्तक्कदेवर् ने प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य जीवकचिंतामणि की रचना 10वीं शताब्दी में की थी। तोलामोलि रचित सूलामणि की गणना तमिल के पाँच लघु काव्यों में होती है। कल्लाडनार के कल्लाडम् में प्रेम की विभिन्न मनोदशाओं पर सौ पद हैं। राजकवि जयन्गोंडा ने कलिंगत्तुप्परणि में कुलोत्तुंग प्रथम के कलिंगयुद्ध का वर्णन किया है। ओट्टकूत्तन भी राजकवि था जिसकी अनेक कृतियों में कुलोत्तुंग द्वितीय के बाल्यकाल पर एक पिल्लैत्तामिल और तीन चोल राजाओं पर उला उल्लेखनीय हैं। प्रसिद्ध तमिल रामायणम् अथवा रामावतारम् की रचना कंबन् ने कुलोत्तुंग तृतीय के राज्यकाल में की थी। किसी अज्ञात कवि की सुंदर कृति कुलोत्तुंगन्कोवै में कुलोत्तुंग द्वितीय के प्रारंभिक कृत्यों का वर्णन है। जैन विद्वान् अमितसागर ने छंदशास्त्र पर याप्परुंगलम् नाम के एक ग्रंथ और उसके एक संक्षिप्त रूप (कारिगै) की रचना की। बौद्ध बुद्धमित्र ने तमिल व्याकरण पर वीरशोलियम् नाम का ग्रंथ लिखा। दंडियलंगारम् का लेखक अज्ञात है; यह ग्रंथ दंडिन के काव्यादर्श के आदर्श पर रचा गया है। इस काल के कुछ अन्य व्याकरण ग्रंथ हैं- गुणवीर पंडित का नेमिनादम् और वच्चणंदिमालै, पवणंदि का नन्नूल तथा ऐयनारिदनार का पुरप्पोरलवेण्बामालै। पिंगलम् नाम का कोश भी इसी काल की कृति है। चोलवंश के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चोल नरेशों ने संस्कृत साहित्य और भाषा के अध्ययन के लिए विद्यालय (ब्रह्मपुरी, घटिका) स्थापित किए और उनकी व्यवस्था के लिए समुचित दान दिए। किंतु संस्कृत साहित्य में, सृजन की दृष्टि से, चोलों का शासनकाल अत्यल्प महत्व का है। | केशवस्वामी द्वारा बनाए गए शब्दकोश का नाम क्या था ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | What was the name of the dictionary created by Kesavaswamy? | He also donated to Buddhists.Jain also used to follow and propagate his religion peacefully.The Tamil religious positions of the East Yuga began to be worshiped like the Vedas and their creators began to be considered as the form of the deity.Nambi Andar Nambi first compiled Shaivism during the reign of Rajaraja I.Nathamuni did this work for Vaishnavism.He presented philosophical support for the path of devotion.His grandson Alavandar or Yamunacharya has an important place in Vaishnava Acharyas.Ramanuja proposed to the Vishwasvait Darshan improved the worship method of temples and also arranged for the entry of Antyas in some temples one day.In addition to the devotion among the Shaivas, some sects with Bibhata ethos, Pashupat, Kapalik and Kalamukh, some of which worshiped femininity, which often took a distorted form.The worshipers of the goddess were also practiced to offer their heads and offer their heads.Temples had special significance in the religious life of this era.Small or big temples, built in this era in almost all cities and villages of the Chola state.These temples were also centers of education.On festivals and festivals, they also had anthem, dance, drama and entertainment.There was also land under the ownership of temples and many employees were under their subjugation.These were the work of the bank.People of many industries and crafts used to get livelihood due to temples.The specialty of the temples of the Cholas is seen in their aircraft and courtyard.Their summit is small, but there is excessive decoration on Gopuram.The initial Chola temple is the works of the simple plan but the size and impact of the temples also changed with the power and growth of the empire.The most famous and influential of these temples is the Gangakondcholeshwar Temple built by Rajarajeshwar Temple in Tanjor, Rajendra I, built by Rajendra I.The Chola Yuga is also famous for the beauty of its bronze statues.Among them, the idols of Nataraja are universal.Apart from this, many other forms of Shiva, Brahma, Saptamatrika, Lakshmi and Bhudevi along with Vishnu, Rama and Sita, Shaiva saints and Kaliyadaman along with their followers are also notable.In the history of Tamil literature, Chola reign is called the 'Golden Age'.Managing was the main form of literature.In philosophy, the classical interpretation of Shaiva theory began.The Tiruttadar Puranam or Periyapuranam of Shekkilar is the composition.Vaishnava devotional literature and commentaries were also composed.Surprisingly, Vaishnav Acharya Nathamuni, Yamunacharya and Ramanuja have often composed in Sanskrit.The commentators also adopted the Akrant Maniprawal style in Sanskrit words.Ramanujanurradadi, the composition of hundred positions in praise of Ramanuja, is the main exception from this point of view.The progress of Jain and Buddhist literature was also notable.The famous Tamil epic Jeevakachintamani was composed by Jain poet Tiruttakkdev in the 10th century.Sulamani, composed by Tolamoli, is counted among the five small poets of Tamil.Kalladam in Kalladnar has a hundred terms on various moods of love.Rajavi Jayangonda has described the Kalotung War of Kulottung I in Kalingtaupani.Ottakuthan was also a Rajya, in many works, a pillaetamil and three Chola kings are notable on the childhood of Kulottung II.The famous Tamil Ramayanam or Ramavataram was composed by Kamban in the reign of Kulottung III.The beautiful work of an unknown poet is described in Kulottungnkovai's initial acts of Kulottung II.Jain scholar Amitasagar composed a book called Yapparaungam on verses and a brief form (Karigai).Buddhist Budhmitra wrote a book called Veerasolium on Tamil grammar.The author of Dandiyalangaram is unknown;This book is composed on the ideal of Kavyadarsha of Dandin.There are some other grammar texts of this period- Naminadam of Guni Pandit and Vachanandimalai, Nannul of Pavanandi and Purapporalevenbamalai of Ayionadar.The dictionary named Pingalam is also a work of this period.It is known from the records of the Chola dynasty that Chola kings established the school (Brahmapuri, Ghatika) for the study of Sanskrit literature and language and made appropriate donations for their arrangements.But in Sanskrit literature, from the point of view of creation, the reign of the Cholas is of very important importance. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
386 | उन्होंने बौद्धों को भी दान दिया। जैन भी शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन और प्रचार करते थे। पूर्वयुग के तमिल धार्मिक पद वेदों जैसे पूजित होने लगे और उनके रचयिता देवता स्वरूप माने जाने लगे। नंबि आंडार नंबि ने सर्वप्रथम राजराज प्रथम के राज्यकाल में शैव धर्मग्रंथों को संकलित किया। वैष्णव धर्म के लिए यही कार्य नाथमुनि ने किया। उन्होंने भक्ति के मार्ग का दार्शनिक समर्थन प्रस्तुत किया। उनके पौत्र आलवंदार अथवा यमुनाचार्य का वैष्णव आचार्यों में महत्वपूर्ण स्थान है। रामानुज ने विशिष्टाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया मंदिरों की पूजा विधि में सुधार किया और कुछ मंदिरों में वर्ष में एक दिन अंत्यजों के प्रवेश की भी व्यवस्था की। शैवों में भक्तिमार्ग के अतिरिक्त बीभत्स आचारोंवाले कुछ संप्रदाय, पाशुपत, कापालिक और कालामुख जैसे थे, जिनमें से कुछ स्त्रीत्व की आराधना करते थे, जो प्राय: विकृत रूप ले लेती थी। देवी के उपासकों में अपना सिर काटकर चढ़ाने की भी प्रथा थी। इस युग के धार्मिक जीवन में मंदिरों का विशेष महत्व था। छोटे या बड़े मंदिर, चोल राज्य के प्राय: सभी नगरों और गाँवों में इस युग में बने। ये मंदिर, शिक्षा के केंद्र भी थे। त्योहारों और उत्सवों पर इनमें गान, नृत्य, नाट्य और मनोरंजन के आयोजन भी होते थे। मंदिरों के स्वामित्व में भूमि भी होती थी और कई कर्मचारी इनकी अधीनता में होते थे। ये बैंक का कार्य थे। कई उद्योगों और शिल्पों के व्यक्तियों को मंदिरों के कारण जीविका मिलती थी। चोलों के मंदिरों की विशेषता उनके विमानों और प्रांगणों में दिखलाई पड़ती है। इनके शिखरस्तंभ छोटे होते हैं, किंतु गोपुरम् पर अत्यधिक अलंकरण होता है। प्रारंभिक चोल मंदिर साधारण योजना की कृतियाँ हैं लेकिन साम्राज्य की शक्ति और साधनों की वृद्धि के साथ मंदिरों के आकार और प्रभाव में भी परिवर्तन हुआ। इन मंदिरों में सबसे अधिक प्रसिद्ध और प्रभावोत्पादक राजराज प्रथम द्वारा तंजोर में निर्मित राजराजेश्वर मंदिर, राजेंद्र प्रथम द्वारा गंगैकोंडचोलपुरम् में निर्मित गंगैकोंडचोलेश्वर मंदिर है। चोल युग अपनी कांस्य प्रतिमाओं की सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें नटराज की मूर्तियाँ सर्वात्कृष्ट हैं। इसके अतिरिक्त शिव के दूसरे कई रूप, ब्रह्मा, सप्तमातृका, लक्ष्मी तथा भूदेवी के साथ विष्णु, अपने अनुचरों के साथ राम और सीता, शैव संत और कालियदमन करते हुए कृष्ण की मूर्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं। तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को 'स्वर्ण युग' की संज्ञा दी जाती है। प्रबंध साहित्यरचना का प्रमुख रूप था। दर्शन में शैव सिद्धांत के शास्त्रीय विवेचन का आरंभ हुआ। शेक्किलार का तिरुत्तोंडर् पुराणम् या पेरियपुराणम् युगांतरकारी रचना है। वैष्णव भक्ति-साहित्य और टीकाओं की भी रचना हुई। आश्चर्य है कि वैष्णव आचार्य नाथमुनि, यामुनाचार्य और रामानुज ने प्राय: संस्कृत में ही रचनाएँ की हैं। टीकाकारों ने भी संस्कृत शब्दों में आक्रांत मणिप्रवाल शैली अपनाई। रामानुज की प्रशंसा में सौ पदों की रचना रामानुजनूर्रदादि इस दृष्टि से प्रमुख अपवाद है। जैन और बौद्ध साहित्य की प्रगति भी उल्लेखनीय थी। जैन कवि तिरुत्तक्कदेवर् ने प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य जीवकचिंतामणि की रचना 10वीं शताब्दी में की थी। तोलामोलि रचित सूलामणि की गणना तमिल के पाँच लघु काव्यों में होती है। कल्लाडनार के कल्लाडम् में प्रेम की विभिन्न मनोदशाओं पर सौ पद हैं। राजकवि जयन्गोंडा ने कलिंगत्तुप्परणि में कुलोत्तुंग प्रथम के कलिंगयुद्ध का वर्णन किया है। ओट्टकूत्तन भी राजकवि था जिसकी अनेक कृतियों में कुलोत्तुंग द्वितीय के बाल्यकाल पर एक पिल्लैत्तामिल और तीन चोल राजाओं पर उला उल्लेखनीय हैं। प्रसिद्ध तमिल रामायणम् अथवा रामावतारम् की रचना कंबन् ने कुलोत्तुंग तृतीय के राज्यकाल में की थी। किसी अज्ञात कवि की सुंदर कृति कुलोत्तुंगन्कोवै में कुलोत्तुंग द्वितीय के प्रारंभिक कृत्यों का वर्णन है। जैन विद्वान् अमितसागर ने छंदशास्त्र पर याप्परुंगलम् नाम के एक ग्रंथ और उसके एक संक्षिप्त रूप (कारिगै) की रचना की। बौद्ध बुद्धमित्र ने तमिल व्याकरण पर वीरशोलियम् नाम का ग्रंथ लिखा। दंडियलंगारम् का लेखक अज्ञात है; यह ग्रंथ दंडिन के काव्यादर्श के आदर्श पर रचा गया है। इस काल के कुछ अन्य व्याकरण ग्रंथ हैं- गुणवीर पंडित का नेमिनादम् और वच्चणंदिमालै, पवणंदि का नन्नूल तथा ऐयनारिदनार का पुरप्पोरलवेण्बामालै। पिंगलम् नाम का कोश भी इसी काल की कृति है। चोलवंश के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चोल नरेशों ने संस्कृत साहित्य और भाषा के अध्ययन के लिए विद्यालय (ब्रह्मपुरी, घटिका) स्थापित किए और उनकी व्यवस्था के लिए समुचित दान दिए। किंतु संस्कृत साहित्य में, सृजन की दृष्टि से, चोलों का शासनकाल अत्यल्प महत्व का है। | तमिल महाकाव्य जीवकचिंतमनी की रचना किसने की थी? | {
"text": [
"जैन कवि तिरुत्तक्कदेवर्"
],
"answer_start": [
2603
]
} | Who composed the Tamil epic Jivakachintamani? | He also donated to Buddhists.Jain also used to follow and propagate his religion peacefully.The Tamil religious positions of the East Yuga began to be worshiped like the Vedas and their creators began to be considered as the form of the deity.Nambi Andar Nambi first compiled Shaivism during the reign of Rajaraja I.Nathamuni did this work for Vaishnavism.He presented philosophical support for the path of devotion.His grandson Alavandar or Yamunacharya has an important place in Vaishnava Acharyas.Ramanuja proposed to the Vishwasvait Darshan improved the worship method of temples and also arranged for the entry of Antyas in some temples one day.In addition to the devotion among the Shaivas, some sects with Bibhata ethos, Pashupat, Kapalik and Kalamukh, some of which worshiped femininity, which often took a distorted form.The worshipers of the goddess were also practiced to offer their heads and offer their heads.Temples had special significance in the religious life of this era.Small or big temples, built in this era in almost all cities and villages of the Chola state.These temples were also centers of education.On festivals and festivals, they also had anthem, dance, drama and entertainment.There was also land under the ownership of temples and many employees were under their subjugation.These were the work of the bank.People of many industries and crafts used to get livelihood due to temples.The specialty of the temples of the Cholas is seen in their aircraft and courtyard.Their summit is small, but there is excessive decoration on Gopuram.The initial Chola temple is the works of the simple plan but the size and impact of the temples also changed with the power and growth of the empire.The most famous and influential of these temples is the Gangakondcholeshwar Temple built by Rajarajeshwar Temple in Tanjor, Rajendra I, built by Rajendra I.The Chola Yuga is also famous for the beauty of its bronze statues.Among them, the idols of Nataraja are universal.Apart from this, many other forms of Shiva, Brahma, Saptamatrika, Lakshmi and Bhudevi along with Vishnu, Rama and Sita, Shaiva saints and Kaliyadaman along with their followers are also notable.In the history of Tamil literature, Chola reign is called the 'Golden Age'.Managing was the main form of literature.In philosophy, the classical interpretation of Shaiva theory began.The Tiruttadar Puranam or Periyapuranam of Shekkilar is the composition.Vaishnava devotional literature and commentaries were also composed.Surprisingly, Vaishnav Acharya Nathamuni, Yamunacharya and Ramanuja have often composed in Sanskrit.The commentators also adopted the Akrant Maniprawal style in Sanskrit words.Ramanujanurradadi, the composition of hundred positions in praise of Ramanuja, is the main exception from this point of view.The progress of Jain and Buddhist literature was also notable.The famous Tamil epic Jeevakachintamani was composed by Jain poet Tiruttakkdev in the 10th century.Sulamani, composed by Tolamoli, is counted among the five small poets of Tamil.Kalladam in Kalladnar has a hundred terms on various moods of love.Rajavi Jayangonda has described the Kalotung War of Kulottung I in Kalingtaupani.Ottakuthan was also a Rajya, in many works, a pillaetamil and three Chola kings are notable on the childhood of Kulottung II.The famous Tamil Ramayanam or Ramavataram was composed by Kamban in the reign of Kulottung III.The beautiful work of an unknown poet is described in Kulottungnkovai's initial acts of Kulottung II.Jain scholar Amitasagar composed a book called Yapparaungam on verses and a brief form (Karigai).Buddhist Budhmitra wrote a book called Veerasolium on Tamil grammar.The author of Dandiyalangaram is unknown;This book is composed on the ideal of Kavyadarsha of Dandin.There are some other grammar texts of this period- Naminadam of Guni Pandit and Vachanandimalai, Nannul of Pavanandi and Purapporalevenbamalai of Ayionadar.The dictionary named Pingalam is also a work of this period.It is known from the records of the Chola dynasty that Chola kings established the school (Brahmapuri, Ghatika) for the study of Sanskrit literature and language and made appropriate donations for their arrangements.But in Sanskrit literature, from the point of view of creation, the reign of the Cholas is of very important importance. | {
"answer_start": [
2603
],
"text": [
"The Jain poet Tiruttakkadevar"
]
} |
387 | उन्होंने बौद्धों को भी दान दिया। जैन भी शांतिपूर्वक अपने धर्म का पालन और प्रचार करते थे। पूर्वयुग के तमिल धार्मिक पद वेदों जैसे पूजित होने लगे और उनके रचयिता देवता स्वरूप माने जाने लगे। नंबि आंडार नंबि ने सर्वप्रथम राजराज प्रथम के राज्यकाल में शैव धर्मग्रंथों को संकलित किया। वैष्णव धर्म के लिए यही कार्य नाथमुनि ने किया। उन्होंने भक्ति के मार्ग का दार्शनिक समर्थन प्रस्तुत किया। उनके पौत्र आलवंदार अथवा यमुनाचार्य का वैष्णव आचार्यों में महत्वपूर्ण स्थान है। रामानुज ने विशिष्टाद्वैत दर्शन का प्रतिपादन किया मंदिरों की पूजा विधि में सुधार किया और कुछ मंदिरों में वर्ष में एक दिन अंत्यजों के प्रवेश की भी व्यवस्था की। शैवों में भक्तिमार्ग के अतिरिक्त बीभत्स आचारोंवाले कुछ संप्रदाय, पाशुपत, कापालिक और कालामुख जैसे थे, जिनमें से कुछ स्त्रीत्व की आराधना करते थे, जो प्राय: विकृत रूप ले लेती थी। देवी के उपासकों में अपना सिर काटकर चढ़ाने की भी प्रथा थी। इस युग के धार्मिक जीवन में मंदिरों का विशेष महत्व था। छोटे या बड़े मंदिर, चोल राज्य के प्राय: सभी नगरों और गाँवों में इस युग में बने। ये मंदिर, शिक्षा के केंद्र भी थे। त्योहारों और उत्सवों पर इनमें गान, नृत्य, नाट्य और मनोरंजन के आयोजन भी होते थे। मंदिरों के स्वामित्व में भूमि भी होती थी और कई कर्मचारी इनकी अधीनता में होते थे। ये बैंक का कार्य थे। कई उद्योगों और शिल्पों के व्यक्तियों को मंदिरों के कारण जीविका मिलती थी। चोलों के मंदिरों की विशेषता उनके विमानों और प्रांगणों में दिखलाई पड़ती है। इनके शिखरस्तंभ छोटे होते हैं, किंतु गोपुरम् पर अत्यधिक अलंकरण होता है। प्रारंभिक चोल मंदिर साधारण योजना की कृतियाँ हैं लेकिन साम्राज्य की शक्ति और साधनों की वृद्धि के साथ मंदिरों के आकार और प्रभाव में भी परिवर्तन हुआ। इन मंदिरों में सबसे अधिक प्रसिद्ध और प्रभावोत्पादक राजराज प्रथम द्वारा तंजोर में निर्मित राजराजेश्वर मंदिर, राजेंद्र प्रथम द्वारा गंगैकोंडचोलपुरम् में निर्मित गंगैकोंडचोलेश्वर मंदिर है। चोल युग अपनी कांस्य प्रतिमाओं की सुंदरता के लिए भी प्रसिद्ध है। इनमें नटराज की मूर्तियाँ सर्वात्कृष्ट हैं। इसके अतिरिक्त शिव के दूसरे कई रूप, ब्रह्मा, सप्तमातृका, लक्ष्मी तथा भूदेवी के साथ विष्णु, अपने अनुचरों के साथ राम और सीता, शैव संत और कालियदमन करते हुए कृष्ण की मूर्तियाँ भी उल्लेखनीय हैं। तमिल साहित्य के इतिहास में चोल शासनकाल को 'स्वर्ण युग' की संज्ञा दी जाती है। प्रबंध साहित्यरचना का प्रमुख रूप था। दर्शन में शैव सिद्धांत के शास्त्रीय विवेचन का आरंभ हुआ। शेक्किलार का तिरुत्तोंडर् पुराणम् या पेरियपुराणम् युगांतरकारी रचना है। वैष्णव भक्ति-साहित्य और टीकाओं की भी रचना हुई। आश्चर्य है कि वैष्णव आचार्य नाथमुनि, यामुनाचार्य और रामानुज ने प्राय: संस्कृत में ही रचनाएँ की हैं। टीकाकारों ने भी संस्कृत शब्दों में आक्रांत मणिप्रवाल शैली अपनाई। रामानुज की प्रशंसा में सौ पदों की रचना रामानुजनूर्रदादि इस दृष्टि से प्रमुख अपवाद है। जैन और बौद्ध साहित्य की प्रगति भी उल्लेखनीय थी। जैन कवि तिरुत्तक्कदेवर् ने प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य जीवकचिंतामणि की रचना 10वीं शताब्दी में की थी। तोलामोलि रचित सूलामणि की गणना तमिल के पाँच लघु काव्यों में होती है। कल्लाडनार के कल्लाडम् में प्रेम की विभिन्न मनोदशाओं पर सौ पद हैं। राजकवि जयन्गोंडा ने कलिंगत्तुप्परणि में कुलोत्तुंग प्रथम के कलिंगयुद्ध का वर्णन किया है। ओट्टकूत्तन भी राजकवि था जिसकी अनेक कृतियों में कुलोत्तुंग द्वितीय के बाल्यकाल पर एक पिल्लैत्तामिल और तीन चोल राजाओं पर उला उल्लेखनीय हैं। प्रसिद्ध तमिल रामायणम् अथवा रामावतारम् की रचना कंबन् ने कुलोत्तुंग तृतीय के राज्यकाल में की थी। किसी अज्ञात कवि की सुंदर कृति कुलोत्तुंगन्कोवै में कुलोत्तुंग द्वितीय के प्रारंभिक कृत्यों का वर्णन है। जैन विद्वान् अमितसागर ने छंदशास्त्र पर याप्परुंगलम् नाम के एक ग्रंथ और उसके एक संक्षिप्त रूप (कारिगै) की रचना की। बौद्ध बुद्धमित्र ने तमिल व्याकरण पर वीरशोलियम् नाम का ग्रंथ लिखा। दंडियलंगारम् का लेखक अज्ञात है; यह ग्रंथ दंडिन के काव्यादर्श के आदर्श पर रचा गया है। इस काल के कुछ अन्य व्याकरण ग्रंथ हैं- गुणवीर पंडित का नेमिनादम् और वच्चणंदिमालै, पवणंदि का नन्नूल तथा ऐयनारिदनार का पुरप्पोरलवेण्बामालै। पिंगलम् नाम का कोश भी इसी काल की कृति है। चोलवंश के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि चोल नरेशों ने संस्कृत साहित्य और भाषा के अध्ययन के लिए विद्यालय (ब्रह्मपुरी, घटिका) स्थापित किए और उनकी व्यवस्था के लिए समुचित दान दिए। किंतु संस्कृत साहित्य में, सृजन की दृष्टि से, चोलों का शासनकाल अत्यल्प महत्व का है। | गंगईकोंडाचोलेश्वर मंदिर किसके द्वारा निर्मित है? | {
"text": [
"राजेंद्र प्रथम"
],
"answer_start": [
1655
]
} | Gangaikondacholeshwar Temple is built by whom? | He also donated to Buddhists.Jain also used to follow and propagate his religion peacefully.The Tamil religious positions of the East Yuga began to be worshiped like the Vedas and their creators began to be considered as the form of the deity.Nambi Andar Nambi first compiled Shaivism during the reign of Rajaraja I.Nathamuni did this work for Vaishnavism.He presented philosophical support for the path of devotion.His grandson Alavandar or Yamunacharya has an important place in Vaishnava Acharyas.Ramanuja proposed to the Vishwasvait Darshan improved the worship method of temples and also arranged for the entry of Antyas in some temples one day.In addition to the devotion among the Shaivas, some sects with Bibhata ethos, Pashupat, Kapalik and Kalamukh, some of which worshiped femininity, which often took a distorted form.The worshipers of the goddess were also practiced to offer their heads and offer their heads.Temples had special significance in the religious life of this era.Small or big temples, built in this era in almost all cities and villages of the Chola state.These temples were also centers of education.On festivals and festivals, they also had anthem, dance, drama and entertainment.There was also land under the ownership of temples and many employees were under their subjugation.These were the work of the bank.People of many industries and crafts used to get livelihood due to temples.The specialty of the temples of the Cholas is seen in their aircraft and courtyard.Their summit is small, but there is excessive decoration on Gopuram.The initial Chola temple is the works of the simple plan but the size and impact of the temples also changed with the power and growth of the empire.The most famous and influential of these temples is the Gangakondcholeshwar Temple built by Rajarajeshwar Temple in Tanjor, Rajendra I, built by Rajendra I.The Chola Yuga is also famous for the beauty of its bronze statues.Among them, the idols of Nataraja are universal.Apart from this, many other forms of Shiva, Brahma, Saptamatrika, Lakshmi and Bhudevi along with Vishnu, Rama and Sita, Shaiva saints and Kaliyadaman along with their followers are also notable.In the history of Tamil literature, Chola reign is called the 'Golden Age'.Managing was the main form of literature.In philosophy, the classical interpretation of Shaiva theory began.The Tiruttadar Puranam or Periyapuranam of Shekkilar is the composition.Vaishnava devotional literature and commentaries were also composed.Surprisingly, Vaishnav Acharya Nathamuni, Yamunacharya and Ramanuja have often composed in Sanskrit.The commentators also adopted the Akrant Maniprawal style in Sanskrit words.Ramanujanurradadi, the composition of hundred positions in praise of Ramanuja, is the main exception from this point of view.The progress of Jain and Buddhist literature was also notable.The famous Tamil epic Jeevakachintamani was composed by Jain poet Tiruttakkdev in the 10th century.Sulamani, composed by Tolamoli, is counted among the five small poets of Tamil.Kalladam in Kalladnar has a hundred terms on various moods of love.Rajavi Jayangonda has described the Kalotung War of Kulottung I in Kalingtaupani.Ottakuthan was also a Rajya, in many works, a pillaetamil and three Chola kings are notable on the childhood of Kulottung II.The famous Tamil Ramayanam or Ramavataram was composed by Kamban in the reign of Kulottung III.The beautiful work of an unknown poet is described in Kulottungnkovai's initial acts of Kulottung II.Jain scholar Amitasagar composed a book called Yapparaungam on verses and a brief form (Karigai).Buddhist Budhmitra wrote a book called Veerasolium on Tamil grammar.The author of Dandiyalangaram is unknown;This book is composed on the ideal of Kavyadarsha of Dandin.There are some other grammar texts of this period- Naminadam of Guni Pandit and Vachanandimalai, Nannul of Pavanandi and Purapporalevenbamalai of Ayionadar.The dictionary named Pingalam is also a work of this period.It is known from the records of the Chola dynasty that Chola kings established the school (Brahmapuri, Ghatika) for the study of Sanskrit literature and language and made appropriate donations for their arrangements.But in Sanskrit literature, from the point of view of creation, the reign of the Cholas is of very important importance. | {
"answer_start": [
1655
],
"text": [
"Rajendra I"
]
} |
388 | उन्होंने शेर शाह सूरी की कुछ नीतियों को भी अपनाया था, जैसे की अपने प्रशासन में साम्राज्य को सरकारों में विभाजित करना। इन नीतियों ने निःसंदेह शक्ति बनाए रखने में और साम्राज्य की स्थिरता में मदद की थी, इनको दो तात्कालिक उत्तराधिकारियों द्वारा संरक्षित किया गया था, लेकिन इन्हें औरंगजेब ने त्याग दिया, जिसने एक नीति अपनाई जिसमें धार्मिक सहिष्णुता का कम स्थान था। इसके अलावा औरंगजेब ने लगभग अपने पूरे जीवन-वृत्ति में डेक्कन और दक्षिण भारत में अपने दायरे का विस्तार करने की कोशिश की। इस उद्यम ने साम्राज्य के संसाधनों को बहा दिया जिससे मराठा, पंजाब के सिखों और हिन्दू राजपूतों के अंदर मजबूत प्रतिरोध उत्तेजित हुआ। औरंगजेब के शासनकाल के बाद, साम्राज्य में गिरावट हुई। बहादुर शाह ज़फ़र के साथ शुरुआत से, मुगल सम्राटों की सत्ता में उत्तरोत्तर गिरावट आई और वे कल्पित सरदार बने, जो शुरू में विभिन्न विविध दरबारियों द्वारा और बाद में कई बढ़ते सरदारों द्वारा नियंत्रित थे। 18 वीं शताब्दी में, इस साम्राज्य ने पर्शिया के नादिर शाह और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली जैसे हमलावरों का लूट को सहा, जिन्होंने बार बार मुग़ल राजधानी दिल्ली में लूटपाट की। भारत में इस साम्राज्य के क्षेत्रों के अधिकांश भाग को ब्रिटिश को मिलने से पहले मराठाओं को पराजित किया गया था। 1803 में, अंधे और शक्तिहीन शाह आलम II ने औपचारिक रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का संरक्षण स्वीकार किया। | दक्कन और दक्षिण भारत में अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने की कोशिश किस शासक ने की थी? | {
"text": [
"औरंगजेब"
],
"answer_start": [
275
]
} | Which ruler tried to expand his sphere of influence in the Deccan and South India? | He also adopted some policies of Sher Shah Suri, such as dividing the empire into governments in his administration.These policies undoubtedly helped in maintaining power and the stability of the empire, they were preserved by two immediate heirs, but they were abandoned by Aurangzeb, which adopted a policy that had less space of religious tolerance.Apart from this, Aurangzeb tried to expand his realm in Deccan and South India in almost his life.This enterprise shed the resources of the empire which stimulated strong resistance inside the Sikhs and Hindu Rajputs of Maratha, Punjab.After Aurangzeb's reign, the empire declined.From the beginning with Bahadur Shah Zafar, the power of the Mughal emperors declined progressively and became a fantasy chieftain, initially controlled by various diverse courtiers and later by many growing chieftains.In the 18th century, this empire endured the robbery of attackers like Nadir Shah of Persia and Ahmed Shah Abdali of Afghanistan, who repeatedly looted the Mughal capital Delhi.In India, most parts of the regions of this empire were defeated before the British met the British.In 1803, blind and powerless Shah Alam II formally accepted the protection of the British East India Company. | {
"answer_start": [
275
],
"text": [
"Aurangzeb"
]
} |
389 | उन्होंने शेर शाह सूरी की कुछ नीतियों को भी अपनाया था, जैसे की अपने प्रशासन में साम्राज्य को सरकारों में विभाजित करना। इन नीतियों ने निःसंदेह शक्ति बनाए रखने में और साम्राज्य की स्थिरता में मदद की थी, इनको दो तात्कालिक उत्तराधिकारियों द्वारा संरक्षित किया गया था, लेकिन इन्हें औरंगजेब ने त्याग दिया, जिसने एक नीति अपनाई जिसमें धार्मिक सहिष्णुता का कम स्थान था। इसके अलावा औरंगजेब ने लगभग अपने पूरे जीवन-वृत्ति में डेक्कन और दक्षिण भारत में अपने दायरे का विस्तार करने की कोशिश की। इस उद्यम ने साम्राज्य के संसाधनों को बहा दिया जिससे मराठा, पंजाब के सिखों और हिन्दू राजपूतों के अंदर मजबूत प्रतिरोध उत्तेजित हुआ। औरंगजेब के शासनकाल के बाद, साम्राज्य में गिरावट हुई। बहादुर शाह ज़फ़र के साथ शुरुआत से, मुगल सम्राटों की सत्ता में उत्तरोत्तर गिरावट आई और वे कल्पित सरदार बने, जो शुरू में विभिन्न विविध दरबारियों द्वारा और बाद में कई बढ़ते सरदारों द्वारा नियंत्रित थे। 18 वीं शताब्दी में, इस साम्राज्य ने पर्शिया के नादिर शाह और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली जैसे हमलावरों का लूट को सहा, जिन्होंने बार बार मुग़ल राजधानी दिल्ली में लूटपाट की। भारत में इस साम्राज्य के क्षेत्रों के अधिकांश भाग को ब्रिटिश को मिलने से पहले मराठाओं को पराजित किया गया था। 1803 में, अंधे और शक्तिहीन शाह आलम II ने औपचारिक रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का संरक्षण स्वीकार किया। | अंतिम मुग़ल शासक की मृत्यु कब हुई थी? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | When did the last Mughal ruler die? | He also adopted some policies of Sher Shah Suri, such as dividing the empire into governments in his administration.These policies undoubtedly helped in maintaining power and the stability of the empire, they were preserved by two immediate heirs, but they were abandoned by Aurangzeb, which adopted a policy that had less space of religious tolerance.Apart from this, Aurangzeb tried to expand his realm in Deccan and South India in almost his life.This enterprise shed the resources of the empire which stimulated strong resistance inside the Sikhs and Hindu Rajputs of Maratha, Punjab.After Aurangzeb's reign, the empire declined.From the beginning with Bahadur Shah Zafar, the power of the Mughal emperors declined progressively and became a fantasy chieftain, initially controlled by various diverse courtiers and later by many growing chieftains.In the 18th century, this empire endured the robbery of attackers like Nadir Shah of Persia and Ahmed Shah Abdali of Afghanistan, who repeatedly looted the Mughal capital Delhi.In India, most parts of the regions of this empire were defeated before the British met the British.In 1803, blind and powerless Shah Alam II formally accepted the protection of the British East India Company. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
390 | उन्होंने शेर शाह सूरी की कुछ नीतियों को भी अपनाया था, जैसे की अपने प्रशासन में साम्राज्य को सरकारों में विभाजित करना। इन नीतियों ने निःसंदेह शक्ति बनाए रखने में और साम्राज्य की स्थिरता में मदद की थी, इनको दो तात्कालिक उत्तराधिकारियों द्वारा संरक्षित किया गया था, लेकिन इन्हें औरंगजेब ने त्याग दिया, जिसने एक नीति अपनाई जिसमें धार्मिक सहिष्णुता का कम स्थान था। इसके अलावा औरंगजेब ने लगभग अपने पूरे जीवन-वृत्ति में डेक्कन और दक्षिण भारत में अपने दायरे का विस्तार करने की कोशिश की। इस उद्यम ने साम्राज्य के संसाधनों को बहा दिया जिससे मराठा, पंजाब के सिखों और हिन्दू राजपूतों के अंदर मजबूत प्रतिरोध उत्तेजित हुआ। औरंगजेब के शासनकाल के बाद, साम्राज्य में गिरावट हुई। बहादुर शाह ज़फ़र के साथ शुरुआत से, मुगल सम्राटों की सत्ता में उत्तरोत्तर गिरावट आई और वे कल्पित सरदार बने, जो शुरू में विभिन्न विविध दरबारियों द्वारा और बाद में कई बढ़ते सरदारों द्वारा नियंत्रित थे। 18 वीं शताब्दी में, इस साम्राज्य ने पर्शिया के नादिर शाह और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली जैसे हमलावरों का लूट को सहा, जिन्होंने बार बार मुग़ल राजधानी दिल्ली में लूटपाट की। भारत में इस साम्राज्य के क्षेत्रों के अधिकांश भाग को ब्रिटिश को मिलने से पहले मराठाओं को पराजित किया गया था। 1803 में, अंधे और शक्तिहीन शाह आलम II ने औपचारिक रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का संरक्षण स्वीकार किया। | शाह आलम द्वितीय ने ब्रिटिश सम्राज्य का संरक्षण किस वर्ष स्वीकार किया था ? | {
"text": [
"1803"
],
"answer_start": [
1139
]
} | In which year did Shah Alam II accept the patronage of the British Empire? | He also adopted some policies of Sher Shah Suri, such as dividing the empire into governments in his administration.These policies undoubtedly helped in maintaining power and the stability of the empire, they were preserved by two immediate heirs, but they were abandoned by Aurangzeb, which adopted a policy that had less space of religious tolerance.Apart from this, Aurangzeb tried to expand his realm in Deccan and South India in almost his life.This enterprise shed the resources of the empire which stimulated strong resistance inside the Sikhs and Hindu Rajputs of Maratha, Punjab.After Aurangzeb's reign, the empire declined.From the beginning with Bahadur Shah Zafar, the power of the Mughal emperors declined progressively and became a fantasy chieftain, initially controlled by various diverse courtiers and later by many growing chieftains.In the 18th century, this empire endured the robbery of attackers like Nadir Shah of Persia and Ahmed Shah Abdali of Afghanistan, who repeatedly looted the Mughal capital Delhi.In India, most parts of the regions of this empire were defeated before the British met the British.In 1803, blind and powerless Shah Alam II formally accepted the protection of the British East India Company. | {
"answer_start": [
1139
],
"text": [
"1803"
]
} |
391 | उन्होंने शेर शाह सूरी की कुछ नीतियों को भी अपनाया था, जैसे की अपने प्रशासन में साम्राज्य को सरकारों में विभाजित करना। इन नीतियों ने निःसंदेह शक्ति बनाए रखने में और साम्राज्य की स्थिरता में मदद की थी, इनको दो तात्कालिक उत्तराधिकारियों द्वारा संरक्षित किया गया था, लेकिन इन्हें औरंगजेब ने त्याग दिया, जिसने एक नीति अपनाई जिसमें धार्मिक सहिष्णुता का कम स्थान था। इसके अलावा औरंगजेब ने लगभग अपने पूरे जीवन-वृत्ति में डेक्कन और दक्षिण भारत में अपने दायरे का विस्तार करने की कोशिश की। इस उद्यम ने साम्राज्य के संसाधनों को बहा दिया जिससे मराठा, पंजाब के सिखों और हिन्दू राजपूतों के अंदर मजबूत प्रतिरोध उत्तेजित हुआ। औरंगजेब के शासनकाल के बाद, साम्राज्य में गिरावट हुई। बहादुर शाह ज़फ़र के साथ शुरुआत से, मुगल सम्राटों की सत्ता में उत्तरोत्तर गिरावट आई और वे कल्पित सरदार बने, जो शुरू में विभिन्न विविध दरबारियों द्वारा और बाद में कई बढ़ते सरदारों द्वारा नियंत्रित थे। 18 वीं शताब्दी में, इस साम्राज्य ने पर्शिया के नादिर शाह और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली जैसे हमलावरों का लूट को सहा, जिन्होंने बार बार मुग़ल राजधानी दिल्ली में लूटपाट की। भारत में इस साम्राज्य के क्षेत्रों के अधिकांश भाग को ब्रिटिश को मिलने से पहले मराठाओं को पराजित किया गया था। 1803 में, अंधे और शक्तिहीन शाह आलम II ने औपचारिक रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का संरक्षण स्वीकार किया। | ब्रिटिश सरकार ने कमजोर मुगलों को किस नाम से संदर्भित किया? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | By what name did the British government refer to the weakened Mughals? | He also adopted some policies of Sher Shah Suri, such as dividing the empire into governments in his administration.These policies undoubtedly helped in maintaining power and the stability of the empire, they were preserved by two immediate heirs, but they were abandoned by Aurangzeb, which adopted a policy that had less space of religious tolerance.Apart from this, Aurangzeb tried to expand his realm in Deccan and South India in almost his life.This enterprise shed the resources of the empire which stimulated strong resistance inside the Sikhs and Hindu Rajputs of Maratha, Punjab.After Aurangzeb's reign, the empire declined.From the beginning with Bahadur Shah Zafar, the power of the Mughal emperors declined progressively and became a fantasy chieftain, initially controlled by various diverse courtiers and later by many growing chieftains.In the 18th century, this empire endured the robbery of attackers like Nadir Shah of Persia and Ahmed Shah Abdali of Afghanistan, who repeatedly looted the Mughal capital Delhi.In India, most parts of the regions of this empire were defeated before the British met the British.In 1803, blind and powerless Shah Alam II formally accepted the protection of the British East India Company. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
392 | उन्होंने शेर शाह सूरी की कुछ नीतियों को भी अपनाया था, जैसे की अपने प्रशासन में साम्राज्य को सरकारों में विभाजित करना। इन नीतियों ने निःसंदेह शक्ति बनाए रखने में और साम्राज्य की स्थिरता में मदद की थी, इनको दो तात्कालिक उत्तराधिकारियों द्वारा संरक्षित किया गया था, लेकिन इन्हें औरंगजेब ने त्याग दिया, जिसने एक नीति अपनाई जिसमें धार्मिक सहिष्णुता का कम स्थान था। इसके अलावा औरंगजेब ने लगभग अपने पूरे जीवन-वृत्ति में डेक्कन और दक्षिण भारत में अपने दायरे का विस्तार करने की कोशिश की। इस उद्यम ने साम्राज्य के संसाधनों को बहा दिया जिससे मराठा, पंजाब के सिखों और हिन्दू राजपूतों के अंदर मजबूत प्रतिरोध उत्तेजित हुआ। औरंगजेब के शासनकाल के बाद, साम्राज्य में गिरावट हुई। बहादुर शाह ज़फ़र के साथ शुरुआत से, मुगल सम्राटों की सत्ता में उत्तरोत्तर गिरावट आई और वे कल्पित सरदार बने, जो शुरू में विभिन्न विविध दरबारियों द्वारा और बाद में कई बढ़ते सरदारों द्वारा नियंत्रित थे। 18 वीं शताब्दी में, इस साम्राज्य ने पर्शिया के नादिर शाह और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली जैसे हमलावरों का लूट को सहा, जिन्होंने बार बार मुग़ल राजधानी दिल्ली में लूटपाट की। भारत में इस साम्राज्य के क्षेत्रों के अधिकांश भाग को ब्रिटिश को मिलने से पहले मराठाओं को पराजित किया गया था। 1803 में, अंधे और शक्तिहीन शाह आलम II ने औपचारिक रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का संरक्षण स्वीकार किया। | ब्रिटिश सरकार ने अंतिम मुग़ल शासक को किस वर्ष सत्ता से हटाया था? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | In which year was the last Mughal ruler removed from power by the British government? | He also adopted some policies of Sher Shah Suri, such as dividing the empire into governments in his administration.These policies undoubtedly helped in maintaining power and the stability of the empire, they were preserved by two immediate heirs, but they were abandoned by Aurangzeb, which adopted a policy that had less space of religious tolerance.Apart from this, Aurangzeb tried to expand his realm in Deccan and South India in almost his life.This enterprise shed the resources of the empire which stimulated strong resistance inside the Sikhs and Hindu Rajputs of Maratha, Punjab.After Aurangzeb's reign, the empire declined.From the beginning with Bahadur Shah Zafar, the power of the Mughal emperors declined progressively and became a fantasy chieftain, initially controlled by various diverse courtiers and later by many growing chieftains.In the 18th century, this empire endured the robbery of attackers like Nadir Shah of Persia and Ahmed Shah Abdali of Afghanistan, who repeatedly looted the Mughal capital Delhi.In India, most parts of the regions of this empire were defeated before the British met the British.In 1803, blind and powerless Shah Alam II formally accepted the protection of the British East India Company. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
393 | उन्होंने शेर शाह सूरी की कुछ नीतियों को भी अपनाया था, जैसे की अपने प्रशासन में साम्राज्य को सरकारों में विभाजित करना। इन नीतियों ने निःसंदेह शक्ति बनाए रखने में और साम्राज्य की स्थिरता में मदद की थी, इनको दो तात्कालिक उत्तराधिकारियों द्वारा संरक्षित किया गया था, लेकिन इन्हें औरंगजेब ने त्याग दिया, जिसने एक नीति अपनाई जिसमें धार्मिक सहिष्णुता का कम स्थान था। इसके अलावा औरंगजेब ने लगभग अपने पूरे जीवन-वृत्ति में डेक्कन और दक्षिण भारत में अपने दायरे का विस्तार करने की कोशिश की। इस उद्यम ने साम्राज्य के संसाधनों को बहा दिया जिससे मराठा, पंजाब के सिखों और हिन्दू राजपूतों के अंदर मजबूत प्रतिरोध उत्तेजित हुआ। औरंगजेब के शासनकाल के बाद, साम्राज्य में गिरावट हुई। बहादुर शाह ज़फ़र के साथ शुरुआत से, मुगल सम्राटों की सत्ता में उत्तरोत्तर गिरावट आई और वे कल्पित सरदार बने, जो शुरू में विभिन्न विविध दरबारियों द्वारा और बाद में कई बढ़ते सरदारों द्वारा नियंत्रित थे। 18 वीं शताब्दी में, इस साम्राज्य ने पर्शिया के नादिर शाह और अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली जैसे हमलावरों का लूट को सहा, जिन्होंने बार बार मुग़ल राजधानी दिल्ली में लूटपाट की। भारत में इस साम्राज्य के क्षेत्रों के अधिकांश भाग को ब्रिटिश को मिलने से पहले मराठाओं को पराजित किया गया था। 1803 में, अंधे और शक्तिहीन शाह आलम II ने औपचारिक रूप से ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का संरक्षण स्वीकार किया। | किस शासक के शासन के बाद मुगलों की शक्ति धीरे-धीरे कम हो गई थी ? | {
"text": [
"औरंगजेब"
],
"answer_start": [
275
]
} | The power of the Mughals was gradually reduced after the rule of which ruler? | He also adopted some policies of Sher Shah Suri, such as dividing the empire into governments in his administration.These policies undoubtedly helped in maintaining power and the stability of the empire, they were preserved by two immediate heirs, but they were abandoned by Aurangzeb, which adopted a policy that had less space of religious tolerance.Apart from this, Aurangzeb tried to expand his realm in Deccan and South India in almost his life.This enterprise shed the resources of the empire which stimulated strong resistance inside the Sikhs and Hindu Rajputs of Maratha, Punjab.After Aurangzeb's reign, the empire declined.From the beginning with Bahadur Shah Zafar, the power of the Mughal emperors declined progressively and became a fantasy chieftain, initially controlled by various diverse courtiers and later by many growing chieftains.In the 18th century, this empire endured the robbery of attackers like Nadir Shah of Persia and Ahmed Shah Abdali of Afghanistan, who repeatedly looted the Mughal capital Delhi.In India, most parts of the regions of this empire were defeated before the British met the British.In 1803, blind and powerless Shah Alam II formally accepted the protection of the British East India Company. | {
"answer_start": [
275
],
"text": [
"Aurangzeb"
]
} |
394 | उपर्युक्त दीर्घकालिक प्रभुत्वहीनता के पश्चात् नवीं सदी के मध्य से चोलों का पुनरुत्थन हुआ। इस चोल वंश का संस्थापक विजयालय (850-870-71 ई.) पल्लव अधीनता में उरैयुर प्रदेश का शासक था। विजयालय की वंशपरंपरा में लगभग 20 राजा हुए, जिन्होंने कुल मिलाकर चार सौ से अधिक वर्षों तक शासन किया। विजयालय के पश्चात् आदित्य प्रथम (871-907), परातंक प्रथम (907-955) ने क्रमश: शासन किया। परांतक प्रथम ने पांड्य-सिंहल नरेशों की सम्मिलित शक्ति को, पल्लवों, बाणों, बैडुंबों के अतिरिक्त राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय को भी पराजित किया। चोल शक्ति एवं साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक परांतक ही था। उसने लंकापति उदय (945-53) के समय सिंहल पर भी एक असफल आक्रमण किया। परांतक अपने अंतिम दिनों में राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय द्वारा 949 ई. में बड़ी बुरी तरह पराजित हुआ। इस पराजय के फलस्वरूप चोल साम्राज्य की नींव हिल गई। परांतक प्रथम के बाद के 32 वर्षों में अनेक चोल राजाओं ने शासन किया। इनमें गंडरादित्य, अरिंजय और सुंदर चोल या परातक दि्वतीय प्रमुख थे। इसके पश्चात् राजराज प्रथम (985-1014) ने चोल वंश की प्रसारनीति को आगे बढ़ाते हुए अपनी अनेक विजयों द्वारा अपने वंश की मर्यादा को पुन: प्रतिष्ठित किया। उसने सर्वप्रथम पश्चिमी गंगों को पराजित कर उनका प्रदेश छीन लिया। तदनंतर पश्चिमी चालुक्यों से उनका दीर्घकालिक परिणामहीन युद्ध आरंभ हुआ। इसके विपरीत राजराज को सुदूर दक्षिण में आशातीत सफलता मिली। उन्होंने केरल नरेश को पराजित किया। पांड्यों को पराजित कर मदुरा और कुर्ग में स्थित उद्गै अधिकृत कर लिया। यही नहीं, राजराज ने सिंहल पर आक्रमण करके उसके उत्तरी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया। राजराज ने पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण कर वेंगी को जीत लिया। किंतु इसके बाद पूर्वी चालुक्य सिंहासन पर उन्होंने शक्तिवर्मन् को प्रतिष्ठित किया और अपनी पुत्री कुंदवा का विवाह शक्तविर्मन् के लघु भ्राता विमलादित्य से किया। इस समय कलिंग के गंग राजा भी वेंगी पर दृष्टि गड़ाए थे, राजराज ने उन्हें भी पराजित किया। राजराज के पश्चात् उनके पुत्र राजेंद्र प्रथम (1012-1044) सिंहासनारूढ़ हुए। राजेंद्र प्रथम भी अत्यंत शक्तिशाली सम्राट् थे। राजेंद्र ने चेर, पांड्य एवं सिंहल जीता तथा उन्हें अपने राज्य में मिला लिया। उन्होंने पश्चिमी चालुक्यों को कई युद्धों में पराजित किया, उनकी राजधानी को ध्वस्त किया किंतु उनपर पूर्ण विजय न प्राप्त कर सके। राजेंद्र के दो अन्य सैनिक अभियान अत्यंत उल्लेखनीय हैं। उनका प्रथम सैनिक अभियान पूर्वी समुद्रतट से कलिंग, उड़ीसा, दक्षिण कोशल आदि के राजाओं को पराजित करता हुआ बंगाल के विरुद्ध हुआ। उन्होंने पश्चिम एवं दक्षिण बंगाल के तीन छोटे राजाओं को पराजित करने के साथ साथ शक्तिशाली पाल राजा महीपाल को भी पराजित किया। इस अभियान का कारण अभिलेखों के अनुसार गंगाजल प्राप्त करना था। यह भी ज्ञात होता है कि पराजित राजाओं को यह जल अपने सिरों पर ढोना पड़ा था। किंतु यह मात्र आक्रमण था, इससे चोल साम्राज्य की सीमाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। | पाण्डयों को युद्ध में किसने पराजित किया था ? | {
"text": [
"राजराज"
],
"answer_start": [
920
]
} | Who defeated the Pandyas in the war? | After the above mentioned long -term dominance, the cholas were resurrected from the middle of the ninth century.The founder of this Chola dynasty Vijayalaya (850-870-71 AD) was the ruler of the Urai region in Pallava subordination.There were about 20 kings in the dynasty of Vijayalaya, who ruled for more than four hundred years in total.After Vijayalaya, Aditya I (871-907), Paratank first (907–955) ruled respectively.Parantak I also defeated the involvement power of Pandya-Singhla King, Pallavas, arrows, badumbs and Rashtrakuta Krishna II.The real founder of Chola Shakti and Empire was Parantak.He also attacked Sinhala at the time of Lankapati Uday (945-53).Parantak was defeated badly in 949 AD by Rashtrakuta Emperor Krishna III in his last days.As a result of this defeat, the foundation of the Chola Empire was shaken.Many Chola kings ruled in 32 years after Parantak I.Among these, Gandaraditya, Arinjaya and Sundar Chola or Salakan were the main heads.After this, Rajaraj I (985–1014) re-established the dignity of his dynasty by many of his victories, carrying forward the spread of the Chola dynasty.He first defeated the western Ganges and snatched away their state.Subsequently, his long -term results began with Western Chalukyas.In contrast, Rajaraj got the expected success in the far south.He defeated the King of Kerala.The Pandyas were defeated and authorized in Madura and Coorg.Not only this, Rajaraja attacked Sinhala and merged his northern regions in his kingdom.Rajaraja attacked the eastern Chalukyas and conquered Vengi.But after this, he distinguished Shaktivarman on the eastern Chalukya throne and married his daughter Kundwa to Vimaladitya, a short brother of Shaktavirm after.At this time, the Ganga Raja of Kalinga was also seen on Vengi, Rajraj also defeated him.After Rajraj, his son Rajendra I (1012–1044) became throne.Rajendra I was also a very powerful emperor.Rajendra won Cher, Pandya and Sinhala and mixed them in his kingdom.He defeated Western Chalukyas in many wars, demolish his capital but could not achieve complete victory over him.Two other military campaigns of Rajendra are extremely notable.His first military campaign was against Bengal defeating the kings of Kalinga, Orissa, South Kosala etc. from the eastern beach.He defeated the three small kings of West and South Bengal as well as defeated the powerful Pal King Mahipal.The reason for this campaign was to get Ganga water according to the records.It is also known that the defeated kings had to carry this water on their ends.But this was just an attack, it did not affect the boundaries of the Chola Empire. | {
"answer_start": [
920
],
"text": [
"Rajaraja"
]
} |
395 | उपर्युक्त दीर्घकालिक प्रभुत्वहीनता के पश्चात् नवीं सदी के मध्य से चोलों का पुनरुत्थन हुआ। इस चोल वंश का संस्थापक विजयालय (850-870-71 ई.) पल्लव अधीनता में उरैयुर प्रदेश का शासक था। विजयालय की वंशपरंपरा में लगभग 20 राजा हुए, जिन्होंने कुल मिलाकर चार सौ से अधिक वर्षों तक शासन किया। विजयालय के पश्चात् आदित्य प्रथम (871-907), परातंक प्रथम (907-955) ने क्रमश: शासन किया। परांतक प्रथम ने पांड्य-सिंहल नरेशों की सम्मिलित शक्ति को, पल्लवों, बाणों, बैडुंबों के अतिरिक्त राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय को भी पराजित किया। चोल शक्ति एवं साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक परांतक ही था। उसने लंकापति उदय (945-53) के समय सिंहल पर भी एक असफल आक्रमण किया। परांतक अपने अंतिम दिनों में राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय द्वारा 949 ई. में बड़ी बुरी तरह पराजित हुआ। इस पराजय के फलस्वरूप चोल साम्राज्य की नींव हिल गई। परांतक प्रथम के बाद के 32 वर्षों में अनेक चोल राजाओं ने शासन किया। इनमें गंडरादित्य, अरिंजय और सुंदर चोल या परातक दि्वतीय प्रमुख थे। इसके पश्चात् राजराज प्रथम (985-1014) ने चोल वंश की प्रसारनीति को आगे बढ़ाते हुए अपनी अनेक विजयों द्वारा अपने वंश की मर्यादा को पुन: प्रतिष्ठित किया। उसने सर्वप्रथम पश्चिमी गंगों को पराजित कर उनका प्रदेश छीन लिया। तदनंतर पश्चिमी चालुक्यों से उनका दीर्घकालिक परिणामहीन युद्ध आरंभ हुआ। इसके विपरीत राजराज को सुदूर दक्षिण में आशातीत सफलता मिली। उन्होंने केरल नरेश को पराजित किया। पांड्यों को पराजित कर मदुरा और कुर्ग में स्थित उद्गै अधिकृत कर लिया। यही नहीं, राजराज ने सिंहल पर आक्रमण करके उसके उत्तरी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया। राजराज ने पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण कर वेंगी को जीत लिया। किंतु इसके बाद पूर्वी चालुक्य सिंहासन पर उन्होंने शक्तिवर्मन् को प्रतिष्ठित किया और अपनी पुत्री कुंदवा का विवाह शक्तविर्मन् के लघु भ्राता विमलादित्य से किया। इस समय कलिंग के गंग राजा भी वेंगी पर दृष्टि गड़ाए थे, राजराज ने उन्हें भी पराजित किया। राजराज के पश्चात् उनके पुत्र राजेंद्र प्रथम (1012-1044) सिंहासनारूढ़ हुए। राजेंद्र प्रथम भी अत्यंत शक्तिशाली सम्राट् थे। राजेंद्र ने चेर, पांड्य एवं सिंहल जीता तथा उन्हें अपने राज्य में मिला लिया। उन्होंने पश्चिमी चालुक्यों को कई युद्धों में पराजित किया, उनकी राजधानी को ध्वस्त किया किंतु उनपर पूर्ण विजय न प्राप्त कर सके। राजेंद्र के दो अन्य सैनिक अभियान अत्यंत उल्लेखनीय हैं। उनका प्रथम सैनिक अभियान पूर्वी समुद्रतट से कलिंग, उड़ीसा, दक्षिण कोशल आदि के राजाओं को पराजित करता हुआ बंगाल के विरुद्ध हुआ। उन्होंने पश्चिम एवं दक्षिण बंगाल के तीन छोटे राजाओं को पराजित करने के साथ साथ शक्तिशाली पाल राजा महीपाल को भी पराजित किया। इस अभियान का कारण अभिलेखों के अनुसार गंगाजल प्राप्त करना था। यह भी ज्ञात होता है कि पराजित राजाओं को यह जल अपने सिरों पर ढोना पड़ा था। किंतु यह मात्र आक्रमण था, इससे चोल साम्राज्य की सीमाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। | शैलेंद्र सम्राट किसके मित्र थे? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Shailendra Samrat was a friend of whom? | After the above mentioned long -term dominance, the cholas were resurrected from the middle of the ninth century.The founder of this Chola dynasty Vijayalaya (850-870-71 AD) was the ruler of the Urai region in Pallava subordination.There were about 20 kings in the dynasty of Vijayalaya, who ruled for more than four hundred years in total.After Vijayalaya, Aditya I (871-907), Paratank first (907–955) ruled respectively.Parantak I also defeated the involvement power of Pandya-Singhla King, Pallavas, arrows, badumbs and Rashtrakuta Krishna II.The real founder of Chola Shakti and Empire was Parantak.He also attacked Sinhala at the time of Lankapati Uday (945-53).Parantak was defeated badly in 949 AD by Rashtrakuta Emperor Krishna III in his last days.As a result of this defeat, the foundation of the Chola Empire was shaken.Many Chola kings ruled in 32 years after Parantak I.Among these, Gandaraditya, Arinjaya and Sundar Chola or Salakan were the main heads.After this, Rajaraj I (985–1014) re-established the dignity of his dynasty by many of his victories, carrying forward the spread of the Chola dynasty.He first defeated the western Ganges and snatched away their state.Subsequently, his long -term results began with Western Chalukyas.In contrast, Rajaraj got the expected success in the far south.He defeated the King of Kerala.The Pandyas were defeated and authorized in Madura and Coorg.Not only this, Rajaraja attacked Sinhala and merged his northern regions in his kingdom.Rajaraja attacked the eastern Chalukyas and conquered Vengi.But after this, he distinguished Shaktivarman on the eastern Chalukya throne and married his daughter Kundwa to Vimaladitya, a short brother of Shaktavirm after.At this time, the Ganga Raja of Kalinga was also seen on Vengi, Rajraj also defeated him.After Rajraj, his son Rajendra I (1012–1044) became throne.Rajendra I was also a very powerful emperor.Rajendra won Cher, Pandya and Sinhala and mixed them in his kingdom.He defeated Western Chalukyas in many wars, demolish his capital but could not achieve complete victory over him.Two other military campaigns of Rajendra are extremely notable.His first military campaign was against Bengal defeating the kings of Kalinga, Orissa, South Kosala etc. from the eastern beach.He defeated the three small kings of West and South Bengal as well as defeated the powerful Pal King Mahipal.The reason for this campaign was to get Ganga water according to the records.It is also known that the defeated kings had to carry this water on their ends.But this was just an attack, it did not affect the boundaries of the Chola Empire. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
396 | उपर्युक्त दीर्घकालिक प्रभुत्वहीनता के पश्चात् नवीं सदी के मध्य से चोलों का पुनरुत्थन हुआ। इस चोल वंश का संस्थापक विजयालय (850-870-71 ई.) पल्लव अधीनता में उरैयुर प्रदेश का शासक था। विजयालय की वंशपरंपरा में लगभग 20 राजा हुए, जिन्होंने कुल मिलाकर चार सौ से अधिक वर्षों तक शासन किया। विजयालय के पश्चात् आदित्य प्रथम (871-907), परातंक प्रथम (907-955) ने क्रमश: शासन किया। परांतक प्रथम ने पांड्य-सिंहल नरेशों की सम्मिलित शक्ति को, पल्लवों, बाणों, बैडुंबों के अतिरिक्त राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय को भी पराजित किया। चोल शक्ति एवं साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक परांतक ही था। उसने लंकापति उदय (945-53) के समय सिंहल पर भी एक असफल आक्रमण किया। परांतक अपने अंतिम दिनों में राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय द्वारा 949 ई. में बड़ी बुरी तरह पराजित हुआ। इस पराजय के फलस्वरूप चोल साम्राज्य की नींव हिल गई। परांतक प्रथम के बाद के 32 वर्षों में अनेक चोल राजाओं ने शासन किया। इनमें गंडरादित्य, अरिंजय और सुंदर चोल या परातक दि्वतीय प्रमुख थे। इसके पश्चात् राजराज प्रथम (985-1014) ने चोल वंश की प्रसारनीति को आगे बढ़ाते हुए अपनी अनेक विजयों द्वारा अपने वंश की मर्यादा को पुन: प्रतिष्ठित किया। उसने सर्वप्रथम पश्चिमी गंगों को पराजित कर उनका प्रदेश छीन लिया। तदनंतर पश्चिमी चालुक्यों से उनका दीर्घकालिक परिणामहीन युद्ध आरंभ हुआ। इसके विपरीत राजराज को सुदूर दक्षिण में आशातीत सफलता मिली। उन्होंने केरल नरेश को पराजित किया। पांड्यों को पराजित कर मदुरा और कुर्ग में स्थित उद्गै अधिकृत कर लिया। यही नहीं, राजराज ने सिंहल पर आक्रमण करके उसके उत्तरी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया। राजराज ने पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण कर वेंगी को जीत लिया। किंतु इसके बाद पूर्वी चालुक्य सिंहासन पर उन्होंने शक्तिवर्मन् को प्रतिष्ठित किया और अपनी पुत्री कुंदवा का विवाह शक्तविर्मन् के लघु भ्राता विमलादित्य से किया। इस समय कलिंग के गंग राजा भी वेंगी पर दृष्टि गड़ाए थे, राजराज ने उन्हें भी पराजित किया। राजराज के पश्चात् उनके पुत्र राजेंद्र प्रथम (1012-1044) सिंहासनारूढ़ हुए। राजेंद्र प्रथम भी अत्यंत शक्तिशाली सम्राट् थे। राजेंद्र ने चेर, पांड्य एवं सिंहल जीता तथा उन्हें अपने राज्य में मिला लिया। उन्होंने पश्चिमी चालुक्यों को कई युद्धों में पराजित किया, उनकी राजधानी को ध्वस्त किया किंतु उनपर पूर्ण विजय न प्राप्त कर सके। राजेंद्र के दो अन्य सैनिक अभियान अत्यंत उल्लेखनीय हैं। उनका प्रथम सैनिक अभियान पूर्वी समुद्रतट से कलिंग, उड़ीसा, दक्षिण कोशल आदि के राजाओं को पराजित करता हुआ बंगाल के विरुद्ध हुआ। उन्होंने पश्चिम एवं दक्षिण बंगाल के तीन छोटे राजाओं को पराजित करने के साथ साथ शक्तिशाली पाल राजा महीपाल को भी पराजित किया। इस अभियान का कारण अभिलेखों के अनुसार गंगाजल प्राप्त करना था। यह भी ज्ञात होता है कि पराजित राजाओं को यह जल अपने सिरों पर ढोना पड़ा था। किंतु यह मात्र आक्रमण था, इससे चोल साम्राज्य की सीमाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। | विजयालय किस साम्राज्य के शासक थे ? | {
"text": [
"उरैयुर प्रदेश"
],
"answer_start": [
153
]
} | Vijayalaya was the ruler of which empire? | After the above mentioned long -term dominance, the cholas were resurrected from the middle of the ninth century.The founder of this Chola dynasty Vijayalaya (850-870-71 AD) was the ruler of the Urai region in Pallava subordination.There were about 20 kings in the dynasty of Vijayalaya, who ruled for more than four hundred years in total.After Vijayalaya, Aditya I (871-907), Paratank first (907–955) ruled respectively.Parantak I also defeated the involvement power of Pandya-Singhla King, Pallavas, arrows, badumbs and Rashtrakuta Krishna II.The real founder of Chola Shakti and Empire was Parantak.He also attacked Sinhala at the time of Lankapati Uday (945-53).Parantak was defeated badly in 949 AD by Rashtrakuta Emperor Krishna III in his last days.As a result of this defeat, the foundation of the Chola Empire was shaken.Many Chola kings ruled in 32 years after Parantak I.Among these, Gandaraditya, Arinjaya and Sundar Chola or Salakan were the main heads.After this, Rajaraj I (985–1014) re-established the dignity of his dynasty by many of his victories, carrying forward the spread of the Chola dynasty.He first defeated the western Ganges and snatched away their state.Subsequently, his long -term results began with Western Chalukyas.In contrast, Rajaraj got the expected success in the far south.He defeated the King of Kerala.The Pandyas were defeated and authorized in Madura and Coorg.Not only this, Rajaraja attacked Sinhala and merged his northern regions in his kingdom.Rajaraja attacked the eastern Chalukyas and conquered Vengi.But after this, he distinguished Shaktivarman on the eastern Chalukya throne and married his daughter Kundwa to Vimaladitya, a short brother of Shaktavirm after.At this time, the Ganga Raja of Kalinga was also seen on Vengi, Rajraj also defeated him.After Rajraj, his son Rajendra I (1012–1044) became throne.Rajendra I was also a very powerful emperor.Rajendra won Cher, Pandya and Sinhala and mixed them in his kingdom.He defeated Western Chalukyas in many wars, demolish his capital but could not achieve complete victory over him.Two other military campaigns of Rajendra are extremely notable.His first military campaign was against Bengal defeating the kings of Kalinga, Orissa, South Kosala etc. from the eastern beach.He defeated the three small kings of West and South Bengal as well as defeated the powerful Pal King Mahipal.The reason for this campaign was to get Ganga water according to the records.It is also known that the defeated kings had to carry this water on their ends.But this was just an attack, it did not affect the boundaries of the Chola Empire. | {
"answer_start": [
153
],
"text": [
"Uraiyur region"
]
} |
397 | उपर्युक्त दीर्घकालिक प्रभुत्वहीनता के पश्चात् नवीं सदी के मध्य से चोलों का पुनरुत्थन हुआ। इस चोल वंश का संस्थापक विजयालय (850-870-71 ई.) पल्लव अधीनता में उरैयुर प्रदेश का शासक था। विजयालय की वंशपरंपरा में लगभग 20 राजा हुए, जिन्होंने कुल मिलाकर चार सौ से अधिक वर्षों तक शासन किया। विजयालय के पश्चात् आदित्य प्रथम (871-907), परातंक प्रथम (907-955) ने क्रमश: शासन किया। परांतक प्रथम ने पांड्य-सिंहल नरेशों की सम्मिलित शक्ति को, पल्लवों, बाणों, बैडुंबों के अतिरिक्त राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय को भी पराजित किया। चोल शक्ति एवं साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक परांतक ही था। उसने लंकापति उदय (945-53) के समय सिंहल पर भी एक असफल आक्रमण किया। परांतक अपने अंतिम दिनों में राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय द्वारा 949 ई. में बड़ी बुरी तरह पराजित हुआ। इस पराजय के फलस्वरूप चोल साम्राज्य की नींव हिल गई। परांतक प्रथम के बाद के 32 वर्षों में अनेक चोल राजाओं ने शासन किया। इनमें गंडरादित्य, अरिंजय और सुंदर चोल या परातक दि्वतीय प्रमुख थे। इसके पश्चात् राजराज प्रथम (985-1014) ने चोल वंश की प्रसारनीति को आगे बढ़ाते हुए अपनी अनेक विजयों द्वारा अपने वंश की मर्यादा को पुन: प्रतिष्ठित किया। उसने सर्वप्रथम पश्चिमी गंगों को पराजित कर उनका प्रदेश छीन लिया। तदनंतर पश्चिमी चालुक्यों से उनका दीर्घकालिक परिणामहीन युद्ध आरंभ हुआ। इसके विपरीत राजराज को सुदूर दक्षिण में आशातीत सफलता मिली। उन्होंने केरल नरेश को पराजित किया। पांड्यों को पराजित कर मदुरा और कुर्ग में स्थित उद्गै अधिकृत कर लिया। यही नहीं, राजराज ने सिंहल पर आक्रमण करके उसके उत्तरी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया। राजराज ने पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण कर वेंगी को जीत लिया। किंतु इसके बाद पूर्वी चालुक्य सिंहासन पर उन्होंने शक्तिवर्मन् को प्रतिष्ठित किया और अपनी पुत्री कुंदवा का विवाह शक्तविर्मन् के लघु भ्राता विमलादित्य से किया। इस समय कलिंग के गंग राजा भी वेंगी पर दृष्टि गड़ाए थे, राजराज ने उन्हें भी पराजित किया। राजराज के पश्चात् उनके पुत्र राजेंद्र प्रथम (1012-1044) सिंहासनारूढ़ हुए। राजेंद्र प्रथम भी अत्यंत शक्तिशाली सम्राट् थे। राजेंद्र ने चेर, पांड्य एवं सिंहल जीता तथा उन्हें अपने राज्य में मिला लिया। उन्होंने पश्चिमी चालुक्यों को कई युद्धों में पराजित किया, उनकी राजधानी को ध्वस्त किया किंतु उनपर पूर्ण विजय न प्राप्त कर सके। राजेंद्र के दो अन्य सैनिक अभियान अत्यंत उल्लेखनीय हैं। उनका प्रथम सैनिक अभियान पूर्वी समुद्रतट से कलिंग, उड़ीसा, दक्षिण कोशल आदि के राजाओं को पराजित करता हुआ बंगाल के विरुद्ध हुआ। उन्होंने पश्चिम एवं दक्षिण बंगाल के तीन छोटे राजाओं को पराजित करने के साथ साथ शक्तिशाली पाल राजा महीपाल को भी पराजित किया। इस अभियान का कारण अभिलेखों के अनुसार गंगाजल प्राप्त करना था। यह भी ज्ञात होता है कि पराजित राजाओं को यह जल अपने सिरों पर ढोना पड़ा था। किंतु यह मात्र आक्रमण था, इससे चोल साम्राज्य की सीमाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। | राष्ट्रकूट के सम्राट कृष्ण III ने परंतक को कब हराया था ? | {
"text": [
"949 ई."
],
"answer_start": [
689
]
} | When did the Rashtrakuta emperor Krishna III defeat Parantaka? | After the above mentioned long -term dominance, the cholas were resurrected from the middle of the ninth century.The founder of this Chola dynasty Vijayalaya (850-870-71 AD) was the ruler of the Urai region in Pallava subordination.There were about 20 kings in the dynasty of Vijayalaya, who ruled for more than four hundred years in total.After Vijayalaya, Aditya I (871-907), Paratank first (907–955) ruled respectively.Parantak I also defeated the involvement power of Pandya-Singhla King, Pallavas, arrows, badumbs and Rashtrakuta Krishna II.The real founder of Chola Shakti and Empire was Parantak.He also attacked Sinhala at the time of Lankapati Uday (945-53).Parantak was defeated badly in 949 AD by Rashtrakuta Emperor Krishna III in his last days.As a result of this defeat, the foundation of the Chola Empire was shaken.Many Chola kings ruled in 32 years after Parantak I.Among these, Gandaraditya, Arinjaya and Sundar Chola or Salakan were the main heads.After this, Rajaraj I (985–1014) re-established the dignity of his dynasty by many of his victories, carrying forward the spread of the Chola dynasty.He first defeated the western Ganges and snatched away their state.Subsequently, his long -term results began with Western Chalukyas.In contrast, Rajaraj got the expected success in the far south.He defeated the King of Kerala.The Pandyas were defeated and authorized in Madura and Coorg.Not only this, Rajaraja attacked Sinhala and merged his northern regions in his kingdom.Rajaraja attacked the eastern Chalukyas and conquered Vengi.But after this, he distinguished Shaktivarman on the eastern Chalukya throne and married his daughter Kundwa to Vimaladitya, a short brother of Shaktavirm after.At this time, the Ganga Raja of Kalinga was also seen on Vengi, Rajraj also defeated him.After Rajraj, his son Rajendra I (1012–1044) became throne.Rajendra I was also a very powerful emperor.Rajendra won Cher, Pandya and Sinhala and mixed them in his kingdom.He defeated Western Chalukyas in many wars, demolish his capital but could not achieve complete victory over him.Two other military campaigns of Rajendra are extremely notable.His first military campaign was against Bengal defeating the kings of Kalinga, Orissa, South Kosala etc. from the eastern beach.He defeated the three small kings of West and South Bengal as well as defeated the powerful Pal King Mahipal.The reason for this campaign was to get Ganga water according to the records.It is also known that the defeated kings had to carry this water on their ends.But this was just an attack, it did not affect the boundaries of the Chola Empire. | {
"answer_start": [
689
],
"text": [
"949 A.D."
]
} |
398 | उपर्युक्त दीर्घकालिक प्रभुत्वहीनता के पश्चात् नवीं सदी के मध्य से चोलों का पुनरुत्थन हुआ। इस चोल वंश का संस्थापक विजयालय (850-870-71 ई.) पल्लव अधीनता में उरैयुर प्रदेश का शासक था। विजयालय की वंशपरंपरा में लगभग 20 राजा हुए, जिन्होंने कुल मिलाकर चार सौ से अधिक वर्षों तक शासन किया। विजयालय के पश्चात् आदित्य प्रथम (871-907), परातंक प्रथम (907-955) ने क्रमश: शासन किया। परांतक प्रथम ने पांड्य-सिंहल नरेशों की सम्मिलित शक्ति को, पल्लवों, बाणों, बैडुंबों के अतिरिक्त राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय को भी पराजित किया। चोल शक्ति एवं साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक परांतक ही था। उसने लंकापति उदय (945-53) के समय सिंहल पर भी एक असफल आक्रमण किया। परांतक अपने अंतिम दिनों में राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय द्वारा 949 ई. में बड़ी बुरी तरह पराजित हुआ। इस पराजय के फलस्वरूप चोल साम्राज्य की नींव हिल गई। परांतक प्रथम के बाद के 32 वर्षों में अनेक चोल राजाओं ने शासन किया। इनमें गंडरादित्य, अरिंजय और सुंदर चोल या परातक दि्वतीय प्रमुख थे। इसके पश्चात् राजराज प्रथम (985-1014) ने चोल वंश की प्रसारनीति को आगे बढ़ाते हुए अपनी अनेक विजयों द्वारा अपने वंश की मर्यादा को पुन: प्रतिष्ठित किया। उसने सर्वप्रथम पश्चिमी गंगों को पराजित कर उनका प्रदेश छीन लिया। तदनंतर पश्चिमी चालुक्यों से उनका दीर्घकालिक परिणामहीन युद्ध आरंभ हुआ। इसके विपरीत राजराज को सुदूर दक्षिण में आशातीत सफलता मिली। उन्होंने केरल नरेश को पराजित किया। पांड्यों को पराजित कर मदुरा और कुर्ग में स्थित उद्गै अधिकृत कर लिया। यही नहीं, राजराज ने सिंहल पर आक्रमण करके उसके उत्तरी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया। राजराज ने पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण कर वेंगी को जीत लिया। किंतु इसके बाद पूर्वी चालुक्य सिंहासन पर उन्होंने शक्तिवर्मन् को प्रतिष्ठित किया और अपनी पुत्री कुंदवा का विवाह शक्तविर्मन् के लघु भ्राता विमलादित्य से किया। इस समय कलिंग के गंग राजा भी वेंगी पर दृष्टि गड़ाए थे, राजराज ने उन्हें भी पराजित किया। राजराज के पश्चात् उनके पुत्र राजेंद्र प्रथम (1012-1044) सिंहासनारूढ़ हुए। राजेंद्र प्रथम भी अत्यंत शक्तिशाली सम्राट् थे। राजेंद्र ने चेर, पांड्य एवं सिंहल जीता तथा उन्हें अपने राज्य में मिला लिया। उन्होंने पश्चिमी चालुक्यों को कई युद्धों में पराजित किया, उनकी राजधानी को ध्वस्त किया किंतु उनपर पूर्ण विजय न प्राप्त कर सके। राजेंद्र के दो अन्य सैनिक अभियान अत्यंत उल्लेखनीय हैं। उनका प्रथम सैनिक अभियान पूर्वी समुद्रतट से कलिंग, उड़ीसा, दक्षिण कोशल आदि के राजाओं को पराजित करता हुआ बंगाल के विरुद्ध हुआ। उन्होंने पश्चिम एवं दक्षिण बंगाल के तीन छोटे राजाओं को पराजित करने के साथ साथ शक्तिशाली पाल राजा महीपाल को भी पराजित किया। इस अभियान का कारण अभिलेखों के अनुसार गंगाजल प्राप्त करना था। यह भी ज्ञात होता है कि पराजित राजाओं को यह जल अपने सिरों पर ढोना पड़ा था। किंतु यह मात्र आक्रमण था, इससे चोल साम्राज्य की सीमाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। | राजेंद्र का दूसरा हमला किसके खिलाफ हुआ था? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Rajendra's second attack was against whom? | After the above mentioned long -term dominance, the cholas were resurrected from the middle of the ninth century.The founder of this Chola dynasty Vijayalaya (850-870-71 AD) was the ruler of the Urai region in Pallava subordination.There were about 20 kings in the dynasty of Vijayalaya, who ruled for more than four hundred years in total.After Vijayalaya, Aditya I (871-907), Paratank first (907–955) ruled respectively.Parantak I also defeated the involvement power of Pandya-Singhla King, Pallavas, arrows, badumbs and Rashtrakuta Krishna II.The real founder of Chola Shakti and Empire was Parantak.He also attacked Sinhala at the time of Lankapati Uday (945-53).Parantak was defeated badly in 949 AD by Rashtrakuta Emperor Krishna III in his last days.As a result of this defeat, the foundation of the Chola Empire was shaken.Many Chola kings ruled in 32 years after Parantak I.Among these, Gandaraditya, Arinjaya and Sundar Chola or Salakan were the main heads.After this, Rajaraj I (985–1014) re-established the dignity of his dynasty by many of his victories, carrying forward the spread of the Chola dynasty.He first defeated the western Ganges and snatched away their state.Subsequently, his long -term results began with Western Chalukyas.In contrast, Rajaraj got the expected success in the far south.He defeated the King of Kerala.The Pandyas were defeated and authorized in Madura and Coorg.Not only this, Rajaraja attacked Sinhala and merged his northern regions in his kingdom.Rajaraja attacked the eastern Chalukyas and conquered Vengi.But after this, he distinguished Shaktivarman on the eastern Chalukya throne and married his daughter Kundwa to Vimaladitya, a short brother of Shaktavirm after.At this time, the Ganga Raja of Kalinga was also seen on Vengi, Rajraj also defeated him.After Rajraj, his son Rajendra I (1012–1044) became throne.Rajendra I was also a very powerful emperor.Rajendra won Cher, Pandya and Sinhala and mixed them in his kingdom.He defeated Western Chalukyas in many wars, demolish his capital but could not achieve complete victory over him.Two other military campaigns of Rajendra are extremely notable.His first military campaign was against Bengal defeating the kings of Kalinga, Orissa, South Kosala etc. from the eastern beach.He defeated the three small kings of West and South Bengal as well as defeated the powerful Pal King Mahipal.The reason for this campaign was to get Ganga water according to the records.It is also known that the defeated kings had to carry this water on their ends.But this was just an attack, it did not affect the boundaries of the Chola Empire. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
399 | उपर्युक्त दीर्घकालिक प्रभुत्वहीनता के पश्चात् नवीं सदी के मध्य से चोलों का पुनरुत्थन हुआ। इस चोल वंश का संस्थापक विजयालय (850-870-71 ई.) पल्लव अधीनता में उरैयुर प्रदेश का शासक था। विजयालय की वंशपरंपरा में लगभग 20 राजा हुए, जिन्होंने कुल मिलाकर चार सौ से अधिक वर्षों तक शासन किया। विजयालय के पश्चात् आदित्य प्रथम (871-907), परातंक प्रथम (907-955) ने क्रमश: शासन किया। परांतक प्रथम ने पांड्य-सिंहल नरेशों की सम्मिलित शक्ति को, पल्लवों, बाणों, बैडुंबों के अतिरिक्त राष्ट्रकूट कृष्ण द्वितीय को भी पराजित किया। चोल शक्ति एवं साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक परांतक ही था। उसने लंकापति उदय (945-53) के समय सिंहल पर भी एक असफल आक्रमण किया। परांतक अपने अंतिम दिनों में राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय द्वारा 949 ई. में बड़ी बुरी तरह पराजित हुआ। इस पराजय के फलस्वरूप चोल साम्राज्य की नींव हिल गई। परांतक प्रथम के बाद के 32 वर्षों में अनेक चोल राजाओं ने शासन किया। इनमें गंडरादित्य, अरिंजय और सुंदर चोल या परातक दि्वतीय प्रमुख थे। इसके पश्चात् राजराज प्रथम (985-1014) ने चोल वंश की प्रसारनीति को आगे बढ़ाते हुए अपनी अनेक विजयों द्वारा अपने वंश की मर्यादा को पुन: प्रतिष्ठित किया। उसने सर्वप्रथम पश्चिमी गंगों को पराजित कर उनका प्रदेश छीन लिया। तदनंतर पश्चिमी चालुक्यों से उनका दीर्घकालिक परिणामहीन युद्ध आरंभ हुआ। इसके विपरीत राजराज को सुदूर दक्षिण में आशातीत सफलता मिली। उन्होंने केरल नरेश को पराजित किया। पांड्यों को पराजित कर मदुरा और कुर्ग में स्थित उद्गै अधिकृत कर लिया। यही नहीं, राजराज ने सिंहल पर आक्रमण करके उसके उत्तरी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया। राजराज ने पूर्वी चालुक्यों पर आक्रमण कर वेंगी को जीत लिया। किंतु इसके बाद पूर्वी चालुक्य सिंहासन पर उन्होंने शक्तिवर्मन् को प्रतिष्ठित किया और अपनी पुत्री कुंदवा का विवाह शक्तविर्मन् के लघु भ्राता विमलादित्य से किया। इस समय कलिंग के गंग राजा भी वेंगी पर दृष्टि गड़ाए थे, राजराज ने उन्हें भी पराजित किया। राजराज के पश्चात् उनके पुत्र राजेंद्र प्रथम (1012-1044) सिंहासनारूढ़ हुए। राजेंद्र प्रथम भी अत्यंत शक्तिशाली सम्राट् थे। राजेंद्र ने चेर, पांड्य एवं सिंहल जीता तथा उन्हें अपने राज्य में मिला लिया। उन्होंने पश्चिमी चालुक्यों को कई युद्धों में पराजित किया, उनकी राजधानी को ध्वस्त किया किंतु उनपर पूर्ण विजय न प्राप्त कर सके। राजेंद्र के दो अन्य सैनिक अभियान अत्यंत उल्लेखनीय हैं। उनका प्रथम सैनिक अभियान पूर्वी समुद्रतट से कलिंग, उड़ीसा, दक्षिण कोशल आदि के राजाओं को पराजित करता हुआ बंगाल के विरुद्ध हुआ। उन्होंने पश्चिम एवं दक्षिण बंगाल के तीन छोटे राजाओं को पराजित करने के साथ साथ शक्तिशाली पाल राजा महीपाल को भी पराजित किया। इस अभियान का कारण अभिलेखों के अनुसार गंगाजल प्राप्त करना था। यह भी ज्ञात होता है कि पराजित राजाओं को यह जल अपने सिरों पर ढोना पड़ा था। किंतु यह मात्र आक्रमण था, इससे चोल साम्राज्य की सीमाओं पर कोई असर नहीं पड़ा। | चोल वंश के संस्थापक कौन थे ? | {
"text": [
"विजयालय"
],
"answer_start": [
111
]
} | Who was the founder of the Chola dynasty? | After the above mentioned long -term dominance, the cholas were resurrected from the middle of the ninth century.The founder of this Chola dynasty Vijayalaya (850-870-71 AD) was the ruler of the Urai region in Pallava subordination.There were about 20 kings in the dynasty of Vijayalaya, who ruled for more than four hundred years in total.After Vijayalaya, Aditya I (871-907), Paratank first (907–955) ruled respectively.Parantak I also defeated the involvement power of Pandya-Singhla King, Pallavas, arrows, badumbs and Rashtrakuta Krishna II.The real founder of Chola Shakti and Empire was Parantak.He also attacked Sinhala at the time of Lankapati Uday (945-53).Parantak was defeated badly in 949 AD by Rashtrakuta Emperor Krishna III in his last days.As a result of this defeat, the foundation of the Chola Empire was shaken.Many Chola kings ruled in 32 years after Parantak I.Among these, Gandaraditya, Arinjaya and Sundar Chola or Salakan were the main heads.After this, Rajaraj I (985–1014) re-established the dignity of his dynasty by many of his victories, carrying forward the spread of the Chola dynasty.He first defeated the western Ganges and snatched away their state.Subsequently, his long -term results began with Western Chalukyas.In contrast, Rajaraj got the expected success in the far south.He defeated the King of Kerala.The Pandyas were defeated and authorized in Madura and Coorg.Not only this, Rajaraja attacked Sinhala and merged his northern regions in his kingdom.Rajaraja attacked the eastern Chalukyas and conquered Vengi.But after this, he distinguished Shaktivarman on the eastern Chalukya throne and married his daughter Kundwa to Vimaladitya, a short brother of Shaktavirm after.At this time, the Ganga Raja of Kalinga was also seen on Vengi, Rajraj also defeated him.After Rajraj, his son Rajendra I (1012–1044) became throne.Rajendra I was also a very powerful emperor.Rajendra won Cher, Pandya and Sinhala and mixed them in his kingdom.He defeated Western Chalukyas in many wars, demolish his capital but could not achieve complete victory over him.Two other military campaigns of Rajendra are extremely notable.His first military campaign was against Bengal defeating the kings of Kalinga, Orissa, South Kosala etc. from the eastern beach.He defeated the three small kings of West and South Bengal as well as defeated the powerful Pal King Mahipal.The reason for this campaign was to get Ganga water according to the records.It is also known that the defeated kings had to carry this water on their ends.But this was just an attack, it did not affect the boundaries of the Chola Empire. | {
"answer_start": [
111
],
"text": [
"Vijayalaya"
]
} |